इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट को बैन करने का रास्ता तैयार हो गया है। सिर्फ राष्ट्रपति की मंजूरी मिलनी बाकी है। इसके बाद एक अध्यादेश के तहत ई-सिगरेट के उत्पादन, बिक्री, भंडारण और आयात-निर्यात पर रोक लग जाएगा। सजा का प्रावधान भी साल भर से लेकर तीन साल तक जुर्माना सहित किया गया है।
इलेक्ट्रॉनिक के इस युग में इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट से लेकर ई-मार्केट बहुत तेजी से पैर पसार रहा है जिससे बड़ी-बड़ी कंपनियों के उत्पाद छोटी-छोटी जगहों पर बड़े आराम से पहुंचने लगे हैं। ऐसे ही सिगरेट की लत छुड़ाने के नाम पर ई-सिगरेट का बाजार बना। इसके तर्क में शामिल है कि यह सिगरेट बिना किसी दहन और धुआं के कस्स देता है जिससे इसका सेवन खतरनाक नहीं है। जबकि बता दें कि वह कस्स भी निकोटिन का होता है और ई-सिगरेट पीने पर भी निकोटिन फेफड़े में ही जाता है। बस यह बाजारू माया का खेल चल रहा है।
गौर करें तो पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत निकोटिन को खतरनाक और जानलेवा घोषित किया गया है। मनुष्य को सिर्फ चुइंगगम और लॉरेंज के रूप में दो मिलग्राम तक सेवन करने की छूट है। स्वास्थ्य जानकारों का कहना है कि ई-सिगरेट मामले में इसका पूरा उल्लंघन है।
अब यह बात खुलकर सामने आ गई है। करीब दो साल में ई-सिगरेट का मुद्दा संसद में कई बार उठाया गया। वहीं संघीय स्तर पर भी ई-सिगरेट की पाबंदी पर सहमति दिख रही है। पहले ही 16 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में ई-सिगरेट पर बैन है। संघीय सरकारें (केंद्र और राज्य) अब इसे सिगरेट के एक अन्य बदले हुए रूप में मानने लगी हैं, जो ई-सिगरेट को बाजार में बेचने का नायाब तरीका भर करार दिया जा रहा है।
एक फंडा यह समझ में आता है कि करीब एक दशक में सिगरेट से कैंसर वाला प्रचार बढ़ने से कुछ कंपनियां बेहद परेशान थीं। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक जमाने को भुनाने का स्वांग रचकर ई-सिगरेट को बाजार में उतारने का इंतजाम किया गया। इसके लिए प्रचार का दौर शुरू हुआ। और विज्ञापन का टारगेट बनाया गया ई-सिगरेट से सिगरेट का लत छुड़ाना। खैर, सिगरेट कंपनियों की असलियत सामने आ गई है और अब उन पर कानूनी नकेल लग जाएगी।
अगर हाल के वर्षों में देखें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन और देशी-विदेशी कई रपटों में सिगरेट के हर रूप पर सवाल खड़ा किया गया है। इसके परिणामस्वरूप सिगरेट से पर्यावरण और लोगों को होने वाले नुकसान से बचने के लिए विभिन्न देशों में सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीने पर पाबंदी है। वहीं भारत में कानून होने के बावजूद भी बड़े आराम से सड़क, दुकान और चौक पर सिगरेट फुंकते लोग मिल जाते हैं। जिनको किसी रोकटोक या पाबंदी का डर नहीं होता। जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में मिले निजता के अधिकार का सरेआम उल्लंघन है। फिर, कहां है जीवन का अधिकार, जो हरेक को है। किसी के स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक जीवन में धुंआ घोलने पर कड़ी पाबंदी और सजा मिलनी ही चाहिए। देर सबेर यहां भी लोग और सरकारें गंभीर होंगी। ऐसे में केंद्र सरकार का ई-सिगरेट पर पाबंदी की कवायद शुरू करना स्वागतयोग्य कदम है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तीन उपसमितियों ने भी ई-सिगरेट की पाबंदी को लेकर सुझाव दिया था, लेकिन तब बात कानूनों के बीच आकर अटक गई थी। इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने मथापच्ची की, पर उस समय सबसे बड़ा सवाल था कि ई-सिगरेट को किस कानून के तहत बंद किया जाए। सरकार के सामने सिगरेट या अन्य मादक पदार्थ पर पाबंदी के तीन कानून है। वहीं महत्तवपूर्ण बात यह है कि अलग-अलग राज्यों में ई-सिगरेट पर पाबंदी अलग-अलग कानून से है। सरकार के सामने पाबंदी के लिए सिगरेट और अन्य उत्पाद अधिनियम (कोटपा), ड्रग्स और कॉस्मेटिक कानून 1940 और विषाक्त आहार अधिनियम (1919) कानून है। हालांकि विषाक्त आहार अधिनियम के तहत पाबंद करने का अधिकार गृह मंत्रालय के पास है। और, कोटपा कानून को सरकार ज्यादा सक्षम मान रही थी। पर अब सरकार ने अध्यादेश का रास्ता अपनाया है और जल्द ही ई-सिगरेट पर पाबंदी लग जाएगी।
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