कोलकाता। कोलकाता नगर निगम यानि केएमसी का चुनाव अब भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गया है। आलम यह है कि अब उगलना भी मुश्किल है और निगलना भी। फिलहाल तो भाजपा को राहत की सांस मिली है क्योंकि अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 4 जनवरी को होगी।
केएमसी की मियाद समाप्त होने के बाद राज्य सरकार ने एक विज्ञप्ति जारी करके तत्कालीन मेयर फिर हाद हकीम को चेयर इन पर्सन और मेयर इन काउंसिल को बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया था। भाजपा नेता शरद कुमार सिंह की तरफ से इसके खिलाफ हाई कोर्ट में रिट दायर की गई। हाईकोर्ट के सिंगल और डिवीजन बेंच ने कोविड महामारी का हवाला देते हुए इस नियुक्ति को वैध तो करार दिया लेकिन कहा कि जितनी जल्दी हो चुनाव करा ले। यहां गौरतलब है कि केएमसी एक्ट के मुताबिक केएमसी में प्रशासक नियुक्त नहीं किया जा सकता है। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। इसके साथ ही भाजपा की राज्य इकाई के सचिव प्रताप बनर्जी और एक अन्य नेता एडवोकेट बृजेश झा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव कराए जाने को लेकर रिट दायर कर दी।
एसएलपी में प्रशासक नियुक्ति की वैधानिकता को लेकर सवाल था तो बाकी दोनों रिट में चुनाव कराए जाने को लेकर सवाल था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच में मामला उठा तो बेंच ने राज्य सरकार से कहा कि वह कब चुनाव करा सकती है इसकी जानकारी 17 दिसंबर को होने वाली सुनवाई में दे। राज्य चुनाव आयोग की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में कह दिया गया कि वह 15 जनवरी के बाद 4 से 6 सप्ताह के अंदर चुनाव कराने को तैयार है। यहीं आकर भाजपा नेताओं की गर्दन फंस गई। एक पेटिशनर के एडवोकेट के नहीं होने का हवाला देते हुए एडजर्नमेंट की अपील की गई। जस्टिस कौल की बेंच ने सुनवाई के लिए 4 जनवरी की तारीख तय कर दी।
दरअसल भाजपा नेता केएमसी के चुनाव में हिस्सा लेने से कतरा रहे हैं क्योंकि 2019 के लोकसभा के चुनाव की आंधी में भी तृणमूल को 93 और भाजपा को कुल 47 वार्डों में ही बढ़त मिली थी। अब दो पेटिशनर ने चुनाव कराने की मांग की है, राज्य चुनाव आयोग चुनाव कराने को तैयार है और केएमसी एक्ट प्रशासक नियुक्त किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में यही कयास लगाया जा सकता है कि जस्टिस कौल की बेंच चुनाव कराए जाने का आदेश दे सकती है। अगर ऐसा होता है तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
भाजपा के नेता व्यक्तिगत तौर पर यह मानते हैं कि केएमसी का चुनाव जीतना बेहद मुश्किल है। अगर यह आशंका सही साबित होती है तो विधानसभा चुनावों से पहले उत्साह का पारा गिर जाएगा जबकि भाजपा के नेता इसे हर हाल में बनाए रखना चाहते हैं। पर मुश्किल यह है कि सुप्रीम कोर्ट से एडजर्नमेंट कितनी बार ले सकते हैं जबकि राज्य चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट का आदेश पालन करने को तैयार बैठा है। दरअसल भाजपा नेताओं की कोशिशें हैं कि विधानसभा चुनाव के साथ ही केएमसी का भी चुनाव हो और इस तरह उनकी राह आसान हो जाएगी। पर मुश्किल तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट से अपने मनमाफिक फैसला लिखवाने का बूता किसके पास है।
(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)