जेपी लगभग राजनीतिक दलों के लिए सदैव खास रहे हैं। आपातकाल की बरसी हो या जयंती वे पूज्यनीय हो जाते हैं। जब कोई चुनाव आता है तो वही जेपी सबके आदर्श बन जाते हैं, लेकिन दुखद बात यह है कि संपूर्ण क्रांति के प्रणेता उसी जेपी के गांव जाने वाली सड़क का आज तक कायाकल्प नहीं हो सका। यहां की पतली सी बीएसटी बांध की वह सड़क ही बयां कर रही कि कौन जेपी का सच्चा भक्त है। इसी महीने में 11 अक्तूबर को जेपी की जयंती भी है। जाहिर है बिहार चुनाव के चलते उनकी जयंती में कई शीर्ष नेता उनको नमन करने उनके गांव पहुंचेंगे। जेपी की सोच की चर्चा संग, जेपी के मुद्दों पर भी बात करेंगे, लेकिन जेपी के गांव के लोग किस हाल में हैं, वहां की सड़क किस हाल में है, हम आपको बताते हैं।
महात्मा गांधी की जयंती पर एक दिन पूर्व मैं जेपी के गांव सिताबदियारा में था। जेपी से जुड़ी बातें मैं अगले अंक में बताऊंगा, आज सिर्फ उस सड़क पर चर्चा कर लूं, जो यहां यूपी-बिहार दोनों सीमा के गांवों की लाइफ लाइन है। बलिया-छपरा एनएच-31 के चांददियर चौराहे से निकलती यह सड़क सिताबदियारा, जयप्रकाशनगर, दोकटी, लालगंज होते हुए पुन: टेंगरही में आकर उसी एनएच से जुड़ जाती है। इसकी कुल दूरी 22 किमी है। चांददियर से सिताबदियारा तक इसकी दूरी नौ किमी है।
पूरी तरह उखड़ी पड़ी यह सड़क जेपी की तमाम यादों को समेटे चौड़ीकरण की आस में अब बूढ़ी हो चली है। सिताबदियारा में यूपी और बिहार दोनों सीमा के लोगों के लिए यह लाइफ-लाइन इसलिए कही जाती है कि यूपी-बिहार दोनों तरफ के लोग इसी सड़क पर चलते हैं। इस सड़क को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बनवाया था। शीर्ष नेताओं से लेकर दूर-दराज के शोधकर्ता भी जेपी को नमन करने इसी सड़क जेपी के गांव सिताबदियारा पहुंचते हैं। बैरिया, बलिया, छपरा, पटना आदि स्थानों के लिए विभिन्न प्रकार के वाहन इसी सड़क से होकर सिताबदियारा जाते हैं। इसके बावजूद भी जेपी के भक्तों की नजरों से यह सड़क पूरी तरह गायब हैं।
जेपी के नाम पर हैं दो संग्रहालय
यूपी-बिहार दोनों सीमा में बंटे सिताबदियारा में अब यूपी बिहार दोनों सीमा में ट्रस्ट है। यूपी के जयप्रकाश नगर में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने जेपी निवास के पास जेपी नारायण स्मारक प्रतिष्ठान की स्थापना की है। वहीं अब बिहार सीमा के लाला टोला में बिहार के सीएम नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी ने भव्य राष्ट्रीय जेपी संग्रहालय का निर्माण कराया है, लेकिन इन संग्रहालयों तक पहुंचने के लिए किसी को भी सड़क पर कठिन तपस्या करनी होगी।
सड़क के चलते ही बदल गया था आडवाणी का वह कार्यक्रम
बीएसटी बांध की इस पतली उखड़ी सड़क के चलते ही वर्ष 2011 में सिताबदियारा से निकलने वाली भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी की जन चेतना यात्रा में परिवर्तन करना पड़ा था। इस यात्रा के लिए जो बस तैयार की गई थी, वह जेपी के गांव तक नहीं पहुंच सकी। नतीजतन सिताबदियारा में आम सभा को संबोधित कर आडवाणी की वह बस यात्रा छपरा से शुरू हुई थी।
व्यंग्य किए थे नीतीश…यूपी कहे तो बना दूं यह सड़क
वर्ष 2011 में लाल कृष्ण आडवाणी की उसी जन चेतना यात्रा के दौरान सिताबदियारा की सभा में बिहार के सीएम नीतीश कुमार इस सड़क पर व्यंग्य किए थे। खुले मंच से बोले थे…जेपी के गांव की सड़क बेहतर हाल में होनी चाहिए, यदि यूपी कहे तो इस सड़क को मैं ही बना दूं। इसके बाद भी यूपी की सरकारों ने इस सड़क की सुध लेना जरूरी नहीं समझा। अब लगभग 60 हजार की आबादी इसी सड़क पर गिरते, उठते हर दिन यात्रा करती है और जेपी भक्तों से जेपी के उन सभी मुद्दों के बारे में सुनती है। कभी इनकी जय-जय करती है तो कभी उनकी भी जय कहती है।
(एलके सिंह, बलिया, लेखक बलिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
This post was last modified on October 4, 2020 9:27 pm