Wednesday, April 17, 2024

जांच में पुलिस की विफलता के लिए इतिहास में याद किया जायेगा दिल्ली दंगा: कोर्ट

दिल्ली दंगों में पुलिस की जांच कई मौकों पर सवालों के घेरे में आई है। अब दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने भी गुरुवार को पुलिस जांच पर तल्ख टिप्पणी कर दी है। दंगे के मुख्य आरोपी और आप के पार्षद रहे ताहिर हुसैन के भाई शाह आलम और दो अन्य लोगों को आरोपों से मुक्त करते हुए कड़कड़डूमा जिला न्यायालयों में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विनोद यादव ने कहा कि ये दंगा विभाजन के बाद से दिल्ली के इतिहास में सबसे खराब सांप्रदायिक दंगों की नवीनतम वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए उचित जांच करने में दिल्ली पुलिस की विफलता के लिए याद किया जाएगा। इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगों के एक आरोपी के खिलाफ एक ही संज्ञेय अपराध के लिए दायर कई एफ़आईआर रद्द कर दी।

न्यायाधीश ने कहा कि मैं अपने आप को ये कहने से नहीं रोक पा रहा हूं इतिहास बंटवारे के बाद हुए इस सबसे भयंकर दंगे को पुलिस की विफलता के तौर पर याद रखेगा। इस कार्रवाई में पुलिस अधिकारियों की निगरानी में साफ कमी महसूस की गई, वहीं पुलिस ने भी जांच के नाम पर कोर्ट की आंखों में पट्टी बांधने का काम किया।

न्यायाधीश ने कहा कि दंगों की कार्रवाई के दौरान पुलिस ने सिर्फ चार्जशीट दाखिल करने की होड़ दिखाई है, असल मायनों में केस की जांच नहीं हो रही।ये सिर्फ समय की बर्बादी है। कुछ आंकड़ों के जरिए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने बताया कि दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में हुए दंगों में 750 मामले दाखिल किए गए हैं, उसमें भी ज्यादातर केस की सुनवाई इस कोर्ट द्वारा की जा रही है। सिर्फ 35 मामलों में ही आरोप तय हो पाए हैं। कई आरोपी भी सिर्फ इसलिए जेल में बंद पड़े हैं, क्योंकि अभी तक उनके केस की सुनवाई शुरू नहीं हो सकी है।

अब जिस केस में कोर्ट ने सख्त रवैया दिखाया है वो दिल्ली दंगों से जुड़ा हुआ है।दरअसल पिछले साल 24 फरवरी को ओम सिंह नाम के शख्स की पान की दुकान को जला दिया गया था।उस घटना के बाद अगले ही दिन चांद बाग स्थित हरप्रीत की फर्नीचर की दुकान में लूटपाट हुई थी और फिर उसमें आग लगा दी गई। उस घटना के बाद दयालपुर पुलिस द्वारा ताहिर हुसैन के भाई आलम और दो और लोगों को आरोपित बनाया गया था।लेकिन अब कोर्ट द्वारा ताहिर हुसैन के भाई को डिसचार्ज कर दिया गया है।कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली दंगों की जांच के दौरान पुलिस ने कई मौकों पर कोई कार्रवाई नहीं की। बिना किसी चश्मदीद गवाहों से मुलाकात के, बिना तथ्य के सिर्फ चार्जशीट दाखिल कर दी गई।

कोर्ट ने पुलिस से भी सवाल पूछा कि जब दंगे के दौरान लूटपाट हो रही थी, हिंसा हो रही थी, तब लोगों ने इस भीड़ को कैसे नहीं देखा। ये बात समझ से परे है और सवाल खड़े करती है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि जिस तरीके की पड़ताल जांच एजेंसी के द्वारा की गई है, उससे यह साफ होता है कि इस जांच पर वरिष्ठ अधिकारियों की भी कहीं कोई नज़र नहीं थी।कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि ऐसा लगता है कि जांच एजेंसी ने सिर्फ केस सुलझाने के नाम के लिए ही अदालत में चार्जशीट दायर कर दी, जबकि जांच के दौरान दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से जांच होनी चाहिए थी वो की ही नहीं।

कड़कड़डूमा कोर्ट में बचाव पक्ष के वकील दिनेश तिवारी ने कहा कि उनके मुवक्किलों के पास से कोई हथियार नहीं मिला है, न ही उनकी उपस्थिति दर्शाता वीडियो फुटेज अब तक पेश किया गया। साथ ही कहा कि इन मामलों में केवल एक-एक गवाह हैं, वे भी पुलिसवाले। कोई सार्वजनिक गवाह नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस कॉन्स्टेबलों ने झूठी गवाही दी है, वह घटनास्थल पर नहीं थे। वह मौके पर होते तो पुलिस कंट्रोल रूम को कॉल कर सूचना देते। लेकिन इसका कोई रिकॉर्ड पुलिस के पास नहीं है।

अभियोजन पक्ष की तरफ से दिल्ली पुलिस के वकील अमित प्रसाद ने कहा कि कॉन्स्टेबल घटना के वक्त मौके पर मौजूद थे, उन्होंने आरोपियों की पहचान की है। सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को लेकर उन्होंने तर्क दिया कि दंगाइयों ने उस क्षेत्र में काफी संख्या में कैमरे तोड़ दिए थे। दोनों तरफ की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने बचाव पक्ष के तर्कों को मानते हुए सुबूतों के अभाव में दोनों मामलों के तीनों आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया। तीनों इस वक्त जमानत पर बाहर हैं।

आरोपियों पर धारा 147 (दंगा करने), 148 (घातक हथियार इस्तेमाल करने), 149 (गैरकानूनी समूह में समान मंशा से अपराध करने), 188 (सरकारी आदेश का उल्लंघन करने), 380 (चोरी करने), 427 (पचास रुपये से अधिक की हानि करने) और 436 (संपत्ति या उपासना स्थल को आग लगाने), 454 (छिप कर गृह भेदन करना)के तहत एफआईआर दर्ज़ थी।  

एक मामले में कई एफआईआर

इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगों के एक आरोपी के खिलाफ एक ही संज्ञेय अपराध के लिए दायर कई एफ़आईआर रद्द कर दी ।दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली दंगों के एक आरोपी के खिलाफ दर्ज पांच प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में से चार को उसके खिलाफ दर्ज एक ही अपराध के संबंध में खारिज कर दिया। एक ही परिवार के विभिन्न सदस्यों द्वारा आवेदक के खिलाफ पांच प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान मौजपुर में उनके घरों को आग लगा दी थी। ये संपत्तियां एक-दूसरे के निकट थीं, और एक ही परिसर की सीमाओं के भीतर स्थित थीं।

आवेदक की ओर से पेश अधिवक्ता तारा नरूला ने तर्क दिया कि एक ही अपराध के संबंध में लगातार प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती, क्योंकि यह टीटी एंटनी बनाम केरल राज्य के मामले में निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ है। उस मामले में यह निर्धारित किया गया था कि एक अपराध के लिए एक से अधिक प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है। राज्य की ओर से पेश हुए, विशेष लोक अभियोजक अनुज हांडा ने प्रस्तुत किया कि याचिका गलत है, और इसे सरसरी तौर पर खारिज कर दिया जाना चाहिए।

उन्होंने यह दिखाने के लिए इलाके के नक्शे पर भरोसा किया कि अलग-अलग संपत्तियों के संबंध में सभी प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और प्रत्येक प्राथमिकी का विषय अन्य से अलग था। इसके अलावा, उन्होंने दलील दिया कि परिसर के निवासियों द्वारा किए गए नुकसान को व्यक्तिगत रूप से भुगतना पड़ा है।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद, कोर्ट ने कहा कि सभी प्राथमिकी उनकी सामग्री में समान थीं। वे सभी एक घर से संबंधित थे जहां आग लगी थी और तत्काल पड़ोसी परिसर के साथ-साथ उसी घर के फर्श तक फैल गई थी।टीटी एंटनी में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित सिद्धांत के मद्देनजर, न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि एक या एक से अधिक संज्ञेय अपराधों को जन्म देने वाले एक ही संज्ञेय अपराध या एक ही घटना के संबंध में कोई दूसरी प्राथमिकी और कोई नई जांच नहीं हो सकती है।

 (जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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