Friday, April 26, 2024

पंजाब में चन्नी के नाम का ऐलान क्या कांग्रेस और दलित दस्तक दोनों के लिए बड़ा संकेत है?

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने आज लुधियाना रैली में अंततः चन्नी के नाम का ऐलान कर दिया। हालाँकि बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने इसके लिए पंजाब के अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के बीच में मुख्यमंत्री के नाम को लेकर सर्वेक्षण कराये थे, जिसमें मुख्यमंत्री की रेस में चरणजीत सिंह चन्नी पहले ही नवजोत सिंह सिद्धू से बाजी मार चुके थे।

लगभग चार महीने पहले जब पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी, तो राजनीतिक विशेषज्ञों के विचार में कांग्रेस का ग्राफ काफी नीचे आ चुका था, और सिद्धू के अलावा कोई भी ऐसा बड़ा नाम नहीं था, जो इसे भर सकता था। ऐसे में वरिष्ठ कांग्रेस नेता अंबिका सोनी सहित पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय बलराम जाखड़ के पुत्र सुनील जाखड़ और रंधावा का नाम सुर्ख़ियों में था, लेकिन अंततः अचानक से पुरानी खेमे में बटी कांग्रेस के बीच से बिल्कुल अनजान चन्नी का नाम आगे किया गया, जिसे सभी हलकों ने एक अस्थाई इंतजाम के तौर पर स्वीकार कर लिया।

हालाँकि पंजाब की राजनीति पर गहराई से नजर रखने वाले विशेषज्ञों ने चन्नी के राजनैतिक कैरियर को देखते हुए, चन्नी को शुरू से ही लंबी रेस का घोड़ा कहना शुरू कर दिया था।

हालाँकि सिख जाट प्रभुत्व वाले पंजाब में शायद ही किसी को इस बात का जरा भी अहसास था कि कांग्रेस, किसी दलित पृष्ठभूमि वाले चन्नी के चेहरे पर पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्य में दांव आजमा सकती है, क्योंकि आज के दिन कांग्रेस के पास राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़कर सिर्फ यही राज्य है। पंजाब ही वह अकेला राज्य है, जिसने उत्तर भारत में 2014 से आज तक भाजपा के सर्वग्रासी अभियान के घमंड को भोथरा करने की हिम्मत दिखाई है। ऐसे में पंजाब के स्थापित सत्ता-प्रतिष्ठान को छेड़ना, कहीं न कहीं घातक हो सकता था।

लेकिन यदि 2019 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद से राहुल गाँधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद के घटनाक्रम के साथ-साथ पार्टी के भीतर जी 23 की ओर से लगातार हो रहे हमलों और राहुल, प्रियंका गाँधी की ओर से एक नए कांग्रेस की स्थापना के लिए सबसे बड़ा एसिड टेस्ट यदि कोई राज्य है तो उसे पंजाब ही माना जा रहा है।

बताया जाता है कि चरणजीत सिंह चन्नी बेहद साधारण परिवार से आते हैं, लेकिन शुरू से ही संघर्षशील रहे चन्नी ने कालेज के दिनों से लेकर चमकौर साहिब सीट से लगातार तीन बार विधानसभा की सीट जीतने के सफर में, बहुत कुछ अपने बल पर हासिल किया है। पहली दफा जब उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिला, तो वे निर्दलीय खड़े हुए और कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर जीत गए। इसके बाद जाकर कांग्रेस ने उन्हें अगले विधानसभा में टिकट दिया और वे सदन के विपक्ष के नेता चुने गए। अमरिंदर सिंह के कार्यकाल में मंत्री रहे, पर उस दौरान पंजाब कांग्रेस में सिर्फ अमरिंदर सिंह की ही चली, और सिद्धू तक को इस्तीफ़ा देना पड़ा।

सिद्धू के लिए न ही निगलते और न ही उगलते वाले हालात  

पंजाब में सिख जाट नेता के रूप में नवजोत सिंह सिद्धू, अकाली दल के सुखबीर बादल और आम आदमी पार्टी (आप) से भगवंत सिंह मान मैदान में हैं। पंजाब की राजनीति में सिख जाट के बगैर  मुख्यमंत्री की कल्पना कुछ समय पहले तक कोई नहीं करता था। आप और अकाली दल ने भी 32% दलित आबादी की बढ़ती आकांक्षाओं को देखते हुए, इस बार उप-मुख्यमंत्री पद देने का वादा किया हुआ था। लेकिन मुख्यमंत्री? इसकी तो किसी ने कल्पना भी नहीं की।

आज की रैली से पहले राहुल गांधी को होटल के भीतर पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी, प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू, मुख्यमंत्री चन्नी सहित सुनील जाखड़ के साथ करीब दो घंटे लंबी वार्ता करनी पड़ी, उसके बाद ही सभा-स्थल पर भाषणों का दौर शुरू हुआ। सभा में सबसे लंबी तकरीर नवजोत सिंह सिद्धू की रही, जिन्होंने खुद को स्वतन्त्रता सेनानी के परिवार से बताया और 50 के दशक में बादल को चुनावी जंग में पटखनी देने वाले पिता का पुत्र बताया। उन्होंने सिखों के ऐतिहासिक संघर्ष की दास्ताँ के साथ पंजाब के लिए खुद को मिटा देने की तकरीर में कई उदाहरण पेश किये। लेकिन उनके हाव-भाव साफ़-साफ़ इशारा कर रहे थे कि यह बाजी उनके हाथ से निकल चुकी है। सभा का संचालन सुनील जाखड़ के जिम्मे था, जो इस बार खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और उन्होंने मौखिक रूप से खुद को सीएम की रेस से बाहर बता दिया है।

वहीं चन्नी का मुख्य फोकस आम आदमी पार्टी पर बना रहा। उन्होंने एक-एक कर बताया कि किस प्रकार जिन भ्रष्ट लोगों को कांग्रेस ने इस बार टिकट नहीं दिया, उन्हें आप पार्टी ने पाक-साफ़ बताकर चुनावी मैदान में अपने उम्मीदवार के बतौर उतार दिया है। चूँकि मुख्य मुकाबले में इस समय आप है, और आप ने बाकी सभी राज्यों से उम्मीद छोड़ अब पूरी ताकत पंजाब पर झोंक दी है, ऐसे में उसकी ओर से चन्नी पर सबसे अधिक व्यक्तिगत हमले किये जा रहे थे।

राहुल गाँधी ने अपने भाषण की शुरुआत दून के दिनों को याद करते हुए की। उन्होंने एक ऐसा वाकया बताया, जिस पर सिद्धू खुद हैरान थे। उन्होंने यह याद दिलाते हुए कि वे सिद्धू को तब से जानते हैं जब वे उनके स्कूल में खेलने आये थे, और ओपनिंग गेंदबाजी करते हुए 6 विकेट और बाद में ओपनिंग बल्लेबाजी करते हुए 98 रन बना डाले थे, और दून स्कूल को बुरी तरह से धूल चटा दी थी। लेकिन बेहद मार्के वाली बात बाद के लिए बचाकर रखी, जो कि यह थी कि वाक्पटुता में धनी होने के बजाय व्यक्ति का संपूर्ण व्यक्तित्व मायने रखता है, और “चन्नी कांग्रेस हाई कमान की नहीं बल्कि पंजाब की जनता की पसंद हैं। पंजाब ने इस बार गरीब पृष्ठभूमि वाले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री के तौर पर देखने की इच्छा जताई है।”

ज्ञातव्य हो कि पिछले कई महीनों से नवजोत सिंह सिद्धू ने कुछ ऐसा माहौल बना रखा था कि चन्नी यदि चार काम अच्छे करते थे, तो सिद्धू की ओर से तुरत-फुरत कुछ ऐसा बयान आ जाता था कि सारे किये कराये पर पानी फिर जाता था। यह बात सबको पता थी कि सिद्धू आखिर यह सब सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष होने के बल पर नहीं कर रहे हैं, बल्कि यह सत्ता प्रतिष्ठान पर हमेशा से कब्जा जमाये जमात के बल पर इसे अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना रहे हैं।

लेकिन इन्हीं 111 दिनों में चन्नी ने जिस प्रकार से दिन ही नहीं बल्कि रात के 1-2 बजे भी जनता दरबार लगाकर लोगों के इतने काम निपटाए हैं, उनकी बातों को सुना है, वह पंजाब तो क्या देश में सुनने में नहीं आया है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री बनने के बावजूद चन्नी अपने पुराने सरकारी आवास में ही रह रहे हैं, और अपनी पत्नी को इस दौरान गाँव भेज दिया था, क्योंकि उनके पास घर पर आने या खाने-पीने के लिए समय ही नहीं था। दो-तीन घंटे की नींद और कई बार कार में ही बैठकर नींद पूरी करने की बात पंजाब में चर्चा में है। इस बीच कांग्रेस आलाकमान ने चमकौर साहिब के अलावा आप के गढ़ से भी एक अन्य सीट पर चन्नी की दावेदारी से वहां के दलित आधार से दलितों के वोटों पर सेंधमारी के साथ ही संकेत दे दिए थे कि मुख्यमंत्री के तौर पर उसकी प्राथमिकता में असल में कौन है।

यही बात कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में तुरुप का इक्का साबित हो सकती है, इस बात को जो लोग राजनीति की गहरी समझ रखते हैं, समझ रहे हैं। उपर से चन्नी जैसा विनम्र लेकिन मंझा हुआ खिलाड़ी, जिसने पिछले दिनों पीएम के “अपने मुख्यमंत्री से कहना, मैं जिंदा बचकर वापस जा रहा हूँ” वाले सनसनीखेज बयान की जिस तरह से हवा निकाली, उसे सारे देश ने देखा। कमोबेश सभी राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना था कि उसके बाद जिस प्रकार से चन्नी ने हालात को संभाला और एक के बाद एक बेहद विनम्रता के साथ किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को आक्रोशित जनता से कैसा व्यवहार करना चाहिए का लाइव उदाहरण पेश कर मीडिया और भाजपा के राष्ट्रीय शुगुफे की ऐसी हवा निकाली कि उस जुमले को पीएमओ ने कभी भी फिर आगे नहीं किया। यह एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। कुछ-कुछ इसे गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत और महाराष्ट्र में शरद पवार के लिए ईडी के नोटिस से जोड़कर समझा जा सकता है।

पीएम के काफिले पर हमले की संभावित स्टोरी से कांग्रेस को घेरने की कवायद में गए कथित राष्ट्रीय हिंदी-अंग्रेजी चैनलों के पत्रकारों को मुख्यमंत्री चन्नी ने उन्हीं के हथियार से अपने लिए एक ऐसी जमीन तैयार कर ली थी, कि लोग पूछने लगे कि ऐसे टैलेंटेड युवाओं के होते हुए भी जी-23 जैसे सत्ता के भूखे लोगों को कांग्रेस ढोएगी, तो उसका यही हाल होना तय है।

इस बीच मुख्य प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रभारी, राघव चड्ढा ने चन्नी के मुख्यमंत्री के दावेदार बनाये जाने पर अफ़सोस जताते हुये कहा है, “यह वास्तव में बड़े दुःख की बात है कि 3 करोड़ पंजाबियों के रहते हुए, कांग्रेस ने एक ऐसे व्यक्ति को चुना है जो गैर-क़ानूनी रेत खनन और ट्रांसफर पोस्टिंग धांधली मामले में आरोपी है।” आम आदमी पार्टी की खीझ बताती है कि चन्नी उनके लिए कितना बड़ा सिरदर्द है, जिसने पंजाब की सत्ता संभालते ही आम आदमी पार्टी के कई दावों की हवा एक महीने में ही निकाल दी थी, जिसमें बिजली की दरों को देश में सबसे कम करने से लेकर किसानों की कई मांगों सहित आम पंजाबी और खास कर देश में सबसे अधिक प्रतिशत वाले दलित प्रदेश के बीच से एक नए दमदार नेतृत्व को प्रदर्शित करने काम किया है। 2024 के महासंग्राम के लिए मौजूदा दौर में प्रियंका गाँधी 2022 में यूपी में जिस पिच को हरा-भरा करने के प्रयास में जुटी दिखाई दे रही हैं, जिसे कई चुनावी पंडितों ने नॉन-स्टार्टर घोषित कर दिया है, जहाँ हाथी करीब-करीब अस्ताचल की ओर उन्मुख हो चुका है, एक नए दलित मुख्यमंत्री के तौर पर चरणजीत सिंह चन्नी की धमाकेदार एंट्री संघ और भाजपा के ‘अमृत काल’ को ‘कडुआ काल’ में तब्दील करने की बड़ी तरतीब साबित हो सकता है।  

(रविन्द्र पटवाल पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते है)

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