सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ और सामाजिक न्याय के लिए तमाम बहुजन संगठनों और बहुजन समाज से सड़कों पर उतर कर बहुजनों (एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी) की एकजुटता को बुलंद करने की अपील जारी की गई है। रिहाई मंच के राजीव यादव, बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) और बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच के संरक्षक डॉ. विलक्षण रविदास, अब-सब मोर्चा के संस्थापक हरिकेश्वर राम, सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के रिंकु यादव, गौतम कुमार प्रीतम, अंजनी और नवीन प्रजापति ने संयुक्त तौर पर यह अपील जारी की है।
जारी अपील में कहा गया है कि अभी जब पूरा मुल्क संविधान विरोधी-बहुजन विरोधी सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ सड़कों पर लड़ रहा है। तानाशाही और दमन का मुकाबला कर रहा है तो सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि नियुक्ति से लेकर प्रमोशन तक में आरक्षण देना राज्य सरकारों की मर्जी का मसला है। मतलब आरक्षण एससी-एसटी-ओबीसी का संवैधानिक अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान विरोधी रवैया और भाजपा-आरएसएस का एजेंडा आगे बढ़ाते हुए आरक्षण पर अधिकतम हमला बोल दिया है। आरक्षण को खत्म करने का रास्ता खोल दिया है। यह संविधान के सामाजिक न्याय और समानता के बुनियाद पर जोरदार हमला है।
अपील में कहा गया है कि सीएए भी संविधान के धर्मनिरपेक्षता और समानता की बुनियाद पर जोरदार हमला है। इससे पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने संविधान और सामाजिक न्याय पर हमला बोलते हुए ही सवर्ण आरक्षण लागू किया था। जबकि अभी तक तो आरक्षण लागू करने में बेईमानी चल रही थी। सभी क्षेत्रों में आबादी के अनुपात में आरक्षण लागू भी नहीं किया गया है।
आज भी शासन-सत्ता की संस्थाओं-शैक्षणिक संस्थाओं में एससी-एसटी-ओबीसी की भागीदारी आबादी के अनुपात में न्यून है। सवर्णों का ही वर्चस्व है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट से लेकर केंद्र सरकार तक एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण को खत्म कर रही है। भाजपा-आरएसएस के हिंदू राष्ट्र की झांकी सामने आ रही है। मुसलमानों को निशाने पर रखकर संविधान को खत्म कर ब्रह्मणवादी गुलामी थोपने की साजिश आगे बढ़ाई जा रही है। एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी को एकजुट होकर मुकाबला करना होगा।
जारी अपील में कहा गया है कि नागिरकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का पूरा पैकेज हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए ही लाया गया है। यह इस देश की जनता के अधिकार पर अधिकतम हमला है। अपमानजनक है। इसकी भारी कीमत अशिक्षित, गरीब, दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक ही चुकाएंगे। उनके लिए यह विपत्ति की तरह होगा।
उनके लिए जरूरी दस्तावेज पेश करना मुश्किल होगा। वे अपने ही मुल्क में हासिल संवैधानिक, लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर गुलामी के भयानक अंधेरे में धकेल दिए जाएंगे। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। असम में एनआरसी हुआ है। वहां हुए एनआरसी की हकीकत हमारे सामने है। 19 लाख से अधिक लोग एनआरसी से बाहर हुए हैं। जिसमें अधिक हिंदू ही हैं। बहुसंख्यक एससी, एसटी और ओबीसी हैं। बिहार-यूपी से असम में जा बसे हजारों मजदूरों की नागरिकता पर सवाल खड़ा हो गया है।
विभिन्न संगठनों की ओर से जारी अपील में कहा गया है कि लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई ये सरकार सबको शिक्षा, चिकित्सा, भोजन, रोजगार, न्याय और मूलभूत नागरिक अधिकारों की गारंटी करने की दिशा में आगे बढ़ने के बजाय उल्टी दिशा में चलते हुए जनता से अब नागरिकता साबित करने के लिए कह रही है। अन्नदाता किसानों की आत्महत्या की रफ्तार तेज हो गई है। बेरोजगारी से त्रस्त होकर दो घंटे में तीन नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं।
बेरोजगारी 45 वर्षों में सबसे ऊंचाई पर है, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार रोजगार के खात्मे, महंगाई, विषमता और जनता की बदहाली बढ़ाने के साथ सरकारी कंपनियों-उपक्रमों को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को बेचने का अभियान आगे बढ़ा रही है। सार्वजनिक सेवाओं व सुविधाओं-शिक्षा, चिकित्सा, रेल परिवहन आदि को पूंजीपतियों के हवाले कर रही है। मुल्क को बेच रही है। आजादी को गिरवी रख रही है। आंदोलनों का बर्बर दमन किया जा रहा है।
अपील में कहा गया है कि आंदोलनकारियों की पुलिस द्वारा हत्या की जा रही है। सरकार जनता की आवाज सुनने के बजाय लोकतंत्र की हत्या कर तानाशाही के रास्ते आगे बढ़ रही है। अपीलकर्ताओं ने कहा है कि कुल मिलाकर ये सरकार मनुवादी सवर्ण वर्चस्व, पूंजीपतियों को लूट की चौतरफा छूट, तानाशाही और चौतरफा गुलामी थोप रही है।
इसकी सबसे ज्यादा मार दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों-महिलाओं और मुसलमानों पर पड़ रही है। दलितों-महिलाओं पर बर्बरता चरम पर है। अभी राजस्थान से दलित उत्पीड़न की खौफनाक घटना सामने आई है। भाजपा-आरएसएस हिंदू राष्ट्र बनाने की ओर बढ़ रहे हैं और उसकी झांकी पेश की जा रही है।
जारी अपील में कहा गया है कि हमें हर हाल में यह लड़ाई लड़नी होगी, जीतनी होगी। इस लड़ाई को हमें जोड़-तोड़ के जरिए सत्ता बदलने और वोट बैंक बनाने-बिगाड़ने तक सीमित होकर नहीं देखना चाहिए। हमें बहुजनों की एकजुटता और सामाजिक-राजनीतिक दावेदारी को बुलंद करना होगा।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)