Thursday, April 25, 2024

भारत में गूगल का निवेश : भारत की सार्वभौमिकता में अमेरिकी सेंध की अनुमति

गूगल एंड अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचई ने भारत में 75 हज़ार करोड़ के निवेश की जो घोषणा की है, वह महज़ इसीलिये संदेहास्पद हो जाती है क्योंकि इसे प्रधानमंत्री मोदी से बात करने के बाद किया गया है। इस बात को ईश्वर ही जानता है कि इस राशि में कितने शून्य मोदी के दिमाग़ से निकले हैं ! 

वैसे भी गूगल के निवेश की प्रकृति मूलत: अपने डिजिटल रूप के कारण ही ऐसी है कि उसे किसी के लिये भी ठोस रूप में जाँच पाना असंभव होता है । 

लेकिन पिचई ने अपने निवेश की योजनाओं का जो खाका पेश किया है, वह यह बताने के लिये काफ़ी है कि आगे भारत की शिक्षा व्यवस्था के पूरे ढाँचे को अमेरिकियों के सुपुर्द कर दिया जायेगा । वे इस पर अपनी मर्ज़ी से जो चाहे प्रयोग कर पायेंगे । गूगल भारत में शिक्षा के डिजिटलाइजेशन प्रकल्प का प्रमुख कर्ता होगा । 

इसी प्रकार सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र अर्थव्यवस्था का है । गूगल अब आगे कर-संग्रह को प्रभावशाली बनाने के नाम पर भारत सरकार के राजस्व-संग्रह की प्रक्रिया में सीधे दख़लंदाज़ी का अधिकारी होगा । पिचई ने इसे कर संग्रह की ओईसीडी देशों की एक वैश्विक परियोजना बताया है, जिसके जाल में अब भारत को भी फँसा लिया जाएगा। 

गूगल और अमेरिकी सरकार तथा सीआईए के बीच के रिश्ते आज की दुनिया में किसी से छिपी हुई बात नहीं हैं । गूगल के पास उपलब्ध सभी डाटा अमेरिकी सरकार को उपलब्ध कराए जाएँगे, इस पर बाक़ायदा दोनों के बीच करार है, जिसके सारे तथ्य वीकीलीक्स के ज़रिये दुनिया जानती है । 

कहना न होगा, मोदी शासन भारत की अर्थ-व्यवस्था और शिक्षा-व्यवस्था को पूरी तरह से अमेरिकियों के सुपुर्द करके हमारी सार्वभौमिकता को बेच कर साम्राज्यवाद के कठपुतलों के रूप में आरएसएस के चिर-परिचित चरित्र को पूरी तरह से चरितार्थ करने की पूरी तैयारी कर चुकी है । और इसे वे भारत के ‘विकास’ में विदेशी निवेश बता कर पूरी निर्लज्जता से इसका ढोल भी पीट रहे हैं ।

गूगल के पिचई की घोषणा से झूठ और दुरभिसंधि, दोनों की ही बहुत तीखी गंध आती है ।

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और चिंतक हैं आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles