मोदी जी जुमला नहीं वैक्सीन चाहिए

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मोदी जी आप अपने मन की बात कहते हैं और लोग बड़े गौर से सुनते भी हैं, पर मुश्किल यह है कि आप लोगों के मन की बात नहीं सुनते हैं। पिछले दिनों आपने कोरोना से लड़ने का एक मंत्र दिया था। वह था ट्रिपल टी और वैक्सीन। यानी टेस्टिंग, ट्रैकिंग, ट्रीटमेंट और वैक्सीन। पर मोदीजी अगर आप सुन सकते तो लोग यही कहते हैं कि जुमले बंद करो और यह बताओ कि वैक्सीन कब लगेगी। फिलहाल ट्रिपल टी पर बाद में पहले वैक्सीन पर ही बात करते हैं।

कोलकाता हाईकोर्ट में वैक्सीन को लेकर एक जनहित याचिका दायर हुई है। इसकी सुनवाई करते हुए एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल ने सवाल किया है कि गांव में वैक्सीन लगाए जाने का क्या हाल है। राज्य सरकार क्या जवाब देगी यह तो नहीं मालूम पर हम कोलकाता महानगर का हाल बताते हैं। कोलकाता नगर निगम के उन वैक्सीनेशन केंद्रों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है जहां कोवीशिल्ड वैक्सीन दी जा रही थी। उनमें 102 क्लीनिक और 50 मेगा सेंटर शामिल हैं। वैक्सीनेशन की संख्या आधी रह गई है अगर कोवीशिल्ड की सप्लाई होती है तो वैक्सीन लगाए जाने काम शुरू हो सकता है। कोलकाता नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग ने एक लाख वैक्सीन का बफर स्टॉक बनाने की अपील की है। हालांकि करोड़ों की आबादी के लिए यह स्टॉक कोई मायने नहीं रखता है।

कोलकाता नगर निगम के बोर्ड की चेयरपर्सन ने कहा है कि इस तरह का इंतजाम हो जाए तो वैक्सीनेशन केंद्रों के बाहर रोजाना होने वाले हंगामे से बचा जा सकता है। कोलकाता नगर निगम के वैक्सीनेशन केंद्रों के बाहर लंबी लाइन लगना और फिर वापस लौट जाना रोजाना की बात है। कोलकाता के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में लोग रात का भोजन पानी लेकर वैक्सीन के लिए लाइन लगाते हैं। वैक्सीन नहीं लगने से नाराज लोग जब हंगामा करते हैं तो उन पर काबू पाने के लिए पुलिस बुलानी पड़ती है। वैक्सीन के एक डोज के लिए लोगों को हफ्तों चक्कर लगाने पड़ते हैं। सामान्य तरीके से वैक्सीन लगाए जाने के लिए लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं पर वैक्सीन कब आएगी यही निश्चित नहीं है। जब कोलकाता महानगर का यह हाल है तो जिलों में क्या स्थिति होगी इसका कयास लगाया जा सकता है। वैक्सीन के लिए लंबी लाइन, नहीं लगने के बाद हंगामा और उनसे निपटने के लिए पुलिस द्वारा बल प्रयोग किए जाने की खबरें जिलों से रोजाना ही आती रहती हैं।

निजी अस्पतालों के लिए वैक्सीन का 25 फ़ीसदी कोटा तय कर दिया गया है। उन्हें सरकार के मुकाबले वैक्सीन की अधिक कीमत देनी पड़ती है। क्या देश की आबादी के 25 फ़ीसदी लोग निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं। तो फिर यह पैमाना किस आधार पर तय किया गया है। कोलकाता नगर निगम ने जिस दिन अपने वैक्सीनेशन केंद्रों को बंद कर दिया उस दिन भी निजी अस्पतालों के पास वैक्सीन का इफरात स्टॉक था। तो यह है 25 फ़ीसदी आरक्षण का नतीजा कि सरकारी केंद्र बंद पड़े हैं और निजी अस्पताल वैक्सीन लेने वालों के आने का इंतजार कर रहे हैं।

इसीलिए हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस ने सवाल किया था कि जिस देश की आबादी के 30 फ़ीसदी लोग भुखमरी की रेखा के नीचे जीते हैं वे भला स्पुतनिक जैसी महंगी वैक्सीन कैसे खरीद पाएंगे। बंगाल की 13 करोड़ की आबादी में से सिर्फ 2.8 करोड़ लोगों को वैक्सीन की एक डोज लगी है। दूसरी तरफ सिर्फ 83 लाख लोग ही ऐसे हैं जिन्हें वैक्सीन की दोनों डोज लगी है। पर केंद्र सरकार देश को सच बताने से परहेज करने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने में लगी है। मसलन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को वैक्सीन वाली कंपनियों की जो सूची दी है उनमें दो नाम ऐसे भी हैं जिन्हें अभी तक सीडीएससीओ से अनुमति ही नहीं मिली है। अब सवाल उठता है कि आखिर सरकार वैक्सीन का आयात करके मुफ्त क्यों नहीं दे रही है। केंद्र सरकार के पास जो पैसा है वह तो लोगों का ही है।

अब इस बात पर गौर करते हैं कि वैक्सीन की अहमियत कितनी है। आईसीएमआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन की एक डोज ही मौत के खतरे को 83 फ़ीसदी कम कर देती है। डेल्टा वेरिएंट के कारण ही दूसरी लहर में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दो लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है। अगर वैक्सीन की एक डोज ही लगी होती तो मौत का आंकड़ा इतना भयानक नहीं होता। मणिपाल हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ. एस सुदर्शन बलाल कहते हैं कि कोरोना से लड़ने का सबसे बेहतर उपाय है वैक्सीनेशन, पर मुश्किल यह है कि 6 माह तक वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलने के बावजूद देश के सिर्फ 5 फ़ीसदी लोगों को ही वैक्सीन लग पाई है। सरकार की इस नाकामी को देखते हुए ही शायद ऊपर वाला मेहरबान हो गया है। आईसीएमआर की एक स्टडी के मुताबिक देश के 67 फ़ीसदी लोगों में एसएआरएस कोविड से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन गई है। पर अभी भी 40 करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है।

इधर तीसरी लहर की आशंका से लोग परेशान हैं। पर मुश्किल तो यह है कि सरकार जुमलेबाजी के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रही है। कोविड के पहले लहर में अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा पर रोक लगाने के बजाय सरकार ताली बजाओ, थाली बजाओ और मोमबत्ती जलाओ की अपील करती रही। अब मोदीजी के ट्रिपल टी में एक टी, यानी इलाज पर चर्चा करते हैं। कोविड की पहली लहर और दूसरी लहर के बीच एक साल का फासला रहा है। इस दौरान इलाज की कितनी व्यवस्था की गई थी इसका खुलासा दूसरी लहर में हो गया। बंगाल में उत्तर 24 परगना जिला सबसे बड़ा जिला है और कोलकाता के बाद कोविड से सबसे ज्यादा मौत इसी जिले में हुई है। इस जिले की आबादी एक करोड़ से अधिक है और यहां कुल 13 सरकारी अस्पताल हैं उनमें से किसी भी अस्पताल में वेंटिलेटर बेड का इंतजाम नहीं है। यह आंकड़ा कलकत्ता हाई कोर्ट में दिया गया है। अगर मोदी सरकार ने एक साल में सिर्फ वेंटिलेटरों की ही आपूर्ति की होती तो यह आलम नहीं होता।

मुश्किल तो यह है कि उस सरकार से क्या उम्मीद करें जो संसद में दावा करती है कि देश में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई है। देश के साथ-साथ पूरी दुनिया ने इसे देखा है और कई देशों ने तो ऑक्सीजन देकर मदद भी की थी। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि तीसरी लहर सितंबर-अक्टूबर में आएगी इससे निपटने की जिम्मेदारी भी जय श्री राम पर छोड़ दें। वैसे गौ माता की भी सेवा ले सकते हैं। भाजपा सरकार के कई मंत्रियों ने दावा किया है कि गोमूत्र और गोबर में कोरोना से निपटने की अचूक शक्ति है। यह भी हो सकता है कि बाबा रामदेव कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए कोई दवा बाजार में पेश कर दें। कहिए जय जय श्री राम। हर सवाल का एक जवाब।

(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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