अडानी पर अमेरिका द्वारा लगाए गए आरोपों के मायने

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अमेरिका में अडानी ग्रुप पर धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अमरीकी अभियोजकों ने गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी तथा अन्य छः पर सरकारी ऊर्जा का ठेका हासिल करने के लिए 265 मिलियन डॉलर की रिश्वतखोरी ऑफर करने का आरोप लगाया है।

यह रिश्वत सौर ऊर्जा बेचने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए दी जाने वाली थी। इससे अगले 20 वर्षों में अडानी ग्रुप की कंपनी को दो बिलियन डॉलर यानी भारतीय रुपयों में करीब 16881 करोड़ रुपए का मुनाफा होने का अनुमान है। 

दरअसल भारत सरकार ने अडानी ग्रुप की कंपनी ‘अडानी ग्रीन एनर्जी’ और मॉरीशस की ‘एज्यूर पावर ग्लोबल लिमिटेड’ को 2019 और 2020 में कुल 12 गीगावॉट की सोलर एनर्जी उत्पादन करने की इजाजत दी थी। रिश्वत देने की यह पेशकश इसलिए की गई थी ताकि उत्पादित सोलर एनर्जी को राज्य सरकारें महंगी दरों पर खरीदें।

आरोप है कि आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ के उच्च अधिकारियों को इन दोनों कंपनियों द्वारा 2200 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की गई थी। इसी वजह से 2021 और 2022 में इन कंपनियों को राज्य सरकारों की ओर से सोलर एनर्जी के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स मिले थे। 

मामला था कि इन कंपनियों में से एक कंपनी एज्यूर पावर अमरीका के स्टॉक मार्केट में लिस्टेड थी और उसमें अमरीकी निवेशकों का पैसा लगा था। अमरीका में फॉरेन करप्ट प्रैक्टिसेज एक्ट नाम का एक कानून है जिसमें प्रावधान है कि ये कंपनियां दूसरे देशों के सरकारी अधिकारियों को रिश्वत नहीं दे सकतीं। 

अमरीका में जब इस कंपनी पर रिश्वतखोरी के आरोप लगे तो इसकी जांच हुई और तब अमरीकी अभियोजकों ने बताया कि इस रिश्वतखोरी में अडानी ग्रुप की कंपनी भी शामिल है। इसके बाद अमेरिकी ‘प्रतिभूति और विनिमय आयोग’ ने अडानी ग्रुप के आठ लोगों पर दीवानी मुकदमा दायर किया।

अब गौतम अडानी तथा उनके भतीजे सागर अडानी के खिलाफ अमरीका में गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं। 

इस जांच में यह तथ्य भी सामने आया है कि एज्यूर पावर अपनी परियोजनाएं एक प्रक्रिया के तहत अडानी ग्रीन एनर्जी वालों को ट्रांसफर कर देगी। दरअसल जब यह ट्रांसफर की अर्जी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन अमरीकी ‘प्रतिभूति और विनिमय आयोग’ के पास पहुंची तो उन्हें शक हुआ और तभी यह जांच शुरू हुई।

अडानी ग्रुप के खिलाफ अमरीकी कोर्ट के अभियोजकों द्वारा लगाए गए आरोपों और उनकी गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद इस ग्रुप के समूचे कारोबार पर घातक असर हुआ है। बिंदुवार देखें तो- 

  1. केन्या ने इस ग्रुप के साथ दो अहम् सौदे रद्द कर दिए। इनमें से एक पावर ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण से संबंधित 700 मिलियन डॉलर का था और दूसरा एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए था जिसकी कीमत 1.8 बिलियन डॉलर थी। इन सौदों के तहत अडानी ग्रुप को केन्या के नैरोबी में एयरपोर्ट के संचालन का काम 30 साल के लिए मिलना था। 
  2. अमरीकी अभियोजकों द्वारा लगाया गए आरोपों के बाद अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयर 20 प्रतिशत तक गिर गए। एक ही दिन में अडानी की संपत्ति 12 बिलियन डॉलर से ज्यादा कम हो गई। उनकी कंपनियों का मार्केट कैप भी दो लाख करोड़ रुपयों से ज्यादा गिर गया। अडानी, फोर्ब्स की रियल टाइम बिलियनर्स लिस्ट में 22वें स्थान से खिसक कर 25वें स्थान पर आ गए। 
  3. मूडी और फिश जैसी रेटिंग एजेंसियों ने अडानी ग्रुप की रेटिंग कम कर दी है। 
  4. ग्रुप ने खुद भी 600 मिलियन डॉलर के बॉन्ड जारी करने की अपनी योजना रद्द कर दी है। 
  5. फ्रांसीसी ऊर्जा दिग्गज कंपनी टोटल एनर्जी ने अमरीकी ‘प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग’ द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों का हवाला देते हुए अडानी ग्रुप के ग्रीन एनर्जी में अपने आगामी निवेशों पर रोक लगा दी है। ग्रीन एनर्जी में इस टोटल एनर्जी की 19.75 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। साथ ही अडानी ग्रुप के साथ तीन संयुक्त परियोजनाओं में भी इसकी 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। सितंबर 2024 तक इन निवेश प्रतिबद्धताओं की कुल राशि 3.2 बिलियन डॉलर थी। 
  6. इसी बीच पड़ोसी देश बांग्लादेश भी सात बिजली आपूर्ति समझौतों की समीक्षा करने की योजना बना रहा है। इनमें 1600 मेगावाट बिजली के लिए अडानी पावर के साथ पहले से हुआ एक अनुबंध भी शामिल है। 
  7. दूसरी तरफ, श्रीलंका में भी इस ग्रुप के साथ हुए पहले के अनुबंधों और प्रतिबद्धताओं का पुनर्मूल्यांकन करने की बात चल रही है। ब्लूमबर्ग का कहना है कि यहां बंदरगाह के संचालन से जुड़ा 500 मिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट पहले अडानी के हाथों में जा रहा था।
  8. अब अमरीकी संस्थान ने उसकी पुनर्समीक्षा की बात की है। दरअसल इस ग्रुप की बंदरगाह परियोजना को अमरीकी विकास वित्त निगम (यूएसआईडीएफसी) से 553 मिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता मिलनी थी। अब निगम ने उसे देने से मना कर दिया है। उसका कहना है कि वह आगे भी जांच करेगा। 

वैसे अडानी ग्रुप ने हाल ही में अपनी सफाई दी है और उसपर उठाए गए सवालों एवं संदेहों को दूर करने के प्रयास किए हैं। पर अभी भी जो संकट के बादल उस पर छाए हैं, वे छंटने का नाम नहीं ले रहे। 

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जारी करने के जरिए अडानी को कटघरे में खड़ा करके उसकी अंतर्राष्ट्रीय साख को नीचे गिराने की अमेरिकी कोशिशें और उनके नतीजे हमने हाल ही में देखे हैं।

और अब इस तरह के आरोप लगाने और मीडिया द्वारा पूरी दुनिया में इसे प्रचारित करने के पीछे अंतर्राष्ट्रीय जगत में अडानी की बाकी बची साख को भी धराशाई करने की इन अमरीकी कोशिशों से हमें क्या संकेत मिलते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि अमरीकी हुक्मरान अडानी के खिलाफ ऐसे अभियानों के जरिए अडानी ग्रुप और उनकी संरक्षक मोदी सरकार को एक चेतावनी देना चाहते हों।

इस चेतावनी के क्रम में ही हम देखते हैं कि अभी कुछ ही दिनों पहले ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को अपनी अलग विश्व मुद्रा जारी करने के खिलाफ चेतावनी दी थी। उन्होंने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, ‘ब्रिक्स देश डॉलर से दूर जाने की कोशिश करते रहें और हम खड़े होकर देखते रहें, यह दौर खत्म हो चुका है।’

ट्रंप ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘हमें इन देशों से यह प्रतिबद्धता चाहिए कि वे न तो नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे, न ही शक्तिशाली अमेरिकी डॉलर की जगह किसी अन्य मुद्रा का समर्थन करेंगे, अन्यथा उन्हें 100 प्रतिशत  टैरिफ का सामना करना पड़ेगा और उन्हें अद्भुत अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपनी बिक्री को अलविदा कहना पड़ेगा।’

ट्रंप ने आगे कहा कि वे कोई और मूर्ख ढूंढ ले सकते हैं, पर इस बात की कोई संभावना नहीं है कि ब्रिक्स अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर की जगह ले लेगा। जो भी देश ऐसा करने की कोशिश करेगा, उसे अमेरिका को अलविदा कह देना चाहिए।

गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका में 2023 के शिखर सम्मेलन में, ब्रिक्स देशों ने एक नई आम विश्व मुद्रा के परिचालन की संभावना का अध्ययन करने के लिए प्रतिबद्धता जताई थी।

हालांकि ब्रिक्स ने इस मामले में कोई निर्णय लिया भी नहीं था। इस मामले में हुआ मात्र इतना ही था कि ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा द्वारा इसके बारे में एक प्रस्ताव रखा गया था।

इन धमकियों पर हाल ही में आई भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया ने इन रीढ़विहीन हुक्मरानों की असलियत को सामने ला दिया है। ब्रिक्स के बाकी देशों ने इस सवाल पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी और अपने पूर्व की पोजीशन पर कायम रहे।

पर भारत ने ब्रिक्स के आम पोजीशन से तुरंत खुद को अलग करते हुए कहा है कि वह डी-डॉलराइजेशन के खिलाफ है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ‘कॉर्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’ में अपनी उपस्थिति के दौरान कहा, ‘मुझे लगता है कि आप हमारे बारे में किसी भ्रम के शिकार हुए हैं, क्योंकि हमने कभी भी डॉलर को सक्रिय रूप से टार्गेट नहीं किया है।

यह हमारी आर्थिक नीति, हमारी राजनीतिक या रणनीतिक नीति का हिस्सा नहीं है। कुछ अन्य लोगों ने हो सकता है, भले ऐसा किया हो।’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं आपको जो बताऊंगा, वह एक स्वाभाविक चिंता है। हमारे पास अक्सर ऐसे व्यापारिक साझेदार होते हैं, जिनके पास लेने के लिए डॉलर नहीं होते। ऐसी स्थिति में हमें यह देखना पड़ता है कि क्या हम उनके साथ लेन-देन छोड़ दें या हम उनसे कोई ऐसा समझौता करें जिससे कि डॉलर के बिना किसी अन्य मुद्रा से भी उनसे व्यापार जारी रखा जा सके।’ उन्होंने साफ कहा ‘व्यापार में डॉलर के संबंध में हमारा कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं है।’

इतना ही नहीं, इसी 6 दिसंबर को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शशिकांत दास ने कहा, “जहां तक ​​भारत का सवाल है, डी-डॉलराइजेशन आदि के संबंध में, हमने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जो विशेष रूप से डी-डॉलराइजेशन चाहता हो।”

पर हमने अपने पहले के अनुभवों में देखा है कि भारत के हुक्मरानों को हमेशा यह डर बना रहता है कि कहीं उनका यह रीढ़विहीन चेहरा उजागर न हो जाए।

इसलिए जब भी ऐसे मौके आते हैं ये खुद को बाहुबली दिखाने के हर संभव उपाय करते हैं और इस तरह एक अंधराष्ट्रवाद की हवा बहाने की पूरी कोशिश करते हैं।

इस बार भी जैसे ही अडानी पर अमेरिकी आरोपों का सिलसिला शुरू हुआ, इन्हें लगा कि देश की जनता के सामने खुद को बाहुबली दिखाना जरूरी है। रातों-रात फ्रेंच मीडिया के हवाले से भाजपा और उसके सिपहसलारों ने शोर मचाना शुरू किया कि अडानी पर ये सारे हमले दरअसल उसके बहाने भारत की मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए करवाए जा रहे हैं।

इसके पीछे एक ग्लोबल थिंक टैंक OCCRP (Organised Crime & Corruption Reporting Project) का हाथ है जिसकी अधिकांश फंडिंग मशहूर अमेरिकी निवेशक जॉर्ज सोरोस और अमरीकी विदेश मंत्रालय करता है। ये लोग कांग्रेस को पैसा और ऐसी सूचनाएं देते हैं, जिनका इस्तेमाल कर वह अडानी के खिलाफ अभियान चला रही है; जिसका असली मकसद भारत की मोदी सरकार को अस्थिर करना है।

इस तरह संसद में एक हंगामे का माहौल बनाकर भाजपा वाले खुद को अमेरिका के सच्चे विरोधी साबित करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। अमेरिकी भी जानते हैं कि यह सारी कवायद केवल भारत की अवाम के सामने खुद को अमेरिकी विरोधी सूरमा दिखलाने की है।

और सचमुच वास्तविकता क्या है, यह आप भारत सरकार के विदेश मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर के आधिकारिक बयानों से समझ सकते हैं।            

इनके ऐसे रूख से एक सवाल स्वाभाविक रूप से सामने आ खड़ा होता है। वह यह कि क्या दोमुंहे, बिग ब्रदर के सामने झुक कर सलामी बजाने वाले ऐसे हुक्मरानों के रहते सही मायनों में देश के आत्मनिर्भर और स्वतंत्र विकास की बात सोची जा सकती है?  

(बच्चा प्रसाद सिंह लेखक और एक्टिविस्ट हैं। और आजकल बनारस में रहते हैं।)

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