रविवार को पुस्तक मेले का आखिरी दिन था। कुछ साहित्यकार और रंगकर्मियों ने मिलकर पुस्तक मेले के आखिरी दिन एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ कालीपट्टी बांधकर कविता और जनगीत पढ़ने तथा संविधान की प्रस्तावना का पाठ करने का आयोजन किया।
हॉल 12 के पास प्रदर्शनकारियों में इनमें से कई तो थे ही, अस्मिता थिएटर की टीम के अतिरिक्त आम आदमी पार्टी के विधायक और पंकज पुष्कर, वरिष्ठ साहित्यकार सुशीला टाकभौरे नीलिमा चौहान, पुष्पा विवेक, नीतिशा खलखो, शालिनी श्रीनेट और थे राजेश चन्द्र, नवल किशोर कुमार, संजीव चंदन आदि कई लोग शामिल हुए।
कार्यक्रम के आयोजक संजीव चंदन बताते हैं, “पुस्तक मेले के आखिरी दिन 12 जनवरी को लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने पुस्तक मेले में अपराह्न 3.30 के आस-पास लोकतंत्र के पक्ष में, सीएए और एनआरसी के विरोध में और जेएनयू पर हमले के खिलाफ प्रदर्शन करने का कार्यक्रम बनाया।
हाथों में स्लोगन की तख्तियां लिए लेखकों और संस्कृतिकर्मियों के एक समूह ने पुस्तक मेले में हॉल नंबर 12 के पास प्रदर्शन शुरू किया। अस्मिता थिएटर के कलाकारों ने क्रांतिकारी गीतों के जरिये अपनी बात रखनी शुरू ही की थी कि उपस्थित भीड़ से कुछ लोगों ने बदहवास भारत माता की जय चिल्लाना शुरू किया। धीरे-धीरे भीड़ में अराजक तत्व बढ़े और मोदी-मोदी के नारे लगाने लगे। और ‘गोली मारों सालों को’ जैसे नारे लगाने लगे।
राष्ट्रगान के बरअक्स मोदी और गोली
जब राष्ट्रगान गाया या बजाया जाता है तो तो वहां मौजूद व्यक्तियों से राष्ट्रगान के सम्मान में सावधान की मुद्रा में खड़े होने की अपेक्षा की जाती है। टीवी डिबेट और अख़बारों में अक्सर ही आपने पढ़ा-सुना होगा कि भक्त लोग राष्ट्रगीत को लेकर हाय-तौबा मचाते दिखते हैं। संजीव चंदन ने बताया, “जब लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने राष्ट्रगान जन-गण-मन गाना शुरू किया तो भी गुंडे मोदी-मोदी चिल्लाते रहे और गालियां देते रहे। इस तरह राष्ट्रगान के दौरान उनका गालियां देना और मोदी-मोदी चिल्लाना देश को प्रेम करने वाले और उद्दंड राष्ट्रवाद के पैरोकारों के बीच का फर्क़ दिखाता था। मोदी की पुलिस ने पांच कलाकारों को हिरासत में लिया है।”
उन्होंने बताया कि जैसा कि पिछले छह सालों से होता रहा है। इस बीच पुलिस आ गई। कलाकार-साहित्यकार, महिला-कलाकारों की अगुआई में जहां गुंडों को पीछे हटाने में सफलता पाई थी, पुलिस के आते ही वे गुडें और ज़्यादा उत्साहित होकर कलाकारों की ओर बढ़े। दिल्ली पुलिस ने अस्मिता थिएटर के पांच कलाकारों को एनआरसी विरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें तिलक मार्ग पुलिस थाने ले जाया गया, जिन्हें देर शाम पुलिस थाने से फिर छोड़ दिया गया।
स्त्रीकाल के संपादक और कथाकार संजीव चंदन कहते हैं, “इस बीच अस्मिता थिएटर के निदेशक/ संचालक नाट्यकर्मी अरविंद गौड़ की स्थितिप्रज्ञता काबिल-ए-तारीफ थे। उन्होंने खुद तो पुलिस और गिरफ्तार कलाकारों के मसले को हल करना उचित समझा वहीं यह भी सुनिश्चित किया कि शो जारी रहे।”
नेशनल बुक ट्रस्ट (NBT) ने अपने मंच से नहीं करने दिया संविधान की प्रस्तावना का पाठ
संजीव चंदन बताते हैं कि तयशुदा कार्यक्रम के अनुरूप
साहित्यकार हॉल की ओर बढ़े। योजना थी कि लेखक मंच से संविधान की प्रस्तावना पढ़ेंगे।
उन्होंने पहले से तय किया था कि मंच पर चाहे जिसका भी कार्यक्रम हो, साहित्यकार और रंगकर्मी वहां जाकर
प्रस्तावना पढ़ेंगे। हमने तय किया की वरिष्ठ कवि सुशीला टाकभोरे संविधान की
प्रस्तावना पढ़ेंगी और हम उनका अनुसरण करेंगे।
इत्तेफाक़ से उस समय मंच पर गीता श्री का कोई कार्यक्रम था। लेखक मंच पर उस समय सोनाली मिश्र, कौशल पंवार, गीता श्री, विजय श्री तनवीर मौजूद थी। अरविंद गौड़ ने हमसे कहा कि इस समय मंच पर कथाकार गीताश्री का कार्यक्रम है यदि इस समय हम लेखक मंच से संविधान की प्रस्तावना का पाठ करेंगे तो हमें गीताश्री से भी सहयोग मिलेगा। अच्छा है कि इस वक्त मंच पर कई परिचित साहित्यकार आसीन हैं इससे सुविधा होगी, लेकिन हमें जैसा कि उम्मीद थी साहित्यकारों के पैनल में इस मुद्दे पर मतभेद दिखा।
लेखिका नीलिमा चौहान, पंकज सुबीर से बात करने के लिए गईं कि हमें बीच में पांच मिनट संविधान की प्रस्तावना पढ़ने के लिए वक़्त और इज़ाज़त दीजिए, लेकिन पंकज सुबीर न-नूकुर करने लगे। इस बीच मैंने मंच पर चढ़कर लेखिका कौशल पंवार को संविधान की प्रस्तावना की एक कॉपी पकड़ा दी। वो पढ़ना चाह भी रही थीं और उन्होंने पंकज सुबीर से बात भी कर ली।
उन्होंने बताया कि हमने भी मन में बना लिया था कि उनका प्रोग्राम खत्म हो जाए तभी हम मंच पर चढ़ेंगे और संविधान की प्रस्तावना पढ़ेंगे, लेकिन कार्यक्रम खत्म होते होते गीताश्री मंच के एक छोर से दूसरे छोर पर आईं और कौशल पवार को प्रस्तावना पढ़ने से स्पष्ट मना कर दिया कि हम नहीं पढ़ने देंगे।
मंच पर एक कार्यक्रम के बाद दूसरे कार्यक्रम के बीच शिफ्टिंग का एक दौर होता है। हम उसी समय का इस्तेमाल करना चाहते थे। हमने पुस्तक मेले में लेखक मंच का जिम्मा सम्हालने वाले एनबीटी के ललित लालित्य से बात की तो उन्होंने भी मना कर दिया। लेकिन वो नहीं माने। यद्यपि हमने कहा कि भाई सरकार भी संविधान का 70 साल मना रही है, लेकिन उस पर न प्रभाव पड़ना था और न पड़ा। तब हमने वरिष्ठ साहित्यकार सुशीला टाकभौरे के नेतृत्व में मंच के नीचे ही संविधान की प्रस्तावना पढ़ी। साथ में नीलिमा चौहान, पुष्पा विवेक, नीतिशा खलखो, शालिनी श्रीनेट और थे राजेश चन्द्र, नवल किशोर कुमार, संजीव चंदन आदि साथ रहे।
संविधान की प्रस्तावना जब पढ़ी जा रही थी उस समय मंच पर मौजूद उपरोक्त कोई भी महिला साहित्यकार ने उसमें शामिल होने की नौतिक जिम्मेदारी तक नहीं समझी। आप लेफ्ट विचारधारा के हों या राइट या किसी और विचारधारा के, क्या आपकी ये नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती कि संविधान की प्रस्तावना का जब पाठ हो रहा हो तो उसके सम्मान में साथ खड़े हों? फिर आप किस बिना पर खुद को साहित्यकार होने का दंभ भरते हो? मृणाल बल्लरी कहती हैं, “NBT ने संविधान की प्रस्तावना पढ़ने के लिए मंच नहीं दिया, इसे इतिहास में याद रखा जाएगा।”
साहित्यकार नज़र चुराकर बचते नज़र आए
प्रतिबद्ध रंग समीक्षक राजेश चंद्रा बताते हैं, “पुस्तक मेले में रेवड़िया बटोरने आए तमाम साहित्यकार हमें देखकर दुविधा में पड़ गए। इस विकट संकट के समय में भी अश्लील हंसी ओढ़कर पुस्तक लोकार्पण की सेल्फियां और ग्रुप फोटो अपनी सोशल मीडिया वॉल पर पोस्ट करने वालों के बीच हमारी प्रतिरोधात्मक उपस्थिति रंग में भंग पड़ने जैसी हो गई। जलेस के एक सूरमा से तो हमने निजी तौर पर आग्रह किया शामिल होने के लिए, लेकिन वो अपनी जान छुड़ाकर भाग निकले। कई अन्य साहित्यकार, पत्रकार, संपादक भी इस प्रदर्शन से बचते भागते नज़र आए।
फेसबुक पर प्रतिक्रिया
कई साहित्यकारों ने कल की घटना पर अपने फेसबुक वॉल पर प्रतिक्रियाएं दी हैं। वरिष्ठ आलोचक अजय तिवारी लिखते हैं, “पुस्तक मेले में इस बार कई अप्रत्याशित घटनाएं हुईं। कुछ ‘राष्ट्रवादियों’ ने एक मुस्लिम महिला से बदतमीज़ी की और विरोध होने पर ‘पाकिस्तान’ जाओ के शोर से हॉल नं 11 को आतंकित किया। ऐसी कई घटनाओं के बाद आज सबसे दुखद प्रसंग सामने आया। कुछ युवा एक नुक्कड़ नाटक कर रहे थे।
पहले ‘राष्ट्रवादियों’ ने शोर करके दबाने की कोशिश की। फिर पुलिस को बुला लिया। पुलिस उन युवाओं को प्रगति मैदान से पकड़ कर ले गई। ऐसा निरंकुश व्यवहार आपातकाल में ही देखा है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति पर इस तरह का सार्वजनिक हमला बहुत गंभीर संकेत करता है। अब व्यंग्य और संकेत से काम लेना भी बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है। जब से पुस्तक मेले में इस घटना के बारे में पता चला, तब से मन बहुत व्यथित है।”
वहीं सत्यानंद निरूपम ने एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा है, “आज विश्व पुस्तक मेले में यह भी हुआ कि एक तरफ पब्लिक “जन गण मन” गा रही थी, दूसरी तरफ की पब्लिक ठीक उसी समय जोर-जोर से “मोदी-मोदी” चिल्ला रही थी! कहां गई वह देशभक्त जमात जो राष्ट्रगान के सम्मान के लिए सिनेमाघर तक को कुरुक्षेत्र बनाने पर अमादा थी? वही जमात क्यों अब राष्ट्रगान का निरादर कर मोदी-मोदी का हुल्लड़गान कर रही है? यह रोबो पब्लिक है, वाकई यह रोबो पब्लिक ही है। सनक और पागलपन का ऐसा दृश्य अब डराने लगा है!!”
(पत्रकार और लेखक सुशील मानव की रिपोर्ट।)
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