पुनर्वास बिना विध्वंस यानी खोरी में गरीबों को सजा-ए-मौत

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फरीदाबाद। अरावली जोन में खोरी-लकड़पुर में करीब दस लाख (10 हजार मकान) को उजाड़ने से अब कोई चमत्कार ही बचा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार 17 जनवरी को एक याचिका दायर कर एमसीएफ का प्रस्तावित अतिक्रमण विरोधी अभियान रोकने और पुनर्वास की मांग की गई। अदालत ने किसी भी तरह का स्टे देने से मना कर दिया। उसने कहा कि पुनर्वास करना सरकार का काम है। वो जाने।….और वाकई हरियाणा की भाजपा सरकार इस समय सब कुछ जानकर भी अनजान बनी हुई है। उसके सांसद और विधायक एक बार भी खोरी गांव में किसी तरह का भरोसा देने नहीं पहुंचे। यही वो लोग हैं जो कोरोना काल में यहां बीजेपी के झंडे तले मास्क बांट कर सहानुभूति बटोर रहे थे और यहां की जनता भी मोदी-मोदी कर रही थी। अब खुद के ठगे जाने का एहसास हो रहा है। साथ कोई नहीं खड़ा है। साथ खड़े होने के नाम पर मेधा पाटेकर और चंद अनजान एक्टिविस्ट हैं, जो कभी भी गिरफ्तार किए जा सकते हैं। इस बीच खबर है कि मेधा पाटेकर मौके पर पहुंच गयी हैं।

ट्रांजिट कैंप बनाने में दिक्कत क्या है

फरीदाबाद जिला प्रशासन और एमसीएफ यहां रोजाना दबाव बना रहा है। किसी भी समय अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू हो सकती है। एमसीएफ को डेढ़ महीने का समय सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। एक हफ्ता निकल चुका है। प्रशासन डर दिखाकर यहां से लोगों को निकलने के लिए कह रहा है। उसकी यह तरकीब कारगर है। अभी तक 70 फीसदी से ज्यादा लोग अपना सामान वगैरह यहां से हटा चुके हैं। लेकिन लोगों का गुस्सा अभी तक राहत कैंप या ट्रांजिट कैंप नहीं लगाने पर है। जब आप एक साथ दस लाख लोगों को यहां से बेघर कर रहे हैं तो वे सारे लोग किसी एक दिशा में एक साथ तो जा नहीं सकते। इसीलिए जब इतनी बड़ी आबादी का विस्थापन होता है तो ट्रांजिट कैंप लगाए जाते हैं। जहां से धीरे-धीरे लोग अपने नए ठिकानों की तरफ प्रस्थान करते हैं। आईएएस अफसरों को बाबूगीरी करने के अलावा मानवता का पाठ भी आईएएस अकादमी में पढ़ाया जाता है लेकिन लगता है कि वे अपना पाठ भूल चुके हैं। उन्हें यहां रोते-बिलखते लोग नहीं दिख रहे। उन्हें भावशून्य युवक तक नजर नहीं आ रहे। 

डीसी साहब आपका प्लान कहां है

यह तय है कि खोरी अब उजड़ेगा। लेकिन अतिक्रमण हटाने की शुरुआत किस तरफ से होगी, उसकी रूपरेखा जिला प्रशासन ने मीडिया के सामने कम से कम स्पष्ट नहीं की है। प्रशासन ने धारा 144 लगा दी है और सारी जिम्मेदारी पुलिस और एमसीएफ पर डाल दी है। रोजाना ड्यूटी मजिस्ट्रेट भी नियुक्त किए जाते हैं। लेकिन जब इतने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाया जाता है तो प्रशासन अपना पूरा प्लान मीडिया के जरिए वहां की आबादी को बताता है। ताकि उस इलाके के लोग उस मानसिक स्थिति का सामना करने को तैयार रहें। खोरी किस तरफ से उजड़ेगा, कोई नहीं जानता। खोरी में अवैध रूप से बने मंदिरों और मस्जिदों को अभी तक चिन्हित किया गया है या नहीं, क्या उन्हें गिराने पर कोई साम्प्रदायिक हिंसा का अंदेशा तो नहीं है। इस तरह की तमाम जानकारियों की सूचना सार्वजनिक नहीं है। जिला प्रशासन के कुछ अधिकारी यह खबरें मीडिया में तो छपवा रहे हैं कि यहां रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं, जो अपराधी हैं लेकिन उसकी यह चाल मौके पर तब नाकाम हो जाती है जब धरने पर तिलक लगाए, घूंघट किए हुए, बिन्दी लगाए सभी समुदायों की महिलाएं और पुरुष प्रदर्शन करते नजर आते हैं। यहां तो उनकी पहचान कपड़ों तक से नहीं हो पा रही है।

साढ़े तीन लाख वोटों की कोई कीमत नहीं

खोरी-लकड़पुर में करीब साढ़े तीन लाख मतदाता रहते हैं। पिछले दो चुनावों (विधानसभा और लोकसभा) से उन्होंने बडखल से भाजपा प्रत्याशी सीमा त्रिखा और फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र से कृष्णपाल गूजर को वोट डाले हैं। खोरी में बाकायदा भाजपा की यूनिट है और तमाम पदाधिकारी जब भीड़ जमा करनी होती है तो यहां से लोगों को ट्रकों और बसों में ले जाते हैं। इतना ही नहीं यहां दिल्ली के भाजपा नेता भी सक्रिय रहते हैं। जिसमें सांसद रमेश विधूड़ी और रामबीर सिंह विधूड़ी प्रमुख हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग यूपी, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, केरल, एमपी, राजस्थान के रहने वाले मजदूर तबके या छोटा-मोटा काम करने वाले लोग हैं।

खोरी में पिछले बीस साल से घर बनाकर रह रहे और कारपेंटर का काम करने वाले सुरेश ने बताया कि वो भाजपा कार्यकर्ता है। उसने बाकायदा यहां पर पार्टी का प्रचार किया, मतदान से एक दिन पहले पर्चियां बांटी और चुनाव वाले दिन मतदान केंद्र पर पार्टी के लिए हाजिर रहा है। इलाके के संघ पदाधिकारी और पन्ना प्रमुख आदि उसे जानते हैं लेकिन अब जब हमारे ऊपर यहां विपदा आई है, किसी का कोई अता-पता नहीं है। हम लोगों ने सीमा त्रिखा और कृष्णपाल गूजर के दफ्तरों में फोन मिलाए, मदद मांगी लेकिन कोई नहीं आया। अभी 20-25 दिन पहले सीमा त्रिखा लकड़पुर में मास्क बांट कर गई हैं लेकिन अब जब हम उजड़ने के कगार पर हैं तो हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है। साढ़े तीन लाख वोट कम नहीं होते हैं। भाजपा को इस नाते भी विचार करना चाहिए था।

मेधा पाटकर से मांगी मदद

खोरी-लकड़पुर के लोग अब बंधुआ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और आर्य समाजी नेता स्वामी अग्निवेश को याद कर रहे हैं। कितने ही लोगों  को यहां स्वामी जी व्यक्तिगत रूप से जानते थे। कोई विपदा आने पर यहां के लोग स्वामी अग्निवेश को बुला लेते थे। स्वामी अग्निवेश ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा स्थापित किया था। उसी से जुड़े कुछ एक्टिविस्ट यहां खोरी को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने अब मेधा पाटकर से मदद मांगी है। मेधा पाटकर आंदोलन की नई रूपरेखा बनाएंगी या मात्र बयान के जरिए इन्हें समर्थन देंगी, अभी यह साफ नहीं है। लेकिन खोरी के लोगों का विस्थापन अब राष्ट्रीय मुद्दा बनने जा रहा है।

मजदूर मोर्चा ने 7 जून को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उसके फैसले पर सवाल उठाए थे। जिसमें कहा गया था कि अरावली जोन में तमाम फॉर्म हाउस, शिक्षण संस्थान, बाबाओं के आश्रम, मंदिर आदि वन विभाग की जमीन पर बने हुए हैं। जिन्होंने खोरी के लोगों के मुकाबले अरबों-खरबों की जमीन कब्जा कर रखी है, सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें हटाने के लिए अलग से क्यों नहीं आदेश पारित किया। यही सवाल बंधुआ मुक्ति मोर्चा का भी है कि अमीर जब यहां बसाए जा सकते हैं तो गरीब क्यों नहीं बसाए जा सकते।

एक महत्वपूर्ण सवाल

फरीदाबाद के अरावली जोन में कहां वन क्षेत्र की जमीन है और कहां पुरानी आबादी का इलाका है, यह स्थिति साफ नहीं है। यानी वन विभाग खुद अपनी जमीनों की पैमाइश नहीं कर सका है। यह बहुत बड़ा चालाकी वाला खेल है। इसकी आड़ में कुछ फॉर्म हाउस बचा लिए जाएंगे और खोरी उजड़ जाएगा। खोरी में जब बसावट नहीं थी तो क्या वन विभाग ने कभी आकर लोगों को बताया कि उनकी जमीन की सीमा कहां से शुरू होती है और कहां जाकर खत्म होती है। पूरे अरावली जोन में यह घालमेल है। समझा जाता है कि जिस माफिया ने यहां पूर्वांचल के गरीब मजदूरों को जमीन बेची, उनमें पुलिस के अलावा वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी जरूर शामिल थे। ऐसा कैसे हो सकता है कि खोरी पिछले 40 साल से भी ज्यादा वर्षों से बसा हुआ है, और वन विभाग ने अपनी जमीन की खबर ही न ली हो। कम से कम 40 साल पहले या 20 साल ही पहले खोरी में इतनी आबादी तो नहीं रही होगी, क्या वन विभाग सोता रहा। एमसीएफ ने यहां कानून टूटते देखे और उसके अफसर पैसा खाकर रिटायर हो गए। खोरी प्रशासनिक नाकामियों का जीता जागता उदाहरण है।

कहीं पेड़ काटे जाएंगे, कहीं लगाए जाएंगे

खोरी के उजड़ते ही यहां बड़े पैमाने पर पेड़ लगा दिए जाएंगे। वन विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक हाल ही में मुख्यमंत्री खट्टर ने जब वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की थी तो उन्होंने कहा था कि वन विभाग की जमीन जहां भी खाली कराई जाए, वहां फौरन पेड़ लगा दिए जाएं। इसकी तैयारी पहले से ही कर ली जाए। मुख्यमंत्री ने यह निर्देश दरअसल खोरी-लकड़पुर को उजाड़े जाने के मद्देनजर ही दिया था और अफसरों को इसे अच्छी तरह समझा भी दिया गया। विडम्बना देखिए कि एक तरफ मध्य प्रदेश के बकशवाहा जंगल के 2 लाख पेड़ों को काटकर हीरा निकाला जाएगा और दूसरी तरफ फरीदाबाद के खोरी गांव से लाखों लोगों को बेघर कर के पेड़ लगाएंगे। ये दोनों फैसले कोरोना से भी ज्यादा घातक होंगे। यह बात सरकार को देर-सवेर समझ में आ जाएगी।

अब तक तीन मौतें

खोरी में अभी अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू नहीं हुआ है लेकिन खोरी ने लोगों की जिन्दगी पर असर डालना शुरू कर दिया है। अपने पीएफ के पैसे से यहां मकान बनाने वाले और अब मकान गिरने की आशंका से बेचैन होकर 72 साल के गणेशी ने यहां खुदकुशी कर ली। गणेशी की मौत बुधवार को हुई। इसी तरह दूसरा हादसा गुरुवार को हुआ, जब सामान ले जाते समय महिला की मौत हो गई। खोरी कॉलोनी में हनुमान मंदिर के पास रहने वाले पति-पत्नी इम्तियाज और आकांक्षा ने दिल्ली के संगम विहार में किराये का एक घर तलाश किया और गुरुवार को वहां शिफ्ट कर रहे थे। संगम विहार में किराये का कमरा तीसरी मंजिल पर है। टंकी उठाते समय आकांक्षा का पैर फिसला और वह नीचे गिर गई, उसकी मौत हो गई। उसे बचाने की कोशिश में इम्तियाज भी गिर गया। उसकी हालत गंभीर है, उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया है। एक अन्य मौत की भी अपुष्ट सूचना है। लेकिन उसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है। 

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।) 

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