NCERT विवाद: इतिहास नहीं, बदला जा रहा है वर्तमान भी

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। सरकारें कई बार इतिहास बदलती हैं लेकिन ऐसा शायद कम ही होता कि वर्तमान को भी बदला जाता है। एनसीईआरटी की किताब से कई चैप्टर हटाए गए। जानकार कह रहे हैं कि इतिहास बदला और मिटाया जा रहा है। लेकिन ये सिर्फ इतिहास नहीं है एक पीढ़ी के नज़रिये का भी बदलाव है। इसे लेकर बकायदा ढाई सौ इतिहासकारों ने चिंता भी जताई। लेकिन बात सिर्फ इतनी होती तो कुछ और थी। दरअसल इतिहास के साथ-साथ अब वर्तमान को भी हटाया जा रहा है। अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक 11वीं की सोशियोलॉजी की सिलेबस की किताब अंडरस्टैंडिंग सोशियोलॉजी से पिछले साल कई टॉपिक्स हटाए गए। हटाया गए हिस्से कितने अहम हैं ये जरा हम आपको समझाने की कोशिश करेंगे।

हटाए गए हिस्सों में महाराष्ट्र के विदर्भ में कृषि संकट, प्रदूषण की वजह से हुईं मौतें और वर्ग संबंधी हत्याएं शामिल हैं। अगर गहराई से जानें तो इस टेक्स्ट बुक के चैप्टर 3 ‘एनवायरमेंट एंड सोसाइटी’ में एक सेक्शन है जिसका शीर्षक है कि पर्यावरण की समस्याएं सामाजिक समस्याएं क्यों हैं? इस चैप्टर के पूरे तीन पेज हटा दिए गए हैं। इनमें दो केस स्टडीज़ भी मौजूद थीं। पहली केस स्टडी विदर्भ की है। विदर्भ की दारुण कथाओं के बारे में देश का हर शख्स जानता है। सूखा और कृषि संकट से जूझते किसान। खेती विदर्भ के किसानों के लिए फांसी का फंदा बन कर सामने आई थी। इसी विदर्भ के हालात को सिलेबस में एक केस स्टडी के ज़रिए समझाया गया है। ‘एवरीबडी लव्स अ गुड ड्राउट’ नाम की महत्वपूर्ण किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ के लिखे इस चैप्टर के केंद्र में बूंद-बूंद को मोहताज विदर्भ में वॉटर पार्क और अम्यूज़मेंट सेंटर्स की मौजूदगी का विवरण है।

साईनाथ के लिखे इस आर्टिकल को पहली बार साल 2005 के जून में अंग्रेजी अखबार द हिंदू में ही छापा गया था। इसमें नागपुर के बजरगांव में फन एंड फूड विलेज वॉटर और अम्यूज़मेंट पार्क की मौजूदगी का
जिक्र है, इन वॉटरपार्क में 18 तरह के ऐसे खेल हैं जिनके लिए बड़ी मात्रा में पानी चाहिए होता है। इसी तरह के वॉटर पार्क गुरुग्राम में भी है। हटाई गई लाइन में लिखा है कि ”2004 में बजरगांव को सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित किया था। इससे पहले इसका ऐसा हाल नहीं हुआ था। गांव में मई में छह घंटे से ज्यादा की बिजली कटौती हुई। ये रोज़ाना की ज़िंदगी को प्रभावित करता है। खासतौर से स्वास्थ्य और परीक्षा के लिए तैयीरी करते परेशान बच्चे इससे खासे परेशान हुए। गर्मी में 47 सेल्सियस को छूते पारे ने हालात और खराब कर दिए। हालांकि फन एंड फूड विलेज में ये सारे नियम लागू नहीं होते। इस छोटी सी जगह में इतना पानी है कि बज़रगांव कल्पना भी नहीं कर सकता।”

वहां एक सेकेंड के लिए भी बिजली सप्लाई प्रभावित नहीं होती। यही नहीं, सिलेबस से हटाए गए टेक्स्ट में राज्य के अंदर इस तरह के दूसरे पार्कों का भी जिक्र है। बुलढाना के गांव शेगांव और यवतमाल के भी एक गांव का भी इसमें जिक्र किया गया था।

अब आपको दूसरी केस स्टडी के बारे में बताते हैं। हटाई गए टेक्स्ट का सिरा दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में अमीर और गरीब के बीच आर्थिक असमानता की वजह से बढ़ती खाई से जुड़ता है।अमिता बविस्कर के
आर्टिकल बिटवीन वायलेंस एंड डिज़ायर, स्पेस, पावर एंड आइडेंटिटी इन द मेकिंग ऑफ मेट्रोपोलिटन दिल्ली’ के एक बड़े हिस्से को हटाया गया है। ये आर्टिकल सबसे पहले इंटरनेशनल सोशल साइंस जर्नल में पब्लिश हुआ था। इसके साथ ही उप शीर्षक-‘द अर्बन एनवायरमेंट, अ टेल ऑफ टू सिटीज़’ भी हटाया गया है।

इसमें नॉर्थ दिल्ली के अशोक विहार में हुई एक घटना के जरिए गरीब और अमीर के बीच के संघर्ष को दिखाया गया था। इस घटना के मुताबिक इलाके में मॉर्निंग वॉक कर रहे एक शख्स ने देखा कि 18 साल का एक लड़का आधे-अधूरे कपड़ों में पार्क में टहल रहा था। जिसके बाद उसे दो पुलिस कांस्टेबलों और इलाके में रहने वाले लोगों की ओर से बुरी तरह से पीटा जाता है। लड़का वज़ीरपुर की झुग्गी कॉलोनी से संबंध रखता था। जो लाइनें हटाई गईं हैं उनमें लिखा था कि ”जब घटना के विरोध में झुग्गी के लोगों ने प्रदर्शन किया तो पुलिस ने फायरिंग की जिसमें 4 लोगों की मौत हो गई।”

इस चैप्टर के संशोधित वर्ज़न में दो उपशीर्षकों को मिला कर एक कर दिया गया है। इस चैप्टर को नाम दिया गया है-सस्टेनेबल डेवलपमेंट और इसमें घटनाओं का एक सामान्य विवरण दिया गया है जो कि बिना किसी डिटेल्ड केस स्टडीज़ और उदाहरण के बगैर हैं। वर्ग संघर्ष आज के समाज की सच्चाई है। कॉरपोरेट की जमीन पर राजनीतिक और आर्थिक जीवन की दिशा तय हो रही है। आंकड़े बताते हैं कि गरीब और गरीब तो अमीर और अमीर हो रहे हैं। ऐसे में इस केस स्टडी का समाजशास्त्र के नजरिये से खासा अहम माना जाता रहा है, इसका हटना दरअसल उस सच्चाई से मुंह फेरना है जो हमारे सामने खड़ी है।

कई तरह के महत्वपूर्ण आंकड़ों को भी हटाया गया है। घर के अंदर होने वाले प्रदूषण से मौतों के आंकड़ों को हटा दिया गया है। हटाए गए टेक्स्ट में ये हिस्सा भी शामिल है कि-”हम ये बात नहीं समझते कि खाना बनाने के दौरान होने वाला इंडोर पॉल्यूशन भी प्रदूषण का एक गंभीर स्त्रोत है। द वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन ने अनुमान लगाया कि साल 1998 में 600,000 लोगों ने इंडोर पॉल्यूशन की वजह से जान गंवाई, इनमें से 500,000 लोग गांवों में रहने वाले थे।” किताब में से ये उदाहरण हटा कर इसे वैश्विक संदर्भ में दिखाया गया है।

NCERT ने इन संशोधनों को लेकर किसी भी तरह की घोषणा या ऐलान भी नहीं किया। हालांकि सिर्फ एक बार इस तरह के संशोधन को घोषित किया गया। आउटलुक मैगज़ीन में साल 2006 में पब्लिश हुए एक आर्टिकल के संशोधन की घोषणा एनसीईआरटी ने की थी। इस आर्टिकल का का नाम ‘मीट द पैरेंट्स’ था जो कि किशोर उम्र में हुई शादियों के दुष्चक्र, प्रवासी मज़दूरों और गन्ना फैक्ट्री के संकट से जुड़ा मसला था। सोचने वाली बात ये है कि सोशियोलॉजी की किताब से इस तरह की केस स्टडीज़ हटाने के पीछे की मंशा क्या है? कृषि संकट। गरीब और अमीर के बीच खाई और वर्ग संघर्ष में पुलिस का एकतरफा रवैया। समाज और समाजशास्त्र से जुड़े इन अहम सवालों को अच्छी तरह से जानने के लिए क्या ये जरूरी नहीं कि छात्र इन थ्योरीज़ को असल जि़ंदगी में होने वाली केस स्टडीज से जानें, साथ ही ये सारे आर्टिकल पी साईनाथ समेत ऐसे लोगों ने लिखे हैं जो अपने क्षेत्र में ना सिर्फ खासा मुकाम रखते हैं बल्कि उनके लिखे को खासा शोधपरक और रिसर्च के नजरिए से बेहद जरूरी माना जाता है। सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब अब शायद टेक्स्टबुक में तो मिलेंगे ही नहीं?

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author