प्रयागराज। प्रयागराज के बहुचर्चित सपा के पूर्व जवाहर यादव उर्फ पंडित हत्याकांड में सत्र अदालत ने पूर्व सांसद कपिल मुनि करवरिया उनके भाई पूर्व भाजपा विधायक उदयभान करवरिया और पूर्व बसपा एमएलसी सूरज भान करवरिया तथा रिश्तेदार रामचंद्र उर्फ कल्लू को दोषी करार दिया है। सत्र अदालत चार नवंबर को सभी पक्षों को सुनकर सजा सुनायेगी। यह निर्णय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश बद्री विशाल पांडे ने दिया।
बालू के कारोबार में वर्चस्व की जंग दो राजनितिक परिवारों में इस तरह बढ़ी कि सपा के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ़ पंडित की प्रयागराज के सिविल लाइंस में सरे शाम एके47 से गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गयी और इसमें बसपा और भाजपा में शामिल करवरिया बन्धुओं के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज हुई। 23 साल की लम्बी क़ानूनी लड़ाई के बाद इस कांड की परिणति आरोपियों के विरुद्ध दोष सिद्धि से हुई।
इस मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई 18 अक्टूबर को अदालत ने पूरी कर ली थी और निर्णय सुनाने के लिए 31 अक्टूबर की तारीख नियत कर दी थी। गुरुवार को भोजनावकाश के बाद आरोपित करवरिया बंधुओं कपिल मुनि करवरिया (पूर्व सांसद), उदयभान करवरिया( पूर्व सदस्य, विधानसभा) सूरज भान करवरिया (पूर्व सदस्य विधान परिषद स्थानीय निकाय क्षेत्र इलाहाबाद) एवं रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू को कड़ी सुरक्षा में सदर लाकअप से लाकर कोर्ट में पेश किया गया। दोषी सुनाये जाने के बाद दोष सिद्ध वारंट बनाकर अदालत ने सभी को नैनी जेल भेज दिया।
प्रयागराज और कौशाम्बी में राजनीतिक रसूख रखने वाला करवरिया परिवार हत्याकांड में आरोपी था। परिवार के चार सदस्य पिछले चार वर्षों से जेल में हैं। मरहूम जवाहर पंडित का परिवार भी राजनीतिक क्षेत्र में दबदबा रखता है। जवाहर हत्याकांड में अभियोजन की ओर से 18 गवाह पेश किए गए जबकि करवरिया परिवार ने बचाव पक्ष से कुल 156 गवाहों के बयान कराए हैं। जवाहर पंडित हत्याकांड का मुकदमा वापस लेने की सरकार की ओर से भी कोशिश हुई मगर पहले सत्र अदालत ने इसकी अनुमति नहीं दी, बाद में करवरिया परिवार इलाहाबाद हाईकोर्ट गया लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली।
तत्कालीन इलाहाबाद जिले यानि वर्तमान प्रयागराज जिले में किसी विधायक की हत्या की पहली घटना जवाहर पंडित हत्याकांड थी। हत्याकांड में मरने वाला और आरोपी दोनों ही रसूखदार राजनीतिक और दबंग परिवारों से थे। इस हत्याकांड में पहली बार एके 47 जैसे अत्याधुनिक असलहे की इस्तेमाल किया गया था।
सपा नेता जवाहर पंडित 13 अगस्त 1996 को पूरा दिन अपने लाउदर रोड स्थित कार्यालय में कार्यकर्ताओं और परिचितों के बीच बिताने के बाद करीब साढ़े छह बजे कार्यालय से घर अशोक नगर जाने के लिए निकले। सफेद रंग की मारुती 800 कार को गुलाब यादव चला रहा था। सहयोगी कल्लन यादव पीछे की सीट पर बैठा था। करीब पौने छह बजे जैसे ही कार सिविल लाइंस में एमजी मार्ग पर पैलेस सिनेमा के आगे पहुंची तभी वहां से क्रास हो रही जीप से टकरा गयी । इसी बीच सफेद रंग की एक मारुती वैन ठीक जवाहर पंडित की कार के बगल में रुकी और हमलावर एके 47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने लगे और वाहन सवार लोग पत्थर गिरजाघर की ओर से तेजी से भाग गये। कुछ ही देर में सिविल लाइंस थाने की पुलिस और अन्य लोग घटना स्थल पर पहुंचे। जवाहर पंडित, कार चला रहे गुलाब यादव और एक राहगीर कमल कुमार दीक्षित की मौके पर ही मौत हो चुकी थी। कल्लन गंभीर रूप से घायल था। सभी को फौरन अस्पताल ले जाया गया।
जवाहर पंडित के भाई सुलाखी यादव ने थाने में तहरीर देकर सूरजभान करवरिया (पूर्व एमएलसी), कपिलमुनि करवरिया(पूर्व सांसद), उदयभान करवरिया(पूर्व विधायक) और उनके रिश्तेदार रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू और श्याम नारायण करवरिया उर्फ मौला (अब दिवंगत) पर हत्या का नामजद आरोप लगाया। सुलाखी की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी में उन्होंने खुद को घटना का चश्मदीद बताते हुए कहा कि घटना के वक्त वह अपनी टाटा सूमो गाड़ी में जवाहर यादव के ठीक पीछे चल रहे थे। गाड़ी रामलोचन यादव चला रहा था। प्राथमिकी के मुताबिक जवाहर की कार में टक्कर मारने वाली जीप में रामचंद्र उर्फ कल्लू सवार था, जिसके हाथ में राइफल थी। जबकि कपिल मुनि के पास राइफल, उदयभान के पास एके 47 और सूर्यभान के पास बंदूक थी। मौला के पास रिवाल्वर थी। रामचंद्र और मौला की भूमिका ललकारने की बताई गई है।
सुलाखी यादव की तहरीर पर पुलिस कपिल मुनि, सूरजभान, उदयभान, मौला और रामचंद्र के खिलाफ हत्या, विधि विरुद्ध जमाव, हत्या का प्रयास, शस्त्र अधिनियम और सात क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट की धाराओें में मुकदमा दर्ज कर लिया। प्रारंभिक जांच सिविल लाइंस की पुलिस ने की मगर राजनीतिक रसूख से सीबीसीआईडी को जांच दे दी गई। कुछ दिनों की जांच के बाद विवेचना एक बार फिर बदली और जांच सीबीसीआईडी की वाराणसी शाखा को दे दी गई। वाराणसी के बाद लखनऊ शाखा को जांच स्थानांतरित हुई और अंत में 20 जनवरी 2004 को सीबीसीआईडी लखनऊ ने आरोप पत्र दाखिल किया।
मुकदमे की सुनवाई शुरू होने से पहले जांच ने एक बार फिर रुख बदला और सीबीसीआईडी की एक और जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई। इस दौरान हाईकोर्ट के एक स्थगन आदेश से कपिल मुनि, सूरज भान और रामचंद्र के ख्रिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लग गई। सिर्फ उदयभान इस आदेश की परिधि से बाहर रहे। एक जनवरी 2014 को उदयभान को सरेंडर कर जेल जाना पड़ा। हाईकोर्ट का स्टे आठ अप्रैल 2015 तक चला। इसके बाद 28 अप्रैल 2015 को कपिलमुनिल, सूरजभान और रामचंद्र ने कोर्ट में सरेंडर किया। केस के सभी आरोपी तब से जेल में हैं।
जवाहर हत्याकांड में अक्तूबर 2015 से विधिवत सुनवाई और गवाही शुरू हुई जब उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में अनावश्यक विलंब न करते हुए दिन प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई का निर्देश दिया। दोनों पक्षों की ओर से अदालत में जमकर पैरवी हुई। अभियोजन ने दो चश्मदीद गवाहों सहित कुल 18 गवाह पेश किए जबकि वादी सुलाखी यादव की मुकदमे के विचारण के दौरान मृत्यु हो गई। घटना में घायल हुए एक और चश्मदीद कल्लन की भी गवाही होने से पहले ही मृत्यु हो गई। बचाव पक्ष ने खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए कुल 156 गवाह और तमाम दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए।
जवाहर पंडित हत्याकांड में करवरिया परिवार को तब सबसे अधिक झटका तब लगा जब करवरिया बंधुओं पर से मुकदमा वापसी की सरकार की कोशिश नाकाम रही। तीन नवंबर 2018 को शासन से इस बाबत निर्देश मिलने के बाद विशेष अधिवक्ता रणेंद्र प्रताप सिंह ने मुकदमे की सुनवाई कर रहे एडीजे रमेश चंद्र के समक्ष प्रार्थनापत्र प्रस्तुत कर मुकदमे की कार्यवाही समाप्त करने की प्रार्थना की। अभियोजन की ओर से उठाए गए बिंदुओं पर जवाहर पंडित की पत्नी और पूर्व सपा विधायक विजमा यादव ने आपत्ति की। अदालत ने दोनों पक्षों के प्रार्थनापत्रों पर विचार के बाद वाद वापसी की अनुमति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी सत्र अदालत के फैसले को बरकरार रखा ।
लगभग चार वर्ष चली नियमित सुनवाई के बाद अदालत ने गत दिनों अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था इसे सुनाए जाने के लिए 31 अक्टूबर की तिथि नियत की गई थी। फैसला सुनाए जाने के लिए बृहस्पतिवार को दिन में करीब 2:00 बजे करवरिया बंधुओं को नैनी जेल से अदालत में हाजिर किया गया इसके कुछ ही देर बाद जज बद्री विशाल पांडे ने सभी अभियुक्तों को दोष सिद्ध करार देते हुए कहा कि अभियोजन अपना पक्ष साबित करने में सफल हुआ है इसके बाद उन्होंने मुकदमे की कार्यवाही स्थगित कर दी।
(लेखक जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ ही कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)