मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश। जिस प्रकार से हरे पेड़ों के जरिए लोगों को स्वच्छ जीवनदायिनी हवा प्राप्त होती है, ठीक उसी प्रकार से पर्यावरण संतुलन में जंगल और पहाड़ों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अपने पहाड़ों और जंगलों के विशाल स्वरूप के लिए विख्यात उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जनपद धीरे-धीरे अपने स्वरूप को खोता जा रहा है। हरे-भरे जंगलों, पहाड़ों के स्थान पर अब कंक्रीट के जंगल नजर आ रहे हैं।
मिर्जापुर जिले के अहरौरा, चुनार, मड़िहान इत्यादि क्षेत्रों में धड़ल्ले से क्रेशर प्लांट संचालित करने के साथ ही साथ मानकों की खुली धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जिन इलाकों में खनन पूरी तरह से बंद पड़ा है वहां भी धड़ल्ले से बेखौफ होकर पहाड़ों को खोदकर तबाह किया जा रहा है।
इनमें लालगंज, हलिया, ड्रमंडगंज के जंगल-पहाड़ से लेकर मड़िहान क्षेत्र से लगने वाले जंगल-पहाड़ भी शामिल हैं, जहां बेखौफ होकर खनन माफियाओं द्वारा अवैध खनन कराया जा रहा है। यहां से इमारती पटिया, गिट्टी, बोल्डर निकाले जा रहे हैं। इससे सरकारी राजस्व को तो भारी चपत लग ही रही है, सड़कों की दुर्दशा से लेकर आम जनजीवन और स्थानीय रहवासियों के जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
स्थानीय पत्रकार एवं विंध्य बचाव अभियान के संरक्षक शिवकुमार उपाध्याय बताते हैं कि “पूर्व के वर्षों में हम लोगों द्वारा जल, जंगल और जीव जंतुओं के संरक्षण की दिशा में अभियान चलाया गया था। जिसका सार्थक परिणाम यह रहा है कि काफी हद तक जंगलों-पहाड़ों के नष्ट करने का क्रम थम गया था, लेकिन कालांतर में शासन-सत्ता का भय ना होने के कारण जंगलों-पहाड़ों को नष्ट करने का खेल फिर जारी हो गया।”
शिवकुमार बताते हैं कि “जिला प्रशासन द्वारा समय-समय पर अभियान चलाकर अवैध खनन को रोकने की कार्रवाई की जाती है, लेकिन इसका कोई हल नहीं निकलता। अगर प्रशासनिक टीम गांव का भ्रमण करके और ग्रामीणों की शिकायत पर गंभीरतापूर्वक विचार कर कार्रवाई करे तो काफी हद तक रोक लगाने में कामयाबी हासिल की जा सकती है लेकिन ऐसा होता नहीं है।”
खनन माफियाओं से खौफ खाते हैं ग्रामीण
मिर्ज़ापुर जिले के विभिन्न ग्रामीण एवं पहाड़ी अंचलों में इन दिनों कायदे-कानून को ताक पर रखकर धड़ल्ले से अवैध खनन और क्रेशर प्लांट का संचालन किया जा रहा है। मजे की बात यह है कि कहने को तो जिम्मेदार महकमे के अधिकारी बराबर निरीक्षण और सर्वेक्षण करते हैं, लेकिन यह सब कुछ कागजों तक ही सीमित रह गया है। धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं दिखलाई देता है जो कायदे-कानून के मुताबिक होता हुआ दिखाई देता हो। जिले के मड़िहान, अहरौरा, चुनार, लालगंज, पड़री, छानबे आदि इलाकों में धड़ल्ले से अवैध खनन का कारोबार बेखौफ होकर संचालित हो रहा है।
पड़री के चांदलेवा इलाके के पहाड़ों में हो रहे अवैध खनन व अवैध क्रेशर प्लांट के संचालन से आसपास के तकरीबन आधा दर्जन गांवों के बाशिंदों पर हर समय खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इन गांवों के बाशिंदों को पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है। अवैध खनन और क्रेशर प्लांटों से उत्पन्न हो रहे प्रदूषण की वजह से लोगों को तमाम दुश्वारियों से जूझना पड़ रहा है।
सत्ताधारी खनन माफियाओं के विरुद्ध आसपास के गांवों से खिलाफत की आवाजें उठनी बंद हो गई हैं। इतना ही नहीं हाल में ही बनी करोड़ों की सड़क के बगल में खनन क्षेत्रों से निकलने वाले भारी वाहनों के गुजरने से सौ फिट की गहरी खाईं हो गई है। सड़क बनाते समय लोक निर्माण विभाग द्वारा उसी जगह पुल के सामने बोर्ड भी बकायदा लिखा था कि पुलिया कमजोर है भारी वाहन वर्जित हैं।
बावजूद इसके सड़क तो बन गई, लेकिन सड़क के आस-पास अवैध खनन होने से पुलिया का निर्माण नहीं हुआ और ना ही भारी वाहनों का आवागमन थमा है, बल्कि बोर्ड हटाकर भारी वाहनों का आवागमन चालू कर दिया गया। इसी रास्ते से स्कूली बच्चे पढ़ने जाते हैं, जहां तनिक भी लापरवाही हुई तो किसी की भी जान जा सकती है। बीते 27 जनवरी को ट्रक से कुचलने से एक बच्चे की जान भी चली गई थी, बावजूद इसके इस तरफ कोई भी उच्चाधिकारी ध्यान नहीं दे रहा है।
मानक के विपरीत 80 फिट नीचे जब ब्लास्टिंग होती है तो आस-पास के गांव में बने घरों के दरवाजे, खिड़कियां हिलने लगते हैं। ब्लास्टिंग की आवाज से बच्चे सहम जाते हैं। यदि समय रहते पहाड़ों पर हो रहे अवैध खनन और मानक के विपरीत क्रेशर संचालन पर रोक न लगाई गई तो हजारों की तादाद में लोग यहां से दूसरी जगह पलायन करने को मजबूर होंगे।
इसलिए इस प्रकरण की जांच कराई जाये और नियमानुसार कार्रवाई की जाये ताकि इस पर प्रभावी तरीके से रोक लग सके। भविष्य में इस क्षेत्र में कोई भी पहाड़ का पट्टा और क्रेशर बिना अनुमति के न चलने दिया जाये, ऐसा आसपास के कई गांव के ग्रामीणों की मांग है, ताकि लोगों का जीवन और पर्यावरण दोनों सुरक्षित और संतुलित बने रहें।
स्थानीय निवासी सुनील कुमार सोनकर बताते हैं कि “ग्रामीण यदि खनन की शिकायत करते हैं तो कार्रवाई तो होती ही नहीं, अलबत्ता शिकायत करने वाला जरूर खननकर्ताओं की नजरों में चुभने लगता है। ऐसी स्थिति में चाह कर भी कोई शिकायत नहीं करना चाहता है।” दूसरी ओर खनन विभाग के इलाकाई सर्वेयरों का कहना है कि “पत्थर खनन जमीन के नीचे की गहराई तक तब तक कर सकते हैं, जब तक जमीन में पानी दिखाई नहीं देता। गहराई की कोई निश्चित सीमा नहीं है तथा सड़क से लगभग 50 मीटर की दूरी तक खनन कर सकते हैं”। अब आसानी से समझा जा सकता है कि खनन किस हद तक जा कर किया जा सकता है।
खनन क्षेत्र में हरियाली और बाउंड्रीवाल की नहीं है व्यवस्था
खनन क्षेत्र और क्रेशर प्लांटों पर पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने के लिए चारों तरफ हरियाली के साथ-साथ सुरक्षा की दृष्टि से बाउंड्री वाल का होना नितांत आवश्यक है। लेकिन ऐसा कहीं भी नहीं दिखलाई देता है। जिसका असर आसपास के लोगों से लेकर पर्यावरण पर सीधा पड़ता है। हरियाली और बाउंड्री वाल की व्यवस्था ना होने से क्रेशर प्लांट और खनन क्षेत्रों से निकलने वाले धूल के कण से लोग कई प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। सांस लेने से लेकर कई प्रकार की समस्याओं से ग्रामीणों को जूझना पड़ जा रहा है, बावजूद इसके इस पर कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिखाई दे रही है।
खनन माफियाओं के निशाने पर तालाब पोखरे
कहने को तो जिला प्रशासन के निर्देश पर खनन माफियाओं के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है। बावजूद इसके खनन माफिया खनन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध ढंग से तालाब पोखरों से लेकर खेतों से मिट्टी का खनन किया जा रहा है। दिनदहाड़े जेसीबी और ट्रैक्टर की मदद से अवैध मिट्टी का खनन हो रहा है। जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों पर अवैध मिट्टी लदे ट्रैक्टरों को आसानी से देखा जा सकता है। जिस पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
वहीं इलाकाई पुलिस से लेकर खनन विभाग के लोगों की संलिप्तता से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। मिर्ज़ापुर के लालगंज थाना क्षेत्र के हरदीहा गांव में खनन माफिया सार्वजनिक तालाब से मिट्टी खनन कर रहे हैं। मिट्टी खनन कर अवैध रूप से बेची जा रही है। तालाब इतना खोद दिया गया है कि तालाब से पानी रिसने लगा है। मजे की बात है कि लालगंज थाने से महज दो किलोमीटर की दूरी पर जेसीबी और ट्रैक्टर लगाकर मिट्टी का खनन किया जाता रहा लेकिन खनन माफिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। खनन माफिया बेखौफ होकर तालाब की जमीन से जेसीबी लगाकर मिट्टी का खनन कर उसे बेचने में जुटे हुए हैं। इससे आसपास के किसानों को भी नुकसान होने का भय बना है।
उड़ रही हैं नियमों की धज्जियां
कृषि कार्य के नाम पर बिना ‘डाला’ (ट्रैक्टर ट्राली के पीछे का गेट) के ट्रैक्टर मिट्टी और बोल्डर लादकर धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। कृषि कार्य के नाम पर इन ट्रैक्टरों को पूरी तरह से व्यवसायिक कार्य में लगा दिया गया है। समाज सेविका महिमा मिश्रा कृषि कार्यों के नाम पर व्यवसायिक कार्य यानी खनन परिवहन में लग फर्राटा भरते ट्रैक्टरों से होने वाली दुर्घटनाओं की ओर इशारा करती हैं।
वो कहती हैं कि “रात्रि के समय ये ट्रैक्टर जिले के प्रमुख मार्गों, हाईवे पर फर्राटा भरते हुए दिखाई देते हैं। ग्रामीण सड़कों पर तो इनका दबदबा होता है। इनके खिलाफ कई बार आवाज उठाई जा चुकी है, लेकिन कार्रवाई न होने से इनके हौसले बुलंद बने हुए हैं।”
विभूति नारायण मिश्र कहते हैं कि “खनन माफियाओं का अपना एक सिंडिकेट होता है जो सड़क, थानों, पुलिस चौकियों से लेकर हर गतिविधि पर नजर डाले रखते हैं, ऐसे में शिकायत पर कार्रवाई कम, कमाई का दायरा बढ़ जाता है। अलबत्ता शिकायत करने वाले को ज़रूर परेशान होना पड़ जाता है।
(मिर्जापुर से संतोष देव गिरि की रिपोर्ट)
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