सैमसंग इंडिया में श्रमिकों की लड़ाई भारत में मजदूर आंदोलन का नया आगाज तो नहीं?

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भारत के हालात देखकर तो ऐसा ही लगता है। आज़ादी की लड़ाई से लेकर 90 के दशक तक भारत में मजदूर आंदोलनों की गूंज अक्सर सुनाई पड़ती थी। लेकिन 2012 में मानेशर स्थित, मारुती उद्योग में चली लंबी हड़ताल के बाद से मानो भारत में श्रमिक आंदोलनों के गौरवशाली इतिहास का खात्मा सा हो गया है।

नव-उदारवादी अर्थनीति के दशकों में भारत की अर्थ नीति ही नहीं बदली है, बल्कि पूंजी और श्रम के बारे में बहुसंख्यक आबादी का नजरिया ही पूरी तरह से बदल चुका है।

बड़ी संख्या में छोटे और मझोले उद्योग धंधे बंद होने, सर्विस सेक्टर में भारत को मिली अपेक्षित सफलता, देश के ग्रामीण आबादी के लिए खेती में लगातार घाटे के चलते बड़ी संख्या में शहरों और महानगरों की ओर पलायन और बढ़ती शहरों में श्रम मांग और आपूर्ति में भारी असुंतलन ने श्रमिकों और ट्रेड यूनियनों, दोनों की मानो कमर ही तोड़कर रख दी है।

तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर औद्योगिक क्षेत्र में दक्षिण कोरियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी, सैमसंग के प्लांट में श्रमिक पिछले एक महीने से हड़ताल पर हैं, और अब यह आंदोलन दूसरे महीने में प्रवेश कर चुका है।

कुल 1,723 मजदूरों से युक्त इस प्लांट में 9 सितंबर 2024 से यह हड़ताल शुरू हुई थी, जिसमें सीपीआई (एम) से संबंधित सीटू के मुताबिक 90% श्रमिकों ने अपनी हिस्सेदारी की थी।

लेकिन जैसे-जैसे स्ट्राइक आगे बढ़ी, सैमसंग प्रबंधन के कड़े रुख, तमिलनाडु सरकार के रवैये और पुलिस बंदोबस्त के माध्यम से मजदूरों को मनाने, धमकाने की तमाम कोशिशों का प्रतिफल यह है कि एक तिहाई मजदूर प्लांट में काम पर लौट चुके हैं, लेकिन आज भी 1,000 से ज्यादा संख्या में मजदूर आंदोलनरत हैं।

राज्य में एमके स्टालिन के नेतृत्व में डीएमके की सरकार सत्ता में है, जिसका सीपीआई (एम) के साथ राज्य में गठबंधन होने के साथ-साथ विपक्ष में इंडिया गठबंधन के तौर पर प्रमुख हिस्सेदारी है।

डीएमके तमिलनाडु को उद्योगों और जीडीपी के मामले में देश का सबसे अग्रणी राज्य बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं और हाल ही में अपने अमेरिकी यात्रा के दौरान उन्होंने पश्चिम के निवेशकों को रिझाने की तमाम कोशिशें भी की हैं।

लेकिन भारत से कहीं अधिक पश्चिमी दुनिया के वित्तीय मामलों पर निगाह बनाये रखने वाले समाचारपत्रों और न्यूज़ एजेंसियों में सैमसंग में हड़ताल की खबर पर निगाह बनी हुई है।

इस हड़ताल को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए डीएमके सरकार वो तमाम प्रयास कर रही है, जिसे उचित-अनुचित की श्रेणी में आसानी से वर्गीकृत किया जा सकता है।

आखिर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में सिर्फ एक प्लांट में श्रमिकों की वाजिब हक़ों के लिए हड़ताल के आह्वान से तमिलनाडु सरकार ही नहीं केंद्र सरकार और भारत का मीडिया इतना आतंकित कैसे है?

क्या विदेशी कंपनियों को निवेश की दावत देते वक्त हमारी सरकार और राज्य सरकारें उनसे ऐसी शर्तें मंजूर कर लेते हैं, जो पूरी तरह से श्रमिक और गरीब विरोधी होती हैं?

ऐसा इसलिए, क्योंकि 25 सितंबर को केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री, मनसुख मंडाविया तक ने इस हड़ताल को खत्म करने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को पत्र तक लिखा था। अपने पत्र में श्रम मंत्री की मुख्य चिंता इस बात को लेकर थी कि हड़ताल की वजह से देश में सकारात्मक विनिर्माण क्षेत्र का इकोसिस्टम प्रभावित हो रहा है।

इस हड़ताल को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए मंत्री जी ने राज्य सरकार को पूरा-पूरा सहयोग देने का भी वादा किया था। जाहिर है, जीएसटी से लेकर केंद्र-राज्यों के बीच देश के संघीय ढांचे को लेकर चल रही तीखी नोकझोंक के बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सेवा और श्रमिकों की जायज मांगों को कुचल देने को लेकर दोनों सरकार एकमत हैं।

बता दें कि हाल के वर्षों में तमिलनाडु देश में उद्योग धंधों और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के मामले में अग्रणी राज्य बना हुआ है। इसके मुकाबले में गुजरात, तेलंगाना और कर्नाटक सहित महाराष्ट्र तेजी से निवेशक समर्थक नीतियों और श्रमिक अधिकारों को किनारे पर डाल देने की दिशा में बढ़ रहे हैं।

यूपीए सरकार हो या 2014 के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन, एफडीआई, विदेशी निवेश को आकर्षक बनाने के लिए सकारात्मक माहौल निर्मित करने के नाम पर सबसे पहले श्रमिक अधिकारों को दफन करने के लिए नए श्रम कानून बनाने के साथ-साथ समूचे मध्य वर्ग को अपने पीछे लामबंद किया जा चुका है।

अब सोचिये, महज 1,800 श्रमिकों को रोजगार देने वाली एक इंडस्ट्री के मालिकों की हितों की रक्षा के लिए देश की राज्य और केंद्र सरकार के साथ-साथ सत्ता की मशीनरी किस कदर श्रमिक विरोधी माहौल को बनाने के लिए कृतसंकल्प है।

देश के समाचारपत्रों में जो भी लिखा और बताया जा रहा है, उसमें सैमसंग प्रबंधन के पक्ष को ही दिखाने की कोशिश चल रही है।

जैसे, देश के सबसे प्रमुख न्यूज़ एजेंसी ने प्रबंधन का दृष्टिकोण आगे रखते हुए उसका बयान उधृत किया है, “सैमसंग इंडिया में श्रमिक कल्याण हमारी सबसे पहली प्राथमिकता में है। हमारे चेन्नई प्लांट में स्थायी रूप से काम करने वाले श्रमिकों का वेतन क्षेत्र के अन्य उद्योगों की तुलना में 1।8 गुना अधिक है।

इसके अलावा हम अपने यहां श्रमिकों को ओवरटाइम सहित स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण से जुड़ी अन्य सुविधाओं को सर्वोच्च स्तर पर प्रदान करने की गारंटी करते हैं। हम श्रमिकों की समस्याओं पर बातचीत करने के लिए उनके साथ वार्ता के लिए तत्पर हैं, ताकि वे जल्द से जल्द काम पर वापस लौटें।”

लेकिन हकीकत क्या है? वास्तविकता यह है कि सैमसंग इंडिया प्रबन्धन किसी भी सूरत में श्रमिकों को ट्रेड यूनियन बनाने की इजाजत और उसे मान्यता नहीं देना चाहता। इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सीटू के प्रदेश अध्यक्ष ए. सोंदरराजन को 30 सितंबर 2024 को 900 श्रमिकों के साथ कांचीपुरम में रैली निकालने के आरोप में पुलिस हिरासत में ले लिया गया था।

सैमसंग प्रबंधन श्रमिकों की मांगों को सीटू के साथ हल करने के पक्ष में नहीं है। पहले उसने धमकी दी थी कि हड़ताल पर जाने वाले मजदूरों को ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ की तर्ज पर हड़ताल की अवधि के दौरान कोई पैसा नहीं दिया जायेगा।

अब पिछले दिनों, 7 अक्टूबर को सैमसंग प्रबंधन की ओर से प्रबंधक निदेशक, यून सुंग-ह्यून और 7 श्रमिकों के साथ हुई बैठक को इस तौर पर प्रचारित करा दिया कि सैमसंग प्लांट के श्रमिकों के साथ मैनेजमेंट का समझौता हो गया है, और हड़ताल खत्म हो चुकी है। भारत के सभी प्रमुख आर्थिक समाचारपत्रों ने इसे प्रमुखता से छापने में कोई देर नहीं दिखाई।

लेकिन इस वार्ता के बिंदुओं पर गौर करने पर पता चलता है कि प्रबंधन ने मजदूरों के बीच से अपनी पसंद की एक कमेटी को बात करने के लिए आमंत्रित किया, जिसके साथ समझौते के नाम पर अक्टूबर से मार्च 2025 तक उत्पादकता इंसेंटिव के नाम पर 5,000 रूपये की अतिरिक्त राशि पर समझौता हुआ है।

अगले वित्तीय वर्ष में यह बढ़ोत्तरी मिलेगी या नहीं, इसके लिए तब वार्ता होगी। नौकरी के दौरान दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर श्रमिक के परिवार को 1 लाख रूपये की अतिरिक्त सहायता के अलावा श्रमिक परिवारों को कंपनी के आयोजनों में 2000 रूपये मूल्य के उपहार, बसों के सभी रूट में एयरकंडिशन्ड बसों की सुविधा जैसे मुद्दों को समझौता करार दे दिया गया।

नतीजा यह है कि श्रमिक आज भी हड़ताल पर अड़े हुए हैं, जबकि भारत का मीडिया देश में आम लोगों के सामने श्रमिक विरोधी भ्रामक खबरों को छापने के कुत्सित अभियान में लगा हुआ है।

उदाहरण के लिए अंग्रेजी के एक अख़बार ने सीटू के बयान में दक्षिण कोरिया में सैमसंग के श्रमिकों को मिलने वाले 3.5-4 लाख रूपये प्रतिमाह से भारत की तुलना को यह कहकर प्रचारित कर दिया कि उक्त ट्रेड यूनियन भारत के मजदूरों को भी तनख्वाह, समान वेतन दिए जाने की मांग के साथ उकसा रही है।

सोशल मीडिया पर इसे मुद्दा बनाकर नव-उदारवादी अर्थनीति के लाखों पैरोकार कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ विषबमन में लगे हुए हैं।

तमिलनाडु में सक्रिय सोशल मीडिया और यूट्यूबर भी सैमसंग में 35-70,000 प्रतिमाह तनख्वाह, पीएफ, ईएसआई की सुविधा सहित तमाम सुविधाओं के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित कर राज्य की डीएमके सरकार की तरफदारी करने और सीटू को सैमसंग के श्रमिकों को बरगलाने और अपना उल्लू सीधा करने का आरोप लगा रहे हैं।

सोशल मीडिया में तो कई तमिलनाडु के लोग डीएमके से सीपीआई(एम) से गठबंधन तोड़ने तक की बात कर रहे हैं।

कल हड़ताल के दूसरे माह में प्रवेश के बाद दो अफवाहें उड़ाई गईं, जिसमें पहली खबर को देश के प्रमुख अंग्रेजी बिजनेस अख़बार, बिजनेस स्टैण्डर्ड ने अपनी प्रमुख खबर के तौर पर प्रकाशित किया है कि आंध्र प्रदेश के श्री सिटी के अधिकारियों के द्वारा सैमसंग प्रबंधन के साथ संपर्क साधा गया,, जिसमें इस प्लांट को तमिलनाडु से आंध्र में स्थानांतरित करने को लेकर बात हुई।

दूसरी ओर, ये खबर भी उड़ाई जा रही है कि सैमसंग, ग्रेटर नोएडा स्थित अपने स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की लोकेशन पर इस प्लांट को स्थानांतरित करने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है।

हालांकि, आज दोनों ही खबरों पर सैमसंग और तमिलनाडु सरकार की ओर से खंडन आ चुका है, लेकिन फिर सवाल उठता है कि बिजनेस स्टैण्डर्ड जब अपने पहले दो पेज में सैमसंग जैसे बड़े ब्रांड से विज्ञापन पाता है तो उससे इससे बेहतर न्यूज़ की अपेक्षा करना बेवकूफी नहीं तो क्या हो सकती है।

ऐसा भी नहीं है कि सैमसंग कोरिया को ये स्थिति सिर्फ तमिलनाडु के अपने संयंत्र में देखने को मिल रही है। वित्त वर्ष 2022-23 में 198 बिलियन डॉलर की कमाई करने वाली सैमसंग, दक्षिण कोरिया की जीडीपी (1.71 ट्रिलियन डॉलर) के 10 प्रतिशत से भी अधिक पर अपनी हिस्सेदारी रखती है।

इस कंपनी के मालिकान, दक्षिण कोरिया की विभिन्न सरकारों में सीधी दखल रखा करते थे, और इनके खिलाफ वित्तीय गड़बड़ी और टैक्स चोरी के आरोप के बावजूद इन्हें अभयदान मिला हुआ था।

देश में अपनी स्थापना के 80 वर्षों के दौरान ‘नो यूनियन’ की पालिसी होने के बावजूद, जुलाई 2021 में 1.25 लाख श्रमिकों से युक्त सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स में श्रमिकों की पहली सफल हड़ताल हुई, जिसमें वेतन में 4.5% की बढ़ोत्तरी पर सहमति बनी थी।इस वर्ष 13 अगस्त को भी सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी लेबर यूनियन ने 4 दिन के हड़ताल का आह्वान किया था।

लेकिन भारत में पूरा नैरेटिव ही इस प्रकार से चलाया जा रहा है, जैसे सैमसंग सहित विदेशी कंपनियां भारत के आम लोगों के कल्याण के लिए भी अपना निवेश लेकर आ रही हैं, और जो कुछ भी वेतन के नाम पर दे रही हैं, उसे चुपचाप ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण कर लेना चाहिए।

कल हड़ताल के एक माह पूरा हो जाने के अवसर पर प्रशासन की बेचैनी, धरनास्थल पर श्रमिकों के टेंट-तंबू को उखाड़ फेंकने और इसका विरोध करने पर श्रमिकों को हिरासत में लेने की घटना से समझ आता है।

इस घटना पर सीपीआई(एम) के अलावा, सीपीआई, कांग्रेस, वीसीके, एमएमके जो डीएमके के सहयोगी दल हैं, साथ-साथ एआईएडीएमके, पीएमके और एनटीके की ओर से कड़ी भर्त्सना के बाद राज्य सरकार सफाई की मुद्रा में नजर आती है।

लेकिन, पूंजी-परस्त मीडिया, केंद्र सरकार की तरह डीएमके उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन भी साफ़ झूठ बोलते देखे जा सकते हैं कि सैमसंग ने एक राजनीतिक पार्टी से जुड़े ट्रेड यूनियन को मान्यता देने के अलावा श्रमिकों की सभी मांगों को मान लिया है, इसलिए यह हड़ताल अब खत्म हो जानी चाहिए।

जबकि असलियत तो यह है कि अपने देश में श्रमिकों के विरोध को मद्देनजर रखते हुए सैमसंग क्या पश्चिमी देशों के तमाम मुनाफाखोर जायंट कारपोरेशंस दुनिया में घूम-घूमकर अपने लिए एजेंट देश तलाशते हैं, जो अपने देशवासियों को कुचलकर अपने क्रोनी पूंजीपतियों और स्वंय के लिए करोड़ों-अरबों का वारा-न्यारा चाहते हैं, और इसे ही विकास बताते हैं।

बड़ा सवाल यह है कि श्रमिकों की जो हड़ताल दूसरे माह में प्रवेश कर चुकी है, वो केंद्र, राज्य सरकार के दबाव सहित उन लार टपकाते राज्यों से कब तक लड़ सकते हैं, जो ऐसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ‘आइये, हमारे राज्य के श्रमिकों के बल पर और ज्यादा मुनाफा कमाने का अवसर हासिल कीजिये’ की रट लगाते हुए खुद की बोली लगाने से नहीं चूक रहे।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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  1. 1
    B m mehta

    बाकई लालझंडो की यूनियन देश के मज़दूरों के वेहतर जीबन यापन की लड़ाइयां देश के विभिन्न क्षेत्रों में पूरे दमखम से लड़ रही है , सरकार और कोपरेटिव संस्थान इनके खिलाफ मीडिया और अपने साधनों से माहौल बनाने का असफल प्रयास कर रहा है , श्रम और श्रमिक विरोधी तमाम बिल पास कराने के वावजूद वह ऐसी लड़ाइयों को रोकने में असफल हो रहा है आज भी मथुरा रिफाइनरी के संविदा श्रमिक अपने सुनिश्ति मानदेय को पाने के लिए पिछले दो सालों से सँघर्ष रत है , ठेकेदारों एवं निजी कम्पनियां उनका आधा वेतन देने के वाद छीन लेती है जिसकी शिकायत हर स्तर तक करने के वाद भी प्रबंधन और सरकार वार्ता से कतराते हुए मज़दूरों का अवैध निष्कासन कर रही है , ऐसी हालत मथुरा रिफाइनरी में ही नही देश के साथ जिले के हर विभाग में संविदा एवं आउट सोर्सिंग श्रमिको के साथ हो रहा है , इतना होने के वावजूद श्रमिक वर्ग अपनी लड़ाई लालझंडो की यूनियन के नेतृत्व में लड़ने के लिए अड़ा ओर खड़ा हुआ है ,
    का – बी एम मेहता ( उपाध्यक्ष )
    पेट्रोलियम वर्कर्स यूनियन संविदा कामगार रिफाइनरी मथुरा ( उत्तर प्रदेश )

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