‘भगत सिंह ने जिस कानून के खिलाफ लड़ते शहादत दी, आज वैसा ही कानून ला रही है मोदी सरकार’

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नई दिल्ली। आल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) ने दिल्ली के लगभग पचास अलग-अलग इलाकों में शहीदे आजम भगत सिंह की जयंती पर विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन में मुख्यतः निर्माण मजदूरों ने हिस्सा लिया और अपने-अपने इलाकों और ‘लेबर चौकों’ पर सांप्रदायिकता के विरुद्ध पर्चे भी बांटे।  

कार्यक्रम का आयोजन उत्तरी दिल्ली के नरेला, सरूप नगर, संत नगर, नत्थूपुरा, वजीराबाद, जहांगीरपुरी, जीटीबी नगर, वजीरपुर; दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के संगम विहार, देवली, कुसुमपुर, ओखला, नजफगढ़; पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा, करावल नगर, भागीरथ विहार, शाहदरा, लाल बाग, दिलशाद गार्डन, सुंदर नगरी, मंडावली, ईस्ट विनोद नगर, झिलमिल कॉलोनी, मानसरोवर पार्क, विश्वास नगर, रोहतास नगर, सीमापुरी इत्यादि जगहों पर किया गया।

दिल्ली के ‘लेबर चौकों’ पर बहुत बुरी है श्रमिकों की स्थिति
दिल्ली में मजदूरों की भारी आबादी होने के बावजूद, ज्यादातर संभ्रांत वर्ग के लोग मजदूरों को अनदेखा कर देते हैं। दिल्ली में मौजूद सैंकड़ों लेबर चौक इस बात के गवाह हैं कि भारत की राजधानी में दो वक़्त की रोटी के लिए मजदूर अपना श्रम कैसे बेचते हैं। दिन भर खड़े रहकर निर्माण मजदूर हर सुबह 400-500 की दिहाड़ी से शुरू कर शाम होते-होते इसके आधे रेट पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। कोरोना महामारी के पश्चात बिना किसी योजना के लगाए गए ‘लॉकडाउन’ से निर्माण मजदूर बुरी तरीके से प्रभावित हुए हैं। कई मजदूर जो पैदल अपने घर लौट गए थे, आजीविका के लिए दिल्ली वापस आने पर, अपना गुज़ारा काफी कठिन हालात में कर पा रहे हैं।

दिल्ली में सक्रिय ‘बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन’ के अध्यक्ष और राज-मिस्त्री का काम करने वाले राजीव बताते हैं, “लॉक डाउन के दौरान कई मजदूरों को कभी एक टाइम तो कभी दिन-दिन भर भूखा रहना पड़ा। दिल्ली में मौजूद ज्यादातर निर्माण मजदूर सरकारी नीतियों के चलते निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड में पंजीकरण नहीं करवा पाते। इसी कारणवश लॉकडाउन के दौरान केवल कुछ हज़ार निर्माण मजदूरों को कल्याण बोर्ड से सहायता राशि मिली, जबकि हमारी संख्या लाखों में है।”

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जो नए बिल लाए हैं उनसे निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए बना क़ानून भी खत्म हो जाएगा, आज जब ज़रूरत श्रम कानूनों को मज़बूत करने की थी तब मोदी सरकार मालिकों के कहने पर उन्हें खत्म कर रही है। भगत सिंह ने ‘ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल’ के खिलाफ ही बम फेंका था और आज की मोदी सरकार मजदूरों के अधिकार खत्म करने के लिए फिर से ऐसे ही क़ानून लेकर आ रही है। उन्होंने कहा कि हम आज के दिन ‘बांटो और राज करो’ की नीति से लड़ने का संकल्प लेते हैं।

ऐक्टू से सम्बद्ध ‘बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन’ के महासचिव वीकेएस गौतम ने कहा, “मजदूरों-किसानों को अनदेखा करना मोदी सरकार को महंगा पड़ेगा। संसद में नए विधेयक लाकर मोदी सरकार हमारे ट्रेड यूनियन बनाने और हड़ताल करने के अधिकार को छीनना चाहती है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। श्रम मंत्री संतोष गंगवार अब ये खुलकर कह रहे हैं कि श्रम कानूनों में बदलाव मालिकों के हक में और मजदूर-अधिकारों को खत्म करने के लिए किया जा रहा है। जनता के समक्ष मोदी सरकार अब पूरी तरह से नंगी है। भगत सिंह को याद करने का सबसे सही तरीका यही होगा कि मजदूरों को धर्म के नाम पर लड़ाकर आंदोलन कमज़ोर करने की कोशिशों का हम डटकर सामना करें और सांप्रदायिक ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दें।”

देश भर में संसद के मानसून सत्र के दौरान ट्रेड यूनियनों द्वारा कई विरोध-प्रदर्शन हुए हैं। 16 सितंबर को श्रम मंत्रालय के सामने नए श्रम विधेयकों की प्रतियां जलाने के बाद से लगभग हर दिन अलग-अलग सेक्टर के मजदूरों के साथ इन मजदूर-विरोधी विधेयकों के खिलाफ कार्यक्रम किए गए हैं। आज हुए प्रदर्शन में भी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रहने वाले निर्माण मजदूरों ने भारी संख्या और उत्साह के साथ भागीदारी की।

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