मणिपुर की बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी

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नई दिल्ली। मणिपुर में पहाड़ी और घाटी के बाशिंदों के बीच हुई हिंसा का तात्कालिक कारण तो हाईकोर्ट का एक फैसला है। लेकिन इसके दूसरे कारणों की भी छानबीन की जा रही है। कोरोना के बाद सर्विस सेक्टर में आई मंदी ने कई लोगों का रोजगार छीन लिया। मणिपुर जैसे पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।

2021-22 के लिए ‘वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (पीएलएफएस) के नवीनतम राष्ट्रव्यापी रोजगार सर्वेक्षण के डेटा के मुताबिक मणिपुर में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लोग सबसे अधिक (9 प्रतिशत) बेरोजगार है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 4.1 प्रतिशत है। आकड़ों से साफ है कि मणिपुर में बेरोजगारी का दर राष्ट्रीय दर के अनुपात में दोगुना है। मणिपुर में बेरोजगारी दर पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तुलना में भी अधिक है।

सर्वे के मुताबिक यदि राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों जहां कुकी और नागा आदिवासी आबादी केंद्रित है वहां पर बेरोजगारी दर 9.5 है। मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर की कमी है। ‘पीएलएफएस’ के 2021-22 के सर्वे में मणिपुर के शहरी यानि जहां पर मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं वहां पर बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के स्वरोजगार की दर को देखें तो अखिल भारतीय स्तर पर यह दर 59 प्रतिशत है जबकि मणिपुर के ग्रामीण क्षेत्र (पहाड़ी क्षेत्र) में 65 प्रतिशत पुरुष स्वरोजगार करते पाए गए।

व्यापार, होटल और रेस्तरां, परिवहन, संचार और रियल एस्टेट से संबंधित क्षेत्र जो मणिपुर राज्य के जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) में सबसे अधिक योगदान देता है, लेकिन ये सेक्टर भी युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने में विफल रहे।

मणिपुर में सार्वजनिक प्रशासन ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा जो वित्त वर्ष 2020 में 11.8 प्रतिशत, 2021 में 32 प्रतिशत और 2022 में दोहरे अंक में रोजगार का सृजन किया।

लोक प्रशासन यानि सरकारी नौकर शासन-प्रशासन के प्रतिनिधि भी होते हैं। मणिपुर कोटा की मांग भी राजस्थान और महाराष्ट्र के आरक्षण आंदोलन की तरह लगता है। आज युवा ज्यादा से ज्यादा सर्विस सेक्टर में जाना चाहता है। मणिपुर के युवा भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, बेंगलुरु और मुंबई के सेवा क्षेत्र में रोजगार के अवसरों के लिए पलायन करते हैं।

यह राज्य की विशिष्ट समस्या को देखते हुए और भी अधिक प्रासंगिक है कि एक मरणासन्न माध्यमिक क्षेत्र जो अपने प्राथमिक कृषि आधार के साथ तालमेल रखने में विफल रहा है, जिसमें लगभग 3,268 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र बांस के जंगलों से आच्छादित है जो मणिपुर को भारत का सबसे बड़े बांस उत्पादक राज्यों में से एक बनाता है।

जबकि मणिपुर के प्राथमिक क्षेत्र-कृषि गतिविधियों, मछली पकड़ने, खनन आदि ने वित्त वर्ष 2020 में 4 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर दर्ज की (मूल मूल्य पर सकल राज्य मूल्य), वित्त वर्ष 2021 में 9 प्रतिशत से अधिक और वित्त वर्ष 2022 में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। राज्य के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय के अनुसार राज्य के द्वितीयक क्षेत्र-विनिर्माण और संबद्ध गतिविधियों ने वित्त वर्ष 2020 में 4.1 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया, वित्त वर्ष 2021 में 3.4 प्रतिशत की गिरावट और वित्त वर्ष 2022 में 8.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है।

यह मणिपुर के पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या में हस्तशिल्प इकाइयों और शिल्पकारों (कुशल और अर्ध-कुशल) होने के बावजूद है। हथकरघा मणिपुर का सबसे बड़ा कुटीर उद्योग है और राज्य देश में करघों की संख्या के मामले में शीर्ष पांच स्थानों में आता है।

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, जिनके पास वित्त विभाग भी है, ने इस साल फरवरी में राज्य का बजट पेश करते हुए कहा था “हमारे पिछले कार्यकाल में, हमने वित्तीय वर्ष 2019-20 के अंत में शुरू हुई महामारी का पूरा खामियाजा भुगता। महामारी ने लोगों के जीवन और आजीविका को बाधित कर दिया और लगातार दो वर्षों तक राज्य के सार्वजनिक वित्त के लिए एक बड़ी चुनौती भी पेश की। हमें राज्य के वित्त के प्रबंधन के साथ-साथ महामारी की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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