Friday, March 29, 2024

सीपी-संस्मरण: महेंद्र सिंह-आप नहीं रहे इसका गम है; पर जारी रहेगी आपकी लड़ाई

वयोवृद्ध कामरेड और मजदूर आंदोलन की बड़ी जमीन मुंबई में श्रमिकों के कई दशक अगुआ साथी रहे कामरेड महेंद्र सिंह भी कोरोना कोविड 19 महामारी के शिकार हो गए। वे 77 बरस के थे। वे इस महामारी से भी लड़े और जीते भी। लेकिन, उफ ये लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई में कमी की वजह से हर्ट स्ट्रोक ने रविवार, 4 जुलाई 2021 को उनकी जान ले ली। वह भारत की कम्युनिस्ट पार्टी -मार्क्सवादी यानि सीपीएम  की सेंट्रल कमेटी के मेम्बर थे। 

कामरेड महेंद्र सिंह , इंजीनियर थे। लेकिन थे तो कामरेड ही । सो उन्होंने अपनी फैक्ट्री के कामगारों को संगठित कर ट्रेड यूनियन बना ली। इस कारण उनकी नौकरी चली गई। वह 1971 में सीपीएम के मेम्बर हो गए। फिर उन्होंने जो किया वह भारत में मजदूर आंदोलन की सरजमी मुंबई में इस आंदोलन के शिखर नेता रहे कामरेड बीटी रणदिवे के मार्ग निर्देशन का अब तक अलिखित इतिहास है। कामरेड महेंद्र सिंह ने कामरेड  बीटी रणदिवे द्वारा स्थापित सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के काम मुंबई महानगरी में आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी संभाल ली। 

कामरेड महेंद्र सिंह को मारने के लिए अरिस्टोक्रैट कंपनी के मालिकों की दी गई ‘ सुपाड़ी ‘ लेकर गुंडों ने 1985 में उन पर हिंसक हमले लिए पर वह बच गए। वह तब इस कंपनी के मजदूरों के सीटू से सम्बद्ध यूनियन के संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे।  

वह 1987 में सीपीएम की महाराष्ट्र राज्य कमेटी,1991 में राज्य सेक्रेटरियट और 2015 में इस पार्टी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य चुने गए। वह मरते दम तक इन जिम्मदारियों को संभालते रहे। वह 1994 से 2015 तक सीपीएम की मुंबई जिला कमेटी के सेक्रेटरी रहे। 

इसी दौरान तब उनसे परिचय हुआ जब त्रिभाषी न्यूज एजेसी यूनाइटेद न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) में अपने सेवा काल में उसके प्रबंधन के किये जबरिया ट्रांसफर की चुनौती पर चंडीगढ़ से मुम्बई पहुंचे। तब सीपीएम के महाराष्ट्र स्टेट सेक्रेटरी प्रभाकर संझगिरी (अब दिवंगत) थे। वह गोदरेज कम्पनी के आजू-बाजू विक्रोली वेस्ट में उसी एक बिल्डिंग में रहते थे जहाँ हमें ठौर ठिकाना नसीब हुआ। हमारे बच्चे छोटे थे। यूएनआई प्रबंधकों ने तो हमारे परिवार को परेशान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन मेरी पत्नी के बैंक के प्रबंधकों ने मेरे लखनऊ पोस्टिंग में करीबी हो गये भारतीय जनता पाटी के नेता और अभी राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्र के आग्रह पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई के इशारे और हरियाणा के कुछ समय बाद मुख्यमंत्री बने भुपिंदर सिंह हुड्डा  के उस बैंक के प्रबंधन को व्यक्तिगत हैसियत में किये फोन पर सदाशयता से मेरी पत्नी का भी ट्रांसफर चंडीगढ़ से मुम्बई कर दिया। बैंक प्रबंधन के मानव संसाधन विभाग के प्रमुख जाट थे। उस बैंक के चेयरमैन ने मुझे बाद में कहा कि उन्होंने मेरी पत्नी का ट्रांसफर प्रधानमंत्री के इशारा से ज्यादा हुड्डा जी के मानवीय आधार पर किये व्यक्तिगत आग्रह पर ये सोच कर भी किया कि आप मुम्बई पोस्टिंग में बैंकिंग मामलों की रिपोर्टिंग में हमारे काम ही आयेंगे। सत्य ये है कि हमने मुम्बई में करीब 20 बरस की अपनी पोस्टिंग में अपनी पत्नी के बैंक की कभी फरमाइशी रिपोर्टिंग नही की। 

बहरहाल, मेरी पत्नी ने हाउसमेड की तलाश में जब कामरेड संझगिरी से भेंट कीं तो उन्होंने और उनकी पत्नी  ने अपनी मराठी हाउस मेड, विमल को हमारे घर और बच्चों की देखभाल करने की हिदायत दे दी। हमारे बच्चे उन्हें विमल ताई कहने लगे, जो खुद कामरेड हैं और अभी भी हम सबकी खोज खबर लेती रहती हैं। वह हमारे बच्चों स्कूल से दोपहर बाद घर लौटने पर मेरी पत्नी के लौटने तक उनकी देखभाल करती रहीं। उन्होंने ही मुझे एक दिन कामरेड महेंद्र सिंह से घर के रास्ते में मिलवाया था,जो अस्वस्थ कामरेड संझगिरी की मिजाजपुर्सी के लिये आये दिन हमारी बिल्डिंग सोसायटी में आया करते थे। 

करीब 5 हजार करोड़ रुपये की परिसंपत्ति के यूएनआई को कॉर्पोरेट पोचर और जी टीवी के मालिक सुभाष चंद्रा की मॉरीशस रूट से हासिल ‘ बैड मनी ‘ के दम पर उनके पुत्र से अपनी पुत्री का रिश्ता तय करने की फिराक में लगभग दहेज में 32 करोड़ रुपये में गैर कानूनी तौर पर बेच देने के खिलाफ हम बांद्रा कलेक्ट्रेट बिल्डिंग में यूएनआई के मुंबई ब्यूरो को आवंटित तीसरे फ्लोर में आवंटित ऑफिस में अपने यूनियन रूम में ‘ आमरण अनशन ‘ पर बैठ गए। इस पर कामरेड महेंद्र सिंह ने ही युक्ति बुद्धि से मदद की। इसकी सूचना देने  पर उन्होंने पहली हिदायत तो ये दी कि इसे विधिक कारणों से आमरण अनशन ना कह इंडेफनिट फास्ट कहें। उन्होंने अगला काम ये किया कि एक लेडी डाक्टर को हमारे पास भिजवाने का प्रबंध कर दिया। वो डाक्टर हर दिन चेक अप कर इस आशय का मेडिकल बुलेटिन हमारे सिरहाने चिपकवा दिया करती थी कि इस इंडेफनिट फास्ट से मेरी जान को कोई खतरा नही है। उसी बिल्डिंग में मुंबई लेबर और इंडस्ट्रियल कोर्ट भी था जहां यूएनआई कर्मचारियों की मुंबई यूनियन के महासचिव होने के नाते मैंने अपनी और अपनी यूनियन की तरफ से केस फ़ाइल कर दिया था। उन मेडिकल बुलेटिन के कारण पुलिस मुझे वहाँ से उठा कर तब तक नही ले सकी जब तक मैंने खुद उसे सीपीएम महासचिव कामरेड प्रकाश करात की नई दिल्ली से जारी सार्वजनिक अपील पर स्थगित नहीं कर दी। 

उसके पहले यूएनआई प्रबंधन के कहने पर पुलिस मुझे यूनियन रूम से उठा कर ले गई थी। पर महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रांतीय नेता  आरआर पाटील (अब दिवंगत) के निर्देश पर पुलिस ने मुझे यूएनआई ऑफिस वापस पहुंचा दिया था। 

आरआर पाटील ने यह निर्देश एनसीपी के महाराष्ट्र प्रदेश प्रभारी महासचिव एवं राज्य सभा सदस्य डीपी त्रिपाठी के फोन पर किये आग्रह पर किया था, जो नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)में मेरे अग्रज और कामरेड प्रकाश करात के समकालीन छात्र थे। 

बाद में डीपीटी खुद पुलिस ज्यादती के सिलसिले में महाराष्ट्र के गृहमंत्री का लिखित माफ़ीनामा लेकर यूएनआई के बांद्रा (मुंबई) ऑफिस के बाहर गलियारा में मेरे इंडेफनिट फास्ट की जगह आए। वहाँ आने वालों में सीपीएम नेता और जेएनयू के पूर्व छात्र सुनीत चोपड़ा, इंडियन पीपुल्स थिएटर असोसिएशन ( इप्टा ) लखनऊ के राकेश, सीपीआई राष्ट्रीय सचिव अतुल अनजान शामिल थे। कहा जाता है फिल्मकार महेश भट्ट और पत्रकार वागीश सारस्वत के साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नेता राज ठाकरे भी यूएनआई आंदोलन के समर्थन में बांद्रा कलेक्ट्रेट परिसर का चक्कर लगाने आए थे। यूएनआई प्रबंधन ने अपना मुंबई ऑफिस लॉक कर दिया। इसके प्रतिरोध में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) सांसद और प्रखर मजदूर नेता गुरुदास दासगुप्ता (अब दिवंगत) ने साथी पत्रकार अनिल चमड़िया द्वारा प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर की अगुवाई में बनाई सिटीजंस फॉर यूएनआई और यूएनआई वर्कर्स यूनियन ,दिल्ली के तत्कालीन महासचिव राजेश वर्मा के आह्वान पर जुटे सैकड़ों पत्रकारों के साथ मिल कर यूएनआई के नई दिल्ली के 9 रफी मार्ग स्थित मुख्यालय को घेर लिया था। 

यूएनआई का प्रबंधन डर चुका था। लेकिन यूएनआई की गैर-कानूनी खरीद फरोक्त को रोकने और उसके सैंकड़ों पत्रकार और गैर-पत्रकार साथियों की नौकरी पर आए संकट को दूर करने का हमारा मकसद पूरा नहीं हुआ था। मैंने कामरेड महेंद्र सिंह को मोबाइल फोन से मेसेज भेज सलाह मांगी अब क्या करना चाहिए। उन्होंने तुरंत फोन कर कहा केंद्र में अभी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की जो मनमोहन सिंह सरकार है वह कम्युनिस्टों के समर्थन पर ही टिकी है। संयोग से कामरेड करात सीपीएम के एक कार्यक्रम में भाग लेने आज ही दिल्ली से मुंबई पहुँचने वाले हैं। तुम कोर्ट का आदेश मिलने तक अपना इंडेफनिट फास्ट जारी रखो। मैं कामरेड करात को मुंबई हवाई अड्डे पर रिसीव कर उन्हें साथ लेकर सीधा तुम्हारे पास पहुँच जाऊंगा। 

कामरेड महेंद्र सिंह ने जो कहा उन्होंने और मैंने भी वही किया। बाकी की कहानी फिर कभी। फिलहाल इतना ही कि कामरेड महेंद्र सिंह न होते तो मैं यूएनआई को बचाने की ट्रेड यूनियन की जिद्दी लड़ाई में शायद ही जिंदा बचता। हम दिल्ली हाई कोर्ट और कंपनी ला बोर्ड समेत मुंबई से मध्य प्रदेश तक 8 कोर्ट के सभी 18 मामलों में जीते। हम कामगारों की मेहनत पर करीब 60 बरस से पली-फूली यूएनआई आज भी जिंदा है तो ये कामरेड महेंद्र सिंह जैसों की सूझ-बूझ का ही फल है। कामरेड महेंद्र सिंह को लाल सलाम । 

(चंद्रप्रकाश झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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