Thursday, April 25, 2024

मध्य प्रदेश शासन ही बना कोरोना संक्रमण का केंद्र!

`इंडिया टुडे` की वेबसाइट पर 12 अप्रैल को प्रकाशित एक रिपोर्ट का शीर्षक है – `एमपी: 235 पॉजिटिव इन इंदौर, नो मरकज़ लिंक`। इस रिपोर्ट पर व दूसरी कई रिपोर्ट्स में आए तथ्यों पर नज़र डालें तो लगता है कि मध्य प्रदेश शासन ही कोरोना का मरकज़ बना हुआ है। सरकार लगभग बिना मंत्रिमंडल के है और स्वास्थ्य विभाग की अफ़सरशाही ख़ुद कोरोना से पीड़ित है।

सबसे पहले यह तथ्य कि जब कोरोना से जूझने के लिए इंतज़ाम करने का वक़्त था, तब `शक्तिमान` भारतीय जनता पार्टी राज्य की निर्वाचित सरकार गिराने के ऑपरेशन में जुटी हुई थी और विधायकों को इस राज्य से उस राज्य की ऐशगाहों में सैर कराई जा रही थी। माना तो यह भी जाता है कि इस ऑपरेशन की वजह से ही केंद्र की भाजपा सरकार ने `कोरोना ऑपरेशन` के ऐलान में देरी की। 20 मार्च को राज्य की कांग्रेस सरकार का पतन हो गया। शिवराज सिंह ने 23 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर 22 मार्च के जनता कर्फ्यू का आयोजन हो चुका था।

लेकिन, भाजपा के मुख्यमंत्री का यह शपथ ग्रहण समारोह `सोशल डिस्टेंसिंग` की प्रधानमंत्री की सलाह से उलट था। अगले दिन प्रधानमंत्री ने 24 मार्च की आधी रात से देशभर में लॉक डाउन का ऐलान किया। तब से अब तक मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह `वन मैन कैबिनेट` की तरह हैं। उनके समर्थक इसे `अकेले कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी` के रूप में महिमामंडित कर रहे हैं तो उनकी आलोचना भी कम नहीं हो रही है कि एक मुश्किल वक़्त में एक निर्वाचित सरकार के साथ मिलकर काम करने के बजाय वह सरकार गिरा दी गई और नया मंत्रिमंडल गठित कर ज़िम्मेदारियों का विकेंद्रीकरण भी सुनिश्चित नहीं किया गया। 

मुख्यमंत्री की इस हालत के बाद उनकी उस टॉप मशीनरी का पर नज़र डालते हैं जिस पर कोरोना से लड़ने का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी है। संदीप कुमार की `बिजनेस स्टेंडर्ड` में छपी रिपोर्ट ( https://www.business-standard.com/article/current-affairs/with-health-dept-in-quarantine-mp-struggles-to-tackle-coronavirus-pandemic-120041200838_1.html) के मुताबिक कल 12 अप्रैल, इतवार के तीसरे पहर तक मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना के 134 कन्फर्म्ड मामलों में कुल 80 स्वास्थ्य विभाग के अफ़सरों (चार आईएएस भी) और उनके परिवार के लोगों के थे। वीणा सिन्हा (हेल्थ कम्युनिकेशन डायरेक्टर) और पल्लवी दुबे, इन दो और अफ़सरों की जांच के नतीजे `पॉज़िटिव` पाए गए। स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख सचिव पल्लवी जैन और मध्य प्रदेश स्वास्थ्य निगम के प्रबंध निदेशक व राज्य में अयुष्मान भारत कार्यक्रम के सीईओ जे विजय कुमार भी कोरोना की चपेट में आ चुके अफ़सरों में शामिल हैं।

यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि किस तरह क्वारंटाइन होने की ज़रूरत को नज़रअंदाज़ करने की टॉप ऑफिसर की ज़िद वायरस के प्रसार की वजह बनी। यह कहना मुश्किल है कि स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की बदौलत नीचे तक और कितने लोगों तक यह वायरस पहुँच चुका होगा। देश में जमात-जमात के राजनीतिक-साम्प्रदायिक एजेंडे पर शोरगुल के बीच इस तरफ़ ध्यान नहीं दिया गया। ज़िम्मेदारों की इस बड़ी ग़ैर ज़िम्मेदारी पर मीडिया में पंचायतें नहीं बैठाई गईं। तब्लीग़ी मरकज़ की ओट में सरकार की सारी बेपरवाहियों और नाकामियों पर पर्दा डालने में जुटे नेशनल मीडिया ने शासन के भीतर के इस कोरोना मरकज़ से आँखें फेरे रखीं।

इस बात से भी कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कोरोना से पीड़ित होने के बावजूद अस्पतालों में भर्ती होने से आनाकानी की जबकि मुख्यमंत्री ने कहा था कि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल में दाखिल होना ही पड़ेगा। बताया जा रहा है कि कुछ अधिकारियों ने तो घरों पर ही आइसोलेट होने के लिए एम्स, भोपाल के डायरेक्टर से भी लेटर ज़ारी करवा लिया था। बेहतर हो कि मध्य प्रदेश सरकार बताए कि इन सभी वरिष्ठ अधिकारियों को सरकारी अस्पतालों में भर्ती किया गया है ताकि जनता का सरकारी सेवाओं पर भरोसा बढ़े। 

मध्य प्रदेश के एक अन्य मशहूर शहर इंदौर पर केंद्रित अपनी रिपोर्ट (https://www.indiatoday.in/mail-today/story/mp-235-positive-30-dead-in-indore-no-markaz-link-1666028-2020-04-12) में हेमेंदर शर्मा लिखते हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित 30 से 84 बरस तक की उम्र के 30 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से किसी का उस निज़ामुद्दीन मरकज़ से कोई कनेक्शन नहीं है जिस पर देश भर में कोरोना फैलाने के आरोप लगाकर हंगामा बरपा किया जा चुका है। इंदौर में 235 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हो चुकी है और इनमें से भी किसी का कोई कनेक्शन निज़ामुद्दीन मरकज़ से नहीं है। इंदौर में कर्फ़्यू आयद किया जा चुका है।

काम पर आने से इंकार करने वाले पैरामेडिक्स (स्वास्थ्यकर्मियों) की अविलंब गिरफ्तारी के प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए जिला प्रशासन एस्मा भी लगा चुका है। गौरतलब है कि देश के दूसरे हिस्सों की तरह इंदौर में भी स्वास्थ्यकर्मी पीपीई किट्स उपलब्ध न कराए जाने की स्थिति में कोरोना संक्रमित मरीज़ों के इलाज संबंधी ड्यूटी न करने की चेतावनी दे चुके थे। 

भोपाल डेटलाइन से `द हिन्दू` में 12 अप्रैल को प्रकाशित सिद्धार्थ यादव की रिपोर्ट (https://www.thehindu.com/news/national/other-states/cannot-conclusively-link-covid-19-spread-in-bhopal-indore-to-tablighi-jamaat-say-experts/article31324863.ece) भी गौरतलब है। सिद्धार्थ ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस दावे का ज़िक्र किया है जो उन्होंने शनिवार 11 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में किया था। शिवराज ने कहा था, “भोपाल और इंदौर दोनों लगभग पूरे शहर हॉटस्पॉट हैं। इन्हें हमने ज़ोन्स में बांटा है। इंदौर और भोपाल में ख़ासकर उन्हें (जहाँ लोग) मरकज़ से लौटे हैं, जिनकी वजह से देश के दूसरे हिस्सों की तरह हमारी मुश्किलें बढ़ गई हैं। हम इसे नियंत्रित करने के प्रयास कर रहे हैं।“ सिद्धार्थ स्वास्थ्य विभाग औऱ पुलिस के उच्च अधिकारियों से बात कर सीएम शिवराज के इस दावे के बरअक्स कहते हैं कि मध्य प्रदेश में कोरोना फैलने को लेकर कोई एक अकेली वजह तय नहीं की जा सकती है।

प्रशासन ने भोपाल में कोरोना संक्रमितों की चार श्रेणियां बनाई हैं। स्वास्थ्य विभाग, पुलिस विभाग, मरकज़ से लौटे जमाती और अन्य। इन चार श्रेणियों में सबसे ज्यादा (300 से अधिक) संक्रमित केसेज स्वास्थ्य विभाग से हैं। 250 टेस्ट्स के आधार पर भोपाल में जमात के अभी 20 संक्रमित केस सामने आए हैं। हालांकि, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग दोनों के अफसरों का कहना है कि अभी एनेलसिस होना बाकी है। पुलिस का कहना है कि अन्य बहुत से लोग जो कोरोना से संक्रमित हैं, हो सकता है, वे मस्जिदों में किसी संक्रमित के संपर्क में आए हों। पुलिस पर चूंकि संदिग्धों को ट्रेस करने की ज़िम्मेदारी है तो पुलिसकर्मियों का संक्रमण की चपेट में आ जाना स्वाभाविक है।

(लेखक धीरेश सैनी जनचौक के रोविंग एडिटर हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles