Saturday, April 20, 2024

मीडिया को जजों की मौखिक टिप्पणियों को रिपोर्ट करने से रोका नहीं जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मीडिया को किसी मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों द्वारा की गई मौखिक टिप्पणियों को रिपोर्ट करने से नहीं रोका जा सकता है। इससे जवाबदेही बढ़ती है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने माना कि न्यायालय में चर्चा जनता के हित की है, और लोग यह जानने के हकदार हैं कि बेंच और बार के बीच संवाद के माध्यम से कैसे न्यायिक प्रक्रिया सामने आ रही है। पीठ ने यह भी कहा कि अदालती चर्चाओं की रिपोर्टिंग न्यायाधीशों के लिए अधिक जवाबदेही लाएगी और न्यायिक प्रक्रिया में नागरिकों के विश्वास को बढ़ाएगी।

पीठ मद्रास हाई कोर्ट द्वारा की गई मौखिक टिप्पणी के खिलाफ भारत के चुनाव आयोग द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी कि चुनाव आयोग कोविड दूसरी लहर के लिए अकेले जिम्मेदार था और उसके अधिकारियों को ‘शायद हत्या’ के लिए बुक किया जाना चाहिए। पीठ ने ईसीआई द्वारा न्यायाधीशों की मौखिक टिप्पणी की रिपोर्टिंग से मीडिया को रोकने के लिए की गई प्रार्थना पर आपत्ति जताई, जो अंतिम आदेश का हिस्सा नहीं हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम चाहते हैं कि मीडिया पूरी तरह से रिपोर्ट करे कि कोर्ट में क्या हो रहा है। यह जवाबदेही की भावना लाता है। मीडिया रिपोर्टिंग यह भी बताएगी कि हम अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से निर्वहन कर रहे हैं।

पीठ ने कहा कि लोकतंत्र में मीडिया शक्तिशाली प्रहरी है, उच्च न्यायालयों में चर्चा की रिपोर्ट करने से मीडिया को कतई नहीं रोका जा सकता है। पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि मीडिया को ओरल ऑब्जर्वेशन की रिपोर्टिंग से रोकने की उनकी अपील कतई सही नहीं है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।

पीठ ने चुनाव आयोग से कहा है कि मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी को सही भावना में लें और दवा की कड़वी गोली की तरह निगल लें। पीठ ने चुनाव आयोग की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। पीठ ने आयोग को उस याचिका की सुनवाई में कहा, जिसमें मद्रास हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर में हो रही मौत के लिए चुनाव आयोग पर शायद हत्या का मामला चलाना चाहिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम समझते हैं कि हत्या का आरोप लगाने से आप परेशान हैं। मैं अपनी बात करूं तो मैं ऐसी टिप्पणी नहीं करता, लेकिन हाई कोर्ट की लोगों के अधिकार सुरक्षित रखने में एक बड़ी भूमिका है। वहीं जस्टिस शाह ने कहा कि आप हाई कोर्ट की टिप्पणी को उसी तरह लीजिए जैसे डॉक्टर की कड़वी दवाई को लिया जाता है।

पीठ ने कहा कि जज की हर बात आदेश नहीं हुआ करती है। पीठ ने कहा कि वो मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी को आदेश मानने की जगह एक जज का बयान मानें और उसे उचित भावना से समझने की कोशिश करें। पीठ ने कहा कि जज भी इंसान ही होते हैं और वो भी तनाव में रहते हैं। कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से नहीं रोका जा सकता। ये टिप्पणियां न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और जनता के हित में हैं। इसकी भी इतनी ही अहमियत है, जितनी कोर्ट के औपचारिक आदेश की। कोर्ट की मंशा ऐसी नहीं होती है कि किसी संस्था को नुकसान पहुंचाया जाए, सभी संस्थान मजबूत हों तो लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

दरअसल मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार अभियानों के दौरान कोविड प्रॉटोकॉल का पालन करवाने में असफल रहा। हाई कोर्ट के जज ने यहां तक कह डाला कि आयोग के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। उन्होंने चुनाव आयोग को सबसे ज्यादा गैर-जिम्मेदार संस्था’ भी करार दिया। चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट जज की इस टिप्पणी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

चुनाव आयोग की पैरवी वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने की। चुनाव आयोग ने कहा कि मीडिया को अदालत की मौखिक टिप्पणियों पर रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, और अदालत की मौखिक टिप्पणियों के आधार पर कोई आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती है। चुनाव आयोग ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट ने हमें अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही यह टिप्पणी कर दी। उसने डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के अधीन काम कर रहे जिम्मेदार अधिकारियों से भी जवाब नहीं मांगा। चुनाव आयोग ने कहा कि जब चुनावी रैलियां हो रही थीं, तब कोरोना की हालत उतनी भयावह नहीं थी। हमें मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणियों पर गंभीर आपत्ति है। हाई कोर्ट की टिप्पणी पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लगातार बहस हुई कि हम हत्यारे हैं।

इस पर पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि जज जब सुनवाई के दौरान कुछ कहते हैं तो उनका मकसद व्यापक सार्वजनिक हित सुनिश्चित करना होता है। वो भी इंसान ही हैं और वो भी तनाव में रहते हैं। पीठ ने चुनाव आयोग को सलाह दी कि मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी को वो सही भावना से समझें। हम किसी हाई कोर्ट का मनोबल तोड़ना नहीं चाहते हैं, वो हमारे लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभ हैं। पीठ ने कहा कि अक्सर कुछ अतीत के अनुभवों के आधार पर या फिर आदेश देने के क्रम में कह दिया जाता है, जिसका कोई मतलब नहीं होता है। हर टिप्पणी आदेश नहीं होता है।

चुनाव आयोग ने कहा कि हम चुनाव करवाते हैं। सरकार अपने हाथ में नहीं ले लेते। अगर किसी दूर इलाके में सीएम या पीएम दो लाख लोगों की रैली कर रहे हों तो आयोग भीड़ पर गोली नहीं चलवा सकता, लाठी नहीं चलवा सकता। इसे देखना आपदा प्रबंधन कमेटी का काम होता है।

इस पर जस्टिस शाह ने कहा कि आप बाद में एक सर्कुलर लाएं कि 500 से अधिक लोग रैली में नहीं होंगे। पहले ऐसा क्यों नहीं किया? राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह बंगाल में स्थिति को देखते हुए बाद में किया गया। तमिलनाडु में ऐसी स्थिति नहीं थी। वहां 6 अप्रैल को चुनाव पूरा भी हो चुका था।

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने आपकी बातों को नोट कर लिया है। हम हाई कोर्ट का सम्मान बनाए रखते हुए एक संतुलित आदेश देंगे।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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