अहमदाबाद। एक सप्ताह की अफरातफरी के बाद रविवार को गुजरात यूनिवर्सिटी रोड पर सामाजिक संगठनों ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन रखा था। जिसके लिए उन लोगों ने अनुमति भी मांगी थी। लेकिन पुलिस ने व्यवस्था और ट्रैफिक की आड़ में अनुमति देने से मना कर दिया। बावजूद इसके रविवार को शाम पांच बजे बड़ी संख्या में प्रोफेसर, छात्र, डॉक्टर, कारोबारी, एक्टिविस्ट यूनिवर्सिटी रोड पर एकत्र हुए। ये लोग जैसे ही पहुंचे उन्हें पुलिस ने डिटेन कर अपनी गाड़ी में बैठा लिया और फिर उन सभी को गुजरात यूनिवर्सिटी पुलिस स्टेशन लाया गया। इनकी गिरफ्तारियों के बाद बड़ी संख्या में लोग पुलिस स्टेशन के बाहर एकत्र हुए।
पुलिस स्टेशन में ही प्रदर्शन
प्रदर्शन स्थल पर पुलिस ने पोस्टर बैनर भी नहीं खोलने दिया जिसकी भड़ास प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशन में निकाली। स्टेशन के अंदर ही इन लोगों ने बैनर पोस्टर निकाल कर नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करना शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने इस कानून और मोदी सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की। पुलिस ने पोस्टर बैनर जब जमा कर लिए तो सरकार विरोधी गानों से विरोध शुरू हो गया। अंततः रात आठ बजे पुलिस ने सभी को रिहा किया। वहां से छूटने के बाद प्रदर्शनकारियों ने स्टेशन के बाहर आकर CAA,NRC और NPR के विरोध में नारे लगाने शुरू कर दिए। गुजरात पुलिस स्टेशन के पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा मीडिया को दी गई जानकारी के अनुसार पुलिस ने 81 प्रदर्शनकारियों को डिटेन किया था जिन्हें रात को ही निवेदन लेकर छोड़ दिया गया। प्रदर्शनकारीयों में CEPT यूनिवर्सिटी, IIMA के प्रोफेसर और छात्र भी थे। इन्हें बिना अनुमति एकत्र होने के कारण डिटेन किया गया था।
डिटेन किए गए लोगों में IIM के प्रोफेसर नवदीप, CEPT यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मानती शाह, एडवोकेट अभिषेक खंडेलवाल, गांधीवादी महादेव विद्रोही, नचिकेता देसाई, मंजुला प्रदीप, शीबा जोर्ज, अनहद के देव देसाई, एडवोकेट के आर कोष्टी आदि शामिल थे।
केवल उत्तर प्रदेश की पुलिस क्रूर नहीं है: देव देसाई
अनहद संस्था से जुड़े देव देसाई ने जन चौक को बताया “प्रदर्शन में शामिल होने आए छात्रों और महीलाओं को बर्बर तरीके से घसीटा गया जो उचित नहीं था। हम कह सकते हैं कि केवल उत्तर प्रदेश की पुलिस बर्बर नहीं है। क्रूरता में गुजरात पुलिस भी कम नहीं है। पुलिस ने हमें कानून व्यवस्था और ट्रैफिक के बहाने अनुमति नहीं दी। रविवार को ट्रैफिक की कोई खास समस्या नहीं होती है। कानून व्यवस्था तो पुलिस की जिम्मेदारी है। इसलिए पुलिस से अनुमति मांगी जाती है। मुख्यमंत्री इस कानून के समर्थन में कार्यक्रम करते हैं तो ट्रैफिक या कानून व्यवस्था आड़े नहीं आता है। तीन दिन पहले गुजरात यूनिवर्सिटी में ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने CAA के समर्थन में प्रदर्शन किया था तो पुलिस उन्हें कैसे अनुमति दी थी। गुजरात मॉडल आज भी वही है जो प्रधानमंत्री छोड़ कर गए थे। इस मॉडल आम गुजराती को अपनी बात या कहें अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। “
दलित आदिवासी संगठन भी नागरिकता कानून पर चिंतित
रविवार दलित आदिवासी संगठनों ने अहमदाबाद के चांद खेड़ा में CAA और NRC को लेकर मीटिंग की जिसमें चर्चा इस बात पर हुई कि इस कानून को मुस्लिम विरोधी बताकर भाजपा के लोग आम नागरिकों को गुमराह कर रही है। दलित-आदिवासी के अधिकार भी इस कानून से छीने जाएंगे। मीटिंग मे तय किया गया है। इस कानून को लेकर गुजरात के अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जातियों को पत्रिका और नुक्कड़ मीटिंग से जागरूक किया जाएगा। मीटिंग गुप्त रखी गई थी क्योंकि पुलिस NRC के विरोध में किसी मीटिंग या प्रदर्शन की अनुमति नहीं दे रही है। मीटिंग की जानकारी मिलने पर पुलिस स्थल पर पहुंच जाती है भले ही प्राइवेट स्थल क्यों न हो।
अहमदाबाद में नागरिकता कानून का विरोध करने पर आठ हज़ार पर एफ आई आर दर्ज
CAA और NRC के विरोध को भाजपा शासित राज्य पुलिसिया बल से दबाने का प्रयत्न कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की सरकार ने तो अपने ही नागरिकों के विरुध युध्द छेड़ रखा है। गुजरात पुलिस यूपी पुलिस जैसी क्रूर तो नहीं हुई लेकिन अहमदाबाद में 8000 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कर भय खड़ा किया है। ताकि गुजरात के लोग CAA, NRC या NPR का विरोध न कर सकें। वहीं दूसरी तरफ पुलिस भाजपा से जुड़े संगठनों CAA का समर्थन करने की अनुमति दे रही है। CAA के समर्थन में मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने अहमदाबाद के गांधी आश्रम में कार्यक्रम रखा जो लोकल मीडिया के अनुसार एक फ्लॉप शो था।
अहमदाबाद के शाहआलम से ही कांग्रेस पार्षद शहज़ाद खान सहित 49 लोगों को हिरासत में लिया गया है। जिसमें महिलाएं भी हैं। अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR की गई है ताकि विरोध करने वालों को दबाया जा सके। शहज़ाद खान और उनके साथियों को छह दिन के रिमांड पर जेल भेज दिया गया।
समान्य धाराओं में भी ज़मानत नहीं
शहर कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के महासचिव उमर खान पठान को धारा 153 (दो जाति धर्म के बीच दुश्मनी पैदा करना) और 505 (अफवाह फैलाना) के तहत गिरफ्ततार कर एक दिन के रिमांड पर जेल भेज दिया गया है। 6 महिलाओं सहित 9 लोगों ने मेट्रो और सेशन कोर्ट में जमानत अर्ज़ी रखा था। लेकिन खारिज कर दी गई। एडवोकेट इम्तियाज़ खान पठान के अनुसार “उमर खान को जिन धाराओं में पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उन धाराओं में अधिकतम 3 वर्ष की सज़ा है। खान के केस में पुलिस को भी जमानत देने की सत्ता है परंतु मेट्रो और सेशन दोनों जगह से बेल न मिलने के कारण अब हाईकोर्ट का विकल्प है। हाईकोर्ट में विंटर वैकेशन है। 6 जनवरी को कोर्ट खुलेगी उसके बाद ही कुछ होगा।”
कथित तौर पर उमर खान ने एक वीडियो सोशल मीडिया के माध्यम से साझा किया था। जिसमें पुलिस की एक टुकड़ी नागरिकता कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर क्रूरता से लाठी चार्ज कर रही है। पुलिस का कहना है वीडियो लखनऊ का था जिसे खान ने शाह आलम का बता कर साझा किया था। एडवोकेट इम्तियाज़ के अनुसार “वीडियो पुलिस के खिलाफ है किसी जाति या धर्म विशेष के खिलाफ नहीं। इस वीडियो से किसी धर्म या जाति के बीच दुश्मनी नहीं पैदा होती है। फेसबुक या whatsapp से वीडियो शेयर करने पर IT एक्ट लगाते तो बात समझ में आती है। दिलचस्प बात यह है कि पुलिस ने आईटी एक्ट नहीं लगाया है।”
उप मुख्यमंत्री की आपत्तिजनक टिप्पणी
पाटन की एक सभा में राज्य के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा कि शहर आलम के आरोपी भले ही मुस्कुराते हुए पुलिस की गाड़ी में बैठे हों जब वापस आएंगे तो दस दिनों तक बेड पर सीधे सो नहीं पाएंगे। भाजपा पार्षद शहज़ाद के नाम से कांग्रेस को घेरने का प्रयत्न कर रही है। पटेल से विजय रूपानी और प्रदीप सिंह जाडेजा भी शाह आलम हिंसा को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश कर चुके हैं। साथ राज्य की भाजपा इकाई केवल मुस्लिमों की आपत्ति को हाई लाइट कर रहे हैं। जबकि बड़ी संख्या में हिन्दू भी सड़क पर उतर रहे हैं। समर्थन में प्रदर्शन फ्लॉप हो रहे हैं विरोध को पुलिस के बल से दबाने का प्रयत्न हो रहा है।
(अहमदाबाद से जनचौक संवाददाता कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट।)