भारतीय चिकित्सक संघ यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। पत्र में वैश्विक महामारी में काम कर रहे डॉक्टरों और उनके परिजनों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की बेहद बदतर हालात की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया गया है। एसोसिएशन का यह पत्र ‘सब कुछ ठीक और नियंत्रण में’ होने के सरकारी दावों की पोल खोल दे रहा है।
देश भर के 3.5 लाख डॉक्टरों का प्रतिनिधि करने वाली एसोसिएशन ने कहा है कि रोज-ब-रोज डॉक्टर इस महामारी की चपेट में आ रहे हैं और अपनी जान गंवा रहे हैं। संस्था ने पत्र के साथ प्रधानमंत्री को एक सूची भेजी है। इसमें सात अगस्त 2020 तक कोविड का शिकार हो चुके 196 डॉक्टरों के नाम तथा अन्य विवरण हैं।
इनमें से 170 डॉक्टरों की उम्र 50 साल से ज्यादा है और 40 प्रतिशत जनरल प्रैक्टिशनर हैं। सबसे पहले इन्हीं लोगों को साधारण बुखार से लेकर हर तरह के मरीजों के संपर्क में आना पड़ता है। एसोसिएशन ने पत्र में ध्यान दिलाया है, “कोविड से संक्रमित हुए डॉक्टरों और उनके परिजनों को बेड उपलब्ध न होने से उन्हें अस्पतालों में एडमिट नहीं किया जा रहा है, और अधिकांश डॉक्टरों को दवाएं तक नहीं मिल पा रही हैं।”
पत्र में मांग की गई है कि प्रधानमंत्री जी तत्काल यह सुनिश्चित करें कि स्वास्थ्यकर्मियों और उनके परिजनों को संक्रमित होने के बाद समय से और मानक स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हों, और साथ ही उन्हें राज्य-प्रायोजित स्वास्थ्य तथा बीमा सुविधाएं मुहैय्या कराई जाएं। इन डॉक्टरों ने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपनी जान गंवाई है अतः इनके परिवारों को समुचित सहयता तथा सांत्वना दी जानी चाहिए।
एसोसिएशन ने लिखा है, “प्रधानमंत्री जी, यह जरूरी है कि हम आपको ध्यान दिलाएं कि इन हालात का स्वास्थ्यकर्मियों के समुदाय पर बहुत ही हतोत्साहित करने वाला असर पड़ रहा है।” एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजन शर्मा ने कहा है, “हम चाहते हैं कि महामारी में काम कर रहे डॉक्टरों की सुरक्षा और कल्याण पर ध्यान दिया जाए।”
एसोसिएशन के मानद महासचिव आरवी अशोकन ने पत्र के माध्यम से कहा है, “डॉक्टरों को बीमार पड़ने पर अस्पताल में एडमिट किया जाना और बेड तथा दवाएं उपलब्ध कराया जाना हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह महामारी डॉक्टरों की जान लेने के मामले में एक खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। ये डॉक्टर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सबसे अगली क़तार के योद्धा हैं, एक डॉक्टर की जान पर खतरे का मतलब उस पर निर्भर हजारों मरीजों को असुरक्षा में डाल देना है।”
महामारी की सरकारी स्वीकारोक्ति के बाद लगभग पांच महीने होने वाले हैं, लेकिन जिन ‘कोरोना योद्धाओं’ के नाम पर जनता से ‘ताली-थाली-शंख-घड़ियाल’ बजवाने से लेकर वायुसेना द्वारा अस्पतालों पर बैंड बजवाने तथा आसमान से फूल बरसाने के सरकारी प्रहसन किए गए, उन्हें कोविड होने पर उन्हीं अस्पतालों में बेड और दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। इससे ज्यादा हृदय-विदारक बात और क्या हो सकती है।
हमारा आत्ममुग्ध शीर्ष नेतृत्व व्यवस्था में किसी भी तरह की कमी की कोई बात स्वीकार करने को भी तैयार नहीं है, लेकिन हालात यह हैं कि कोरोना पॉजिटिव होने वाले लगभग सभी राजनेताओं और वीआईपी लोगों ने अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों में ही कराया है, और शायद इसीलिए उनके बीच मृत्युदर भी न के बराबर है, जबकि देश में अब तक लगभग 44 हजार गैर वीआईपी लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
अभी हाल में ही गृहमंत्री अमित शाह ने भी संक्रमित होने के बाद राजधानी स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) या सफदरजंग जैसे सरकारी अस्पतालों के बजाय हरियाणा के गुरुग्राम स्थित पांच सितारा निजी अस्पताल मेदांता का चुनाव किया और यहां तक कि मेदांता में भी उनकी देखरेख के लिए साथ ही साथ एम्स के डॉक्टरों की भी ड्यूटी लग रही है।
अभी 14 अप्रैल को खुद गृहमंत्री ने ट्वीट किया था, “देश के गृह मंत्री के नाते मैं जनता को पुनः आश्वस्त करता हूं कि देश में अन्न, दवाई और अन्य रोजमर्रा की चीज़ों का प्रयाप्त भंडार है, इसलिए किसी भी नागरिक को परेशान होने की आवश्यकता नहीं है।” फिर ऐसा क्या हो गया कि खुद गृहमंत्री जी का अपनी ही व्यवस्था से विश्वास उठ गया?
एक अगस्त को तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित का कोविड टेस्ट प्राइवेट कावेरी अस्पताल में हुआ और पॉजिटिव आने पर वे प्राइवेट अपोलो अस्पताल में भर्ती हुए। इसी तरह से तमिलनाडु के ऊर्जा मंत्री पी थंगमानी, उच्चशिक्षा मंत्री केपी अनबालागन और सहकारिता मंत्री सेलुर के राजू ने भी कोविड होने के बाद सुख-सुविधाओं वाले प्राइवेट उस्पताल में ही भर्ती होना पसंद किया।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना कोविड का इलाज भोपाल के चिरायु प्राइवेट अस्पताल में और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने बंगलुरु के मणिपाल प्राइवेट अस्पताल में कराया। मध्य प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री राम खेलावन पटेल और सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदोरिया ने भी अपने नेताजी का अनुसरण करते हुए अपना इलाज चिरायु अस्पताल में ही कराया। भाजपा के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का इलाज भी गुड़गांव के मैक्स अस्पताल में हुआ।
ऐसा नहीं है कि केवल भाजपा के नेताओं ने ही सरकारी अस्पतालों पर प्राइवेट अस्पतालों को तरजीह दी है। कर्नाटक में ही विपक्ष के नेता कांग्रेस के सिद्धारमैया का कोविड का इलाज भी बंगलुरु के मणिपाल प्राइवेट अस्पताल में ही हुआ।
पंजाब के ग्रामीण विकास मंत्री तृप्त सिंह बाजवा ने अपना कोविड का इलाज मोहाली के फोर्टिस प्राइवेट अस्पताल में कराया तो दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पहले तो सरकारी राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती हुए, लेकिन बाद में प्लाज्मा थेरैपी के नाम पर प्राइवेट मैक्स अस्पताल में चले गए।
इसी तरह से महाराष्ट्र के मंत्रीगण अशोक चह्वाण और धनंजय मुंडे मुंबई के प्राइवेट ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हुए तो जितेंद्र औहाद प्राइवेट फोर्टिस अस्पताल में।
राजनेताओं के साथ ही अन्य वीआईपी भी अपने लिए ज्यादातर पांच सितारा सुविधाओं से लैस प्राइवेट अस्पतालों को ही चुन रहे हैं। उदाहरण के लिए ‘ताली-थाली-शंख-घड़ियाल’ प्रहसन के सुपर स्टार प्रचारक अमिताभ बच्चन तथा उनके बेटे अभिषेक बच्चन को जब कोविड हुआ तो वे मुंबई के नानावती अस्पताल में भर्ती हुए।
दरअसल देश आम और खास, दो भागों में बंटा हुआ साफ-साफ दिख रहा है। खास लोग, जिनके हाथों में किसी न किसी रूप में तथा किसी न किसी तरह की सत्ता आ गई है, वे शेष सभी आम लोगों को यह यक़ीन दिलाने में लगे हुए हैं कि ‘सब कुछ ठीक’ है, लेकिन जब अपनी जान पर जोखिम आ रहा है तो उन्हें इसी ‘सब कुछ ठीक’ पर बिल्कुल भरोसा नहीं है।
इस वर्ग ने केवल आम जनता को उल्लू बनाने के लिए एक भ्रमजाल रचा हुआ है। ये लोग स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों से ध्यान हटाने और बजबजाती हुई तथा बदबू करती हुई हकीकत को लगातार भावनात्मक मुद्दों के रंग-रोगन से ढकने की कोशिश कर रहे हैं।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की प्रधानमंत्री के नाम उपरोक्त चिट्ठी ने एक बार फिर इस दिखावटी रंग-रोगन के पीछे की असलियत को उजागर कर दिया है और देश की स्वास्थ्य-व्यवस्था की बदइंतजामी और बदहाली साफ-साफ दिखने लगी है। जब जान जोखिम में डाल कर मरीजों की सेवा कर रहे डॉक्टरों तक के लिए सरकार अस्पतालों में बेड और दवाइयां उपलब्ध कराने में नाकाम है तो भला आम आदमी की क्या बिसात है?
- शैलेश
(शैलेष स्वतंत्र लेखक हैं।)