9 अगस्त, 2020 अगस्त क्रांति दिवस की 78 वीं वर्षगांठ है। समाजवादी चिंतक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. लोहिया चाहते थे कि 9 अगस्त देश में इतने जोरदार तरीके से मनाया जाए कि 15 अगस्त का कार्यक्रम उसके सामने फीका पड़ जाए लेकिन शासकों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने 9 अगस्त की महत्ता कभी देशवासियों के सामने नहीं रखी। जनक्रांति की जगह उन्होंने राज सत्ता के हस्तांतरण को ही महत्व दिया।
अगस्त क्रांति देश के ढाई सौ साल के स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा जनआंदोलन था। इस आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी थे जिन्होंने मुंबई के तत्कालीन मेयर, सोशलिस्ट नेता यूसुफ मेहर अली के सुझाव पर ‘क्विट इंडिया’ अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देश को दिया था। गांधी जी ने कांग्रेस कार्यसमिति को संबोधित करते हुए कहा था कि आज से हर व्यक्ति खुद को आजाद समझे।
उन्होंने अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन करने पर जोर दिया था। गांधी जी ने भाषण में जिस आजाद भारत की कल्पना की थी, उसमें हर किसी के पास समान आज़ादी और अधिकार होने की बात कही थी। जिसे बाद में भारत के संविधान के मूलभूत अधिकारों में जोड़ा गया। परन्तु आज के सत्ताधीशों ने उसपर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
अगस्त क्रांति के आंदोलन की खासियत यह थी कि इस आंदोलन के गांधी जी सहित लगभग सभी जाने-माने कांग्रेस के नेता जेल में थे। गांधी जी की पत्नी और महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यु हो गई थी।
सभी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद चर्चिल को लगा था कि अब आज़ादी का आंदोलन धीमा पड़ जाएगा। लेकिन एकदम उल्टा हुआ। देश भर में आज़ादी की चाहत रखने वाली जनता विशेष कर युवाओं ने खुद इसका नेतृत्व किया था और इसे चलाया था । भूमिगत रहकर इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ. राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरूणा आसफ़ अली, ऊषा मेहता, एसएम जोशी आदि नेताओं ने किया था। उस समय जेपी जेल में थे लेकिन जेपी ने भी हजारीबाग जेल से भागकर इस आंदोलन का भूमिगत रहकर नेतृत्व किया था। ढाई सौ साल के आज़ादी के आंदोलन के इतिहास में कोई दूसरा ऐसा जन आंदोलन नहीं है जिसने पचास हजार आंदोलनकारियों की शहादत हुई हो तथा एक लाख से अधिक क्रांतिकारियों को जेल जाना पड़ा हो।
इस आंदोलन की यह भी खासियत रही कि आंदोलनकारियों द्वारा रेल की पटरियां उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, प्रशासनिक कार्यालयों और पुलिस थानों पर झंडे फहराने के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर किये गए थे। जिसमें हजारों आंदोलनकारी पुलिस की गोलियों से मारे गए लेकिन आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ उन्हें नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से हिंसा नहीं की थी। यह गांधी जी के अहिंसा के प्रति आग्रह का प्रभाव था। यदि भूमिगत क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की हत्या का इरादा बनाया होता तो यह आंदोलन जनआंदोलन नहीं हो सकता था।
इस आंदोलन को गांधी जी चौरी चौरा आंदोलन की तरह वापस नहीं लिया। यह आंदोलन आज़ादी मिलने तक जारी रहा । सभी कांग्रेस नेताओं को 1946 में छोड़ा जाने लगा लेकिन अंग्रेज जेपी और डॉ. लोहिया को छोड़ने को तैयार नहीं थे। गांधी जी के सार्वजनिक बयान के बाद उन्हें छोड़ा गया। इस आंदोलन की यह भी खासियत थी कि इस आंदोलन में हिंदू और मुसलमानों ने एक साथ आकर बड़े पैमाने आंदोलन में हिस्सा लिया था।
आंदोलन का एक केंद्र बम्बई था। बम्बई जैसे शहर का मेयर यूसुफ मेहर अली का चुना जाना, सरदार पटेल द्वारा यूसुफ मेहर अली को कांग्रेस का टिकट दिलाया जाना बतलाता है कि तब बम्बई में हिन्दू मुस्लिम एकजुटता का माहौल था। सतारा, बलिया, मिदनापुर आदि जगहों पर तो समानांतर सरकार चलाई गई।
गांधी जी ने विश्व युद्ध के दौरान ही आंदोलन का समय चुना था। वे दोनों ही पक्षों की हार या जीत के पेंच में भारत की आजादी को नहीं फसाना चाहते थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होते हुए भी वे बार-बार यह कहते थे कि मैं अंग्रेजों से नफरत नहीं करता तथा किसी को भी नहीं करनी चाहिए और ना ही जापान और जर्मनी को प्यार से देखना चाहिए क्योंकि वे गुलामी की अदला बदली नहीं चाहते थे यानी देश अंग्रेजों से आजाद हो जाए और जापान और जर्मनी का गुलाम बन जाए। अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा देते समय गांधी जी का जो सपना था वही सपना अगस्त क्रांति दिवस के 78 वर्ष बाद डॉ.जी जी परीख जी आज भी देख रहे हैं।
1942 के आंदोलन में विद्यार्थी के तौर पर शामिल रहे 10 माह की अंग्रेजों की जेल काटने वाले डॉ. परीख जो आजादी के बाद से आज तक हर वर्ष मुंबई के चौपाटी से तब के गवालिया टैंक तथा अब के अगस्त क्रांति मैदान तक पैदल मार्च करते हैं। डॉ. परीख कहते हैं कि आज का समय तब के समय से भी ज्यादा कठिन है क्योंकि आज के जो लोग सत्ता में बैठे हैं वे धर्म के आधार पर अंग्रेजों से भी ज्यादा जुल्म कर सकते हैं। वे हिटलर से प्रेरणा लेकर देश में राज चलाने की कोशिश कर रहे हैं।
डॉ.जीजी परीख चाहते हैं कि देश में फिर अगस्त क्रांति जैसा माहौल बने। 1942 में देश का हर दूसरा-तीसरा नौजवान देश को बचाने के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो। उसी तैयारी की आज जरूरत है। गांधी जी ने 73 वर्ष की उम्र में अपने 2 घंटे के भाषण में अधिकतर समय हिंदू-मुस्लिम एकजुटता की आवश्यकता बतलाने और समझाने में लगाया था। वही डॉ. जी जी परीख की आज सबसे बड़ी चिंता है।
इस बार का 9 अगस्त गत 78 वर्षों में सबसे महत्व का है। क्योंकि फिर एक बार देश के किसान और मजदूर मैदान में हैं। 250 किसान संगठनों के मंच के अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा 9 मुद्दों को लेकर कार्पोरेट भगाओ, किसानी बचाओ आंदोलन किया जा रहा है। देश के केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा श्रमिक कानूनों की बहाली, निजीकरण पर रोक जैसे मुद्दों को लेकर जेल भरो आंदोलन किया जा रहा है। अगस्त क्रांति का लक्ष्य किसानों और मजदूरों की मुक्ति हासिल करना था। अगस्त क्रांति के शहीदों का वह सपना साकार नहीं हो सका है। आइए हम अगस्त क्रांति के शहीदों को याद करते हुए उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें।
(डॉ. सुनीलम समाजवादी नेता हैं और आप मध्य प्रदेश के विधायक भी रह चुके हैं।)