ग्राउंड रिपोर्ट: एक मुस्लिम शिक्षक व उनकी पत्नी के साथ झारखंड पुलिस की बर्बरता

‘‘मेरे दोनों पैर बांध दिये गये और उसके बीच में एक डंडा घुसा दिया गया, मेरे दोनों हाथ को फैलाकर दो पुलिस वालों ने जमीन से सटाकर पकड़ लिया, मेरे मुंह में गमछा फाड़कर ठूंस दिया गया और उसके बाद मेरे पैर के तलवे पर बालीडीह थाना प्रभारी नूतन मोदी व 3-4 पुलिस वालों ने लगभग डेढ़-दो घंटे तक लाठियां बरसायीं। मेरे नाखून से खून टपकने लगा और मैं लगभग अधमरा हो गया, तब उन लोगों ने मुझे पीटना बंद किया। आज भी मैं ठीक से चल नहीं पाता हूं।’’- जब इस बात को 47 वर्षीय शिक्षक अमानत हुसैन बोल रहे थे, तो उनके चेहरे पर उभर आये दर्द स्पष्ट तौर पर दिख रहे थे। वहीं उनके पास में मौजूद उनकी पांचों बेटियों व छोटे बेटे जीशान के चेहरे पर आक्रोश उभर रहा था।

47 वर्षीय अमानत हुसैन मूल रूप से बिहार के आरा जिला के रहने वाले हैं, लेकिन कई दशकों से उनका पूरा परिवार झारखंड के बोकारो जिले में रह रहा है। अमानत हुसैन अपनी पत्नी साबरा बेगम, 5 बेटियों व 1 बेटे के साथ बोकारो जिला के बालीडीह थानान्तर्गत मखदूमपुर में रहते हैं, जबकि उनके बड़े भाई मोहर्रम अंसारी अपने पूरे परिवार के साथ बगल के ही मोहल्ला रहमत नगर में रहते हैं। अमानत हुसैन मखदूमपुर में ही स्थित प्राइवेट स्कूल ‘एशियन पब्लिक स्कूल’ में शिक्षक हैं और साथ में ही बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाते हैं। अमानत हुसैन समाज में एक प्रतिष्ठित व सीधे-सादे व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उनका सीधा-सादा होना ही उनका गुनाह बन गया।

अमानत हुसैन अपनी पत्नी और बेटी के साथ।

अमानत हुसैन बताते हैं, ‘‘मेरे घर के ठीक सामने वाले घर में रहने वाले यूनुस हाशमी को अपनी बेटी के इलाज के लिए 8 दिसंबर, 2021 को सपरिवार दिल्ली जाना था, तो उन्होंने मुझे अपने घर में सोने के लिए बोला। उनके साथ मेरे ताल्लुकात अच्छे थे, इसलिए मैं उन्हें मना नहीं कर पाया और 8 दिसंबर की रात से ही उनके घर में सोने लगा। 15 दिसंबर को मुझे तेज बुखार, पेट दर्द व दस्त भी होने लगा, जिस कारण मैं उस रात सोने के लिए उनके घर नहीं जा सका। 16 दिसंबर को सुबह लगभग साढ़े 6 बजे जब मैं यूनुस हाशमी के घर उनके मुर्गियों को दाना देने के लिए चाहरदीवारी का गेट खोलकर गया, तो देखा कि उनके मुख्य दरवाजा का कुण्डी टूटा हुआ था तथा अंदर के कमरे के दरवाजे का भी कुण्डी टूटा हुआ था। साथ ही आलमारी का लॉक भी टूटा हुआ था एवं घर में सामान बिखरा हुआ था। मैंने तुरंत यूनुस हाशमी को सारी बात बतायी”।

उन्होंने आगे बताया कि “उसके बाद यूनुस हाशमी ने अपने रिश्तेदार को सारी बात बतायी और फिर 17 दिसंबर को यूनुस हाशमी के द्वारा बालीडीह थाना में अज्ञात लोगों पर धारा 457 व 380 के अंतर्गत मुकदमा दायर किया गया। मुकदमे में मैं ना तो नामजद अभियुक्त था और ना ही मेरे पर शक होने की बात यूनुस हाशमी ने पुलिस को बताया। सब कुछ ठीक ही चल रहा था, इसी बीच 30 दिसंबर को रात में बालीडीह थाना से मुझे फोन आया और मुझे तुरंत थाना आने को बोला गया। मैं अपनी पत्नी साबरा बेगम व अपने बड़े भाई मोहर्रम अंसारी के साथ रात के 8 बजे थाना पहुंचा। थाना पहुंचते ही मुझे उन दोनों से अलग कर एक कमरे में बंद कर दिया गया, लगभग 1 घंटे बाद मेरी पत्नी को भी बाल पकड़कर खींचते हुए उसी कमरे में मेरे पास लाया गया।’’

अमानत हुसैन जब इस बात को बता रहे थे, तो उनके बगल में बैठी उनकी पत्नी साबरा बेगम अपने आंसुओं को रोकने का भरसक प्रयास कर रही थीं। आगे अमानत हुसैन बताते हैं, ‘‘अब कमरे में हम दोनों के अलावा थाना प्रभारी नूतन मोदी, 5 पुरूष पुलिसकर्मी व 1 महिला पुलिसकर्मी भी थीं। थाना प्रभारी हम दोनों को बारी-बारी से कहने लगीं कि यूनुस हाशमी के घर में चोरी तुम दोनों ने ही की है। मैंने उनसे कहा कि आप हमारे बारे में पूरे मोहल्ले में जाकर पता कर लीजिए, हम लोग शरीफ इंसान हैं। लेकिन वे बार-बार हम पर चोरी का इल्जाम कबूल करने के लिए दबाव बनाने लगीं। जब हमने साफ इन्कार कर दिया, तो हमसे 20 हजार रूपये देने के लिए बोलने लगीं, नहीं तो हाथ-पैर तोड़ देने की धमकी देने लगीं। मैंने 20 हजार रुपये देने में असमर्थता जतायी, तो वे आगबबूला होकर मेरे साथ बर्बरता पर उतर आयीं।’’

अमानत हुसैन की पत्नी साबरा बेगम बताती हैं, ‘‘जब इन पर पुलिस जुल्म कर रही थी, तो मैं इन्हें बचाने के लिए गई और इन्हें छोड़ देने की विनती उन जुल्मी पुलिसकर्मियों से करने लगी। लेकिन उन्हें यह भी नागवार गुजरा और थाना प्रभारी मुझे गंदी-गंदी गालियां देने लगीं व मुझ पर ही टूट पड़ीं। उन्होंने मेरा बाल पकड़कर झुका दिया और केहुनी से मारने लगीं। फिर मुझे गिराकर कई पुरुष पुलिसकर्मियों ने भी लाठी-डंडा व लात से मारा। पुरुष पुलिसकर्मियों ने गलत इरादे से भी मुझे टच किया। मेरे कान में सोने की बाली थी, वह भी उन लोगों ने छीन लिया।’’

अमानत हुसैन अपने पूरे परिवार के साथ।

अमानत हुसैन बताते हैं कि जब हम दोनों को पुलिस पीट रही थी, तो मेरे बड़े भाई दौड़ते हुए उस कमरे के गेट पर आये, पर उन्हें थाना प्रभारी ने भगा दिया। हम दोनों पर बर्बरता की हद पार करने के बाद हम दोनों को पुलिस ने एक ही हाजत में लगभग 11 बजे रात में बंद कर दिया। दूसरे दिन यानी 30 दिसंबर को दिन के लगभग 11-12 बजे थाना प्रभारी ने हम दोनों से कहा कि अगर तुम लोग इस मार-पीट के बारे में किसी को भी बताओगे या कहीं शिकायत करोगे, तो झूठे केस में फंसाकर जिंदगी बर्बाद कर देंगे। इसके बाद एक सादे कागज पर हम दोनों से हस्ताक्षर भी करवा लिया गया। फिर दिन के 2 बजे मेरे बड़े भाई व मोहल्ले के लोगों को बुलाकर हमें छोड़ दिया गया। उस समय मैं चल भी नहीं पा रहा था और मेरे नाखून से खून भी टपक रहा था, तब लोग मुझे कंधे पर उठाकर गाड़ी तक लाए। हम दोनों 30 दिसंबर के रात 8 बजे से 31 दिसंबर के 2 बजे दिन तक थाने में रहे, लेकिन इस दौरान खाना तो दूर चाय-पानी भी पीने के लिए नहीं दिया गया”।

शिक्षक अमानत हुसैन की 5 बेटी व 1 बेटा में सबसे बड़ी 18 वर्षीय रौशन जहां, जो बीए फर्स्ट इयर की स्टूडेंट हैं, बताती हैं, ‘‘अब्बू-अम्मी को थाना गये जब काफी समय हो गये, तो मैंने अब्बू के मोबाइल पर कॉल किया। लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुआ, थोड़ी देर बाद फिर लगभग 9:30 बजे रात में कॉल किया, तो मोबाइल ऑफ बताने लगा। तब मैंने बड़े अब्बू को कॉल किया, तो उन्होंने बताया कि मैं बाहर हूं और उन दोनों से अंदर पूछताछ हो रही है। फिर रात में ही मैंने 100 नंबर डायल किया और उन्हें बताया कि मेरे अम्मी-अब्बू थाना गये हैं, लेकिन अभी तक लौटे नहीं हैं। तो वहां से मुझे एक नंबर दिया गया। जब मैंने उस पर फोन किया, तो वे बाहर होने की बात बताकर एक दूसरे आदमी का नंबर दिये, जब उन पर कॉल की, तो वे अस्पताल में थे, इस तरह से किसी ने भी मेरी कोई मदद नहीं की। दूसरे दिन सुबह मैं बड़े अब्बू के साथ थाने गयी, बड़े अब्बू को तो अंदर जाने नहीं दिया गया, लेकिन मैं किसी तरह हाजत तक चली गई। वहां जब मैंने अपने अब्बू-अम्मी की हालत देखी, तो मैं रोने लगी। अब्बू के पैर खून से भीगे हुए थे और दोनों दर्द से कराह रहे थे। तभी सिविल ड्रेस में एक महिला आयी और मुझे वहां से जाने के लिए बोलने लगी। मैंने थाने से बाहर आकर बड़े अब्बू को सारी बात बतायी, फिर हम लोग घर आ गये। अम्मी-अब्बू जब थाने से घर आये, तो उनकी हालत को देखकर रोना कम गुस्सा ज्यादा आ रहा था।’’

अमानत हुसैन के बगल के मोहल्ले इस्लामपुर के एक युवा मोहम्मद खुर्शीद अली बताते हैं, ‘‘जब शिक्षक अमानत हुसैन व उनकी पत्नी थाने से घर आये, तो उन पर हुए पुलिसिया जुल्म को देखकर पूरे मोहल्ले के लोग खुद-ब-खुद एकजुट हो गये और इस अन्याय के खिलाफ बोकरो एसपी के नाम पर एक आवेदन लिखकर हस्ताक्षर कराने लगे। उस समय मैं भी इसी मोहल्ले में था। जब मेरे पास हस्ताक्षर कराने कुछ युवा पहुंचे, तो मैं यह जानकर सन्न रह गया कि एक शरीफ इंसान के साथ भी इस तरह की ज्यादती पुलिस कर सकती है।‘‘

लिस की विज्ञप्ति।

31 दिसंबर की ही रात्रि में लगभग 250 हस्ताक्षरयुक्त आवेदन लेकर अमानत हुसैन अपनी पत्नी, बेटी व मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ एसपी आवास पर पहुंचे, लेकिन रात अधिक होने के कारण उनका आवेदन नहीं लिया गया। तब उनकी बेटी रौशन जहां ने एसपी को फोन किया, तो उन्होंने अगले दिन आने को बोला। तभी रौशन जहां की बेटी के मोबाइल पर डीएसपी का फोन आया और अमानत हुसैन का नाम सुनते ही उन्होंने कहा कि वही अमानत हुसैन ना, जो पढ़ाते हैं। डीएसपी ने तुरंत अस्पताल में चेक-अप कराने का निर्देश दिया। उसी रात में बोकारो सदर अस्पताल में चेक-अप कराया गया, लेकिन डॉक्टर ने बिना कोई एक्सरे किये सिर्फ मरहम-पट्टी कर छोड़ दिया। फिर 1 जनवरी को एसपी को अमानत हुसैन ने आवेदन देकर बालीडीह थाना प्रभारी पर कार्रवाई की मांग की”।

अमानत हुसैन के पैर के दाहिने अंगूठे से रिसते खून वाला वीडियो व समाचार 31 दिसंबर से ही सोशल साइट्स व न्यूज चैनलों पर वायरल होने लगा था। 1 जनवरी को सभी अखबारों में खबर छपने, झारखंड के अल्पसंख्यक मंत्री, कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता व धनबाद के सांसद पीएन सिंह द्वारा दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग करने व 2 जनवरी को मखदूमपुर से सिवनडीह (लगभग 2 किलामीटर) तक सैकड़ों स्थानीय लोगों द्वारा निकाले गये आक्रोश जुलूस के कारण दबाव में आकर बोकारो एसपी को इस घटना की जांच के लिए बोकारो डीएसपी (मुख्यालय) को आदेश देना पड़ा।

इधर अमानत हुसैन व उनकी पत्नी की तबीयत दिनों-दिन खराब होती गई। अमानत हुसैन के पैर के सारे नाखून काले हो गये, दायें पैर के अंगूठे में दर्द रुकने का नाम नहीं ले रहा था, बुखार भी तेज रहने लगा। साबरा बेगम को पीठ व कूल्हे में बेशुमार दर्द होने लगा, जिस कारण 5 जनवरी को बोकारो सदर अस्पताल में दोनों को भर्ती होना पड़ा, जहां से इन दोनों को 11 जनवरी को छुट्टी दी गई। इस बार सदर अस्पताल में एक्सरे भी हुआ, जिसमें अंगूठा के टूटे होने की बात सामने आयी।

इधर, बोकारो एसपी ने 6 जनवरी को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पुलिस को क्लीन चीट दे दी। बोकरो एसपी के द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि अमानत हुसैन को पूछताछ के लिए बालीडीह थाना बुलाया गया था, जहां वे अपनी पत्नी के साथ आ गये थे। थाने में उनके साथ कड़ाई के साथ पूछताछ किया गया लेकिन किसी भी प्रकार का अत्यधिक बल प्रयोग नहीं किया गया है।

अमानत हुसैन कहते हैं, ’’बोकारो एसपी के द्वारा प्रेस रिलीज जारी करने के बाद न्याय की आशा ही खत्म हो गई, लेकिन फिर एक आदमी ने कोर्ट में मुकदमा दायर करने की सलाह दिया, तब मैंने 18 जनवरी को बोकारो जिला न्यायालय में बालीडीह थाना प्रभारी व पुलिसकर्मियों पर मुकदमा दर्ज किया है।’’

इस मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता ओंकार विश्वकर्मा ने 3 जनवरी को एक आवेदन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी भेजा, जिसे संज्ञान में लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बोकारो एसपी को 30 जनवरी को एक नोटिस जारी करते हुए 8 सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता व लॉ के छात्र साजिद हुसैन, जो कि इस पूरे प्रकरण में अमानत हुसैन के परिवार के साथ मजबूती से खड़े हैं, कहते हैं कि थाना प्रभारी नूतन मोदी की पकड़ झारखंड सरकार में काफी मजबूत है, इसीलिए इन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, लेकिन न्याय की लड़ाई में तब तक हम लोग मास्टर साब के साथ खड़े रहेंगे, जब तक इन्हें न्याय नहीं मिल जाता। मुझे तो लग रहा है कि मास्टर साब का साथ देने के कारण कहीं कोई मेरी ही हत्या ना कर दे।

अमानत हुसैन बताते हैं कि जब से मैंने कोर्ट में थाना प्रभारी व पुलिसकर्मियों पर मुकदमा दर्ज किया है, तब से ही कई लोग समझौता कराने के लिए दबाव दे रहे हैं। कई लोग घर में आकर हमें हतोत्साहित करते हैं कि पुलिस के खिलाफ लड़ना कोई मामूली बात नहीं है, इसलिए पुलिस से मत लड़ो, लेकिन हमारा ईमान पीछे हटने को स्वीकार नहीं करता।

साबरा बेगम कहती हैं, ‘‘मैं तो कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि हमारे साथ इस तरह की पुलिसिया बर्बरता होगी। मैं तो राह चलते पुलिस को देखकर भी रास्ता बदल लेती थी। झारखंड के मुख्यमंत्री से मेरी यही अपील है कि हमें न्याय दिलवायें, नहीं तो हम व हमारे बच्चों से ये हुकूमत कभी आंख नहीं मिला पाएगी”।  

(बोकारो से स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)

रूपेश कुमार सिंह
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