लक्षद्वीप के नये प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल बच्चों के खानपान की आदतों को बदलने चले थे पर केरल हाईकोर्ट ने उनकी मंशा पर पानी फेर दिया। केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपने नए प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल के निर्देशन में लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा पारित दो विवादास्पद आदेशों के संचालन पर रोक लगा दी है। पहला, द्वीप में प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे डेयरी फार्मों को बंद करने का आदेश है। दूसरा, मध्याह्न भोजन से चिकन और अन्य मांस हटाकर स्कूली बच्चों के लिए आहार में बदलाव का निर्णय था। चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चाल्यो की खंडपीठ ने लक्षद्वीप स्थित कवरत्ती के मूल निवासी वकील अजमेल अहमद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इन आदेशों पर रोक लगाते हुए लक्षद्वीप के स्कूलों में मध्याह्न भोजन से मांसाहारी व्यंजन को हटाने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि यहां तक कि एक चिकित्सक ने भी कहा था कि मांसाहारी खाद्य पदार्थ (मछली, चिकन और अंडा) बच्चों के विकास के लिए आवश्यक हैं। (अजमल अहमद आर बनाम भारत संघ)।
अब स्पष्ट हुआ कि लक्षद्वीप प्रशासन ने विधिक न्यायाधिकार क्षेत्र को केरल हाईकोर्ट से हटाकर कर्नाटक हाई कोर्ट में करने का प्रस्ताव क्यों रखा था,हालाँकि इस प्रस्ताव के भारी विरोध के कारण लक्षद्वीप प्रशासन ने ऐसा कोई प्रस्ताव होने से इंकार कर दिया था। खंडपीठ ने द्वीप प्रशासन से दो सप्ताह के भीतर जनहित याचिका पर जवाब देने के लिए भी कहा है।
27 जनवरी, 2021 को आयोजित मध्याह्न भोजन कार्यक्रम पर केंद्र शासित प्रदेश संचालन सह निगरानी समिति की बैठक और जिला कार्य बल के कार्यवृत्त का अवलोकन करने पर, खंडपीठ ने कहा, यहां तक कि बैठक में भाग लेने वाले एक चिकित्सक ने भी कहा था कि मांसाहारी भोजन (मछली, चिकन और अंडा) बच्चों के विकास के लिए आवश्यक हैं और बच्चों को प्रत्येक समूह (शाकाहारी) से युक्त स्वस्थ संतुलित आहार की आवश्यकता होती है गैर-शाकाहारी के साथ), ताकि उन्हें पोषक तत्वों की एक विस्तृत श्रृंखला मिल सके।इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया कि स्कूल के मेन्यू में मीट आइटम को बहाल किया जाए।
आदेश में कहा गया है कि प्रथम दृष्ट्या, हमें मांस और चिकन को छोड़कर खाद्य पदार्थों में बदलाव का कोई कारण नहीं मिलता है। इसलिए, हम लक्षद्वीप के स्कूलों के बच्चों को मांस और चिकन को शामिल करके, पहले की तरह भोजन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देते हुए एक अंतरिम आदेश पारित करने के लिए इच्छुक हैं। कवारत्ती द्वीप के निवासी एडवोकेट अजमल अहमद द्वारा प्रशासन द्वारा सुधारों के खिलाफ दायर एक याचिका पर खंडपीठ ने यह टिप्पणी की।
खंडपीठ ने केंद्र शासित प्रदेश में डेयरी फार्मों के कामकाज को रोकने के प्रशासन के फैसले पर भी रोक लगा दी है और कहा है कि अगले आदेश तक डेयरी फार्मों का कामकाज जारी रखा जाना चाहिए।याचिका में प्रशासन द्वारा नए प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के तहत मध्याह्न भोजन से मांस पर प्रतिबंध लगाने और द्वीप पर डेयरी फार्म बंद करने के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये सुधार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 300 ए के तहत जातीय संस्कृति, विरासत, भोजन की आदतों और निवासियों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाल्यो की खंडपीठ ने कहा कि मध्याह्न भोजन के लिए मेनू तय है और इसकी स्थापना के बाद से कई वर्षों तक इसका पालन किया गया है। राष्ट्रीय कार्यक्रम के अवलोकन ने यह भी संकेत दिया कि बच्चों को भोजन में मांस दिया जाना चाहिए। कोर्ट यह समझने में विफल रहा कि स्वास्थ्य कारक के महत्वपूर्ण पहलू पर विचार करते हुए बच्चों के मेनू में इस तरह का अचानक परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है। बैठक के कार्यवृत्त में एक सहभागी चिकित्सक की राय का भी खुलासा हुआ कि मांसाहारी भोजन बच्चों के विकास और स्वस्थ संतुलित आहार के लिए आवश्यक है, जिस पर प्रशासक द्वारा विचार नहीं किया गया है। खंडपीठ ने कहा कि चूंकि मेनू से मांस और चिकन को हटाने के लिए कोई प्रथम दृष्ट्या कारण नहीं है और प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे लक्षद्वीप के स्कूलों के बच्चों को मांस और चिकन को शामिल करके पहले की तरह भोजन उपलब्ध कराएं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता पीयूस कोट्टम ने कहा कि प्रशासन का निर्णय स्कूलों में मिड डे मील के राष्ट्रीय कार्यक्रम (एमडीएमएस) वार्षिक कार्य योजना और बजट 2020-21 के विपरीत था जिसमें केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप के स्कूलों के बच्चों को मांस और चिकन उपलब्ध कराने का प्रावधान है।उन्होंने तर्क दिया कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप ने एक अलग निर्णय क्यों लिया है।याचिका में कहा गया है कि लक्षद्वीप में वर्तमान प्रशासक के पद ग्रहण करने के बाद लिए गए निर्णयों ने लोगों के हितों को काफी हद तक प्रभावित किया है। याचिका में संबंधित अधिकारियों को सुधारों को लागू करने से परहेज करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है, जिसमें कहा गया है कि आदेश लक्षद्वीप की जातीय संस्कृति, विरासत और यहां के लोगों की भोजन की आदतों का उल्लंघन करते हैं।
अपनी कुछ नीतियों की वजह से स्थानीय लोगों के विरोध का सामना कर रहे लक्षद्वीप प्रशासन ने विधिक न्यायाधिकार क्षेत्र को केरल हाईकोर्ट से हटाकर कर्नाटक हाई कोर्ट में करने का प्रस्ताव रखा है।यह प्रस्ताव ऐसे समय में किया गया है जब लक्षद्वीप के नए प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल के फैसलों के खिलाफ कई याचिकाएं केरल हाई कोर्ट में दाखिल की गई हैं। इनमें कोविड-19 अनुकूल व्यवहार के लिए मानक परिचालन प्रक्रियाओं को संशोधित करना, गुंडा अधिनियम को लागू करना और सड़कों को चौड़ा करने के लिए मछुआरों की झोपड़ियों को हटाने जैसे फैसलों के खिलाफ दायर याचिकाएं शामिल हैं।
पटेल दमन और दीव के प्रशासक हैं और दिसंबर 2020 के पहले सप्ताह में लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक दिनेश्वर शर्मा का बीमारी से निधन होने के बाद पटेल को लक्षद्वीप का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। इस साल 11 रिट याचिकाओं सहित कुल 23 आवेदन लक्षद्वीप प्रशासक के खिलाफ और पुलिस या स्थानीय सरकार की कथित मनमानी के खिलाफ दायर किए गए हैं। हालांकि, विधिक न्यायाधिकार क्षेत्र को केरल से कर्नाटक हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने के प्रस्ताव की सही वजह तो लक्षद्वीप प्रशासन ही जानता है जो इन मामलों से निपटने को लेकर चर्चा में है।
किसी हाईकोर्ट का न्यायाधिकार क्षेत्र केवल संसद के कानून से ही स्थानांतरित हो सकता है। संविधान के अनुच्छेद-241 के मुताबिक, ‘संसद कानून के तहत केंद्र शासित प्रदेश के लिए हाई कोर्ट का गठन कर सकती है या ऐसे केंद्र शासित प्रदेश के लिए किसी अदालत को उसका उच्च न्यायालय सभी कार्यों के लिए या संविधान के किसी उद्देश्य के लिए घोषित कर सकती है।’ हालांकि, इस अनुच्छेद की धारा-4 के अनुसार अनुच्छेद में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्यों के हाई कोर्ट के न्यायाधिकार क्षेत्र में संशोधन आदि के बारे में संसद के अधिकार को कम करता हो। हालांकि, लक्षद्वीप के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर अस्कर अली ने कहा कि ये खबरें निराधार और गलत हैं। अली ने कहा, “कानूनी अधिकार क्षेत्र शिफ्ट करने का कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया है। ऐसी खबरें झूठी और निराधार हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)