नारदा घोटाले सीबीआई ने सोमवार को ममता बनर्जी की सरकार में कैबिनेट मंत्री फिरहाद हाकिम, सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा और पूर्व मेयर शोभन चटर्जी को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन सीबीआई ने मुकुल रॉय (अब भाजपा में हैं) और सुवेंदु अधिकारी जिन्होंने ममता बनर्जी को नंदीग्राम से शिकस्त दी और अब भाजपा ने उन्हें नेता विपक्ष बनाया है को छुआ तक नहीं है। किसी को भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तार किया जाता है तो इसमें किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए पर टाइमिंग और चीन्ह-चीन्ह के गिरफ़्तारी से सीबीआई की कार्रवाई की शुचिता पर सवाल उठने लाजमी हैं।
दरअसल 2016 के पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव से ठीक पहले नारद न्यूज पोर्टल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू सैमुएल ने एक स्टिंग वीडियो जारी किया था। स्टिंग में सैमुएल एक कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर तृणमूल कांग्रेस के 7 सांसदों, 3 मंत्रियों और कोलकाता नगर निगम के मेयर शोभन चटर्जी को काम कराने के बदले में मोटी रकम देते नजर आ रहे थे। उनके अलावा कथित तौर पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एम.एच. अहदम मिर्ज़ा को भी पैसे लेते दिखाया गया था। मार्च, 2017 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने स्टिंग ऑपरेशन की सीबीआई जांच का आदेश दिया। इसके बाद सीबीआई और ईडी ने इस मामले की जांच शुरू की थी। इस स्टिंग को ममता बनर्जी ने साजिश करार दिया था, हालांकि, तबसे इस केस को लेकर काफी बवाल हो चुका है। सीबीआई ने काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बनर्जी और अपरूपा पोद्दार के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी है लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ने मंजूरी नहीं दी है।
गौरतलब है कि ईडी ने सीबीआई की शिकायत के आधार पर कथित मनी लॉन्ड्रिंग में 12 नेताओं और एक आईपीएस के अलावा 14 अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था। 13 लोगों में मदन मित्रा, मुकुल रॉय (अब बीजेपी में हैं), सौगत रॉय, सुलतान अहमद (2017 में निधन), इकबाल अहमद, काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बंदोपाध्याय, सुवेंदु अधिकारी (अब बीजेपी में), सोवन चटर्जी (अब बीजेपी छोड़ी), सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हाकिम, अपरूपा पोड्डार और आईपीएस अधिकारी सैयद हुसैन मिर्जा का नाम शामिल था। बताते चलें कि 2021 के विधानसभा चुनाव में सुवेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम से शिकस्त दी। इसके बाद उन्हें बीजेपी ने नेता विपक्ष बनाया है।
पश्चिम बंगाल में जब 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले नारद स्टिंग टेप सामने आया था तो राजनितिक गलियारों में हलचल मच गई थी। दावा किया गया था कि इन्हें 2014 में बनाया गया था और इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक की तरह दिखने वाले व्यक्तियों को एक काल्पनिक कंपनी के नुमाइंदों से कैश लेते दिखाया गया था। पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस के कई नेता सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के रेडार पर थे। नवंबर 2020 में ईडी ने नारद स्टिंग ऑपरेशन में पूछताछ के लिए तीन टीएमसी नेताओं को नोटिस भेजकर डॉक्युमेंट मांगे थे। इनमें मंत्री फरहाद हाकिम, हावड़ा सांसद प्रसून बंदोपाध्याय और पूर्व मंत्री मदन मित्रा की आय और व्यय का हिसाब मांगा गया था।
नारदा घोटाले में जिन तृणमूल नेताओं के वीडियो सामने आए थे, उसमें से कुछ जैसे मुकुल राय, शुभेंदु अधिकारी अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। उन पर सीबीआई ने फ़िलहाल कुछ भी नहीं किया है। सीबीआई ने नारदा घोटाले में शामिल होने के आरोप में सोमवार को सुबह सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं मंत्री फिरहाद हाकिम, सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा और शोभन चटर्जी सोमवार के घरों पर छापेमारी की। इसके बाद उन्हें अपने साथ ऑफिस ले गई। बाद में इन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस पर टीएमसी की ओर से कुछ सवाल उठाए गए हैं। टीएमसी ने पूछा है कि नारदा स्टिंग केस में सिर्फ उसके नेताओं पर ही कार्रवाई क्यों हो रही है? टीएमसी से बीजेपी में गए मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।
हाकिम, मुखर्जी, मित्रा और चटर्जी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी लेने के लिए सीबीआई ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का रुख किया था। 2014 में कथित अपराध के समय ये सभी मंत्री थे। धनखड़ ने चारों नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी थी जिसके बाद सीबीआई अपना आरोप पत्र तैयार कर रही है और उन सबको गिरफ्तार किया गया।
सीबीआई ने कहा है कि सीबीआई ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर 16 अप्रैल 2017 को तत्काल मामला दर्ज किया था। आरोप था कि तब सरकारी कर्मचारी स्टिंग ऑपरेटर से अवैध रूप से रिश्वत लेते हुए कैमरे में कैद हो गए थे। जांच के बाद संबंधित लोक सेवकों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी गई थी और यह सक्षम प्राधिकारी से दिनांक 07 मई 2021 को प्राप्त हुई है। एक और आरोपित पर तत्कालीन एसपी की स्वीकृति मिली थी और उसे पहले गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वह जमानत पर हैं। पांचों अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र पेश किया जा रहा है और जांच जारी है।
मैथ्यू सैमुएल द्वारा इस स्टिंग के टेप नारद न्यूज़ की वेबसाइट पर जारी किए गये थे। मैथ्यू सैमुएल पहले तहलका नाम की पत्रिका में कार्यरत थे और वह संस्था के मैनेजिंग एडिटर थे। बाद में उन्होंने तहलका से इस्तीफ़ा दे दिया था। इस स्टिंग को 2014 में अंजाम दिया गया था, लेकिन तब इसे जारी नहीं किया जा सका था। तब एक रिपोर्ट के अनुसार मैथ्यू सैमुएल ने क़रीब 52 घंटे का फुटेज बनाया था। इस फुटेज में तत्कालीन सरकार के कई मंत्रियों के होने का दावा किया गया था। इन वीडियो में मैथ्यू सैमुएल एक कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर कथित तौर पर तृणमूल कांग्रेस के तत्कालीन कई सांसदों, कई मंत्रियों और कोलकाता नगर निगम के तत्कालीन मेयर शोभन चटर्जी के साथ दिखे थे। इस स्टिंग में दावा किया गया था कि कंपनी के प्रतिनीतिध काम कराने के एवज़ में उन्हें मोटी रकम देते नज़र आ रहे थे।
इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) भी समानांतर जांच चला रहा है। इसने भ्रष्टाचार-विरोधी-अधिनियम के तहत सरकारी धन के दुरुपयोग के बारे में एक मामला दर्ज किया है और आरोपियों व सैमुअल को भी कई समन जारी किए हैं। जब 2016 में पहली बार नारद स्टिंग का यह मामला सामने आया था तब बीजेपी ने तो तृणमूल नेता मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त मोर्चा खोला था। तब दोनों नेता तृणमूल और बीजेपी के ख़ास सिपहसालार थे। बीजेपी के हमले इन दोनों नेताओं पर तब तक ही जारी रहे जब तक दोनों बीजेपी में शामिल नहीं हो गए। ये दोनों नेता फ़िलहाल पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रमुख आधार हैं।
अब बीजेपी पर यह आरोप लगते रहे हैं कि सीबीआई या ईडी की जाँच उन लोगों के ख़िलाफ़ चल रही है जो तृणमूल में बने हुए हैं और जो तृणमूल छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं उनके ख़िलाफ़ न तो नोटिस जारी होता है और न ही गिरफ़्तारी या किसी तरह की जाँच जारी है। सीबीआई गिरफ़्तारी के बाद फिर जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है। लगता है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार और केंद्र की बीजेपी सरकार के बीच तनातनी बढ़ेगी ही।
गिरफ्तारियों को लेकर कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि आखिर अचानक गिरफ्तारी करने की इतनी जल्दी क्यों दिखाई गई? उन्होंने कहा कि ‘पश्चिम बंगाल में गिरफ्तारियों के पीछे केंद्र सरकार और सीबीआई के गलत इरादे दिखते हैं। गिरफ्तारी से पहले गिरफ्तारी की जरूरत भी होनी चाहिए. गिरफ्तार करने की शक्ति होने का मतलब यह नहीं है कि आप गिरफ्तार करने के लिए बाध्य ही हैं। नारदा दशक पुराना मामला है, टेप भी 2016 के हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी आ चुका है, फिर अभी दो गिरफ्तारियां करने के पीछे क्या जरूरत थी?
उन्होंने कहा कि इसपर गंभीर संदेह है कि राज्यपाल, जिनका पक्षपातपूर्ण रवैया साफ है, उनके पास जांच को मंजूरी देने की शक्ति है, वो भी बस इसलिए क्योंकि उन्होंने 2011 में मंत्रियों को शपथ दिलाई थी? और फिर 2016 में टेप आने के पांच साल बाद क्यों सैंक्शन करना और फिर अचानक से 2021 में गिरफ्तारी क्यों? चुनावों में हारने की वजह से? बदला लेने के लिए? चुनाव का नतीजा बदलने के लिए? विधायकों के खिलाफ केस स्पीकर की अनुमति के बिना नहीं चलाया जा सकता। ऐसे में न्यायिकता की कमी, बदले के लिए हुई गिरफ्तारी, गिरफ्तारी की टाइमिंग, इस सबसे गिरफ्तारी के पीछे घटिया और खतरनाक बदले की भावना दिखती है।