झारखंडः दो सीटों पर तीन नवंबर को होंगे उप चुनाव, दुमका सीट पर मजदूर तय करेंगे जीत

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झारखंड में दुमका और बेरमो विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव हो रहा है। 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव का परिणाम 10  नवंबर को आएगा। दुमका मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अपनी दूसरी सीट से इस्तीफा देने से खाली हुई है और बेरमो सीट पूर्व उप मुख्यमंत्री और विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह के आकस्मिक निधन से रिक्त हुई है।

पिछले 2019 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रतिपक्ष के नेता एवं झामुमो के हेमंत सोरेन दो विधानसभा क्षेत्र, बरहेट और दुमका से प्रत्याशी थे और दोनों सीट से जीत दर्ज की थी। बाद में उन्होंने दुमका सीट छोड़ दी। इन दोनों सीटों पर 3 नवंबर को मतदान है और 10 नवंबर को नतीजों की घोषणा होगी। महागठबंधन के तहत दुमका सीट झामुमो और बेरमो कांग्रेस के पाले में आई है। दुमका में झामुमो ने हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन को उम्मीदवार बनाया है। वहीं भाजपा ने पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक लुईस मरांडी को अपना उम्मीदवार बनाया है। बेरमो में कांग्रेस ने स्व. राजेंद्र प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र अनुप सिंह उर्फ जयमंगल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने पुनः योगेश्वर महतो बाटुल को मैदान में उतारा है।

इन दो दलों के अलावा सीपीआई ने भी अपना उम्मीदवार जरीडीह अंचल के अंचल सचिव बैजनाथ महतो को मैदान में उतारा है। वहीं पूर्व मंत्री लालचंद महतो बसपा से चुनाव मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। बेरमो विधानसभा से 1985 में राजेंद्र प्रसाद सिंह कांग्रेस से पहली बार विधायक बने। दूसरे नंबर पर सीपीआई के मजदूर नेता शफीक खान रहे। 1990 के चुनाव में शफीक खान मात्र 800 मतों से राजेंद्र प्रसाद सिंह से पिछड़े। इसके बाद 2000 तक वे दूसरे नंबर पर रहे। 22 अक्तूबर 2004 को शफीक खान की मौत के बाद पार्टी ने 2005 और 2009 को उनके पुत्र आफताब आलम को उम्मीदवार बनाया। 2005 में भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल विजयी रहे और आफताब आलम तीसरे नंबर पर चले गए। 2009 में भी आफताब तीसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह विजयी हुए। पुन: 2014 में मोदी लहर में भाजपा के बाटुल ने जीत दर्ज की और राजेंद्र प्रसाद सिंह दूसरे नंबर पर रहे और आफताब चौथे स्थान पर चले गए।

2014 की स्थिति
1. योगेश्वर महतो (भाजपा)
2. राजेंद्र प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
3. काशीनाथ सिंह (आजसू)
4. आफताब आलम (सीपीआई)
5. समीर कुमार दास (बसपा)
6. रामकिंकर पांडेय (झाविमो)

2019 के चुनाव में कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भाजपा के बाटुल को काफी अंतर से पराजित किया। सीपीआई के आफताब आलम मात्र 5,695 मत पर सिमटकर पुन: चौथे नंबर पर रह गए।

बेरमो विधानसभा चुनाव परिणाम 2019
कांग्रेस- राजेंद्र प्रसाद सिंह 88,945, 46.88%, 25,172 से जीत
भाजपा- योगेश्वर महतो बाटुल 63,773, 33.61%
एजेएसयूपी- काशीनाथ सिंह 16,546, 8.72%
सीपीआई- आफताब आलम खान 5,695, 3.00%
जेवीएमपी- राम किंकर पाण्डेय 1,997, 1.05%

बता दें कि बेरमो में नामांकन के पूर्व जहां कांग्रेस की उम्मीदवारी में केवल दिवंगत राजेंद्र प्रसाद सिंह के पुत्र अनूप सिंह उर्फ जयमंगल सिंह की दावेदारी थी, वहीं भाजपा में उम्मीदवारी की दावेदारी को लेकर एक लंबी लिस्ट थी, जिसमें गिरिडीह से सांसद रह चुके रवींद्र कुमार पांडेय सहित सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह के पुत्र मृगांक सिंह की भी चर्चा शामिल थी। काफी उहापोह के बाद पार्टी ने अंतत: बाटुल को ही उम्मीदवार बनाया। ऐसे में इस उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को भितरघात का सामना करना पड़ सकता है।

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को महागठबंधन का लाभ मिलने की पूरी संभावना दिख रही है। राजद का यादव और झामुमो का आदिवासी वोट कांग्रेस के पाले में जा सकता है। सीपीआई के बैजनाथ महतो और भाजपा के बाटुल कुम्हार समाज से आते हैं, ऐसे में बाटुल के वोटों की सीपीआई सेंधमारी कर सकती है। कैडर वोट और मजदूर वोटों पर बैजनाथ महतो को पूरा भरोसा है। वैसे बैजनाथ महतो खुद को तीसरे विकल्प के रूप में देख रहे हैं।

जहां तक भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल की बात है तो इस बार क्षेत्र में भाजपा की न तो कोई लहर है न ही अपने कार्यकाल में उन्होंने कोई उल्लेखनीय कार्य किया है, जिसका लाभ उन्हें मिलने की संभावना हो। बावजूद वे अपनी जीत पर आश्वस्त होकर कहते हैं कि हेमंत सरकार से जनता नाराज है, जिसका लाभ उन्हें मिल सकता है। वहीं कांग्रेसी उम्मीदवार की उम्मीद है कि उनके पिता राजेंद्र सिंह ने अपने कार्यकाल में क्षेत्र के विकास में पूरा योगदान दिया है, जिसका लाभ उन्हें मिल सकता है। वे कहते हैं कि वैसे भी अब जनता युवा चेहरा देखना चाहती है और युवा हमारे साथ हैं।

इस उपचुनाव में दोनों सीटों को लेकर भाजपा की सक्रियता काफी मुखर है। बेरमो की सीट को लेकर जहां खुद पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और बोकारो विधायक बिरंची नारायण सक्रिय हैं, वहीं दुमका से भाजपा सांसद सुनील सोरेन, बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश दुमका में कैंप किए हुए हैं। दुमका में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी सोरेन परिवार के खिलाफ काफी आक्रामक हैं। वे चुनाव प्रचार के दौरान कहते हैं कि जिस तरह रावण का प्राण उसकी नाभि में था, उसी तरह झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्राण दुमका में बसते हैं। मरांडी पूछते हैं कि झारखंड अलग राज्य आंदोलन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके छोटे भाई बसंत सोरेन ने कौन सी लड़ाई लड़ी और कौन सी भूमिका निभाई, यह जनता को बताएं।

वे कहते हैं कि संथाल परगना में अजजा के लिए सुरक्षित सात विधानसभा सीटों पर सोरेन परिवार की नजर बनी हुई है। धीरे-धीरे इन सभी सात सीटों पर इनके परिवार का कब्जा करने की तैयारी रहती है।

उन्होंने कहा कि झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन समूचे झारखंड के लिए लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन फिर सिर्फ संथाल परगना से ही क्यों चुनाव लड़ना चाहते हैं। मुख्यमंत्री रहते शिबू सोरेन एक बार अपने पुश्तैनी गांव रामगढ़ के क्षेत्र में आने वाले तमाड़ से चुनाव लड़े, लेकिन एक निर्दलीय प्रत्याशी राजा पीटर से बुरी तरह हार गए। उन्हें अब तो यहां तक डर समा गया है कि उस क्षेत्र को देखते ही नहीं हैं। जबकि वे कई बार कोडरमा क्षेत्र से निर्वाचित हुए और लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया है।

वहीं दुमका से भाजपा सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि जनता बदलाव के मूड में है। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ लोगों में आक्रोश है।

बसंत सोरेन 2016 में राज्यसभा चुनाव लड़े थे। झामुमो ने उनको अपना प्रत्याशी बनाया था। पर्याप्त मत होते हुए भी उनकी हार इसलिए हुई थी कि दो विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की और दो विधायक अनुपस्थिति रहे थे। लुईस मरांडी पहले दुमका सीट से विधायक रह चुकी हैं और रघुवर दास सरकार में मंत्री भी थीं, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में लुईस मरांडी हेमंत सोरेन से हार गईं थीं।

कहना न होगा कि इन दो सीटों के लिए भाजपा और महागठबंधन हर संभव प्रयास में है, एक दूसरे के प्रति काफी हमलावर हैं, जिसके कारण मतदाताओं में मनोवैज्ञानिक दबाव इतना बढ़ गया है कि वे दूसरे किसी विकल्प की ओर देख भी नहीं रहे हैं।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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