राहुल गांधी ने कल के पीएम मोदी की अपने ऊपर की गई तीखी टिप्पणी पर आज छत्तीसगढ़ में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए अपने भाषण में कहा है कि, “मोदी जी जितने रुपये अडानी को मदद में देंगे, उतने रुपये मैं आम लोगों को दिलाऊंगा।” यह टिप्पणी उन्होंने मोदी के राहुल को ‘मूर्खों के सरदार’ की उपाधि के बाद कही है।
राहुल ने अपने भाषण में कहा कि “मोदी जी ने कॉर्पोरेट के 14 लाख करोड़ रुपये माफ़ कर दिए, लेकिन क्या उन्होंने ओबीसी और दलितों के लिए एक रुपया भी माफ़ किया? राहुल ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए यह तक कह डाला कि अडानी की कंपनी में मुझे एक ओबीसी या दलित दिखा दो, क्योंकि उनकी कंपनी में एक पिछड़ा या दलित नहीं मिलेगा। मोदी जी ने अडानी को सीमेंट, पोर्ट ही नहीं खेती के उत्पादों के भंडारण के लिए स्टोरेज और कोयला खदान तक दे दिए हैं, लेकिन आपके लिए क्या किया? हमारी सरकार में मनरेगा, आशा वर्कर या भोजन का अधिकार जैसे कार्यक्रम चलाए गये जिसमें ओबीसी और दलित 50% हैं। लेकिन मोदी जी की नोटबंदी या जीएसटी से आपको क्या फायदा हुआ?”
राहुल गांधी ने आगे कहा, “जिस दिन से मैंने पूछना शुरू किया कि ओबीसी की आबादी कितनी है, तब से मोदी जी ने मुझे गाली देना शुरू कर दिया है। मोदी जी कहते हैं कोई जाति नहीं है, सिर्फ गरीब हैं। मेरा सवाल है कि फिर आप ओबीसी कैसे हैं? 12 हजार करोड़ के जहाज, कई करोड़ की गाड़ी और सूट बदल-बदल कर पहनते हैं। क्या आपने कभी उन्हें एक ही सूट पहने हुए देखा है? मेरी यही सफेद शर्ट होती है, जबकि उनके यहां हर रोज नया कपड़ा, सूट, शेरवानी होती है। देश में बजट का पैसा कहां जायेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य या रक्षा में कितना जायेगा, यह फैसला देश में 90 लोग लेते हैं। मैंने संसद में इस बारे में सवाल पूछ लिया कि मोदी जी आबादी में 50% ओबीसी हैं, लेकिन 90 अफसरों में ओबीसी कितने हैं, दलित कितने हैं, आदिवासी कितने हैं? 90 अफसरों में से मात्र 3 अफसर ओबीसी हैं, जो कोने में बैठे रहते हैं। उनके पास 100 में से सिर्फ 5 रुपये का निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है। आपकी सरकार कहां है? मोदी की गारंटी असल में अडानी की गारंटी है।”
इसके साथ ही राहुल गांधी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आते ही जाति जनगणना का काम शुरू किया जायेगा, और केंद्र में सरकार आने पर पूरे देश में जाति जनगणना का ऐतिहासिक क्रांतिकारी निर्णय लिया जायेगा, और इस कदम से देश का चेहरा बदल जायेगा।
राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी की जुबानी जंग को 2024 के महासमर की तैयारी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। कल के अपने चुनावी भाषण में पीएम मोदी ने राहुल गांधी का सीधे नाम न लेते हुए कहा था, “मैंने सुना, कल कांग्रेस के एक महाज्ञानी कह रहे थे कि भारत के पास मेड इन चाइना मोबाइल फोन होता है। ये महाज्ञानी बता रहे थे कि आप सबके पास चायनीज मोबाइल है। अरे मूर्खों के सरदार। न जाने किस दुनिया में रहते हैं ये लोग? कांग्रेस के लोगों को देश की उपलब्धियां न देखने की बीमारी हो गई है। आज भारत दुनिया में मोबाइल फोन का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है। जब कांग्रेस केंद्र में थी तो देश में हर साल 20,000 करोड़ रूपये से भी कम मूल्य का मोबाइल बना करता था, लेकिन आज देश में 3.5 लाख करोड़ रूपये के मोबाइल बना करते हैं। भारत आज 1 लाख करोड़ रूपये मूल्य के मोबाइल का निर्यात कर रहा है।”
असल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में अपने एक चुनावी भाषण में भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों के प्रभुत्व का हवाला देते हुए बीजेपी सरकार पर हमला बोला था। राहुल गांधी के अनुसार, “आज हम शर्ट, कैमरे, मोबाइल फोन पर ‘मेड इन चाइना’ देखते हैं। कांग्रेस मध्य प्रदेश में कारखाने शुरू करना चाहती है ताकि राज्य के युवाओं को नौकरी के अवसर मिल सकें। हमें उम्मीद है कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब कोई चीन में युवा अपना मोबाइल निकालेगा तो वह देखेगा कि उस फोन का निर्माण मध्य प्रदेश में किया गया है।”
मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 145-150 सीटों पर जीत की उम्मीद जताते हुए राहुल का कहना था कि पिछली बार पीएम नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह और अमित शाह ने हमारे विधायकों को खरीदकर हमारी सरकार को चुरा लिया था, लेकिन इस बार बंपर जीत के साथ मध्यप्रदेश की जनता कांग्रेस की सरकार बनाने जा रही है।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या भारत में सचमुच आज भी चीनी मोबाइल बिक रहे हैं या राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं? क्या भारत में सचमुच 3.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य के मोबाइल फोन का निर्माण किया जा रहा है? मेक इन इंडिया के तहत क्या भारत में सचमुच भारत ने मोबाइल निर्माण के क्षेत्र में क्रान्तिकारी छलांग लगा ली है, या अभी भी बड़ी मात्रा में फोन के आवश्यक कंपोनेंट का आयात किया जा रहा है, और भारत में सिर्फ असेंबलिंग और पैकेजिंग कर भारतीय बाजार के अलावा विदेशों में निर्यात किया जा रहा है?
भारत में मोबाइल बाजार में किसकी कितनी पैठ?
एक मोबाइल वेबसाइट पर जाने पर जो जानकारी मिली, वह इस प्रकार से है:
भारतीय मूल की मोबाइल कंपनियों की सूची:
लावा इंटरनेशनल
माइक्रोमैक्स इंफॉर्मेटिक्स
इंटेल टेक्नोलॉजीज
कार्बन मोबाइल्स
मोबाइल स्वाइप करें
स्पाइस मोबाइल
आईबॉल मोबाइल्स
ज़ोलो मोबाइल्स
स्मार्ट्रोन
रिलायंस JIO मोबाइल्स
(नोट: इनमें से अधिकांश लो क्वालिटी मोबाइल फोन का निर्माण करती हैं। इनका बाजार पिछले 3-4 वर्षों के दौरान बड़े स्तर पर सिमट चुका है, और कुछ का तो कारोबार ही पूरी तरह से बंद हो चुका है। इन सभी कंपनियों ने चीन, वियतनाम से कम गुणवत्तापूर्ण मोबाइल फोन का आयात कर भारत में सस्ते दामों पर एंड्राइड मोबाइल फोन (3-5,000 रुपये) उपलब्ध कराकर मोबाइल क्रांति का सूत्रपात किया था। लेकिन अब इनका बाजार सिमटता जा रहा है।
भारत में चीनी मोबाइल कंपनियां
Xiaomi – भारत में सबसे प्रमुख चीनी मोबाइल ब्रांड। इसका मुख्यालय चीन में है और इसके कारखाने भारत (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, यूपी) में हैं। ओप्पो, रीयलमी और वनप्लस भी चीनी ब्रांड हैं। बीबीक्यू इलेक्ट्रॉनिक्स मूल कंपनी है जिसका मुख्यालय चीन में है। नोएडा (उत्तर प्रदेश) में इन मोबाइल फोन के विनिर्माण की सुविधा है।
वनप्लस मोबाइल को नोएडा में ओप्पो के प्लांट में तैयार किया जाता है। वीवो और iQOO – अन्य प्रमुख चीनी मोबाइल कंपनी हैं, जबकि मूल कंपनी बीबीक्यू इलेक्ट्रॉनिक्स है।
इसके अलावा हुआवेई भी चीनी कंपनी है और इसकी तमिलनाडु (फ्लेक्स लिमिटेड) में विनिर्माण सुविधा है।
लेनोवो भी एक चीनी कंपनी है जो फ़ोन और दुनिया में सबसे बड़ी संख्या में लैपटॉप बनाती है। मोटोरोला पहले एक अमेरिकी कंपनी हुआ करती थी, लेकिन अब इसका स्वामित्व लेनोवो के पास है। इसे तमिलनाडु (फ्लेक्स लिमिटेड) में निर्मित किया जा रहा है। टेक्नो एक ट्रांससियन होल्डिंग – एक चीनी कंपनी की सहायक कंपनी है।
इनफिनिक्स एक चीनी कंपनी है जो ट्रांज़िशन होल्डिंग की सहायक कंपनी है।
अन्य विदेशी मोबाइल निर्माता कंपनियों की सूची
चीन के अलावा कुछ अन्य मोबाइल कंपनियां हैं, जिनका स्वामित्व अन्य देशों में है। इनमें सैमसंग दक्षिण कोरिया से है; और नोएडा में इसका एक विनिर्माण संयंत्र है। इसी प्रकार विश्व की सबसे बड़ी कंपनी एप्पल अमेरिका से है और इसका विनिर्माण संयंत्र भारत में तमिलनाडु और कर्नाटक में है। लेकिन अभी भी इस फोन के कलपुर्जे/कंपोनेंट चीन, वियतनाम और ताइवान में तैयार किये जा रहे हैं। इसी प्रकार गूगल अमेरिका से है, जबकि सोनी जापान से है। एचटीसी और आसुस ताइवान से हैं; आसुस का संयंत्र आंध्र प्रदेश में लगाया गया है। नोकिया एक फिनिश मोबाइल ब्रांड था, लेकिन अब इसे HMD ग्लोबल नामक एक अन्य फिनिश कंपनी ने खरीद लिया है।
भारत में फॉक्सकॉन नामक ताइवानी कंपनी का संयंत्र तमिलनाडु में स्थापित किया गया है, जहाँ से नोकिया ब्रांड के फोन का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा फॉक्सकॉन देश में एप्पल, नोकिया और श्याओमी जैसी कई कंपनियों के लिए मोबाइल बनाती है। इसके चीन, भारत, ब्राजील सहित कई अन्य देशों में विनिर्माण संयंत्र स्थापित हैं।
नीति आयोग के पूर्व सीईओ भी सरकार के बचाव में कूद चुके हैं
इस विवाद में आज नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कान्त भी कूद पड़े हैं। आपका कहना है कि 2023 में भारत में बिकने वाले मोबाइल 100% मेड इन इंडिया के तहत होंगे, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 98 फीसदी था। पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच मोबाइल निर्माण को लेकर सियासी वार-पलटवार के बीच अमिताभ कांत का यह बयान भारत में जारी जी-20 दिल्ली शिखर सम्मेलन: समावेशी विकास एवं वैश्विक दक्षिण का उदय विषय पर आयोजित सम्मेलन के दौरान आया है। बाद में उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी अपनी पोस्ट में कहा है कि 2014 में भारत की लगभग 81 फीसदी मोबाइल हैंडसेट की मांग चीनी आयात से पूरी होती थी। लेकिन आज हालात बदल गए हैं और वर्तमान में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता देश बन चुका है।
उन्होंने अपने बयान में कहा है कि 2014-2022 के दौरान भारत में 2 अरब से अधिक मोबाइल हैंडसेट का निर्माण हुआ। 2023 में भारत में मोबाइल हैंडसेट निर्माण का आंकड़ा 27 करोड़ को पार कर जाएगा। आज भारत में निर्मित होने वाले मोबाइल हैंडसेट में से 20% मोबाइल का निर्यात किया जाता है। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया है कि 2014 से 2022 के दौरान देश में मोबाइल का विनिर्माण 23 फीसदी चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ा है। अख़बारों से भी जानकारी मिलती है कि इस वर्ष के अगस्त माह तक भारत ने 5.5 बिलियन डॉलर या 45,700 करोड़ रुपये मूल्य के मोबाइल का निर्यात कर लिया था। इसमें 23,000 करोड़ रुपये मूल्य का सिर्फ एप्पल फोन का ही निर्यात कर लिया गया था। सरकार की योजना 2025-26 तक 120 बिलियन डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद के निर्माण की है, जिसमें वह 120 बिलियन डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के निर्यात को लक्ष्य कर रही है। इसके तहत कंपनियों को पीएलआई स्कीम के तहत सब्सिडी देकर भारत में निवेश और निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
लेकिन सवाल फिर वहीं पर आकर अटक जाता है कि मोदी और राहुल दोनों की बातें अपनी जगह पर सही हैं, क्योंकि भारत में मोबाइल विनिर्माण और जमकर निर्यात भी किया जा रहा है, और दूसरी तरफ यह बात भी सच है कि मूलतः ये चीनी मोबाइल ही हैं। भारत में आज भी इलेक्ट्रॉनिक्स कम्पोनेंट्स का निर्माण नहीं किया जा रहा है, बल्कि चीन, ताइवान और वियतनाम से कम्पोनेंट का आयात कर भारत में इनकी असेंबलिंग और पैकेजिंग कर मेक इन इंडिया का ठप्पा लगाया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो चीन से मोबाइल आयात पर निर्भरता कम होने के बावजूद हमारा आयात लगातार नहीं बढ़ रहा होता। पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन से आयात चिंताजनक स्तर पर बढ़ गया है। सभी जानते हैं कि किसी वस्तु के आयात पर उस देश के द्वारा इम्पोर्ट ड्यूटी लगाकर वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित किया जाता है। भारत में भी तमाम वस्तुओं पर इम्पोर्ट ड्यूटी लगाई जाती है। लेकिन सीधे निर्यात के बजाय भारत में संयंत्र लगाकर कम्पोनेंट का आयात कर, मेक इन इंडिया का ठप्पा लगाने पर भारत सरकार पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) के तहत सब्सिडी भी प्रदान कर रही है, तो इन विदेशी कंपनियों को तो सिर्फ प्रॉफिट से मतलब है। अगर मोदी सरकार को सिर्फ मेक इन इंडिया से मतलब है और इन कंपनियों को दुनिया का सबसे बड़ा बाजार मिल जाता है तो इससे अच्छी बात उनके लिए भला क्या हो सकती है। उन्हें तो आम खाने से मतलब है, गुठली गिनने का काम तो हमारे लिए रख छोड़ा है।
भारत में कंपनी खोलने और साझीदार बनाने की प्रक्रिया में भारतीय कॉर्पोरेट की भी हिस्सेदारी होने से बड़े कॉर्पोरेट को सीधा फायदा है, जबकि भारतीय इम्पोर्टर जो अभी तक मोबाइल फोन का आयात करते थे, को नुकसान है। इसीलिए छोटे-बड़े इम्पोर्टर को दूसरे व्यवसाय में हाथ डालना पड़ेगा, लेकिन बड़ी मछली के लिए लंबे समय तक इस निवेश में फायदा ही फायदा है।
आज ही अक्टूबर माह के आयात-निर्यात के आंकड़े जारी हुए हैं, जिसमें साफ़ पता चल रहा है कि अक्टूबर में भी भारत ने रिकॉर्ड व्यापार घाटे का सौदा किया है। भारत सरकार के वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल के अनुसार, पिछले वर्ष अक्टूबर माह का घाटा जहां 26.3 बिलियन डॉलर था, इस वर्ष यह बढ़कर 31.36 अरब डॉलर हो चुका है। भारत में आज भी दुनिया में सबसे अधिक चीन से आयात किया जा रहा है। चीन के बाद रूस, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और सऊदी अरब का नंबर आता है। जाहिर सी बात है, चीन से हम न तो तेल, गैस, कोयला या सोना खरीदते हैं, वहां से तो सबसे अधिक खरीद इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं और थोक केमिकल की होती है, जो हमारे लिए फिनिश्ड गुड्स के रूप में गौरव बढ़ाने वाले साबित होते हैं।
कुल-मिलाकर यही कहा जा सकता है कि भारत आत्मनिर्भर बनने के स्थान पर खुद को चमकाने में लगा हुआ है। यह सही मायने में आत्मनिर्भर भारत नहीं वरन एक चमकदार भारत बनाने की कवायद है, जिसमें देखने में तो खूब चमक-दमक होती है। इसमें शामियाना और मंडप सजाने वाले ठेकेदार के रूप में भारतीय कॉर्पोरेट भी अपना हिस्सा बना लेते हैं, लेकिन जिन अतिथियों की इस भव्य आयोजन में मेजबानी की जाती है, उन्हें भोजन के साथ-साथ सारी चमक-दमक का बिल भी अपनी जेब से भरना पड़ता है। अगर इसकी जगह सच में भारत 26 करोड़ मोबाइल के निर्माण में सभी कंपोनेंट भी भारत में निर्मित कर घरेलू खपत के साथ-साथ दुनिया को बेचे तो ये सारे रुपये भारत द्वारा भारत के लिए अर्जित किये जाते। लेकिन मार्जिन मनी पर शेयर बाजार में सट्टा लगाने वालों की तरह आज हम जुआ ही खेल रहे हैं, जिसमें भारत की नेट कमाई कितनी है, इसका अंदाजा बेरोजगारों की बढ़ती फ़ौज को देखकर लगाना कोई कठिन काम नहीं है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)