मेवात: बेरुखी की दास्तान और ज़हरीले अभियान

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मेवात यानी हरियाणा का नुंह जिला। मेवात में साम्प्रदायिक सौहार्द और न्याय के पक्ष में 20 जून को आयोजित किए गए नागरिक सम्मेलन की तैयारियों के सिलसिले में मुझे कुछ दिन यहां गुज़ारने का अवसर मिला। इस दौरान लोगों से मिले बेपनाह प्यार, शानदार मेहमाननवाजी और आवभगत ने दिल को ख़ुशी से भर दिया। लेकिन, आमजन के हालात देखकर मन में ख़्याल आता रहा कि क्या यह वही हरियाणा है जिसे नंबर वन कहा जाता है।

सिर्फ़ बेरुखी मिली मेवात को

हर तरफ़ टूटी-फूटी सड़कों, गंदगी से भरी गलियों, डरी-सहमी अनपढ़ औरतों, कमज़ोर नंग-धड़ंग बच्चों और बेरोजगार युवाओं के समूहों ने दिल को भीतर तक झकझोर दिया। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार और महिलाओं की स्थिति देखकर ऐसा लगा कि मेवात बाकी हरियाणा से 60-70 साल पीछे चल रहा है। देश की राजधानी दिल्ली से महज 77 किलोमीटर और साइबर सिटी गुड़गांव से 45 किलोमीटर दूर स्थित मेवात देश का सबसे पिछड़ा जिला है। नीति आयोग द्वारा जारी देश के सबसे पिछड़े 101 जिलों की सूची में मेवात पहले नम्बर पर है। हरियाणा का कोई अन्य जिला इस सूची में नहीं है। जस्टिस राजेंद्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने भी बताया है कि देश का सबसे पिछड़ा मुस्लिम समुदाय हरियाणा के मेवात जिले में है। इलाके में चारों तरफ फैली बदहाली ने इस बात की तस्दीक़ कर दी कि आज़ादी के 74 साल बाद भी मेवात में विकास नाम की चिड़िया ने पर नहीं मारे हैं।

गाँधी के क़ौल पर रुके थे मेव

गाँधीग्राम के नाम से मशहूर ऐतिहासिक गांव घासेड़ा के बुजुर्गों ने बताया कि विभाजन के समय जब पूरा देश दंगों और हिंसा की आग में जल रहा था और मेव भारत छोड़कर पाकिस्तान जा रहे थे तो गाँधी जी ने स्वयं घासेड़ा आकर उनसे अनुरोध किया था कि वे भारत में ही रहें। मेवों ने गाँधी जी की बात मानकर हिन्दुस्तान को नहीं छोड़ा लेकिन देश के हुक्मरानों ने मेवात के साथ हमेशा बेरुखी बरती। इलाके में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि और अन्य नागरिक सुविधाओं की हालत दयनीय है। हद तो यह है कि इलाके में पीने का साफ़ पानी तक उपलब्ध नहीं है।

फ़िरोज़पुर गाँव की महिलाओं ने बताया कि हरेक परिवार को 1000 रुपये में पानी का टैंकर खरीदना पड़ता है। बड़े परिवारों को हर महीने पानी के चार-पांच टैंकर खरीदने पड़ते हैं। ग़रीब परिवार यह खर्च नहीं कर सकते हैं तो उन्हें आस-पड़ोस से साफ़ पानी मांग कर या फिर खारे पानी से ही काम चलाना पड़ता है। राशन डिपो पर राशन दो महीने बाद मिलता है। बहुत से गरीब परिवार राशन से वंचित रह जाते हैं। आंगनवाड़ी में भी जितने बच्चों के नाम दर्ज हैं, उतना राशन सरकार की तरफ से नहीं भेजा जाता।

न स्कूल, न टीचर  

मेवात जिले में स्कूलों व अध्यापकों की संख्या हरियाणा के बाकी जिलों से काफ़ी कम है। इलाक़े में कोई विश्वविद्यालय नहीं है। मां-बाप लड़कियों को सुरक्षा के मद्देनजर पढ़ने के लिए बाहर नहीं भेजते। 10-12 साल की लड़कियों के समूह से जब हमने पूछा कि वे कौन-कौन सी कक्षा में पढ़ती हैं तो उन्होंने बताया कि वे स्कूल नहीं जातीं। जिले की कुल साक्षरता दर सिर्फ 56 प्रतिशत है और महिलाओं में तो यह दर महज 36 प्रतिशत ही है जबकि हरियाणा में साक्षरता दर 76.6 प्रतिशत है और महिलाओं की 66.8 प्रतिशत। सरकारी अधिकारी व कर्मचारी मेवात में तबादले को काले पानी की सजा समझते हैं और प्रदेश के आम लोगों में भी यही स्टीरियोटाइप भरा हुआ है। रायपुरी गांव के युवाओं ने बताया कि मेवात में बहुत से सरकारी अध्यापक महीने में एक दो बार ही स्कूल आते हैं। उन्होंने अपनी जगह पर 8-10 हजार रुपये महीना पर गांव के युवाओं को ही बच्चों को पढ़ाने के लिए रख दिया है।

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली

जिले में अस्पतालों और डाक्टरों की संख्या भी बेहद कम है। अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं। जिले के लगभग 70 प्रतिशत बच्चे और 90 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी का शिकार हैं। प्रसव के दौरान महिलाओं की मृत्यु दर भी तुलनात्मक रूप से ज़्यादा है। सिर्फ 27 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण हुआ है। मेवली गांव की महिलाओं ने बताया कि पौष्टिक आहार ना मिलने और लगातार शारीरिक व मानसिक हिंसा झेलने के कारण उनकी स्थिति बेहद दयनीय है।

गाय पालना भी दूभर

साल्हाहेड़ी गाँव के युवाओं ने बताया कि सरकारों के वादों के बावजूद मेवात के इलाके ने आज तक रेल की सीटी नहीं सुनी है। इलाके के बहुत से लोग ड्राइवरी का काम करते हैं लेकिन ड्राइविंग लाइसेंस का नवीनीकरण होने तथा नए लाइसेंस बनने में अड़चनों के कारण बहुत मुश्किलें हैं। अडबर गांव के किसानों ने बताया कि सूखा इलाक़ा होने के कारण किसान मुश्किल से एक ही फसल ले पाते हैं, फसलों का दाम सही नहीं मिलता है, सिंचाई की व्यवस्था नहीं के बराबर है। इस इलाक़े से जो एक मुख्य नहर गुज़रती है, वह भी दिल्ली की गंदगी और कैमिकल्स लेकर आती है। किसान कर्ज में डूबे रहते हैं। यहां लोगों की गुज़र-बसर पशु-पालन विशेषकर गौ-पालन से होती है। हर घर में दूध देने वाली दो-तीन गायें बंधी हुई हैं। लोगों ने बताया कि भैंस के मुक़ाबले गाय पालना कम खर्चीला है लेकिन जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, गाय पालना भी दूभर हो गया है।

भाजपा/आरएसएस की ज़हरीली मुहिम

केंद्र और राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मेवात में गौ तस्करी के नाम पर मोब लिंचिंग के कई मामले सामने आए हैं। पहलू खान और रकबर खान की हत्याओं के मामले हमारे सामने हैं। मेवात के बेरोजगार युवाओं के गौ रक्षक दल बनाए गए हैं जिनमें ज्यादातर दलित व पिछड़े वर्गों के हिंदू युवा शामिल हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री मेवात में गौशालाओं के उद्घाटन के लिए कई बार गए हैं जबकि विकास कार्यों के नाम पर कुछ नहीं किया है। आरएसएस के आनुषांगिक संगठन इलाक़े में विभिन्न आपराधिक घटनाओं को साम्प्रदायिक व जातीय रंग देने, भावनात्मक मुद्दों को उछालने और आपसी भाईचारे को बिगाड़ने का काम बड़ी उग्रता और योजनाबद्ध ढंग से कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से तो भाजपा और आरएसएस के नेताओं की सरपरस्ती में दक्षिणी हरियाणा में हिंदू महापंचायतों का दौर चल रहा है।

इन पंचायतों में बहू-बेटियों की इज़्ज़त बचाने के नाम पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल बनाने, युवा लड़कियों व महिलाओं पर शिंकजा कसने और हिंसक व बलात्कारी मानसिकता के पुरुषों की फौज़ तैयार करने का काम किया जा रहा है। इस ज़हरीले अभियान की वजह से इलाक़े में बड़ी सांप्रदायिक घटनाओं की आशंका जताई जा रही है। सत्ता के दबाव,धार्मिक पूर्वग्रहों और भ्रष्टाचार में लिप्त पुलिस-प्रशासन इन साम्प्रदायिक तत्वों पर कार्रवाई के बजाय आम नागरिकों के मानवाधिकारों पर हमले कर रहा है। पिछले दिनों जमालगढ़ गांव के रहने वाले जुनैद की पुलिस कस्टडी में पिटाई से हुई मौत इसका ताजा उदाहरण है।

मिट्टी में मिल रहीं धरोहरें

मेवात के इलाक़े में जहां एक तरफ़ आपसी भाईचारे, एकता और सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिशें हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ एकता, अखण्डता व गौरवशाली इतिहास को बयां करने वाली दर्जनों इमारतें पुरातत्व विभाग के कब्जे में होने के बावजूद बेहद जर्जर हालत में हैं और खंडहर में तब्दील हो रही हैं। पिनगवां कस्बे के लोगों ने बताया कि राजा नल के महल, बावड़ी, मकबरा, कुआँ, कौरवों-पांडवों के इतिहास को अपनी गोद में समेटे अरावली पर्वत तथा उसमें स्थित शिव मंदिर, भोंड का पांडव कालीन मंदिर, मेवात के ख़ानज़ादा राजवंश की पहली राजधानी कोटला में एक ही रात में बिना गारे के लाल पत्थरों से बनाई गई लाल मस्जिद, नल्हड़ मंदिर, चुहीमल का तालाब, हजरत शेख मूसा की दरगाह, दादा चैखा की दरगाह जैसी दर्जनों इमारतें लावारिस हालत में हैं।

अल्पसंख्यक होने की सज़ा!

मेवात की इस दयनीय दशा के लिए कौन जिम्मेदार है जब यह सवाल आता है तो राजनीतिज्ञ और प्रशासनिक अधिकारी मेवात के लोगों को ही ज़िम्मेदार ठहराते हैं। बुजुर्गों की गीली आँखें और नौजवानों की बातें साफ़ बताती हैं कि मेवात की इस बदहाली का कारण अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह, तिरस्कार और राजनीतिक उपेक्षा है। मेवात के राजनेताओं ने इस इलाक़े के विकास पर कभी ध्यान नहीं दिया। यह टीस लोगों के दिलों से बार-बार निकलती है।

(सविता जनवादी महिला समिति की हरियाणा राज्य इकाई की महासचिव हैं।)

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