नारदा केस:जमानत पर रोक के आदेश वापसी पर आज सुनवाई

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कलकत्ता हाईकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने गुरुवार को नारदा घोटाला मामले में गिरफ्तार किए गए चार टीएमसी नेताओं की जमानत पर रोक लगाने के आदेश को वापस लेने की याचिका पर आज सुनवाई है। इसके बाद सीबीआई के कानून के शासन का उल्लंघन और कोर्ट पर भीड़ के दबाव संबंधित बड़े मुद्दों पर सुनवाई की जाएगी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कल कहा था कि हम शुक्रवार को जमानत पर रोक लगाने के आदेश को वापस लेने के आवेदनों पर सुनवाई करेंगे।कोर्ट ने पश्चिम बंगाल राज्य को कार्यवाही में पक्षकार के रूप में पेश करने के अनुरोध को भी स्वीकार कर लिया है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सीबीआई की तरफ से पैरवी कर रहे थे। उनका कहना था कि 5 जजों की पीठ को केवल जमानत के मामले पर ही गौर नहीं करना चाहिए। इस मामले में सबसे अहम चीज ये है कि सीएम ममता बनर्जी और उनके कानून मंत्री ने किस तरह से कानून व्यवस्था का मजाक बनाने की कोशिश की। अगर वो आरोपियों की बेल की रद कराना चाहते तो सेक्शन 439 (2) के तहत एप्लीकेशन दाखिल कर सकते थे। लेकिन कोर्ट को समझना होगा कि बंगाल में राजनीतिक गुंडागर्दी के मामले अक्सर होते दिख रहे हैं। ये हरकत दूसरे राज्यों में भी हो सकती है। वो चाहते हैं कि 5 जजों की पीठ विचार करे कि कानून का राज कैसे स्थापित कराया जाए।

नारदा केस में आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोलकाता हाईकोर्ट में बचाव पक्ष के वकील ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता  से पूछा कि मुकुल रॉय और सुवेंदु अधिकारी को पार्टी क्यों नहीं बनाया? क्या वो बीजेपी में चले गए इस वजह से ऐसा किया गया? सॉलिसिटर जनरल बोले- मैं केवल कानूनी सवालों के जवाब दे सकता हूं।

आरोपियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बंद्योपाध्याय ने कोर्ट से अनुरोध किया कि पहले जमानत पर रोक लगाने के आदेश को वापस लेने के आवेदनों को सुना जाए। आगे कहा कि यह व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वंतत्रता से संबंधित है इसलिए वापस लेने के आवेदन को पहले सुना जाना चाहिए। बंद्योपाध्याय ने कहा कि वो 40 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं पर उन्होंने ऐसा वाकया कोर्ट में नहीं देखा। उनका कहना था कि कोर्ट का रवैया देखकर वो बेहद निराश हैं। हम यहां एकेडमिक डिबेट में नहीं हैं जो बेवजह भाषणबाजी सुनते रहें। उनका कहना था कि सबसे पहले डबल बेंच के 17 मई के स्टे पर सुनवाई होनी चाहिए।  

महाधिवक्ता ने भी इस अनुरोध का समर्थन करते हुए कहा कि, “अनुच्छेद 226(3) अदालत पर एक कर्तव्य रखता है कि एक पक्षीय आदेश के अवकाश आवेदन पर 14 दिनों के भीतर सुनवाई होनी चाहिए। इसलिए हमारे आवेदनों को पहले सुना जाना चाहिए।” कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की पीठ तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं – फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सुब्रत मुखर्जी और सोवन चटर्जी की जमानत पर सुनवाई कर रही थी। चारों नेताओं को नारदा घोटाला मामले में सीबीआई ने उनकी गिरफ्तारी के बाद से 17 मई से ही हिरासत रखा है।

जस्टिस सौमेन सेन ने वकीलों से अनुरोध किया है कि वे कल क्या बहस करने जा रहे हैं, इस पर एक पेज का नोट भेजें। कोर्टरूम एक्सचेंज गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन गैंगस्टर को अधिकारियों को घेराव करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं: सॉलिसिटर जनरल सॉलिसिटर जनरल ने उच्च न्यायालय से सीआरपीसी की धारा 482 और संविधान की 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए 17 मई की अदालती कार्यवाही को विकृत और गैर-स्थायी घोषित करने का आग्रह किया।

जस्टिस मुखर्जी ने कहा कि मामला अब उनके सामने है और उन्हें ही तय करना है कि अरेस्ट कानूनी है या फिर गैर कानूनी। कोर्ट को लगता है कि प्रथम दृष्ट्या उसे इसी बात पर विचार करना चाहिए। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि अगर बेल दे दी जाती है तो सारा मामला ही खत्म हो जाएगा। इस पर सिंघवी ने कहा कि मेहता की दलीलों से लगता है कि वो बेल के अलावा बाकी सभी पहलुओं पर चर्चा के लिए राजी हैं। उनका कहना था कि बाकी के मामलों पर बाद में भी चर्चा हो सकती है। बेल का मसला बेहद महत्वपूर्ण है।

जस्टिस मुखर्जी ने तुषार मेहता से कहा कि अगर आप रिकॉर्ड के हवाले से दावा नहीं कर रहे हैं कि सीबीआई कोर्ट के जज पर प्रेशऱ बनाया गया तो कोर्ट कैसे इस पर विचार कर सकती है। एक्टिंग सीजे सीजे बिंदल ने कहा कि वो बंगाल सरकार को पार्टी बनाने पर सहमत हैं। मेहता ने कोर्ट से इस आशय का आदेश जारी करने को कहा, जिससे विस्तार से जिरह शुरू की जा सके। जस्टिस  हरीश टंडन ने टिप्पणी की कि मुझे नहीं लगता कि आम आदमी की भावनाएं न्याय की व्यवस्था को रोक सकती हैं। आम आदमी अपनी भावनाओं के तहत अपनी चीजें जाहिर कर सकता है। हमें कानून के ढांचे को देखना होगा। भले ही भावनाएं अधिक हों, कानून का शासन उन्हें इसकी अनुमति नहीं देता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी, सिद्धार्थ लूथरा और कल्याण बंद्योपाध्याय ने उच्च न्यायालय से जमानत पर रोक लगाने के आदेश को वापस लेने के आवेदनों को लेने का आग्रह किया क्योंकि यह हाउस अरेस्ट किए गए आरोपियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित हैं। सिंघवी ने दलील दी कि सार्वजनिक रूप से डराना-धमकाना जमानत रद्द करने का आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि आरोपी जमानत के तय परीक्षणों के अनुसार जमानत के हकदार हैं। मेहता द्वारा उठाए गए सभी कानून के स्वादिष्ट प्रश्न इंतजार कर सकते हैं।

जस्टिस मुखर्जी ने सिंघवी से कहा कि सवाल सिर्फ जमानत देने का नहीं है।अगर जमानत दी जाती है, तो यह पूरी कार्यवाही का निपटारा कर देगी। इसलिए यह एक पेचीदा सवाल बन जाता है। यह बहुत आसान नहीं है। न्यायालय किस क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर रहा है ?:

ट्रायल कोर्ट के समक्ष गिरफ्तार नेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता बंद्योपाध्याय ने उच्च न्यायालय से पूछा कि किस प्रावधान के तहत पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले को उठाया है। अधिवक्ता बंद्योपाध्याय ने कहा कि मैं वास्तव में हैरान हूं कि यह अदालत किस अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर रही है। मुझे दुख हुआ है। मैं वास्तव में दुखी हूं। हम यहां अकादमिक बहस के लिए नहीं हैं। हम किसी के भाषण को सुनने के लिए नहीं आए हैं। अपने 40 वर्षों के प्रैक्टिस में कलकत्ता उच्च न्यायालय में मैंने कभी ऐसा नहीं देखा। अधिवक्ता बंदोपाध्याय ने पीठ  से पहले स्वतंत्रता के मुद्दे पर विचार करने का आग्रह किया।

गौरतलब है कि बंगाल के मंत्री फिरहाद हकीम और सुब्रत मुखर्जी को नारद रिश्वत केस में सोमवार सुबह गिरफ्तार किया गया था। उनके अलावा टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पार्टी के पूर्व नेता सोवन चटर्जी भी अरेस्ट हुए। हालांकि, सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने सभी को जमानत दे दी थी, लेकिन हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्पेशल कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। फिलहाल सभी आरोपी हाउस अरेस्ट में हैं।

कोलकाता हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए जिन 5 जजों की पीठ  बनाई है, उसमें एक्टिंग सीजे जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी शामिल हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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