पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका को पवित्र और ईमानदार व राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई ) डीवाई चंद्रचूड़ ने उनके विचारों का समर्थन किया और कहा कि न्यायाधीशों को अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं को अपने फैसलों को प्रभावित करने की अनुमति देने से बचना चाहिए। कोलकाता में कंटेमपररी ज्यूडिशियल डेवलपमेंट पर एक सम्मेलन में बोलते हुए, ममता बनर्जी ने अदालतों को नागरिकों के लिए न्याय का ‘महत्वपूर्ण मंदिर’ बताया।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “यदि न्यायपालिका आम लोगों की रक्षा नहीं करेगी तो कौन उनकी रक्षा करेगा? आम लोगों को भरोसा है कि सिर्फ न्यायपालिका ही उनकी समस्याओं से उन्हें निजात दिला सकती है.”
उन्होंने कहा कि अदालतें नागरिकों के लिए न्याय पाने और उनके संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए अंतिम उम्मीद होती हैं। ममता ने सीजेआई चंद्रचूड़ की उपस्थिति में मंच से कहा, ‘किसी को अपमानित करना मेरा इरादा नहीं है, लेकिन मेरी विनम्र अपील है कि कृपया देखें कि न्यायपालिका में कोई राजनीतिक पूर्वाग्रह न हो. न्यायपालिका बिल्कुल शुद्ध, ईमानदार और पवित्र होनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका को राजनीतिक रूप से निष्पक्ष, ईमानदार और पवित्र होना चाहिए। बनर्जी ने यहां नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी के क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “पश्चिम बंगाल में 88 फास्ट-ट्रैक अदालतें हैं जिनमें 55 सिर्फ महिलाओं के लिए हैं। राज्य में 99 मानवाधिकार अदालतें हैं। मेरी एकमात्र अपील है कि देश की न्यायपालिका को पूरी तरह निष्पक्ष, पवित्र और ईमानदार होना चाहिए. गोपनीयता बरकरार रहनी चाहिए।
सम्मेलन में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम भी मौजूद थे। कानून की डिग्री रखने वाली मुख्यमंत्री ने कहा कि वह भी कानूनी बिरादरी की सदस्य हैं और न्याय तंत्र उनके लिए एक पवित्र मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे की तरह है। उन्होंने कहा, “मैं खुद को कानूनी बिरादरी का हिस्सा मानती हूं। मैं अब भी बार एसोसिएशन की सदस्य हूं। मैंने खुद कुछ मामलों की अदालत में पैरवी भी की है।
सीएम बनर्जी ने कहा कि राज्य सरकार हमेशा न्यायिक तंत्र के साथ है और कहा कि न्यायपालिका की पहली जिम्मेदारी आम लोगों की रक्षा करनी है। उन्होंने कहा, “यदि न्यायपालिका आम लोगों की रक्षा नहीं करेगी तो कौन उनकी रक्षा करेगा? आम लोगों को भरोसा है कि सिर्फ न्यायपालिका ही उनकी समस्याओं से उन्हें निजात दिला सकती है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ निस्संदेह देश की न्यायपालिका में सुधार में मददगार रहे हैं। अपने स्तर पर राज्य सरकार ने तंत्र में सुधार के लिए लगभग एक हजार करोड़ रुपये खर्च किये हैं।
दूसरी ओर, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि जजों की तुलना भगवान से करने की परंपरा खतरनाक है क्योंकि जजों की जिम्मेदारी आम लोगों के हित में काम करने की है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “अक्सर हमें ऑनर या लॉर्डशिप या लेडीशिप कहकर संबोधित किया जाता है। जब लोग अदालत को न्याय का मंदिर बताते हैं तो इसमें एक बड़ा खतरा है. बड़ा खतरा है कि हम खुद को उन मंदिरों में बैठे भगवान मान बैठें।
उन्होंने कहा कि जजों का काम लोगों की सेवा करना है,और जब आप खुद को ऐसे व्यक्ति के रूप में देखेंगे जिनका काम लोगों की सेवा करना है तो आपके अंदर दूसरे के प्रति संवेदना और पूर्वाग्रह मुक्त न्याय करने का भाव पैदा होगा। उन्होंने कहा कि किसी क्रिमिनल केस में भी सजा सुनाते समय जज संवेदना के साथ ऐसा करते हैं क्योंकि अंततः किसी इंसान को सजा सुनाई जा रही है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कार्यक्रम में बोलते हुए इस बात पर जोर दिया कि कैसे निर्णय संवैधानिक नैतिकता पर आधारित होने चाहिए न कि न्यायाधीश की नैतिकता की अवधारणा पर। हम न्यायाधीशों को अपनी विचारधाराओं पर लिखते हुए देखते हैं। उदाहरण के लिए, एक न्यायाधीश ने कहा कि वह लिव-इन में रह रहे कपल को सुरक्षा नहीं देगा, क्योंकि वे बिना शादी के अपनी सहमति से रिश्ते में थे। कानून उन रिश्तों की रक्षा करता है जो अपनी प्रकृति में विवाह की तरह के हैं, फिर भी हम न्यायाधीशों को यह लिखते हुए पाते हैं कि वे सुरक्षा नहीं दे सकते।
उन्होंने कहा, ‘अगर उस कपल को ऑनर किलिंग का खतरा हो, तो क्या न्यायाधीश संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने के बजाय अपने निजी विचारों पर कायम रहेगा? वह अपने व्यक्तिगत विचारों से अपने फैसले को प्रभावित होने देगा कि क्या नैतिक है और क्या अनैतिक?’ मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों की भूमिका लोगों की सेवा करना है और उन्हें खुद को देवता के रूप में पेश करने की कथित धारणा के प्रति आगाह किया। सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीश यह तय नहीं कर सकते कि समाज कैसा होगा. हम संविधान के सेवक हैं, स्वामी नहीं।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों के दौरान सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के शीर्ष नेताओं, जिनमें पार्टी सुप्रीमो भी शामिल हैं, ने अक्सर आरोप लगाया था कि न्यायपालिका का एक वर्ग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं के प्रभाव में काम कर रहा है।
टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्वी मिदनापुर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, “मैं उन सभी योग्य व्यक्तियों को आश्वस्त करना चाहता हूं जिन्होंने अपनी नौकरी खो दी है कि टीएमसी इन चुनौतीपूर्ण समय के दौरान उनके साथ खड़ी रहेगी। हम किसी भी योग्य उम्मीदवार को परेशान नहीं होने देंगे। न्यायपालिका के एक वर्ग द्वारा यह कदम, जो भाजपा से प्रभावित प्रतीत होता है, निंदनीय है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी सरकार द्वारा जारी ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द करने संबंधी कलकत्ता उच्च न्यायालय के हालिया फैसले को लेकर न्यायपालिका पर हमला करने के लिए एक रैली में टीएमसी की आलोचना की थी।मोदी ने उत्तर 24 परगना में भाजपा की एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, “मैं टीएमसी से पूछना चाहता हूं कि क्या वे अब न्यायाधीशों पर अपने गुंडों को छोड़ देंगे। पूरा देश देख रहा है कि टीएमसी किस तरह न्यायपालिका का गला घोंट रही है।”
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “सभी न्यायाधीश जानते हैं कि हमारे सामने आने वाले सबसे बुरे आपराधिक मामलों में भी एक इंसान हमारे सामने होता है। यहां तक कि जब हम सज़ा सुनाने की शक्ति का इस्तेमाल करते हैं, तो हम करुणा की भावना के साथ ऐसा करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हम पीड़ित के परिवार के प्रति कर्तव्य की भावना के साथ ऐसा करते हैं, जिसके साथ अन्याय हुआ है।”
उन्होंने कहा: “संवैधानिक नैतिकता केवल सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए ही नहीं बल्कि जिला न्यायपालिका के लिए भी महत्वपूर्ण है। आम नागरिकों की भागीदारी सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से जिला न्यायपालिका से शुरू होती है। अनुच्छेद 32 के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय अंतिम विकल्प है”