कर्नाटक चुनाव: अकूत पूंजी और बजरंगबली के भरोसे भाजपा

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कर्नाटक में 8 मई को शाम 6 बजे चुनाव प्रचार समाप्त हो गया। मतदान 10 मई को और गिनती 13 को होगी। चुनाव प्रचार के दौरान जहां कांग्रेस ने लोकलुभावन मेनिफेस्टो जारी कर मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया वहीं भाजपा द्वारा पूरे चुनाव प्रचार के दौरान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का अथक प्रयास किया गया। आम धारणा यह है कि कर्नाटक में परिवर्तन होने जा रहा है। कर्नाटक चुनाव के कुछ मुद्दों को यहां रेखांकित करना आवश्यक है।

प्रचार अभियान में आगे निकली कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी ने समय से अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी तथा मेनिफेस्टो के मुख्य मुद्दे सार्वजनिक कर दिए। इसके चलते कांग्रेस को चुनाव में बढ़त मिलती दिखाई पड़ी। महिलाओं को 2 हजार रुपये, 200 यूनिट निशुल्क बिजली, बेरोजगारों को 3 हजार रुपये प्रतिमाह और 10 किलो मुफ्त राशन मुख्य आकर्षण रहे।

बजरंगबली के सहारे भाजपा

भाजपा राम के सहारे 2 सीटों से केंद्र सरकार बनाने तक की स्थिति में पहले ही पहुंच चुकी है। लेकिन इस बार भाजपा ने कर्नाटक चुनाव में बजरंगबली का सहारा लिया। प्रधानमंत्री और भाजपा के बड़े नेता बजरंगबली की जय जयकार करते सुने और देखे गए।

प्रधानमंत्री तक ने अपने कार्यक्रमों में बजरंगबली के भेष में अपने कार्यकर्ताओं को पेश किया। उन्हें यह अवसर कांग्रेस पार्टी ने ही दिया था। कांग्रेस द्वारा ‘बजरंग दल’ और ‘पीएफआई’ को बैन करने का आश्वासन दिया गया था। आमतौर पर यह कहा गया कि कांग्रेस द्वारा यह मुद्दा उठाया जाना गैर जरूरी था।

जिस तरह कश्मीर फाइल्स फिल्म के माध्यम से देशभर में नफरत का माहौल बनाया गया था। उसी तरह केरल पर बनी एक फिल्म के माध्यम से नफरत का वातावरण बनाने की फिर से कोशिश की गई। हालांकि उसकी शुरुआत रामनवमी से ही भाजपा ने कर दी थी।

चुनाव आयोग की उपस्थिति नगण्य रही

कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान कहीं भी चुनाव आयोग सक्रिय दिखाई नहीं दिया। चुनाव आयोग ने सोनिया गांधी को कर्नाटक की संप्रभुता का सवाल उठाने तथा कांग्रेस पार्टी को भ्रष्टाचार की रेट लिस्ट जारी करने को लेकर जरूर नोटिस दिया लेकिन कांग्रेस पार्टी द्वारा भाजपा के खिलाफ की गई शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। यह भी ऐसे समय में हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अधिकृत तौर पर कहा गया कि नफरत फैलाने वाले भाषणों पर प्रशासन को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। श्रीराम सेना जैसे कट्टरपंथी संगठनों द्वारा आलंद सहित तमाम विधानसभा क्षेत्रों में जहरीले भाषण दिए गए लेकिन उनके खिलाफ न तो एफआईआर दर्ज की गई, न ही उन्हें सभाएं करने से रोका गया।

लोकतंत्र पर पूंजीतंत्र हावी

कर्नाटक के चुनाव में तमाम क्षेत्रों में दौरे के समय भाजपा के द्वारा मतदाताओं को तीन हजार से पांच हजार रुपये बांटने की शिकायतें गांव-गांव में सुनने को मिलीं। रुपये से वोट खरीदने का काम तो पहले से ही चला आ रहा है लेकिन पिछले चुनाव में एक हजार रुपये प्रति मतदाता का रेट का इस चुनाव में तीन से पांच हजार रुपये तक पहुंच जाना यह बताता है कि पैसा पूरी तरह से चुनाव पर हावी हो गया है। लोकतंत्र पूंजीतंत्र में तब्दील हो गया है।

इस चुनाव की खासियत यह रही कि मतदाताओं को नगद नहीं, ‘पेटीएम’ और ‘गूगल पे’ से पैसे ट्रांसफर किए गए। यानि डिजिटल पेमेंट से मतदाताओं को साधा गया। चुनाव सुधार से जुड़े किसी शोधकर्ता समूह द्वारा यदि इस आरोप की पड़ताल की जाएगी तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ सकते हैं।

कहा जा रहा है कि इस चुनाव में एक विधानसभा क्षेत्र में सत्तारूढ़ दल द्वारा 25 से 50 करोड़ रुपये तक खर्च किए गए। इतनी बड़ी राशि मतदाताओं को डिजिटल पेमेंट में, शहरों से मतदाताओं को बूथ तक ढोने पर खर्च की गई। केवल कुलबर्गी जिले में पार्टियों ने पुणे, बेंगलुरु, सोलापुर तथा आसपास के बड़े शहरों के मतदाताओं को वोट डलवाने के लिए एक हजार से अधिक बसों का अंतिम एक सप्ताह में इंतजाम किया।

पैसे के साथ-साथ शराब भी धड़ल्ले से कूपन वितरित कर बांटी गई। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आलंद में जानकारी में आया। यहां पर भाजपा उम्मीदवार की अधिकृत 16 दुकानें हैं। कम से कम हर दुकान से 10 से 20 स्थानों पर अवैध शराब बेची जाती है। अवैध रूप से बेची जाने वाली शराब मतदाताओं को निशुल्क पिलाने की शिकायतें भी मिलीं। खजूरी के डॉ. देशमुख ने बताया कि उनके पास एक दिन में एक गांव के 10 से अधिक लोग शराब पीने के कारण तबीयत खराब होने पर इलाज के लिए आए।

चुनाव में हावी रहा भाजपा सरकार का मिस गवर्नेंस का मुद्दा

पिछले विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर ने मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन विधायकों की खरीद-फरोख्त के बाद जिस तरह भाजपा ने 7 राज्यों में सरकारें गिराईं और बदलीं, उसी तरह से कर्नाटक में भी भाजपा ने सरकार पर कब्जा कर लिया था। लेकिन सरकार द्वारा ऐसे कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किए गए जिससे मतदाता प्रभावित हो। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का बुरा हाल है। फिल्टर प्लांट की व्यवस्था होने के बावजूद गांव में पीने के पानी का वर्षों से अभाव, बिजली कटौती, बढ़ती बेरोजगारी और लगातार बढ़ती महंगाई कर्नाटक चुनाव में चर्चित मुद्दे रहे।

मतदाताओं को डराने का प्रयास

देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा मतदाताओं को यह कह कर डराया गया कि यदि भाजपा की सरकार गई तो कर्नाटक दंगों में झुलसेगा तथा ‘पीएफआई’ का बोलबाला हो जाएगा। मुख्यमंत्री योगी ने उत्तरप्रदेश के तमाम उदाहरण देकर बुलडोजर और एनकाउंटर का उल्लेख कर मतदाताओं को भयभीत करने का प्रयास किया।

देवेगौड़ा और जनार्दन रेड्डी की सक्रियता

जनता दल सेक्युलर ‘ओल्ड मैसूर’ के अपने प्रभाव वाले क्षेत्र के साथ-साथ कर्नाटक में लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उसने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर कर्नाटक में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। लेकिन चुनाव के दौरान अपने प्रभाव क्षेत्र से बाहर जनता दल सेक्युलर के उम्मीदवार को जनसमर्थन दिखाई नहीं पड़ा। उसी तरह जनार्दन रेड्डी ने अपने प्रभाव क्षेत्रों में तमाम उम्मीदवार खड़े किए। प्रभाव वाले जिलों में उनके भी कई उम्मीदवार प्रभावशाली स्थिति में दिखलाई पड़े। लेफ्ट और सपा ने भी अपने उम्मीदवार कर्नाटक चुनाव में उतारे।

कांग्रेस पार्टी ने यदि संपूर्ण विपक्ष को साथ लेकर चलने की कोशिश की होती तो यह स्थिति नहीं बनती परंतु कांग्रेस को कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा के बाद से यह लगने लगा था कि वह अकेले ही बहुमत की सरकार बना सकती है। उसे किसी से समझौता करने की आवश्यकता है।

13 मई को नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों ने दोनों पार्टियों को कितना नुकसान पहुंचाया तथा चुनाव को कितना प्रभावित किया।

कर्नाटक में चर्चा यह है कि यहां परिवर्तन होने जा रहा है। तमाम सर्वे भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं।

(डॉ.सुनीलम पूर्व विधायक और किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं)

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