गंगा-जमनी तहजीब का एक पत्रकार चला गया

लोकप्रिय टीवी पत्रकार कमाल खान का आज सुबह दिल का दौरा पड़ने से  निधन होने की जैसे ही खबर मिली, दिल को बहुत गहरा धक्का लगा। कुछ उसी तरह जब विनोद दुआ नहीं रहे। दोनों की पत्रकारिता का शुरू से गवाह रहा हूँ। विनोद जी बड़े थे लेकिन कमाल तो मेरी ही उम्र के थे लेकिन जिस पत्रकार से कभी मुलाकात नहीं हुई न बात हुई हो आखिर वह कैसे मेरा अज़ीज़ हो गया। कैसे वह दिल के करीब हो गया। सोशल मीडिया पर जिस तरह उनको श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा उसे देखते हुए कहा जा सकता है केवल मेरा  ही नहीं बल्कि सबका उनसे एक अजीज रिश्ता था। आखिर उनमें क्या खूबी थी  कि लोग उनको बेपनाह चाहते थे।

दरअसल वह गंगा जमनी तहजीब के पत्रकार थे। टीवी की दुनिया में उनके जैसे पत्रकार बहुत कम हैं न के बराबर। मथुरा के एक मुस्लिम ठेले वाले ने जब कृष्ण के नाम का बोर्ड लगाया तो लफंगे हिंदुत्ववादियों ने उसका बोर्ड उजाड़ दिया। इस पर कमाल खान की रिपोर्टिंग लाजवाब थीउन्होंने रसखान से लेकर नज़ीर अकबराबादी, हसरत मोहानी, हफ़ीज़ जालंधरी, कैफ़ी आज़मी, निदा फ़ाज़ली के कलामों का जिक्र किया जिसमें कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम और प्यार तथा सम्मान व्यक्त किया गया। उन्होंने गीता के श्लोकों का भावार्थ बता कर दर्शकों को बताया कि लफंगे हिंदुत्ववादियों की यह नीच हरकत किस तरह हिन्दू धर्म के विरुद्ध है।

एक बार एनडीटीवी ने कमाल के राम शीर्षक से एक रिपोर्ट दिखाई थी। कमाल खान ने मर्यादा पुरुषोत्तमराम को जिस रूप में पेश किया वह देखने और सुनने लायक था। उनका कहना था राम केवल हिंदुओं के नहीं उनके भी हैं। उनकी रिपोर्ट हिन्दू ही नहीं बल्कि कट्टरपंथी मुस्लिम पर भी चोट करती थी।

इस तरह की रिपोर्टिंग की उम्मीद आज किसी टीवी पत्रकार से नहीं की जा सकती। कल रात जब वह अपने चैनल पर कांग्रेस द्वारा 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने पर चर्चा कर रहे थे तो उन्होंने एक सुंदर वाकया का जिक्र किया। आम तौर पर यह देखा गया है कि प्रदर्शनकारी किसी नेता को कायर निकम्मा ठहराते हुए चूड़ियाँ पेश करते हैं लेकिन कमाल ने इस घटना की एक नई व्याख्या की और कहा कि यह स्त्री विरोधी घटना है। चूड़ी को कायरता निकम्मेपन का प्रतीक नहीं बनाया जा सकता और कमाल ने इसके लिए पितृसत्ता को आड़े हाथ लिया और इसकी जड़ में विवाह और पैतृक संपत्ति की अवधारणा को दोषी ठहराया। कमाल छोटी से छोटी और समान्य घटना को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखते थे और उसके अनुसार उसकी व्यायख्या करते थे। दरअसल वह अपने नाम के अनुरूप कमाल के पत्रकार थे।

बेहद संजीदा और समझदार। वे अपनी रिपोर्टिंग में कभी नाटकीय और लाउड नहीं हुए जबकि गोदी मीडिया के सारे पत्रकार लाउड हैं। वे चीखते चिल्लाते अधिक हैं। वे उपहास और तंज आदिम करते हैं लेकिन कमाल अलग थे सबसे। उनकी भाषा भी कमाल की थी। हिंदी उर्दू के मेल से वे एक हिंदुस्तानी जुबान में अपनी बात कहते थे। वे पत्रकारिता को बेहद जिम्मेदार काम मानते थे और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी समझते थे। उनमें विनम्रता भी थी और गहरी मानवीयता थी। उनमें अहंकार और आत्मप्रदर्शन नहीं था बल्कि उनकी आवाज़ में एक करुणा थी। लगता है उसमें एक पीड़ा छिपी है एक बेचैनी। उनकी एक अलग शैली थी एक अलग अंदाज। वह मेरी ही उम्र के थे। अफसोस उनसे मेरी कभी मुलाक़ात नहीं हुई न बात हुई लेकिन वे स्वप्नजीवी पत्रकार थे। उनका प्रशंसक मैं भी था।

उन्हें आज सुबह अपने आवास पर दिल का दौरा पड़ा और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के लिए ले जाया गया लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले उन्होंने दमतोड़ दिया।

रामनाथ गोयनका अवार्ड और केंद्रीय हिंदी संस्थान के गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित श्री खान अपनी प्रतिबद्ध पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे।

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने उनके आकस्मिक निधन पर दुख व्यक्त किया है। लेकिन वह किसी पार्टी के पत्रकार नहीं थे जबकि अधिकतर पत्रकार पक्षकार हो जा रहे हैं। कमाल जनता के पक्षकार थे उनके दुख, अत्याचार, दमन की आवाज़ बन गए थे। श्री खान कल तक अपनी रिपोर्टिंग करते रहे और उत्तरप्रदेशः में चुनावी हलचल को कवर करते रहे।

सोशल मीडिया पर काफी बड़ी संख्या में लोगों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

(विमल कुमार वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

विमल कुमार
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