Thursday, April 25, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: आसान नहीं, इंद्रेश मैखुरी होना

पहाड़ में जन आंदोलनों का प्रतीक बन चुके इंद्रेश मैखुरी एक बार फिर से चुनाव के मैदान में हैं। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के टिकट पर उत्तराखंड की कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। इससे पहले भी इंद्रेश भाकपा (माले) के टिकट पर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार वे कितने वोट अपने लिए जुटा पाएंगे, यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा। इस सबके बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में इंद्रेश मैखुरी एक ऐसी हस्ती बन चुके हैं, जिन्हें वोट बेशक कम मिलते हों, लेकिन राज्य की राजनीति और यहां के मुद्दों को जानना-समझना हो तो इंद्रेश मैखुरी से बेहतर कोई हो नहीं सकता। यही वजह है कि दिल्ली और देहरादून से जो पत्रकार चुनाव संबंधी रिपोर्टिंग के लिए उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों का रुख करते हैं, उनकी यह यात्रा इंद्रेश मैखुरी से मिले बिना मुकम्मल नहीं हो पाती।

जनचौक संवाददाता ने कर्णप्रयाग क्षेत्र में मतदाताओं का रुख जानने के लिए एक पूरा दिन इंद्रेश मैखुरी के साथ चुनाव अभियान में बिताया। सैकड़ों लोगों से बातचीत की, लेकिन एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जो इंद्रेश मैखुरी का विरोधी हो। कर्णप्रयाग क्षेत्र के ज्यादातर लोग इंद्रेश मैखुरी से वाकिफ हैं और जनसंघर्षों में उनकी भूमिका से भी। इंद्रेश की तारीफों के पुल बांधने के बाद ज्यादातर लोग अंत में एक बात जरूर कहते हैं, सब कुछ ठीक है, लेकिन उनकी पार्टी ठीक नहीं। हमने जब यह बात इंद्रेश के सामने रखी तो, उन्होंने कहा “जब उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष पद का चुनाव आइसा के बैनर तले लड़ा था, तब भी यही कहा जाता था कि इंद्रेश मैखुरी हर लिहाज से अच्छा छात्र नेता है, लेकिन आइसा के बैनर तले जीत नहीं पाएगा।”

कर्ण प्रयाग के सुनाली गांव में इंद्रेश मैखुरी।

इंद्रेश कहते हैं कि 1999 में आइसा के बैनर तले हार के बाद 2000 में उन्होंने जीत दर्ज की और छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। वे कहते हैं कि बर्बादी सहन करने की सीमा कहीं न कहीं होगी जरूर। जिस दिन बर्बादी उस सीमा से आगे बढ़ जाएगी, उस दिन जरूर लोगों के समझ में बात आएगी।

उत्तराखंड का कोई भी जनसंघर्ष ऐसा नहीं, जिसमें इंद्रेश मैखुरी शामिल न रहे हों। वे कई बार पुलिस की लाठियों से चोटिल हो चुके हैं, उन पर कई मुकदमे दर्ज हैं और विभिन्न आंदोलनों में अब तक 47 दिन जेल में भी बिता चुके हैं। आंदोलन, मुकदमें और जेल यात्रा की शुरुआत तभी से हो चुकी थी, जब इंद्रेश 12वीं में पढ़ रहे थे। यह 1994 की बात है। वे उत्तरकाशी के सरकारी इंटरमीडिएट कालेज में पढ़ाई कर रहे थे और उत्तराखंड आंदोलन शुरू हो गया था।

इंद्रेश भी आंदोलन में कूद पड़े। इसी बीच उन्होंने उत्तरकाशी के राजकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय में बीए में एडमिशन भी लिया। आंदोलन में हिस्सेदारी चलती रही और दो मुकदमे दर्ज हुए। ये दोनों मुकदमें तब तक चलते रहे, जब तक इंद्रेश ने गढ़वाल यूनिवर्सिटी श्रीनगर ने मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई पूरी नहीं कर ली। वे श्रीनगर से पेशी में लगातार उत्तरकाशी जाते थे।

चमोली जिले की कर्णप्रयाग तहसील के मैखुरा गांव के निवासी इंद्रेश मैखुरी की 9वीं तक शिक्षा देश के अलग-अलग हिस्सों के सैन्य स्कूलों में हुई। भारतीय सेना में कार्यरत पिता का जहां तबादला होता, इंद्रेश वहीं स्कूल में भर्ती करवा दिये जाते हैं। 10वीं की परीक्षा उन्होंने राजस्थान बोर्ड कोटा से पास की और 12वीं की उत्तर प्रदेश बोर्ड से। बीए उत्तरकाशी से तो एमजेएमसी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर कैंपस से। आइसा से जुड़े, छात्र संघ अध्यक्ष रहे। फिर 4 वर्ष तक आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी। बाद में भाकपा माले में सक्रिय हो गये। कुछ दिन गढ़वाल यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग में पढ़ाया भी।

इंद्रेश मैखुरी गांव में प्रचार करते हुए।

1994 के उत्तराखंड आंदोलन से शुरू हुआ आंदोलनों में भागीदारी का सिलसिला लगातार जारी रहा। राज्य के किसी भी हिस्से में आम लोगों की आवाज उठाने के लिए किये जाने वाले हर आंदोलन में इंद्रेश मैखुरी शिरकत करते रहे। कई बार पुलिस की लाठियां खाई और घायल हुए। मुकदमें दर्ज हुए और जेलों में रहे, लेकिन पीछे नहीं हटे। पिछले वर्ष घाट क्षेत्र के लोगों द्वारा नन्दप्रयाग से घाट तक डेढ़ लेन रोड बनाने के आंदोलन में न सिर्फ इंद्रेश मैखुरी ने प्रमुख भूमिका निभाई, बल्कि पुलिस की लाठियों और वाटर कैनन की बौछारों से घायल भी हुए।

इंद्रेश मैखुरी के चुनाव प्रचार अभियान का जायजा लेने के लिए जनचौक के संवाददाता ने एक पूरा दिन उनके साथ बिताया। कर्णप्रयाग क्षेत्र सहित पूरे उत्तराखंड में आमतौर पर उम्मीदवार लाव-लश्कर के साथ प्रचार अभियान में निकलते हैं। जहां वे पहुंचते हैं, वहां पहले से ही काफी भीड़ जमा रहती है। हर छोटे-बड़े कस्बे में उम्मीदवार की ओर से खाने के लंगर चलाये जा रहे हैं। रात की दावतों की बात भी खूब सुनी जा रही है। लेकिन, इंद्रेश मैखुरी का अभियान इससे पूरी तरह अलग है। सुबह कर्णप्रयाग से निकले तो इंद्रेश मैखुरी ने अपनी कार का स्टेयरिंग खुद थामा। कार में उनके दो समर्थक भी बैठे।

इंद्रेश मैखुरी का पोस्टर। वाम मोर्चा के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर।

कर्णप्रयाग से करीब 20 किमी दूर सुनाली गांव में पांच लोग इंतजार करते मिले। वे एक अन्य कार से वहां पंहुचे थे। अब इंद्रेश के काफिले में दो कारें थी और जनसंपर्क के लिए 8 लोगों की टीम। सुनाली गांव में घर-घर प्रचार के बाद इंद्रेश और उनके समर्थकों की टीम एक बेहद खराब, कच्ची सड़क से होकर हिंडोली गांव पहुंची। यहां कारें सड़क के किनारे खड़ी की गई और यह छोटी सी टीम लोगों से मिलने निकल पड़ी। हिंडोली से शुरू हुई यह पैदल यात्रा करीब 10 किमी चलकर देर शाम कोट कंडारा पहुंची और अंधेरा होने तक लोगों के साथ संपर्क करने में जुटी रही।

इस बीच बताया गया कि इंद्रेश मैखुरी को कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला था, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया। जब जनचौक ने इस बारे में सवाल पूछा तो इंद्रेश ने कहा कि उत्तराखंड में राजनीतिज्ञों की एक बड़ी जमात पैदा हो गई है, जो कपड़ों की तरह पार्टियां बदलती है। वे भाजपा और कांग्रेस को उत्तराखंड की बर्बादी का कारण मानते हैं और कहते हैं कि राज्य को बर्बाद करने वालों के कंधे का सहारा लेकर वे राजनीतिक लाभ कभी नहीं लेंगे। यह राज्य आंदोलन और यहां के लोगों के साथ फरेब है। इंद्रेश मैखुरी, चंद्रसिंह गढ़वाली का उदाहरण देते हैं। कहते हैं कि चंद्रसिंह गढ़वाली को भी एक बार कांग्रेस ने अपनी टिकट पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने यह कहकर कांग्रेस के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था कि वे कम्युनिस्ट हैं, और यदि कांग्रेस की उनमें श्रद्धा है तो वह एक सीट उनके लिए छोड़ दे।

कर्ण प्रयाग इलाके में प्रचार पर जाते इंद्रेश मैखुरी।

प्रचार अभियान पर निकली इस छोटी सी टीम के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य 72 वर्षीय मदन सिंह पुंडीर हैं। जब उनसे पूछा गया कि तमाम बड़ी पार्टियों की मौजूदगी के बावजूद वे इंद्रेश मैखुरी के साथ क्यों हैं, तो मदन सिंह पुंडीर ने मैखुरी को राजनीति का कलाकार बताया। उनका कहना था, “इंद्रेश मैखुरी से मुलाकात तो हाल के दिनों में ही हुई है, लेकिन पिछले 15 वर्षों से मैं देख रहा हूँ कि किस तरह इंद्रेश आम लोगों की समस्याओं को लेकर सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं।” जन संपर्क के दौरान मदन सिंह पुंडीर लोगों से कहते हैं कि मैं बूढ़ा आदमी बच्चों को यह समझाने आया हूं कि हम कई वर्षों से नासमझी कर रहे हैं। अब भी हमने सोच-समझकर वोट नहीं डाला तो पूरा पहाड़ तबाह हो जाएगा।

एक युवा लक्ष्मी प्रसाद डिमरी भी पूरे दिन इंद्रेश मैखुरी के साथ मौजूद रहे। जब उनसे पूछा गया कि दूसरे उम्मीदवार बढ़िया खाने-पीने और रहने के व्यवस्था कर रहे हैं, फिर भी वे अपनी जेब से पैसे खर्च कर इंद्रेश मैखुरी के चुनाव अभियान से क्यों जुड़े हैं। इस सवाल के जवाब में लक्ष्मी प्रसाद कहते हैं “आज हर युवा के लिए सबसे बड़े मुद्दे बेहतर शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाएं हैं। अफसोस यह है कि ज्यादातर उम्मीदवार इन मसलों पर कोई बात नहीं कर रहे हैं। वे युवाओं को रात की दावतें देकर उन्हें अपने पक्ष में कर रहे हैं। ज्यादातर युवा भी इन कुछ दिनों के ठाठ-बाट में रम गये हैं। जबकि इंद्रेश मैखुरी यहां के युवाओं के भविष्य के लिए लड़ रहे हैं।”

कोट कंडारा गांव में चाय की टिपरी पर कुछ लोगों से मुलाकात हो जाती है। एक युवक इंद्रेश से पूछता है, “आप कई बार चुनाव लड़ चुके हैं और कभी जीते नहीं, फिर भी हर आंदोलन में खड़े नजर आते हैं, पुलिस के डंडे खाते हैं। समस्याओं के निदान के लिए लोगों को आपकी जरूरत होती है, लेकिन वोट आपको नहीं देते। ऐसा क्यों होता है?” इस पर इंद्रेश विस्तार से अपनी बात रखते हैं। वे कहते हैं “दूसरी पार्टियों के लोग चुनाव पर करोड़ों खर्च करते हैं। अपनी पार्टी से टिकट हासिल करने के लिए ही एक करोड़ रुपया दे देते हैं और फिर कई करोड़ रुपये चुनाव पर खर्च करते हैं। ऐसे लोग चुनाव जीतने के तुरंत बाद खर्च किया हुआ पैसा वसूल करने में जुट जाते हैं। लेकिन, मैं चुनाव में अपनी जेब से कोई पैसा नहीं खर्च करता। इसके लिए मेरे पास पैसे हैं ही नहीं। लोग मुझे बिना पैसे के वोट देते हैं और चुनाव में जो थोड़ा-बहुत खर्च होता है, वह पैसा भी जनता की ओर से ही मुझे मिलता है। इसलिए लोगों के बीच रहना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं”।”

(कर्ण प्रयाग से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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