Thursday, April 25, 2024

अफ़ग़ान मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़ातिमा ख़लील की हत्या

24 साल पहले पाकिस्तान में रह रही एक शरणार्थी प्रसूता एक बच्ची को जन्म देने की प्रक्रिया में होती है। प्रसव कराने आई दाई 500 रुपए मांगती है। तंगहाल परिवार अपने तंगहाली का रोना रोता है और दाई गुस्से में बच्ची का गर्भनाल काटे बिना ही चली जाती है। मां खुद गर्भनाल काटकर बच्ची को अपने शरीर से अलग करती है। 

उस बच्ची का नाम फातिमा खलील था जिसे उसके परिवार वाले प्यार से नताशा बुलाते थे। अफ़ग़ानिस्तान स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग की कर्मचारी फ़ातिमा ख़लील (नताशा) और उनके सहकर्मी ड्राइवर जावेद फोलाद (41 वर्ष) को शनिवार की सुबह एक बारूदी धमाके में हत्या कर दी गई। यह हमला राजधानी काबुल के पीडी 12वीं के बुताक स्क्वॉयर में हुआ।

पिछले कुछ वक़्त से सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के नागरिक कर्मचारियों को टारगेट करके हमला करने के मामलों में वृद्धि हुई है। पिछले हफ्ते ही राजधानी काबुल के देह-सब्ज़ जिले में कई अज्ञात हथियारबंद लोगों ने अटॉर्नी जनरल ऑफिस के पांच कर्मचारियों की हत्या कर दी थी। हमलावरों की पहचान अभी नहीं हो पाई है। लेकिन अफगान सरकार ने लगातार नागरिकों की हत्या और कुछ प्रमुख आंकड़ों के लिए तालिबान को दोषी ठहराया है।

इससे पहले 12 मई 2020 को काबुल के एक मैटरनिटी हॉस्पिटल में दहशतगर्दों ने हमला करके नवजात बच्चों और मांओं की हत्या कर दी थी। जनवरी 2018 में भी तालिबानी आतंकियों ने एंबुलेंस में विस्फोट कर के100 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी। अस्पताल, स्कूल आजाद सोच की स्त्रियां और मानवाधिकार कार्यकर्ता लगातार तालिबानी आतंकियों की हिट लिस्ट में रहे हैं। 

कौन थी फ़ातिमा ख़लील उर्फ नताशा

फ़ातिमा ख़लील एक मानवाधिकार कार्यकर्ता थी। उन्होंने 24 वर्ष की उम्र में अफ़ग़ानिस्तान स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग में बतौर कर्मचारी काम करना शुरु किया था। 

फ़ातिमा ख़लील 6 भाई बहनों में से एक थीं। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद उनके शिक्षक माता-पिता को पाकिस्तान में शरणार्थी बनकर रहने पर विवश होना पड़ा। पाकिस्तान में फ़ातिमा के पिता एक छोटी सी किराने की दुकान चलाकर परिवार का पेट पालते थे। 

हालाँकि अपने देश से पलायन के बाद उनके परिवार को कई बार अपनी जगह बदलना पड़ा। बावजूद इसके फ़ातिमा स्कूल की पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। उसने अपनी शिक्षा की शुरुआत पाकिस्तान में एक शरणार्थी स्कूल में की थी जिसकी स्थापना एक सऊदी धर्मार्थ संस्था ने की थी। परिवार के अफगानिस्तान लौटने के बाद, उसने काबुल में एक अफ़ग़ान तुर्क हाईस्कूल से पूरी किया। जहां उसे स्कॉलरशिप भी मिली।

इसके बाद फ़ातिमा ने किर्गिस्तान में अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल एशिया से स्नातक किया, एंथ्रोपोलॉजी और ह्यूमन राइट स्टडीज जैसे दो प्रमुख विषयों के साथ साथ, वह अरबी, उर्दू, अंग्रेजी, रूसी, और अफगान भाषाओं पश्तो और फ़ारसी में भी धाराप्रवाह थी। धार्मिक अध्ययन में भी फ़ातिमा की मजबूत पकड़ थी। 

दोस्तों, बहन, पिता और मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष की नज़र में फ़ातिमा

फ़ातिमा ख़लील के दोस्त बताते हैं कि वो एक ऐसी युवा महिला थी जो ग़जब की आत्मविश्वासी और संवेदनशील थी, जो जीवन से बहुत प्यार करती थी। अपने जन्मदिन पर उसने नारंगी रंगा चमकीली ड्रेस पहना था, और डांस फ्लोर पर सभी को पीछे छोड़ दिया था, लेकिन उसे अंधेरे से डर लगता था।

पिछले साल ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद फ़ातिमा ख़लील सीधे मास्टर प्रोग्राम की पढ़ाई के लिए जाना चाहती थी लेकिन उसकी बहन लीमा ख़लील ने उसे पहले कुछ कार्य अनुभव अर्जित करने के लिए कहा। इस पर फ़तिमा ने कहा था –“मैं कहीं और जा रही हूँ- मैं अफ़ग़ानिस्तान नहीं लौट रही हूँ।” 

लीमा याद करते हुए बताती हैं तब मैंने उसे याद दिलाया था कि हमारे पिता ने कैसे हमारे परिवार को अपने वतन अफ़ग़ानिस्तान लेकर लौटे थे। “प्लीज तुम भी वापस आ जाओ, जो लोग तुम्हें चाहते हैं उन्हें तुम्हारी ज़रूरत है।” 

फ़ातिमा जब अफगानिस्तान स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग में अंतर्राष्ट्रीय सहायता समन्वयक के पद के लिए आवेदन करने के लिए पहुंची, तब तक वह संयुक्त राष्ट्र समेत कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में साक्षात्कार फेस कर चुकी थी। थोड़ा पहले ही 32 वर्षीय मि. अकबर ने आयोग के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था और इसकी फंडिंग में सुधार करने और इसकी दिशा को ठोस बनाने के प्रयास के साथ इसके कायापलट में लगे हुए थे। 

जब फ़ातिमा ख़लील इंटरव्यू के लिए आई तो मि. अकबर ने उनसे दो टूक कहा- और बिल्कुल स्पष्ट रूप से कहा: आयोग संकट में चल रहा है, फंड दाताओं के साथ आयोग का संबंध संघर्षपूर्ण है। ऐसे में वो आयोग में अपनी सेवा तो दे सकती हैं लेकिन उन्हें अगले दो महीने तक सैलरी देने की स्थिति में आयोग नहीं है। और फ़ातिमा ख़लील ने अवैतनिक काम स्वीकार कर लिया।

अफ़ग़ानिस्तान मानवाधिकार आय़ोग में फ़ातिमा को अप्वाइंट करने वाले मि. अकबर न्यूयॉर्क टाइम्स को बताते हैं कि  “मैंने कई साक्षात्कार लिए हैं, और साक्षात्कारकर्ताओं ने अपने संगठनों को देश में सर्वश्रेष्ठ के रूप में प्रदर्शित किया है,” उसने मुझे एक ईमेल में लिखा था, “आप एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने व्यक्त किया कि आयोग के सामने कई चुनौतियाँ हैं। इसलिए  मुझे लगता है कि मैं अधिक उपयोगी हो सकती हूं।”

फ़ातिमा ख़लील के पिता कहते हैं, “ वह केवल मेरी बेटी नहीं थी। वह देश के लिए संघर्ष कर रही थी।” इतिहास युद्ध से भरा हुआ है। लेकिन ये युद्ध हत्याओं के खिलाफ़, आत्महत्याओं के खिलाफ़, बम विस्फोट के खिलाफ़, यह सबसे गंदा सबसे अभिशप्त युद्ध है।”

फ़ातिमा ख़लील के कुछ ट्वीट

फ़ातिमा ख़लील का ट्वीट अपनी माँ के लिए है-

तुर्की में रेपिस्ट से विवाह करने के बिल के खिलाफ़ फातिमा का गुस्सा भरा ट्वीट 

कला को सांस लेने के लिए ज़रूरी बताता हुआ फ़ातिमा का ट्वीट

राजनीतिक वार्ता में एक भी महिला प्रतिनिधि न होने के मुद्दे पर फ़ातिमा का नाराज़गी भरा ट्वीट 

अफ़ग़ान महिलाओं के अधिकार एक समय अमेरिकी रणनीतिक लक्ष्यों के मूल में थे, लेकिन “अब उन्हें एक अफगान का आंतरिक मुद्दा माना जाता है, जिसमें अमेरिका हस्तक्षेप नहीं करेगा।

कोविड-19 क्राइसिस के समय सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करके आयोजित की गई एक धार्मिक सभा और अमेरिका व इटली के नागरिकों के प्रति कट्टरपंथी विषवमन के खिलाफ़ फ़ातिमा का ट्वीट

मजबूत होते तालिबान की सत्ता में वापसी की कोशिश में मानवाधिकारों पर तेज होते हमले 

रूस और पाकिस्तान की मदद के बाद तालिबान लगातार मजबूत हुआ है। 29 फरवरी 2020 को तालिबान और अमेरिका में शांति समझौता हुआ। इस समझौते के तहत अगले 14 महीने में अमेरिकी सेना के अफ़ग़निस्तान की जमीन छोड़ना और तालिबानी क़ैदियों की रिहाई की बात प्रमुख रूप से शामिल है। समझौते के बाद तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सत्ता वापसी के रास्ते बनाने में लगा हुआ है। 

अफगान पक्ष द्वारा असहमति के बावजूद, अमेरिकी राजनयिकों ने कैदियों को रिहा करने के लिए दबाव डाला और आंतरिक-अफ़गान वार्ता की शुरुआत पर जोर दिया।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन द्वारा शुरू की गई एक शांतिपूर्ण प्रक्रिया के बीच हिंसा में वृद्धि हुई है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले सभी अमेरिकी सैनिकों को बाहर निकालना और तालिबान के साथ राजनीतिक समझौता करना है।

तालिबानी शासन के दौरान औरतों के घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी गई। उनकी पढ़ाई छुड़वा दी गई। तालिबान ने जल्द ही देश में गीत संगीत, नाच-गाने, पतंगबाज़ी से लेकर दाढ़ी काटने तक पर रोक लगा दी गई थी। नियम तोड़ने वाले को तालिबानी पुलिस सख़्त सज़ा देती थी। कई बार लोगों के हाथ-पैर तक काट दिए जाते थे।

 ऐसे में जब वर्ल्ड स्ट्रीट पर 9/11 हमले के खिलाफ़ कार्रवाई करते हुए अमेरिका ने तालिबान शासित अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया तो उसके लिए तालिबानों द्वारा अधिकारच्युत की गई अफगान महिलाएं एक राजनीतिक उपकरण थीं जो कभी अमेरिका के लिए उपयोगी थीं, लेकिन अब नहीं।”

वर्तमान शांति प्रयासों के नाजुक दौर में सरकार के भविष्य के गठन में तालिबान के फिर से जुड़ाव के साथ महिला अधिकारों और बोलने की स्वतंत्रता को संभावित ख़तरा दिख रहा है।

कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की सहायता से, पिछले दो दशकों के दौरान प्राप्त अफ़ग़ान महिलाओं और मानवाधिकारों की उपलब्धियों को जारी रखने के लिए अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय समुदायों ने लगातार समर्थन दोहराया है।

फातिमा इस युद्धग्रस्त देश में रहने वाले सभी लोगों के लिए एक उचित वातावरण बनाने के लिए कृतसंकल्प थी ऐसे में उसे ड्यूटी पर जाते समय मरते देखना बहुत कष्टप्रद है। उसका लक्ष्य  इस्लामी शिक्षाओं और नियंत्रण से परे मानवता के लिए था। फ़ातिमा और जावेद को विनम्र श्रद्धांजलि।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles