गांव का एक सामान्य आदमी भी जो कभी लंपट की भूमिका में होता है, जब पंचायत के चुनाव में सफलता हासिल कर लेता है तब वह भी एक खास की श्रेणी में शामिल हो जाता है और उसके भीतर पद की गरिमा का एहसास होने लग जाता है। वह गली मोहल्ले के लंपट वाली अपने पुराने कैरेक्टर से मुक्त होने लग जाता है और पद की गरिमा में कैद होने लग जाता है।
पता नहीं क्यों भाजपा के आला नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री यहां तक कि देश का अगुआ को भी इसका जरा भी एहसास नहीं है कि पद की गरिमा भी कोई चीज है।
विदित है कि महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है। जहां महाराष्ट्र की सभी 288 सीटों पर एक ही चरण 20 नवंबर को मतदान होगा, जबकि झारखंड में 81 सीटों के लिए दो चरण के तहत होने वाला चुनाव में 13 नवंबर को 15 जिलों की 43 सीटों के लिए पहले चरण में तथा 9 जिलों के 38 सीटों के लिए 20 नवंबर को दूसरे चरण में मतदान होगा।
73 महिला और एक थर्ड जेंडर समेत 683 उम्मीदवार मैदान में हैं।
झारखंड में चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल और धार्मिक ध्रुवीकरण इन नेताओं द्वारा किया जा रहा है, वह आदर्श चुनाव आचार संहिता और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 का खुल्लम-खुला उल्लंघन है।
मजेदार बात तो यह है कि चुनाव आयोग द्वारा इनके विरुद्ध किसी प्रकार की अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गयी। जबकि राज्य के अमन पसंद कई सामाजिक संगठनों और महागठबंधन द्वारा इसकी शिकायत चुनाव आयोग से कई बार की जा चुकी है।
वैसे तो भाजपा एजेण्डा ही धार्मिक ध्रुवीकरण पर टिका है लेकिन इस बार भाजपा का सांप्रदायिक चुनावी अभियान से यह पूरी तरह साफ़ हो गया है कि भाजपा आदिवासियों, मूलवासियों के अधिकारों पर नहीं बल्कि विभाजन और धर्म के नाम पर चुनाव लड़ रही है।
राज्य में इसके हर नेताओं की जुबान पर बस घुसपैठिये, UCC, NRC वगैरह सिर्फ बसा हुआ है। इनके एजेण्डे में राज्य के आदिवासी-मूलवासियों की सामाजिक-राजनीतिक व आर्थिक सुरक्षा, CNT-SPT कानून, जल, जंगल, जमीन पर अधिकार, रोजगार, आदि मूल सवालों पर चुप्पी साधे हुए हैं।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा समेत सभी भाजपा नेता केवल नफरती और सांप्रदायिक भाषण दे रहे हैं।
वहीं सोशल मीडिया पर करोड़ों खर्च करके विभिन्न शैडो अकाउंट के माध्यम से झूठ व साम्प्रदायिकता फैलाई जा रही है।
इन सबके बीच सबसे अहम सवाल यह है कि जिस असम में झारखंड के आदिवासियों की स्थिति बद से बदतर है, वहीं वहां के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड में आदिवासियों के हितैषी बनने का ढोंग कर रहे हैं।
असम में झारखंड के आदिवासियों को न तो अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है, न जल, जंगल, ज़मीन का विशेष अधिकार और न भाषा-संस्कृति के संरक्षण की व्यवस्था है।
इस परिप्रेक्ष्य में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का झारखंड के आदिवासियों के अधिकारों की बात करना कितना हास्यास्पद है इसका आभास न तो सरमा को है और न भाजपा के झारखंडी नेताओं को है।
असम के एमानुएल पूर्ति, जो कि ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े हैं, बताते हैं कि
असम में आदिवासियों के स्वतंत्र अस्तित्व को भी मिटाया जा रहा है। उनके पास तो अपना घर बनाने के लिए भी भूमि नहीं है। झारखंड में तो CNT-SPT कानून आदिवासियों का सुरक्षा कवच है, लेकिन वहां ऐसा कोई कानून नहीं है।
असम में झारखंड के आदिवासी बड़ी संख्या में चाय बागानों में मज़दूरी करते हैं जहां उनका व्यापक शोषण होता है। बहुत संघर्ष के बाद 150-225 रु मज़दूरी मिलती है जो कि न्यूनतम दर से बहुत कम है। आदिवासी मजदूरों की स्वास्थ्य की स्थिति भी दयनीय है।
वहां की भाजपा सरकार झारखंड के आदिवासियों को दरकिनार करके रखती है। और तुर्रा यह कि हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड के आदिवासियों की चिंता में मरे जा रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी झारखंड में कोई चुनावी मुद्दा नहीं मिल रहा है सिवाय घुसपैठियों के।
वे राज्य के लगभग विधानसभा क्षेत्रों चुनावी सभाओं को संबोधित करते हुए लगभग एक ही बात दोहराते रहे हैं कि झामुमो, कांग्रेस और राजद ने झारखंड के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है।
घुसपैठिए इनके वोट बैंक बन गए हैं। घुसपैठिए आदिवासी बेटियों से शादी कर उनकी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। रोटी, बेटी और माटी की पुकार याद रखिए।
झामुमो ने चंपई सोरेन और सीता सोरेन को अपमानित किया है इसे मत भूलिए। झारखंड की पहचान बचाने के लिए राज्य में एनडीए की सरकार बनाइए। प्रधानमन्त्री उन्हीं सब बातों को दोहराते रहे है जिसे गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था।
मोदी ने 500 रुपए में गैस सिलेंडर और साल में दो गैस सिलेंडर मुफ्त देने की घोषणा की और कहा कि जब भाजपा सरकार बनेगी तो सबके खाते 2100 रू हर महीने जाएंगे।
वहीं पेपर लीक का खटराग अलापते रहे और कहा कि झारखंड के युवाओं को वर्तमान सरकार ने नौकरी तो नहीं दी, लेकिन पेपर लीक कराकर जीवन बर्बाद कर दिया। पेपर लीक के दोषियों को कड़ी सजा दी जाएगी। तीन लाख निष्पक्ष भर्ती करायी जाएगी।
ये तमाम बातें देश के प्रधानमंत्री की किस गरिमा को दर्शाता है यह क्षेत्र के लगभग लोगों को समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि क्षेत्र के कई लोग साफ कहते सुने जा सकते हैं कि जब सबके खाते में15 लाख नहीं आया तो 500 रूपए में गैस सिलेंडर और हर माह 2100 रूपए पर कैसे भरोसा करें।
वहीं हर साल 2 करोड़ नौकरी देने का मोदी का वादा टांय टांय फिस्स हो गया है, तो झारखंड में तीन लाख निष्पक्ष भर्ती कराये जाने के वायदों पर कैसे भरोसा हो। जाहिर है यह फिर से जुमला ही साबित होगा। मोदी जी और अमित शाह झारखंड में अपनी सरकार इसलिए चाहते हैं ताकि अपने चहेते पूंजीपति अडाणी और अंबानी को राज्य की सम्पदाओं को असानी से दिया जा सके।
इतना समझने के बाद भी राज्य के कई मतदाता असमंजस में हैं कि किसे ताज पहनाया जाए, सभी का चरित्र एक जैसा है। एक का थोड़ा कम, दूसरे का कुछ ज्यादा।
(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं)
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