ऐसा आसां नहीं है सागर सरहदी होना

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अभी-अभी इलाहाबाद के रंगकर्मी प्रवीण से खबर मिली कि सागर सरहदी नहीं रहे। सागर साहब मुंबई में थे, वहीं आज सुबह किसी लम्हे में उन्होंने  आखिरी सांस ले ली। सागर साहब के बारे में  करने के लिए मेरे पास ‘’सागर-भर” बातें हैं। फिलहाल मैं सदमे में हूं इस खबर से। विस्तार से  कहीं उन पर लिखूंगा। वे क्या थे, कैसे थे, उनका जीवन कैसा था ? इन सब पर बात करने के लिए पोथा लिखना होगा। वे आजीवन अविवाहित रहे, मगर उनका कहना था कि उन्होंने बीसेक से भी ज्यादा इश्क किए। कृशन चंदर, राजेंद्र सिंह बेदी, कैफी आजमी, गुलजार की पीढ़ी के वे ऐसे फिल्म निर्माता, पटकथाकार, लेखक थे, जिन्होंने जिंदगी में कभी समझौता नहीं किया अपने उसूलों से।

वे किस तरह के और किस पाए के फिल्मकार थे, इसे संक्षेप में बस इतना समझिए कि मेरी कहानी ‘’बन्दूक’’ जब कथादेश में छपी तो उन्होंने उसे गोवा में पढ़ा। और, उस पर फीचर फिल्म बनाने का फैसला किया। उन्होंने अपने सलाहकारों से कहा कि चलिए लेखक के पास चलते हैं मुरादाबाद। उनके सलाहकारों ने उन्हें  सुझाया कि लेखक को यहीं बुला लेते हैं। इससे वे नाराज हो गए, और उन्होंने अपने सलाहाकारों को ढेर सारी गालियां दीं। बोले -लेखक की इज्जत करना सीखो। वे हमेशा कहते थे कि फिल्मी  दुनिया में लेखकों की इज्जत नहीं होती। वे आजीवन लेखकों के सम्मान के लिए जूझते रहे। आखिरकार, वे मुझसे मिलने मुरादाबाद आए। यहीं मेरी कहानी को लेकर उन्होंने करार किया और FULL AND FINAL भुगतान किया। ‘’चौसर’’ फिल्म बनाई, शायद नवाजुद्दीन की यह पहली या दूसरी फिल्म होगी। निदा फाजली से गाने लिखवाए। साधना, सरगम, कविता कृष्णमूर्ति, रिचा शर्मा से गाने गवाए और मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसेन को फिल्म समर्पित की और दोनों ने हाल में अकेले बैठकर देखी। फिदा हुसेन ने सागर साहब से कहा, IT IS GOLD FOR YOU. मगर बदकिस्मती यह रही कि यह फिल्म कई बार रिलीज के मुहाने तक पहुंचकर रुकी रही। ‘’चौसर’’ का रिलीज होना उन्हें बड़ी श्रद्धांजलि होगी।

वे कहते थे कि हीरोडम फिल्मों पर बोझ होते हैं। ऐसे लोग कन्टेंट को नष्ट कर देते हैं। अमिताभ बच्चन के बारे में वे एक किस्सा सुनाते थे  कि ‘’सिलसिला’’ की शूटिंग के दौरान अक्सर अमिताभ बच्चन उनके पास आ जाते और उनका पैर दबाने लगते थे। कहते, ‘’सागर साहब क्या लिखते हैं आप।‘’ कभी-कभी’ फिल्म में यह संवाद है कि ‘’कुछ आंखें ऐसी होती हैं, जो देखते ही एक रिश्ता बना लेती हैं।‘’  सागर साहब का कहना था कि यही अमिताभ बच्चन जब मुंबई वापस गए और थोड़ा मशहूर हो गए तो सागर सरहदी से  बात ही नहीं करते थे। सागर साहब ने एक दिन अमिताभ बच्चन से पूछा, क्या बात है  बच्चनजी। तो उन्होंने कहा, सागर साहब वह कश्मीर था, यह मुंबई है।

सागर साहब नियमित और नियंत्रित मयकश थे, लेकिन शौक के लिए नहीं, वे बातचीत के शौकीन थे और अक्सर मयख्वारी के दौरान महफिल सजाते थे और ऊंची स्तर की बातचीत करते थे। वे पूरी फिल्मी दुनिया में अकेले ऐसी फिल्मी हस्ती हैं, जिनका घर किताबों से भरा पड़ा है। वे किताबें बहुत खरीदते थे, पढ़ते भी बहुत थे। उर्दू, अंग्रेजी उनकी मुख्यभाषा थी, लेकिन संस्कृत और हिन्दी पर भी अच्छी पकड़ थी। मैंने के. पवन वर्मा की किताब ‘’GREAT INDIAN MIDDLE CLASS’’ का दिल्ली में जिक्र किया तो उन्होंने अपने दोस्त श्याम स्वामी से उसे तुरंत खरीदने  को कहा और कार में बैठकर चल पड़े। कहीं से जाकर हमने वह किताब खरीदी। मैंने एक दिन पूछा कि आप इतना क्यों पढ़ते हैं तो उन्होंने कहा, ‘’पढ़ने से रूह बेखौफ होती है।‘’

सचमुच उनकी रूह बेखौफ थी। वे रुके नहीं, झुके भी नहीं। मगर ऐसे लोग अक्सर टूट भी जाते हैं। जीवन के संध्या काल में बहुत निराश थे। फिल्मों के भविष्य को लेकर, देश के भविष्य को लेकर। महिलाओं को लेकर। वे कहते थे, ‘’मैं अपनी महिलाओं को फिल्मों में मरते हुए नहीं दिखाना चाहता।‘’ 

सागर साहेब हमारे बीच रहेंगे। हमेशा और हमेशा।

(राम जन्म पाठक पत्रकार हैं और जनसत्ता में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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