अडानी के एफपीओ वापस लेने की इनसाइड स्टोरी

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सेबी बनी धृतराष्ट्र..! जी हां धृतराष्ट्र महाभारत का ऐसा कैरेक्टर है जिसे कौरवों के पाप दिखाई ही नहीं देते थे, आज की तारीख में देश की एक संस्था सेबी ऐसा ही व्यवहार कर रही है, उसे अडानी की करतूतें दिखाई ही नहीं देती, लेकिन सूचनाओं के इस दौर में पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज के समान हो गई है, भारत में अडानी के हर पाप को छुपाने के लिए कितना भी जोर लगा लिया जाए,
पर देश के बाहर सारे झूठ तुरंत बेनकाब हो जाते हैं।

कल रात यही हुआ जब अडानी ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपना 20 हजार करोड़ रुपये का एफपीओ कैंसल कर दिया।

इस एफपीओ की कहानी भी बहुत दिलचस्प रही है। 26 जनवरी को यह एफपीओ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के साये में लॉन्च हुआ। लॉन्च होने के पहले ही इसमें एंकर निवेशकों ने लगभग सवा पांच हजार करोड़ रुपए के शेयर बुक कर लिए थे। अडानी को उम्मीद थी कि बाकी बचे शेयर के लिए रिटेल में निवेशक टूट पड़ेंगे।

लेकिन इसी बीच हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का असर मार्केट पर दिखा और अडानी के शेयर औंधे मुंह गिरने लगे। एफपीओ में लगभग 3200 रुपये के आसपास बेचा गया शेयर 2700 रुपये के आसपास आ गया। जाहिर है रिटेल इन्वेस्टर ने इससे किनारा कर लिया। 31 जनवरी को इस एफपीओ का अंतिम दिन था लेकिन 30 जनवरी तक 2 प्रतिशत शेयर भी खुदरा में नहीं बिक पाए।

30 जनवरी की शाम को अडानी की इज्जत पर बात आ गई, जब एक ख़बर फ्लैश हुई कि अबूधाबी की कंपनी ने इस एफपीओ में 3200 करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट किया है। इसके बाद आखिरी दिन गज़ब का रिस्पॉन्स देखने को मिला और एफपीओ पूरा का पूरा सब्सक्राइब कर लिया गया।

लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी। बचे हुए 14 हजार करोड़ के शेयर किसने खरीदे ये बात किसी को पता नहीं थी। इतना होने पर भी बाज़ार ने अडानी पर भरोसा नहीं किया और उसकी सबसे बड़ी कंपनी अडानी एंटरप्राइज़ेज़ के शेयर भी बुरी तरह से गिरने लगे।

भारत सरकार का बजट भी शेयर बाज़ार की इस तबाही को रोकने में नाकाम रहा। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने भी इस समूह से दूरी बनाना शुरू कर दी। ख़बर आई कि क्रेडिट सुइस ने Collateral Margin के लिए अडानी समूह की कंपनियों के बॉन्ड को स्वीकार करना बंद कर दिया है और बॉन्ड की वैल्यू 0 कर दी है।

बुधवार को पूरे दिन बाजार में अडानी के शेयरों में कत्ल-ए-आम की स्थिति रही और रात में एक बहुत बड़ी खबर आई जो बिजनेस की दुनिया में जानी मानी है। कल रात फोर्ब्स ने एक ख़बर प्रकाशित की जिसका शीर्षक था “There’s Evidence That The Adani Group Likely Bought Into Its Own $2.5 Billion Share Sale”.

इस ख़बर के मुताबिक अडानी खुद ही पीछे के दरवाजे से दो कंपनियों एलारा कैपिटल (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड और एक भारतीय ब्रोकरेज फर्म मोनार्क नेटवर्थ कैपिटल की सहायता से अपने शेयर खरीद रहे थे। यानी अडानी की पोल पूरी तरह से खुल गई।

इस खबर ने धमाका कर दिया..

मरता क्या न करता…! अडानी के पास अपने एफपीओ को रद्द करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, इसलिए रात में ताबड़तोड़ ढंग से अडानी ने ये काम किया ताकि कम से कम भारत के बाजार में उसकी इज्जत थोड़ी बहुत बची रहे।

ध्यान दीजिए कि हिंडनबर्ग रिसर्च की 104 पन्नों की रिपोर्ट में अडानी समूह पर लेखांकन धोखाधड़ी और शेयर बाजार में हेरफेर के आरोप लगाए गए हैं।

अब यह बात शीशे की तरह साफ़ हो चुकी है कि अडानी कैसे खेल खेल रहे थे। पूरी दुनिया में थू-थू हो रही है लेकिन यहां शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी अब भी धृतराष्ट्र की तरह आंखों पर पट्टी बांधे बैठी हुई है।

(गिरीश मालवीय स्वतंत्र पत्रकार और आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

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