Thursday, March 28, 2024

विचारधारा को पैजामे का नाड़ा समझती है आप

विचारधारा अब दिल्ली के बजट में एक मद भर रह गई है। आप ब्रांड देशभक्ति = 500 तिरंगे +भगत सिंह+ अंबेडकर+ योग+ एक सैनिक स्कूल + एक मिलिट्री अकादमी+ बुजुर्गों के लिए वीएचपी के निर्देशन में अयोध्या में बन रहे मंदिर की एक मुफ्त यात्रा।

राष्ट्रवाद या देशभक्ति के खेल में ‘आप’ बीजेपी से होड़ ले रही है। राष्ट्रवाद या देशभक्ति एक चालाकी से प्रयोग किए जाने वाला शब्द है जिसकी आड़ में बहुसंख्यकवादी विचारधारा के तहत बीजेपी और ‘आप’ अपनी-अपनी राजनीति कर रही हैं। अब इस से क्या फर्क पड़ता है कि कोई बहुसंख्यकवादी उद्दंडता से चल रहा है और दूसरा मौके का फायदा उठा रहा है।

देशभक्ति वाला बजट पेश करके दिल्ली सरकार ने दिखा दिया है कि बहुसंख्यक भावनाओं का दोहन करने के लिए यह सरकार कुछ भी कर सकती है। भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए इस बजट ने देशभक्ति के रंग में पोत दिया है। इसके लिए आप द्वारा राष्ट्रीय ध्वज इस्तेमाल करने पर दया आती है। सरकार को आशा है कि दिल्ली में 500 राष्ट्रीय ध्वज लगाने से दिल्ली के लोग समय-समय पर राष्ट्रीयता की गूंज महसूस करेंगे। लेकिन यह एक बासी और इस्तेमाल की जा चुकी युक्ति है, बीजेपी सरकार की महज एक नकल, जिसने एक केंद्रीय विश्वविद्यालय को 207 फीट ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज फहराने की हिदायत दी थी।

बजट बनाने से भी पहले, एक स्कूल बोर्ड बनाने की घोषणा करते समय, दिल्ली सरकार का कहना था कि इसका मुख्य उद्देश्य कट्टर देशभक्त तैयार करना है। मुख्यमंत्री के मुंह से कट्टर देशभक्त शब्द सुनकर चिंता होती है।

किसी भी किस्म का कट्टरवाद हमारी सोच को सुन्न कर देता है। दूसरे, आप अपने देश के भक्त नहीं हो सकते। हमें खुले दिमाग वाले संवेदनशील मनुष्यों की जरूरत है जो अपने निरंतर विस्तृत हो रहे परिवेश के प्रति जागरूक रहें। समूचे विश्व में शिक्षा का उद्देश्य यह है कि लोग समझ सकें कि उनमें मनुष्यता का विकास दूसरों में मनुष्यता के विकास के मेल से ही संभव है। इसलिए, जब कोई सरकार अपना दायरा देशभक्ति तक ही सीमित कर ले, तो उसका कारण सोच का यांत्रिक होना ही है।

इस संबंध में भगत सिंह और अंबेडकर के नाम की दुहाई देना भी निंदनीय लगता है। स्पष्ट है कि ऐसा करने पर भगत सिंह आतंकवाद के पर्याय बन जाते हैं और अंबेडकर की छवि दलितों को लुभाने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। इन दोनों महान विभूतियों की रचनाओं को पढ़ने पर आपको पता चल जायेगा कि दोनों कट्टर देश भक्ति के विरुद्ध थे।

शिक्षाविद अनिता रामपाल इस संबंध में हमें माध्यमिक शिक्षा आयोग की 1952 में की गई सिफारिशों की याद दिलाती हैं। विभाजन की दुखद स्मृतियां अभी ताजा ही थीं। उस समय भी चेतावनी दी गई थी कि देश के लिए प्रेम राष्ट्रवाद की हुंकार में न ढल जाए। स्कूलों को देश की वास्तविकताओं को ठीक से समझने में मदद करनी चाहिए। देशभक्ति का अर्थ यह भी है कि देश की कमजोरियों को ठीक से समझा जाए और उनके उन्मूलन के लिए काम किए जाएं। दरअसल विद्यार्थियों को इस बड़ी सच्चाई का अहसास होना चाहिए कि अपनी विरासत की अच्छी बातों पर मान करना देशभक्ति का एक ही पहलू है, लेकिन उसी का दूसरा पहलू यह है उस विरासत में गलत को नकारना और उसे दूर करने की कामना करना। आज की दुनिया में इस से भयानक कोई उक्ति नहीं कि मेरा देश सही या गलत। आज सारी दुनिया परस्पर इस तरह गुथी हुई है कि कोई भी देश अपने बलबूते पर रहने की क्षमता नहीं रखता। और विश्व नागरिकता की धारणा भी राष्ट्रीय नागरिकता के विकास जितनी ही जरूरी है।

1952 के शिक्षा आयोग ने राष्ट्रवाद की सम्मोहक शक्ति को अच्छी तरह समझ लिया था और इसी लिए लोगों को इसका शिकार होने के प्रति चेतावनी दी थी।

आप सरकार अपना बजट जिस समय प्रस्तुत कर रही थी, तब दिल्ली एक साल पहले हुई सांप्रदायिक हिंसा से उबरने की कोशिश कर रही थी। आप सरकार और इसके नेताओं ने उस हिंसा को रोकने की कोई जरूरत महसूस नहीं की थी। उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुसलमानों ने आप के पक्ष में भारी मतदान किया था। इस के बावजूद, सबसे जरूरी मौके पर आप ने उनसे मुंह फेर लिया। क्या यह महज कायरता थी या हिंदुओं को चतुराई से दिया गया संदेश कि यह मुसलमानों के पक्ष में नहीं है। इसके साथ अरविंद केजरीवाल की यह घोषणा कि वह हनुमान के सच्चे भक्त हैं और शाही, सामंती शैली में सरकारी खर्चे पर अक्षरधाम मंदिर में दिवाली के आयोजन जैसी बातों को जोड़ कर देखिए। आप को ठीक से पता चल जायेगा कि यह सरकार दिल्ली के लोगों में किस तरह की देशभक्ति की भावनाओं को पनपाना चाहती है।

जेएनयू के पूर्व छात्रों, कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बन भट्टाचार्य और अन्य के विरुद्ध मुकदमा चलाने की अनुमति देने जैसे काम भी इसी “राष्ट्र विरोधियों” के विरुद्ध सक्रियता दिखाने जैसे प्रयासों का ही एक हिस्सा है।

स्पष्ट है कि आप बीजेपी को उसी की बिसात पर मात देने की कोशिश कर रही है। बीजेपी के रंग-ढंग अपना कर आप उन्हीं के दुनियादारी के नजरिए और राजनीति को वैधता दे रही है।

स्वयं को विचारधारा उत्तर दल घोषित करने वाले दल का हश्र ऐसा ही होना था। यह दल महज राज करने का इच्छुक था। इसका देशभक्ति का बजट बनाना इस बात का संकेत है कि इसका शासन डांवाडोल हो रहा है और वोटरों को लुभाने के लिए यह लंबे समय से चली आ रही राष्ट्रवाद की विचारधारा का ही इस्तेमाल कर रहा है।

इस दल का हिंदुओं के बारे में ऐसी सोच रखना आंदोलित करता है और यह भी कि यह अपने आप को इतना सशक्त समझता है कि यह हिंदुओं को संकेत दे रहा है कि इसकी सरकार उनमें राष्ट्रवाद का जज्बा पैदा करने में समर्थ है।

(दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापक अपूर्वानंद का यह लेख इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ था। जनचौक के लिए साभार लिए गए इस लेख का अनुवाद महावीर सरबर ने किया है।)

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