देहरादून। उत्तराखंड में जो कुछ हो रहा है, वह सामान्य तो बिल्कुल नहीं है। डबल इंजन की सरकार वाले इस राज्य में एक तरफ जहां सत्ताधारी पार्टी में अंदरूनी कलह साफ नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य में कानून-व्यवस्था लगभग चौपट हो चुकी है।
हाल के दिनों में महिलाओं के साथ बलात्कार की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। नशे की तस्करी राज्य में चरम पर है। नशे के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों को पुलिस की मौजूदगी में अधमरा किया जा रहा है। चोरी-डकैती जैसे अपराधों का ये आलम है कि उप-राष्ट्रपति राज्य में जिस जगह कार्यक्रम में शामिल होते हैं, उससे कुछ ही मिनट की दूरी पर दिन-दहाड़े बड़ी डकैती हो जाती है।
हम राज्य में हाल में हुई घटनाओं पर एक-एक कर नजर डालने का प्रयास करेंगे और जानने का प्रयास करेंगे कि क्या राज्य में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार पूरी तरह से फेल हो चुकी है? राज्य में इस तरह की अव्यवस्था का असली कारण क्या है, यह भी जानने का प्रयास करेंगे।
सबसे पहले बात करें महिलाओं पर अपराध की। हाल के दिनों में सबसे पहले रुद्रपुर जिले में अस्पताल से लौट रही एक नर्स को रास्ते से खींचकर बलात्कार किया जाता है और फिर हत्या कर दी जाती है।
इसके कुछ ही दिन बाद राज्य की राजधानी देहरादून के हर समय व्यस्त रहने वाले आईएसबीटी पर अगुआ कर लाई गई एक दिमागी रूप से कमजोर नाबालिग के साथ रोडवेज के पांच अधेड़ कर्मचारी बलात्कार करते हैं।
इस घटना के कुछ दिन बाद ही अल्मोड़ा के सल्ट से खबर आती है कि भाजपा के एक नेता ने, जो पार्टी का मंडल अध्यक्ष है और दुग्ध सहकारी संघ का अध्यक्ष है, उसने एक महिला के साथ रेप किया है। मामला सामने आने के बाद उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज होता है और बीजेपी उसे पार्टी से निष्कासित कर देती है।
इस घटना के दो दिन बाद ही नैनीताल जिले के लालढांग से भी ऐसी ही एक खबर आती है।
खबर के अनुसार यहां भी आरोपी दुग्ध सहकारी संघ का अध्यक्ष होता है, यानी कि सत्ताधारी पार्टी का नेता होता है। वह एक विधवा को प्रमोशन दिलाने के लिए इंटरव्यू के नाम पर काठगोदाम के एक होटल में बुलाता है और उसके साथ दुष्कर्म करता है।
इस मामले में पहले तो जांच के नाम पर रिपोर्ट दर्ज करने में ही आनाकानी की जाती है, लेकिन जब रिपोर्ट दर्ज कर दी जाती है तो बाकायदा महिलाओं से इस नेता के समर्थन में जुलूस निकलवाया जाता है।
इन घटनाओं के बीच ही ऋषिकेश में एक पत्रकार योगेश डिमरी पर पुलिस की मौजूदगी में शराब तस्करी का आरोपी जानलेवा हमला कर देता है। आरोपी कोई छोटा-मोटा तस्कर नहीं, बल्कि धर्मनगरी में वर्षों से शराब की तस्करी करने का आरोपी है।
सुनील वालिया नामक यह व्यक्ति अपने पिता के साथ 1991 की उस घटना में भी जेल की सजा काट चुका है, जिस घटना में जहरीली शराब से 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। आरोप है कि जेल से बाहर आने के साथ ही सुनील वालिया ने फिर से शराब तस्करी का धंधा शुरू कर दिया था, जो आज तक पुलिस और नेताओं के संरक्षण में लगातार चल रहा है।
जिस दिन उप-राष्ट्रपति राज्य के दौरे पर थो, उस दिन हरिद्वार में एक शोरूम में डकैती की घटना भी राज्य में चर्चा का विषय बनी हुई है। खास बात ये है कि जब राष्ट्रपति उत्तराखंड दौरे पर आई थीं, तब भी देहरादून में एक बडे ज्वेलर्स के शोरूम पर डाका पड़ा था।
पत्रकार योगेश डिमरी अपने डिजीटल प्लेटफार्म पर लगातर ऋषिकेश में शराब की तस्करी के मामले उठा रहे थे। ऋषिकेश एम्स में भर्ती योगेश डिमरी ने जनचौक को बताया कि शराब तस्करी को लेकर पिछले कई दिनों से साक्ष्यों के साथ खबरें दिखा रहे थे। उन्हें लगातार धमकियां भी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने परवाह नहीं की।
पिछले कुछ दिनों से उन्हें अलग-अलग जगहों पर शराब तस्करी किये जाने की सूचनाएं दी जा रही थी। घटना वाले दिन वे सूचना पर विश्वास करके मौके पर पहुंचे तो वहां सुनील वालिया और उसके साथ मौजूद अन्य लोगों ने हमला कर दिया।
योगेश डिमरी पर किया गया हमला सिर्फ मारपीट के इरादे से किया गया हमला नहीं था। बल्कि यह जान से मारने का प्रयास था। लातों से उनका जबड़ा तोड़ दिया गया। किसी भारी चीज से मारकर टांग तोड़ दी गई, सिर फोड़ दिया गया और शरीर के कई हिस्सों पर भी हमला कर दिया गया।
इस हमले के जो वीडियो सामने आये हैं, उसमें योगेश डिमरी जमीन पर बैठे नजर आ रहे हैं। उनके सिर से खून बह रहा है। कपड़े फटे हुए हैं। आरोपी गंदी गालियां बकते सुनाई दे रहा है। तमंचा लगाने की बात भी हो रही है और सबसे खास बात यह कि दो पुलिस वाले भी उस वीडियो में नजर आ रहे हैं। मामला पुलिस तक पहुंचा तो पुलिस लगातार रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी करती रही।
लेकिन, वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद चारों तरफ से दबाव पड़ा और रिपोर्ट दर्ज करके सुनील वालिया को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन आरोपी का पक्ष लेने का पूरा प्रयास किया गया। योगेश डिमरी और कुछ अन्य युवकों के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर दिया गया।
इस मामले को लेकर फिलहाल उत्तराखंड में माहौल गर्म है और धरने प्रदर्शनों का दौर जारी है। 3 सितंबर को ऋषिकेश के श्यामपुर में एक महापंचायत भी बुलाई गई, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों के साथ ही जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया।
राजनीतिक उथल-पुथल की बात करें तो राजनीतिक हलकों में गर्माहट 21 से 23 अगस्त तक गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र से ही शुरू हो गई थी। विधानसभा में निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने दावा किया कि 500 करोड़ रुपये में राज्य सरकार को गिराने की साजिश रची गई थी।
उल्लेखनीय है कि उमेश कुमार ने पत्रकार रहते हुए स्टिंग ऑपरेशन के जरिये हरीश रावत सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हालांकि विधानसभा में न तो किसी विधायक ने इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा और न विधानसभा अध्यक्ष ने ही कोई टिप्पणी की। लेकिन विधानसभा के बाहर सबसे पहले सिविल सोसायटी से जुड़े लोगों ने उमेश कुमार के दावे पर सवाल उठाने शुरू कर दिये।
सवाल उठने लगे तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बयान आया कि इस मामले की जांच की जा रही है। धामी का बयान आते ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सामने आये और कहा कि मुख्यमंत्री के इस बयान का मतलब ये है कि कहीं न कहीं आग जरूर है।
हरीश रावत के बाद बीजेपी के ही दो अन्य मुख्यमंत्री रमेश पोखरियल निशंक और त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी सामने आये और उमेश कुमार के दावे को लेकर विधानसभा अध्यक्ष और सरकार से सवाल पूछ दिये।
मुख्यमंत्री की ओर से तो कोई जवाब नहीं आया, लेेकिन विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी ने कहा कि विधान सभा अध्यक्ष के रूप में वे किसी सदस्य की बात पर सवाल नहीं उठा सकती, यह काम किसी विधायक को करना चाहिए था।
रमेश पोखरियाल निशंक और त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सरकार के खिलाफ तल्खी यहीं नहीं रुकी, बल्कि दोनों पूर्व मुख्यमंत्री एम्स में भर्ती पत्रकार योगेश डिमरी से मिलने भी गये और इस हमले को लेकर राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किये। योगेश डिमरी के मामले में लगता है एम्स प्रशासन पर भी दबाव था।
यही वजह है कि जबड़ा हिला होने, टांग टूटी होने और सिर फटा होने के बावजूद उन्हें 2 सितंबर को एम्स से डिस्चार्ज कर दिया गया। हालांकि इसी दौरान कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल मौके पर पहुंचे। डॉक्टरों से उनकी तीखी बहस हुई और इसके बाद फिर से पत्रकार को भर्ती कर दिया गया।
अब सवाल यह उठता है कि उत्तराखंड में यह सब क्यों हो रहा है? राज्य आंदोलनकारी और उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट इसकी एक शानदार वजह बताती हैं। वे कहती हैं कि “उत्तराखंड को सजाने-संवारने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने न सिर्फ घर संभाला, बल्कि चिपको से लेकर उत्तराखंड आंदोलन तक महिलाएं सक्रिय रहीं और महिलाओं की सक्रियता के कारण ही उत्तराखंड के तमाम आंदोलन सफल हो पाये।
“चाहे वह चिपको आंदोलन रहा हो, नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन रहा हो या फिर अलग राज्य आंदोलन”। वे कहती हैं कि मौजूदा सत्ता ने राज्य की महिला शक्ति को जन आंदोलनों से पूरी तरह से अलग कर दिया है। इसके लिए महिलाओं के हाथों में विभिन्न एनजीओ के माध्यम से ढोलक और मंजीरे थमा दिये गये और उन्हें कीर्तन में व्यस्त कर दिया गया।
निर्मला बिष्ट कहती हैं कि देहरादून से लेकर सुदूर पहाड़ी गांवों तक 90 प्रतिशत महिलाएं कीर्तन मंडलियों से जुड़ी हुई हैं। इन्हें लगातार एनजीओ के माध्यम से आर्थिक मदद दी जा रही है। गांवों में तो महिलाएं खेती-बाड़ी छोड़कर हर शाम कीर्तन कर रही हैं।
कीर्तन के अलावा उन्हें टूर पर भी भेजा जा रहा है। लेकिन, ये टूर कभी किसी ऐतिहासिक स्थल के नहीं होते, किसी न किसी मंदिर के होते हैं। इस तरह से एक तरफ तो जन आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी खत्म कर दी गई है और दूसरी तरफ महिलाओं को घोर साम्प्रदायिक बना दिया गया है।
राज्य के पूर्व शिक्षा निदेशक नन्द नन्दन पांडेय इन दिनों देहरादून में नशा विरोधी अभियान में भागीदारी कर रहे हैं। वे भी मानते हैं कि जन आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी खत्म होने के कारण राज्य आज इस हालत में पहुंच गया है।
वे कहते हैं कि “राज्य की महिला शक्ति कीर्तनों और तीर्थयात्राओं में रम चुकी है। उनके पास अपने बच्चों पर ठीक से नजर रखने का भी समय नहीं है, लेकिन राज्य में ड्रग्स तस्करों की नजर एक-एक बच्चे पर है। यह स्थिति बेहद भयावह है। महिलाएं कीर्तन मंडलियों से निकलकर सड़कों पर नहीं उतरी तो नई पीढ़ी को नशे से बचाना असंभव हो जाएगा”।
(देहरादून से त्रिलोचन भट्ट से की रिपोर्ट)