पलामू। दुनिया भर में ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) से हर साल लगभग 15 लाख लोगों की मौत हो जाती है। दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी टीबी से संक्रमित है। जिसमें भारत का पहला स्थान है, भारत में 27 प्रतिशत लोग प्रभावित में लोगों में हैं। टीबी के दो तिहाई मामले दुनिया के आठ देशों में हैं, जिसमें भारत (27 फ़ीसदी), चीन (9 फ़ीसदी), इंडोनेशिया (8 फ़ीसदी), फिलीपींस (6 फ़ीसदी), पाकिस्तान (6 फ़ीसदी), नाइजीरिया (4 फ़ीसदी), बांग्लादेश (4 फ़ीसदी) और दक्षिण अफ़्रीका (3 फ़ीसदी) शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक देश में हर साल लगभग 30 लाख नए टीबी के मामले दर्ज किए जाते हैं, इनमें से क़रीब एक लाख मल्टीड्रग रेज़िस्टेंट के मामले होते हैं।

यह जान लेना जरूरी है कि टीबी और कोरोना के संक्रमण विस्तार की प्रक्रिया एक समान है। दोनों में फर्क बस इतना है कि जहां कोरोना अभी लाइलाज है, वहीं टीबी के साथ ऐसी बात नहीं है। कभी यह भी लाइलाज बीमारी हुआ करती थी। आज सरकार की ओर से इसके इलाज के साथ दवाइयां भी मुफ्त में दी जाती हैं। मगर हमारी व्यवस्था में जंग लग चुका है, स्वास्थ्य कर्मी संवेदनहीन हो चुके हैं। सरकारी अस्पतालों की दुर्व्यवस्था चरम पर है। जिसका जीत-जागता उदाहरण हम झारखंड के पलामू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में देख सकते हैं। जहां टीबी का मरीज विदेशी परहिया यह कहते कि इससे तो मेरा घर ज्यादा साफ-सुथरा रहता है, अस्पताल में भर्ती किये जाने के दूसरे दिन ही भाग खड़ा होता है। कहना ना होगा कि विदेशी परहिया का घर देखने के बाद अस्पताल की स्थिति क्या होगी, स्वत: अंदाजा लगाया जा सकता है।

बता दें कि मनातु प्रखंड के दलदलिया गांव का विदेशी परहिया और केदल गांव (कोहबरिया टोला) का सकेन्दर परहिया, जो टीबी की गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं, को 9 अप्रैल को पीएमसीएच (पलामू मेडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल) में भर्ती कराया गया था। इन टीबी के मरीजों को भर्ती कराने में उन्हें लाने वालों के पसीने छूट गये। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने तथा बेड के लिए वार्ड से लेकर अस्पताल अधीक्षक कार्यालय और यक्ष्मा केन्द्र के घंटों चक्कर लगाने पड़े।
अस्पताल के बड़े तो बड़े छोटे कर्मचारी भी कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। यहां जाओ, वहां जाओ, करते अस्पताल कर्मी एक दूसरे पर टालते रहे। ट्रॉली मैन मरीज के साथ गए लोगों को ही ट्रॉली से मरीज को ले जाने का निर्देश दे रहा था। सब के सब जिम्मेदारी एक दूसरे पर फेंकते रहे। यहां अव्यवस्था की स्थिति का आलम यह था कि सिविल सर्जन के फोन तथा निर्देश के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं था। अंततः बड़ी मशक़्क़त के बाद टीबी पीड़ित दोनों परहियाओं को बेड दिलवाया जा सका।

एनसीडीएचआर के राज्य समन्वयक मिथिलेश कुमार बताते हैं कि इन्हें भर्ती कराने के बाद हमें लगा कि जैसे हमने कोई जंग जीत लिया हो। मगर कक्ष में इतनी गंदगी थी कि बीमार सकेन्दर परहिया बेड पर सोने को तैयार नहीं था, किसी तरह समझा बुझा कर उसे बेड पर रखा गया। विदेशी परहिया अस्पताल के अंदर की गंदगी से घबड़ाकर बाहर आकर बैठ गया। विदेशी परहिया का कहना था कि यहां काफी दिन हम नहीं रह पायेंगे। क्योंकि मेरा घर इससे बहुत ज्यादा साफ-सुथरा रहता है। जबकि सकेन्दर परहिया चल फिर सकने में अक्षम होने के कारण चुपचाप बेड पर पड़ा रहा।
मिथिलेश बताते हैं कि अभी इन्हें सिर्फ भर्ती कराया गया है। अभी इनका चेक अप होना बाकी है। बीमार मरीज को सहानुभूति की जरूरत होती है, लेकिन यहां अस्पताल कर्मियों का जो व्यवहार है, उससे लगता है कि मरीज ठीक होने के बजाय और बीमार हो जाएंगे।
बताते चलें कि इन टीबी मरीजों सहित चार अन्य मरीजों को भी पिछली 1 अप्रैल को इसी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तब ये लोग दूसरे ही दिन अस्पताल से भाग गये थे।
मिथिलेश कुमार कहते हैं कि इस अस्पताल की अव्यवस्था और गंदगी देखने बाद समझ में आ गया कि ये लोग बगैर ठीक हुए क्यों भाग गये थे।

हालांकि इस मामले को मुख्यमंत्री जन संवाद केंद्र, झारखंड ने संज्ञान में लिया। मगर इस संज्ञान से अस्पताल की व्यवस्था पर किसी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ा है। जिसका जीता जागता उदाहरण इस बात से लगाया जा सकता है कि जिन टीबी मरीजों विदेशी परहिया और सकेन्दर परहिया को 9 अप्रैल को भर्ती कराया गया था, वे अस्पताल की दुर्व्यवस्था से घबड़ाकर दूसरे दिन 10 अप्रैल को ही भाग गए। हालांकि अगर इन परहिया समुदाय के टीबी मरीजों का इलाज समय रहते नहीं हुआ तो इनके लिये काफी खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है।
बताते चलें कि झारखंड के विभिन्न इलाकों में आदिम जनजातियों के लोग रहते हैं। इनमें कोरवा, परहिया, असुर, बिरजिया, बिरहोर, माल पहाड़िया, साबर, सौरिया पहाड़िया और हिल खड़िया आदि जनजातियां शामिल हैं। इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। जिसका प्रमुख कारण आजीविका का एक मात्र साधन केवल जंगल का होना है। इनको जंगलों से कई तरह की जीवनोपयोगी जड़ी-बुटी, कंद-मूल समेत संतुलित आहार के तौर पर कई तरह के सागों सरीखे पोषक तत्व मिलते रहे हैं। जंगली जीवों जैसे खरगोश, चिड़िया वगैरह भी इनके आहार हैं। खरगोश का मांस अत्यधिक खाने से इनकी प्रजनन क्षमता पर भी विपरीत असर पड़ा है। इनमें कुपोषण भी बहुत ज्यादा है क्योंकि ये संतुलित आहार नहीं समझते हैं। इनकी शिशु मृत्यु दर भी बहुत अधिक है।
ये जंगलों से बांस वगैरह काट कर उससे टोकरी वगैरह बनाकर अपनी अन्य जरूरतें पूरी करते रहे हैं। और अब जंगल को काटा जा रहा है और वन अधिनियम के तहत इनको जंगल से बेदखल किया जा रहा है। जबकि इनकी निर्भरता कृषि पर कभी नहीं रही, ऊपर से इनके पास कृषि के लिए जमीन भी नहीं है। जिनके पास थोड़ी जमीन है भी तो वे उस पर खेती नहीं कर पाते हैं। मतलब ये लोग आज भी पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर हैं। यही वजह है कि आज ये लोग कुपोषण के कारण कई खतरनाक बीमारियों से ग्रसित हो रह रहे हैं, तथा इनकी मृत्यु दर का ग्राफ बढ़ता रहा है। यही वजह है कि इन्हें विलुप्त होने वाली जनजातियों में शुमार किया गया है। राज्य के पलामू जिले में कई आदिवासी समुदायों के बीच रहते हैं परहिया आदिम जनजाति के लोग।

यह जनजाति भोजन के समुचित अभाव में कुपोषण के कारण कई बीमारियों से ग्रसित रहने को मजबूर है, खासकर पुरूषों में टीबी और महिलाओं में एनेमिया का प्रभाव काफी है। करीब 20 लाख जनसंख्या वाले पलामू में परहिया जनजातियों की जनसंख्या लगभग 5 हजार है। वहीं जिला मुख्यालय से करीब 70 किमी दूर है मनातु प्रखंड, जहां राशन कार्ड में दर्ज नामों के आधार पर इनकी आबादी 1003 है। आनलाइन सर्च में 420 परहिया परिवारों का राशन कार्ड दिखता है। जबकि सूत्र बताते हैं कि यहां 500 से अधिक परहिया परिवार रहता है। स्पष्ट है कि राशन कार्ड में एक परिवार से औसतन 2 लोगों का ही नाम दर्ज किया गया है। जबकि एक परिवार में औसतन 4-5 की संख्या मानी जाती है।
एक ही इलाक़े से परहिया समुदाय के 6 लोग काफी दिनों से टीबी रोग से पीड़ित हैं। लेकिन जब इन सभी के मुंह से लगभग 25 दिन पहले खून आने लगा तो गांव के लोगों ने उन्हें नजदीकी सरकारी अस्पताल मनातु सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया। मगर यहां इनका इलाज नहीं किया गया तथा इन्हें पलामू मेडिकल कालेज अस्पताल रेफर कर दिया गया। जब इन लोगों ने पलामू मेडिकल कालेज अस्पताल जाने के लिए एम्बुलेंस की मांग की, जो कि वहां से करीब 70 किमी दूर है, तो उनके परिजनों को डांटकर भगा दिया गया। मरता क्या नहीं करता, गांव के कुछ लोगों ने एक अप्रैल को इन्हें मोटरसाईकिल से पलामू मेडिकल कालेज अस्पताल पहुंचाया। अस्पताल ले जाने के क्रम में रास्ते में मोटरसाइकिल चालकों को कई बार रूकना पड़ा क्योंकि ये इतने कमजोर हो चुके थे कि मोटरसाइकिल में बैठने में भी असमर्थ थे। पलामू मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्ती कराये जाने के बाद मरीजों की जांच का सैंपल मेडिकल अस्पताल के लैब के बजाय बाहर के निजी लैब में भेज दिया गया।
उतना ही नहीं इनको मेडिकल अस्पताल से दवा न देकर बाहर से दवा खरीदने की सलाह दी गई। अस्पताल के चिकित्सकों व कर्मचारियों की संवेदनहीनता का आलम यह रहा कि उन लोगों ने मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया। जबकि गांव के लोग इन्हें अस्पताल में भर्ती कराकर गांव वापस आ गए थे। लेकिन उसके बाद भर्ती मरीज़ अस्पताल की व्यवस्था देखकर बेहद परेशान हो गए। लिहाज़ा ये लोग 2 अप्रैल को पैदल ही अपने गांव लौट चले। बीमार कमजोर ये सभी 70-75 किमी पैदल चलकर तीन दिन बाद किसी तरह अपने घर पहुंचे।

सकेन्दर परहिया के पिता चरखू परहिया ने 6 अप्रैल को जेएसएलपीएल (झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रोमोशनल सोसाइटी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सह विशेष सचिव, झारखंड सरकार के राजीव कुमार को एक पत्र भेजकर इसकी शिकायत की। उन्होंने पूरी कहानी साफ-साफ बयान कर दी। उन्होंने बताया कि उनका बेटा सकेन्दर परहिया समेत परहिया समुदाय के छह लोग काफी बीमार हैं। उनके मुंह से खून आने पर उन लोगों ने उन्हें नजदीक के सरकारी अस्पताल मनातु सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराने की कोशिश की। लेकिन भर्ती करने की जगह उनको अपमानित किया गया और गाली-गलौज देकर भगा दिया गया। बाद में काफ़ी विनती करने पर मामले को पलामू मेडिकल कालेज अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया।
चरखू परहिया का आरोप है कि जब भी वे लोग अस्पताल जाते हैं, उन्हें डांटकर भगा दिया जाता है। चरखू परहिया के पत्र को तुरंत संज्ञान में लेते हुए जेएसएलपीएल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सह विशेष सचिव राजीव कुमार ने पत्रांक JSLPL/027, दिनांक 06/05/2020 के तहत पलामू के डीसी को निर्देश दिया कि कैम्प लगाकर मेडिकल टीम द्वारा पीड़ितों की जांच कराई जाए और जरुरत पड़ने पर उन्हें रांची स्थित इटकी के यक्ष्मा (टीबी) अस्पताल में भर्ती किया जाए। इस निर्देश के बाद मेडिकल टीम इनकी जांच करने पहुंची। तथा 9 अप्रैल को टीबी के पीड़ितों में से केवल दो लागों, विदेशी परहिया और सकेंदर परहिया को पलामू मेडिकल कालेज अस्पताल भेजा गया। जहां से वो भर्ती किये गए जाने के दूसरे दिन ही भाग कर अपने घर आ गये।
(पलामू से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)