फोर्ड के भारत से जाने पर सरकार से सवाल की जगह मामले पर पर्दा डाल रहा है मीडिया

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मीडिया ने अपना घटियापन खुलकर दिखाना शुरू कर दिया, कल शाम को फोर्ड मोटर्स द्वारा भारत में कामकाज समेटने की खबर आयी, इस घटना पर देश के प्रमुख अखबार नवभारत टाइम्स ने यह खबर लगाई कि ‘फोर्ड ने रतन टाटा को औकात दिखाने की कोशिश की, टाटा मोटर्स ने ऐसे रौंदा कि ताले लग गए।’

यानी सरकार से इस बात का जवाब मांगने के बजाए कि फोर्ड जैसी कम्पनी भारत में बिजनेस क्यों बंद कर रही है। मीडिया देश की जनता को बरगलाने में लगी है कि फोर्ड तो इसलिए भाग खड़ी हुई क्योंकि उसे टाटा मोटर्स ने पीट दिया उसे धूल चटा दी।

परसाई ने लिखा है ‘शर्म की बात पर हम ताली पीटते हैं इस समाज का क्या ख़ाक भला होगा’।

पिछले दिनों देश की सबसे बड़ी ऑटो कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया के चेयरमैन आरसी भार्गव ने वाहन उद्योग संगठन सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैनुफैक्चरर्स (SIAM) के 61वें सालाना सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकारी अधिकारी ऑटो इंडस्ट्री को सपोर्ट देने के बारे में बयान तो बहुत देते हैं, लेकिन जब बात सही में कदम उठाने की आती है, वास्तव में कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं, जहां इस उद्योग में लंबे समय से गिरावट आ रही है’।

आरसी भार्गव ने इस भाषण में एक बहुत महत्वपूर्ण आंकड़ा दिया, उन्होंने कहा कि अगर वाहन उद्योग को अर्थव्यवस्था तथा विनिर्माण क्षेत्र को गति देना है, देश में कारों की संख्या प्रति 1,000 व्यक्ति पर 200 होनी चाहिए जो अभी 25 या 30 है। इसके लिए हर साल लाखों कार के विनिर्माण की जरूरत होगी।

इसका अर्थ यह है कि पैसेंजर कार मार्केट में ग्रोथ की बहुत बड़ी संभावना अभी भी मौजूद है ऐसे में फोर्ड का जाना मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगने के समान है लेकिन नहीं, मीडिया इस घटना को ऐसा दिखा रहा है कि फोर्ड टाटा मोटर्स से डरकर भाग खड़ा हुआ।

मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने इस भाषण में मंच पर उपस्थित अमिताभ कांत (नीति आयोग के सीईओ) से पूछा कि, ‘क्या हम आश्वस्त हैं कि देश में पर्याप्त संख्या में ग्राहक हैं जिनके पास हर साल लाखों कार खरीदने के साधन हैं? क्या आय तेजी से बढ़ रही है? क्या नौकरियां बढ़ रही हैं?

हम जानते ही हैं कि छोटी बजट कारों की खरीद मुख्यतः मध्यम वर्ग करता है, अगस्त में 15 लाख नौकरी जाने की खबर आई है यानी देश का मध्य वर्ग बुरी तरह से परेशानियों से जूझ रहा है। फोर्ड भी समझ गयी है कि इन तिलों में तेल नहीं है इसलिए उसने अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया है।

(गिरीश मालवीय आर्थिक मामलों के जानकार हैं और आजकल इंदौर में रहते हैं।)

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