Thursday, April 25, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: कर्मनाशा नदी मैदानों में तोड़ रही दम, मुश्किल में चरवाहे और किसान

कैमूर/चंदौली। जल, सदाबहार जंगल, उर्वर जमीन, लहलहाती फसलें, जीव और आठों पहर बजते जीवन के खटराग ही कर्मनाशा नदी की पहचान हैं। दक्षिण में कैमूर की पहाड़ी ढलानों से बलखाती हुई चौसा में गंगा नदी में मिलने तक इसका जीवंत कारवां है। उद्गम से संगम तक कर्मनाशा ने अपने किनारों पर लाखों मानव बस्तियां बसाई हैं। लोगों के उदर-पोषण के लिए सभी प्रकार की फसलों को साल के बारह महीने पानी देती है।

पहाड़ों और मैदानों में स्वच्छन्द रूप से समूह में पशुओं को चराने वाले चरवाहों की लाइफ लाइन है कर्मनाशा। दूर किनारों पर सजी बस्तियां, इनमें कदमताल करता जीवन, रंभाते दुधारू पशु, चहचहाते पक्षी और खेतों में लहलहाती फसलें देखकर कोई भी कह सकता है कि कर्मनाशा एक जीती-जागती नदी है। लेकिन, ये जल्द ही अब गुजरे जमाने की बातें होने वाली हैं, क्योंकि कर्मनाशा नदी संकट में है।

पहाड़ों में कर्मनाशा नदी।

ऐसी तस्वीरें पहले कभी नहीं देखी गई थीं कि, मई के पहले हफ्ते में ही कर्मनाशा की धारा लगभग रुक सी गई है। बहाव थम गया है। हमेशा पानी में डूबे रहने वाले नदी के पेट में बालू के टीले उभर आये हैं और पानी गंदला हो गया है। अपने मवेशियों को लेकर चरवाहे भटक रहे हैं तो वहीं जायद सीजन व धान की नर्सरी डालने को लेकर लाखों किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। यही तो है कर्मनाशा नदी का जादू, जब अथाह जल राशि लेकर सफर करती है तो गांव के गांव हरे-भरे रहते हैं। लहलहाती फसलें किसानों के समृद्धि का गीत सुनाती हैं। लेकिन जब कर्मनाशा नदी संकट में होती है तो जीवन का समूचा फ़ितूर बेरंग होकर बिखरने सा लग जाता है।

मसलन, बदलती जलवायु दशाएं और मानवीय हस्तक्षेप से 192 किलोमीटर में बहाने वाली कर्मनाशा की धारा सैकड़ों स्थानों पर रुक गई है। नदी पर बांध, बेहिसाब जल का मशीनी दोहन, विकास कार्यों के लिए नदी का अमानक पटाव और मिलों-कारखानों का गंदा पानी नदी में छोड़े जाने से पूरी तरह विषाक्त हो चुकी कर्मनाशा अब अपनी सांसें गिन रही है। नदी की धारा रुकने से पर्यावरण के लिए यूं तो कई समस्याओं और असंतुलन के अंकुर एक दशक से फूटने लगे थे। लेकिन इन दिनों सबसे बड़ी समस्या नदी के आसपास के गांवों में तेजी से भागते भूजल स्तर, फसलों की सिंचाई और चराई करने वाले मवेशियों का पानी के लिये संघर्ष जारी है। पेश है खास रिपोर्ट…

नौबतपुर में सूखी कर्मनाशा नदी

दिन गुरुवार। घड़ी की सुइयां शाम के पांच बजने का इशारा कर रही थीं। आसमान में सूरज की लाली में डुबकी लगते पक्षियों के झुंड अपने घोसलों में लौटने की तैयारी में थे। कर्मनाशा नदी के किनारे उगी झाड़ियों, बबूल, शीशम, महुआ, बांस, आम, बेर, लिप्टस, सागौन आदि के पेड़ों की ओट से परिंदों का कलरव कानों में संगीत बजने जैसा लग रहा था। गांव से खेत दूर होने के चलते एक्का-दुक्का लोग ही खेत की मेड़ या फिर सड़क से गुजर रहे थे।

सड़क से लगी नहर के दक्षिण दिशा में पहले तो अर्द्ध चंद्राकर फिर रेखीय प्रतिरूप में कर्मनाशा नदी गुजरी है। सरकारी दस्तावेजों में यह नदी यूपी और बिहार का बंटवारा करती है। यहां भी नदी के इस पार यानी पश्चिम दिशा में यूपी के गांव और नदी के पूरब में बिहार के गांव बसे हैं। नदी के बहाव और प्रतिरूप के अनुसार अन्य स्थानों पर दिशाओं का निर्धारण अलग-अलग हो सकता है। नदी का बहाव आमतौर पर दक्षिण से उत्तर की ओर है।

कर्मनाशा नदी पर बना लतीफशाह बांध।

कोई हमारी मदद नहीं कर पाएगा

भुजना-मानिकपुर पंप कैनाल के पास जायद सीजन में उड़द, मूंग और सब्जी की पांच बीघे में खेती करने वाले 18 वर्षीय तेजबली बिंद लीज पर लिए हुए खेत में अपनी फसल की सिंचाई के लिए परेशान हैं। तेजबली “जनचौक” से कहते हैं कि “मेरे पास जमीन बहुत कम है, लीज पर खेत लेकर अधिक से अधिक फसल उपजाने की कोशिश रहती है। लेकिन यह काम सबके बस का नहीं है। लगात के सापेक्ष बचत कुछ नहीं है। हम लोगों की मजदूरी भी नहीं निकल पाती है। पांच बीघे में 15000 हजार रुपये खर्च कर उड़द, मूंग और हरी सब्जियों की खेती किया हूं।”

वो कहते हैं कि “जनवरी तक नदी में पानी भी ठीक-ठाक था। कम डीजल फूंकने पर भी काम चल जाता था। मई में पड़ रही बेहताशा गर्मी में खेतों की नमी तेजी से भाग रही है। सिंचाई के तीसरे दिन ही पौधे मुरझाने और सूखने लग रहे हैं। आजीविका का कोई साधन नहीं है। सब्जी बेचकर परिवार का गुजारा होता है।”

सब्जी की सिंचाई के लिए नदी में डीजल पंप चलाते तेजबली।

तेजबली कहते हैं कि “मजबूरी है सब्जी की खेती को बचाये रखने की। एक बार सिंचाई के लिए 8 लीटर डीजल (720 रुपये) लगता है। हर तीसरे-चौथे सिंचाई करनी पड़ती है। सब तो ठीक है, लेकिन कर्मनाशा का पानी इतना तेजी से सूख रहा है कि लगता है कुछ दिनों में नदी के गड्ढों में भरा पानी भी सूख जाएगा। फिर हमारी कोई मदद चाहकर भी नहीं कर पाएगा।”

बूंद-बूंद पानी को तरस रहे खेत

गंगा की बहन कर्मनाशा नदी हरे-भरे जंगल और पहाड़ से निकलकर मैदानी इलाकों में लगभग 200 किलोमीटर का सफर कर बिहार के चौसा में गंगा नदी में मिल जाती है। कर्मनाशा नदी चौसा पहुंचने से पहले लाखों हेक्टेयर खेतों की सिंचाई के लिए अथाह जलराशि उपलब्ध कराती है। कैमूर, नौगढ़, चकिया सरीखे विंध्य पर्वत श्रंखला के कई हिस्सों में वन्य जीवों की प्यास बुझाते हुए आगे बढ़ती है।

कर्मनाशा नदी के कीचड़ में बदहाल पड़ा पंप कैनाल।

यूपी-बिहार में कर्मनाशा नदी पर सोगाई, कोनिया, मानिकपुर-भुजना, गायघाट, नौबतपुर, चारी समेत एक दर्जन से अधिक पंप कैनाल तकरीबन 200 क्यूसेक प्रति सेकेण्ड से अधिक क्षमता के लगे हुए हैं। जो नदी में पानी नहीं होने की वजह से बंद और बेकार पड़े हुए हैं, जबकि जायद सीजन में खेती करने वाले किसानों को सिंचाई के लिए चिलचिलाती गर्मी में पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है।

अवैध खनन से बेनूर हुआ कर्मनाशा का सौंदर्य

सत्तर वर्षीय शंकरराम कर्मनाशा की बदहाली से दुःखी हैं। वह कहते हैं कि “कर्मनाशा नदी के करारों-अरारों की एक खासियत यह है कि, इसके किनारे या तट समतल नहीं होते हैं। कहीं थोड़ा समतल, कहीं उबड़-खाबड़, गड्ढे, ढलान, टीले, टीलों पर झाड़ियां-पेड़, कटे-फटे तट, नदी का तीव्र घुमाव, कहीं उथला तो कहीं अथाह जलराशि। नदी के पानी में काई, बांधों से आई जलकुंभी, चकवड़, शैवाल और अन्य जलीय वनस्पतियां मिलती हैं। नदी में कछुआ, टेंगरा, सौरी, तेल पिया, बेलगगरी, रोहू, भाकुर, कार्पियो, पियासी, पडिन, नयन, बैकर, वान और मगरमच्छ मिलते हैं।

कर्मनाशा की बदहाली पर दुःखी शंकरराम।

नीलगाय, सूअर, शाही, खरगोश, राष्ट्रीय पक्षी मोर, हिरन, चीतल, सांबर, बंदर, लंगूर आदि वन्य जीव नदी की तराई में देखे जा सकते हैं। हालांकि, इन दिनों मछलियों की संख्या न के बराबर है। प्रशासनिक उदासीनता के चलते आज भी जहां-तहां नदी के किनारों-कपाटों में जेसीबी-पोकलेन मशीनों से अवैध खनन किया जाता है। पहले नदी के पूरबी किनारों पर रेत और मिट्टी का अकूत भंडारण था, जिसे बालू माफियाओं ने अवैध खनन कर नदी के सौंदर्य को बेनूर कर दिया है।”

मछली माफियाओं का आतंक

बिहार के कैमूर पहाड़ी से निकलने वाली कर्मनाशा नदी लगभग 120 किमी यूपी में बहती है। मानसून में नदी के पानी को पांच बड़े बांध नगवां, भैसौड़ा, औरवाटांड़, मूसाखांड और लतीफशाह में एकत्र किया जाता है। इन बांधों से बारह महीनों सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई हैं। इससे लाखों हेक्टेयर जमीन में खेती से बंपर अनाज का उत्पादन होता है।

कर्मनाश नदी की सूखी धारा में मछली पकड़ने के लिए कटिया लगता मजदूर।

हालांकि, हाल के कुछ वर्षों में मछली मारने के लिए माफियाओं द्वारा नियमों को ताक पर रखकर बांध-बंधियों का पानी बहा देने से धान की नर्सरी डालने के लिए लाखों किसानों को मुसीबत उठानी पड़ रही है। कई दफे किसानों ने प्रशासन से शिकायत की, लेकिन प्रशासन का उदासीन रवैया कई सवालों को जन्म देता है?

हालत देखकर भी सरकार बेखबर

यूपी-बिहार बॉर्डर पर नौबतपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग-2 के कुछ लेन के निर्माण के लिए कर्मनाशा नदी में कुलावे (सीमेंट के पाइप) डालकर पाट दिया गया है। इससे नदी की प्राकृतिक धारा में विकृति पैदा हो गई है। यहां नदी ने एक नाले का रूप ले लिया है। मानसून के दिनों में बीच धारा में पाटे गए सीमेंट के बोल्डर, पत्थर और कुलावों के जैसे-तैसे पड़े रहने से नदी की धारा में रुकावट पैदा होती है।

यूपी-बिहार सीमा पर हाइवे निर्माण के लिए कुलाबे डालकर कर्मनाशा नदी को पाट दिया गया है।

स्थानीय अनिल ने बताया कि “हाइवे का निर्माण तकरीबन एक दशक से हो रहा है, ऐसे में एक बार नए हाइवे पर बने पुल के अप्रोच पिलर में दरार होने पर नदी को पूरी तरह से पाटकर मालवाहक/भारवाहक ट्रकों के आवागमन के लिए मार्ग ही बना दिया था। जिसके पत्थर और बोल्डर नदी में जहां-तहां पड़े हैं। पहले गर्मी के दिनों में पानी रहता था। अब तो नदी बीमार सी हो गई है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस हाइवे से नेता, मंत्री, आईएएस, पीसीएस और पुलिस कप्तान गुजरते हैं लेकिन सभी कर्मनाशा की हालत को देखकर भी बेखबर बने हुए हैं। जल्दी ही नदी को बचाने की कोशिश नहीं की गई तो बहुत देर हो जाएगी।”

चरवाहों की परती परिकथा

परती खेतों में मवेशियों को झुंड में चराने वाले गोलू कहते हैं कि “पहले कहीं भी चराई कराने के बाद मवेशी नदी में पानी पीने उतर जाते थे, लेकिन अब वैसी बात नहीं है। नदी में हर जगह पानी नहीं है। पानी की तलाश में कई किमी तक मवेशियों को हांक कर घाटों पर आना पड़ता है। फिर पानी पिलाकर वापस उतनी ही दूरी फालतू में तय करनी होती है। नदी में पानी कम बचा है। अभी जुलाई लास्ट तक चराई होगी, उसके बाद बारिश से पहाड़ों पर घास उगने के बाद चरवाहों को लौटना होगा।

मवेशियों को चराने के बाद नदी में पानी पिलाकर लौटते गोलू।

गोलू कहते हैं कि “इधर नदी में पानी कम है। आगामी दिनों में चरवाहों को चराई के लिए मैदान में आने के लिए भी सोचना पड़ सकता है। जब पानी ही नहीं रहेगा तो क्या करेंगे? मवेशियों को भी औने-पौने दामों में बेचना पड़ सकता है।” चंदौली, सोनभद्र, गाजीपुर और कैमूर की पहाड़ियों में चरवाहों की आबादी तकरीबन 15000 और मवेशियों की तादात 5 लाख से अधिक है। यूपी में कर्मनाशा नदी पर पांच बड़े बांध- नगवां, भैसौड़ा, औरवाटांड़, मूसाखांड और लतीफशाह बने हैं।

लोक संस्कृति में कर्मनाशा का महत्त्व

चकिया-शेरपुर के चंद्रभान सिंह कहते हैं कि “पूर्वांचल का स्वर्ग कहे जाने वाला राजदरी-देवदरी जल प्रपात (58 मीटर) कर्मनाशा नदी पर है। चाकिया तहसील के पीतपुर में 12वीं सदी के समाज सुधारक सन्त बनवारीदास की समाधि है, जहां सितंबर महीने में तीन दिवसीय मेला लगता है। इसी नदी के किनारे नौगढ़ का किला और चन्द्रकान्ता गेस्ट हाऊस भी है तथा पूर्व बनारस स्टेट के अनेक निर्माण मौजूद हैं, जो काफी रोमांच व इतिहास से भरे पड़े हैं।”

कर्मनाशा नदी के तट पर लोक उत्सव में शामिल चंद्रभान सिंह व अन्य नागरिक।

वो कहते हैं कि “कर्मनाशा नदी के घाटों पर समय-समय पर छठ, ज्यूतिया व तीज त्योहार पर लोक उत्सव मनाया जाता है। क्षेत्रीय लोग इसे जीवनदायिनी के साथ ही धन-धान्य से समृद्ध भी मानते हैं। कर्मनाशा नदी की वजह से ही चंदौली जनपद चावल का कटोरा कहा जाता है। बावजूद इसके नदी के रखरखाव के अलावा इसे संरक्षित करने के प्रति लापरवाही बरती जा रही है। इसे क्या कहा जाए?”

जीवनदायिनी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

लेखक विजय विनीत बताते हैं कि “कर्मनाशा नदी नौगढ़ के औरवाटाड़, मूसाखाड़ बांध, लतीफशाह बियर से होकर गुजरी है। लाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई व्यवस्था इसी नदी पर निर्भर है। कर्मनाशा नदी से लेफ्ट व राइट नहर के साथ ही जनकपुर माइनर व रजवाहा सोता सहित सैकड़ों छोटी-बड़ी माइनर निकली हुई हैं।”

लेखक विजय विनीत।

वो कहते हैं “शासन-प्रशासन की उपेक्षा का शिकार नदी की साफ-सफाई करने के लिए अभी तक कोई ठोस प्रस्ताव नहीं बन सका। इससे दिन प्रतिदिन नदी की स्थिति नारकीय होती जा रही है। नदी में जमे काई व चकवड़ के अलावा गंदगी की सफाई नहीं होती है। कर्मनाशा नदी के जल को प्रदूषित करने में समीपवर्ती गांव वाले भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। विभाग की उदासीनता से नदी के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गए हैं।”

अन्यथा हो जाएगी बहुत देर

त्रिलोकी राम कहते हैं कि “चूंकि कर्मनाशा नदी पहाड़ों के ढलान से तेजी से उतरती है। इसके चलते मानसून के दिनों में नदी के आसपास बसे गांवों में पानी भर जाता था। बांध बनने के बाद बाढ़ से राहत तो है, लेकिन मानसून को छोड़कर अब नदी पानी के लिए तरस रही है। नदी में कुछ साल बहाव भी अच्छा था। पानी ताजा और बहावदार होने से बड़ी-बड़ी मछलियां मिलती थीं। अब पानी ही नहीं है। नदी दम तोड़ रही है। अपना अस्तित्व बचा ले यही बड़ी बात होगी।”

मवेशियों के लिए पानी की तलाश में पहुंचे त्रिलोकी राम (पीले शर्ट में), साथ में अन्य ग्रामीण।

नौगढ़ में कर्मनाशा नदी पर स्थित खूबसूरत जल प्रपात कर्मनाशा वाटर फॉल मनोरम सुंदरता से हर किसी को रोमांच से भर देता है। करीब 35 मीटर ऊंचे जल प्रपात में बारहो-मास दुधिया पानी गिरता रहता है। पहाड़ों के बाद मैदानी इलाकों में करोड़ों लोगों की जीवन रेखा कर्मनाशा नदी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अब नदी के प्रवाह तंत्र को सहेजने, अवैध खनन पर लगाम लगाने, मिल-कारखानों के गंदे पानी और कूड़ा-कचरा को नदी में गिरने से रोकने के साथ वृक्षारोपण करने कर्मनाशा नदी को संजीवनी देने का काम करना होगा। अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।

(बिहार के कैमूर और यूपी के चंदौली से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट।)

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