Thursday, April 25, 2024

नोटबंदी के बाद शिशु मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी, कोरोना से और बदतर हो सकते हैं हालात

8 नवंबर 2017 यानी नोटबंदी की पहली बरसी पर मुंबई की एक मां किरण शर्मा ने अपने नवजात बेटे की कार्डियो-रिस्पाइरेटरी फेल्योर से मौत की सालगिरह के तौर पर मनाया था। उस नवजात बच्चे की मौत सिर्फ़ इसलिए हो गई थी, क्योंकि उसके मां-बाप के छह हजार रुपये (500, 1000 रुपए की नोट) सरकार की उस घोषणा के बाद रद्दी हो गए थे और अस्पताल ने उन पैसों के बदले बच्चे का इलाज करने से मना कर दिया था। पत्नी किरण शर्मा के गर्भवती होने के बाद जगदीश शर्मा अपनी मेहनत की कमाई की पाई-पाई बचाकर इकट्ठा कर रहे थे, क्योंकि उन को पता था कि इस व्यवस्था में उन्हें कुछ भी सरकार की ओर नहीं मिलने वाला है, लेकिन उन्हें ये कहां पता था कि उनकी मेहनत की ये कमाई रद्दी घोषित कर दी जाएगी। ख़ैर, ये तो एक घटना का ज़िक्र था। ऐसी कई घटनाएं नोटबंदी के वक़्त घटी होंगी जो ख़बरों का हिस्सा बनने से छूट गई होंगी।

नोटबंदी के बाद नवजात बच्चों की मौत की वो घटनाएं जो ख़बरों का हिस्सा नहीं बन सकीं और उन्हें आंकड़ों का हिस्सा बनाकर ले आए हैं अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और उनके टीम मेंबर। अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, आशीष गुप्ता, साई अंकित पराशर और कनिका शर्मा द्वारा किए गए एक अध्ययन में ये निकलकर आया है कि भारत द्वारा शिशु मृत्य दर कम करने के प्रयासों को नोटबंदी से करारा झटका लगा। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि शिशु मृत्यु दर में गिरावट की वार्षिक दर जोकि साल 2005-2016 के दर्मियान 4.8 प्रतिशत था वो साल 2017 में गिरकर 2.9 प्रतिशत और साल 2018 में गिरकर 3.1 प्रतिशत हो गई।

ज्यां द्रेज, आशीष गुप्ता आदि की इस स्टडी रिपोर्ट का शीर्षक है- ‘Pauses and reversals of infant mortality decline in India in 2017 and 2018’। इस अध्ययन के लिए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) डेटा का इस्तेमाल किया गया है। स्टडी डेटा में कहा गया है कि साल 2017 और 2018 में कुछ राज्यों में गिरावट में कमी आई है और कुछ राज्यों में शिशु मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी देखी गई है। अध्ययन के मुताबिक साल 2017 में 20 में से आठ राज्यों में शिशु मृत्यु दर में गिरावट में गड़बड़ी आई, जिसके लिए एसआरएस के तहत डेटा दर्ज किया गया है। वहीं साल 2018 में, छह राज्यों में गड़बड़ाहट देखी गई, जिसमें चार छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य शामिल थे, जहां आईएमआर में वृद्धि हुई थी। रिसर्च पेपर में रेखांकित किया गया है कि छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में, पहले के दो सालों की अपेक्षा साल 2018 में शिशु मृत्यु दर अधिक दर्ज की गई।

2017 या 2018 में शिशु मृत्यु दर में गिरावट में गतिरोध
ग्रामीण क्षेत्रों (20 राज्यों में से 9) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (20 राज्यों में से 15) में अधिक सामान्य था। अध्ययन में कहा गया है कि साल 2017 या 2018 में कुल मिलाकर 56.4% राज्यों में शिशु मृत्यु दर गिरावट में गड़बड़ी दर्ज की गई है। रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि शिशु मृत्यु दर की गिरावट में गड़बड़ी के लिए विमुद्रीकरण एक मुख्य कारण है। 8 नवंबर 2016 को 500 और 1,000 के सभी करेंसी नोटों पर विमुद्रीकरण या देशव्यापी प्रतिबंध की घोषणा की गई थी।

रिपोर्ट के सह-लेखक आशीष गुप्ता के मुताबिक, “शिशु मृत्यु दर पर प्रभाव को महसूस करने में ग्रामीण क्षेत्रों को अधिक समय इसलिए लगा क्योंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था नकदी पर कम निर्भर है, और स्वच्छ ईंधन और शौचालय तक ग्रामीणों की पहुंच में सुधार के लिए कार्यक्रम मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में निर्देशित किए गए थे। यह संभावना है कि इन कार्यक्रमों के बिना, शिशु मृत्यु दर में वृद्धि अधिक रही होगी।”

जब से नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) ने शिशु मृत्यु दर की निगरानी शुरू की, साल 1971 में अपने पहले जन्मदिन पर पहुंचने से पहले हर 1,000 शिशुओं में से 129 की मृत्यु हो गई जबकि साल  2011 तक, इसमें एक चौथाई तक गिरावट दर्ज की गई और प्रति 1,000 जीवित शिशुओं में से 44 बच्चों की मृत्यु पैदा होने के पहले साल में हुई, लेकिन, 2005 से साल 2016 तक शिशु मृत्यु दर ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एक समान गिरावट देखी गई है।

कोविड-19 से होगी प्रति माह 10 हजार बच्चों की मौत– यूनिसेफ
ज्यां द्रेज के अध्ययन में ये भी कहा गया है कि इस साल कोविड-19 महामारी और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से शिशु मृत्यु दर घटाने के प्रयासों को और बड़ा झटका लग सकता है, क्योंकि तमाम स्वास्थ्य सेवाओं जैसे कि प्रसवपूर्व देखभाल और बच्चों के टीकाकरण अभियान में कोविड-19 से बड़ा व्यवधान आया है। वहीं यूनिसेफ का कहना है कि कोविड-19 और भूख, गरीबी का स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण पर असर पड़ेगा और इसके असर से तमाम स्वास्थ्य योजनाओं में देरी की संभावना है। यूनिसेफ का अनुमान है कि कोविड-19 के चलते दुनिया भर में अतिरिक्त 6.7 मिलियन कमज़ोर बच्चों का जन्म होगा। जैसा कि दुर्बलता (Wasting) को शिशु मृत्यु दर के एक कारक के तौर पर देखा जाता है, यूनिसेफ का अनुमान है कि विश्व स्तर पर प्रति माह अतिरिक्त 10,000 बच्चों की मृत्यु होगी।

यूनिसेफ के मुताबिक 69,944 बच्चे नये साल (1 जनवरी) के दिन पैदा होंगे, जबकि वैश्विक स्तर पर 3,95,072 बच्चे पूरे विश्व में अतिरिक्त पैदा होंगे। यूनिसेफ के मुताबिक इनमें से आधे बच्चे केवल सात देशों में पैदा होंगे, जिसमें भारत (44.940), चीन (44,940), नाईजीरिया (25,685), पाकिस्तान (15,112), इंडोनेशिया (13,256), यूएस (11,086), कांगो (10,053), और बंग्लादेश (8,428) शामिल हैं।

भारत में वायु प्रदूषण से लगभग 1,16,000 शिशुओं की मौत
साल 2019 में भारत में जन्म लेने के पहले महीने के भीतर वायु प्रदूषण से भारत में लगभग 116,000 शिशुओं की मृत्यु हुई है। ऐसा दुनिया भर में स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव पर एक नये वैश्विक अध्ययन में निकलकर आया है।स्‍टेट ऑफ ग्‍लोबल एयर 2020 नामक वैश्विक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि इनमें से आधे से ज्यादा बच्चों की मौत PM 2.5 (PM2.5) से जुड़े वायु प्रदूषण कारकों से जुड़ी है। इनमें खाना पकाने का ईंधन, लकड़ी का कोयला, लकड़ी, गोबर जैसे ईंधन का मुख्य योगदान रहा है। इससे उत्पन्न वायु प्रदूषण की वजह से ज्यादा बच्चों की मौत हुई। वायु प्रदूषण की वजह से जान गंवाने वाले बच्चों में ये पाया गया कि या तो जन्म के बाद उनका वजन क़ाफी कम था या फिर बच्चों का प्रिमेच्योर जन्म हुआ था।

भारत में 2019 में बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के लंबे समय के प्रभाव के कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा, डायबिटीज, फेफड़े का कैंसर, पुरानी फेफड़ों की बीमारियों और नवजात रोगों से 16.7 लाख मौतें हुईं। नवजात शिशुओं में ज्यादातर मौतें जन्म के समय कम वजन और समय से पहले जन्म से संबंधित जटिलताओं से हुईं। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण अब दूसरों के बीच मृत्यु का सबसे बड़ा खतरा है। यह रिपोर्ट अक्तूबर 2020 में हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट यानी HEI1 द्वारा प्रकाशित की गई है। यह स्वतंत्र, गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थान है और अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी और अन्य द्वारा वित्‍त पोषित है।

जानकारी के मुताबिक, ये अध्ययन कोरोना महामारी के वक्त इसलिए किया गया, क्योंकि कोविड भी दिल और फेफड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी है। इसी वजह से बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं। भारत में कोविड की वजह से अब तक 1 लाख 30 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोरोना से मरने वाले अधिकांश लोग पहले से ही फेफड़ो या दिल संबंधी बीमारी से पीड़ित थे, जिसकी वजह कहीं न कहीं वायु प्रदूषण था। वायु प्रदूषण, इससे होने वाली बीमारियों का कोविड-19 से गहरा संबंध है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles