Friday, June 2, 2023

जन हस्तक्षेप ने भी की प्रोफेसर हैनी बाबू समेत गिरफ्तार सभी बुद्धिजीवियों- एक्टिविस्टों की रिहाई की मांग

नई दिल्ली। जनहस्तक्षेप ने भी दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. हैनी बाबू की गिरफ्तारी की निंदा की है। संगठन की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में इसे अलोकतांत्रिक और तानाशाहीपूर्ण कार्रवाई करार दिया गया है। संगठन ने कहा है कि यह देश में असहमति का गला घोंटने और आतंक का वातावरण बनाने के मकसद से शिक्षाविदों, साहित्यकारों और अन्य बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी की श्रृंखला की ताजा कड़ी है।

उसका कहना है कि प्रो. हैनी बाबू को एलगार परिषद-भीमा कोरेगांव के फर्जी मामले में गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में गिरफ्तार कई अन्य व्यक्तियों की तरह ही प्रो हैनी बाबू ने भी एलगार परिषद की पुणे के शनिवारवाड़ा किले में भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित बैठक में हिस्सा ही नहीं लिया था। 

भीमा कोरेगांव की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी के महार सैनिकों ने पेशवा सेना को पराजित किया था। इस लड़ाई के स्थल पर सालाना कार्यक्रम का आयोजन दलितों की अस्मिता के समारोह के रूप में किया जाता है। संगठन ने कहा कि इस तरह के आयोजन में शिरकत को अपराध बताने और संबंधित व्यक्तियों की गिरफ्तारी को किसी भी मायने में वैध करार नहीं दिया जा सकता। लेकिन सरकार इस कार्यक्रम में भाग लेने को देशद्रोह बता कर इसके बहाने दलितों और अन्य वंचित समुदायों की आवाज उठाने वालों का दमन कर रही है। 

नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) इस मामले में अब तक प्रो. हैनी बाबू समेत 12 बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार कर चुकी है। इनमें रोना विल्सन, प्रो. शोमा सेन, सुधीर धवले, सुरेन्द्र गाडलिंग, महेश राउत, पी वरवर राव, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजालवेस, गौतम नवलखा और प्रो. आनंद तेलतुंबड़े जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल हैं। तेलुगु के प्रख्यात कवि 81 वर्षीय वरवर राव गंभीर रूप से बीमार हैं और जेल में ही उन्हें कोरोना का संक्रमण हो गया था।

संगठन के संयोजक ईश मिश्र ने बताया कि प्रो. हैनी बाबू को 24 जुलाई को पूछताछ के लिये मुंबई बुलाया गया था। तीन दिनों की पूछताछ के बाद उन्हें नक्सलवादी गतिविधियों और माओवादी सिद्धांत का प्रचार करने तथा एलगार परिषद मामले में अन्य गिरफ्तार व्यक्तियों के साथ साजिश रचने के फर्जी आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। 

आपको बता दें कि सामाजिक न्याय कार्यकर्ता प्रो हैनी बाबू कई अन्य कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के साथ प्रोफेसर जीएन साईबाबा के बचाव और रिहाई के लिये गठित समिति में सक्रिय रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक साईबाबा शारीरिक तौर पर लगभग शत-प्रतिशत अक्षम हैं और उन्हें माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में कैद किया गया था। 

जन हस्तक्षेप की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रो. हैनी बाबू तथा शोषित और वंचित तबकों की आवाज उठाने वाले अन्य बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी को विरोध का गला दबाने और अवाम में भय का माहौल बनाने की कोशिश माना जाना चाहिये। इस कार्रवाई के जरिये मोदी सरकार अपनी जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज को कुचलने के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे जैसे भीमा कोरेगांव हिंसा के वास्तविक मुजरिमों का बचाव कर रही है। 

इसके साथ ही जन हस्तक्षेप ने भीमा कोरेगांव के फर्जी मामले में आरोपित सभी कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की तुरंत रिहाई की मांग की है। उसने कहा है कि साम्प्रदायिक हिंसा के मामलों में फंसाये गये नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के विरोधी कार्यकर्ताओं को भी तत्काल रिहा किया जाये।

उसने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम और सार्वजनिक सुरक्षा कानून जैसे क्रूर कानूनों की मुखालफत की है। इसके साथ ही उसने देश की सभी लोकतांत्रिक ताकतों से अपील की है कि वे विरोध की आवाज तथा विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने के मकसद से उठाये गये सरकार के दमनकारी कदमों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करें। 

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles