Wednesday, June 7, 2023

रायगढ़ की कोयला खदानों में पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन करने पर एनजीटी ने लगाया जिंदल समूह पर 160 करोड़ का जुर्माना

रायपुर/नई दिल्ली। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दो कोयला खनन कंपनियों – जिंदल पावर लिमिटेड (JPL) और साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) पर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले की तमनार तहसील की गारे IV-2/3 कोयला खदानों में पर्यावरण और स्वास्थ्य उल्लंघन के लिए 160 करोड़ रुपए (1.6 बिलियन) का संयुक्त जुर्माना लगाया है।

दुकालू राम व अन्‍य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में एनजीटी का आदेश अदालत के मार्फत नियुक्त एक उच्च-स्तरीय समिति के इलाके में कोयला खदान द्वारा पर्यावरण और स्वास्थ्य क्षति की शिकायतों का आकलन करने के बाद आया और इसी के आधार पर जुर्माना राशि तय हुई। समिति ने जून 2019 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। यह विवादास्‍पद खदान 2004 से 2015 तक JPL के स्वामित्व और संचालन में थी और तब से SECL के कब्‍जे में है।

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“रिपोर्ट मुआवजे के मूल्यांकन के आधार पर स्वीकार की जाती है,” NGT ने 20 मार्च 2020 के आदेश में कहा। इस आदेश में JPL और SECL को एक महीने के भीतर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास राशि जमा करने का निर्देश दिया गया है। आदेश में छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल (CECB) को भी “पर्यावरण में सुधार करने और इलाके की बहाली के लिए राशि का उपयोग करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने” का निर्देश शामिल है।

एनजीटी ने अपने आदेश में SECL को लीज सीमा के चारों ओर ब्लैक टॉप रोड और 125 मीटर चौड़ाई की ग्रीन बेल्ट के विकास के लिए समयबद्ध कार्य योजना पेश करने के साथ उसे कार्यान्वित करने और ट्रिब्यूनल के पिछले आदेश के अनुसार कोयला खनन से प्रभावित ग्रामीणों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने का भी निर्देश दिया। 

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यह आदेश कोसमपल्ली और सरसमल गांवों में रहने वाले उन ग्रामीणों के लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आया है जो खनन कंपनियों की पर्यावरणीय मानदंडों के उल्लंघन और उनकी अन्य अवैध गतिविधियों के खिलाफ लड़ रहे हैं।

हालांकि आदेश के वास्तविक कार्यान्वयन का रास्‍ता अभी भी लंबा होगा, पर प्रभावित गांवों के निवासी और याचिकाकर्ता इसे नैतिक और कानूनी जीत के रूप में देखते हैं। याचिकाकर्ताओं में से एक प्रतिनिधि का कहना है, “एनजीटी का आदेश उन लोगों के लिए एक जीत है, जिन्होंने इलाके में कोयला खदानों होने की वजह से गंभीर वायु प्रदूषण, भूजल में कमी, खदानों की आग और उनके स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव का सामना किया है।

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हम अदालत के आदेश का स्वागत करते हैं और अब राज्य प्रशासन और एनजीटी से आग्रह करते हैं कि जुर्माने की वसूली को सुनिश्चित किया जाए और उन सिफारिशों को खास तौर पर लागू किया जाए जिसमें बहाली, क्षतिपूर्ति और राहत को समयबद्ध तरीके से लागू का निर्देश शामिल है। ऐसा इसलिए ज़रूरी है जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर खनन गतिविधियों का कोई और नुकसान न हो। हम सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं कि जब तक इन सभी उल्लंघनों में सुधार नहीं किया जाता है और प्रतिकूल प्रभाव का असर ठीक नहीं होता है, तब तक इस क्षेत्र में कोई नई खदान नहीं शुरू की जाए।” 

रायगढ़ जिले में कोयला खदानों में चल रहे पर्यावरण और स्वास्थ्य उल्लंघन के संबंध में एनजीटी का यह दूसरा आदेश है। शिवपाल भगत व अन्‍य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया से संबंधित एक अन्य मामले में, तमनार और घरघोड़ा में कोयला खदानों और बिजली संयंत्रों के कारण इस इलाके में बिगड़ती पर्यावरणीय स्थितियों पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने इस साल फरवरी में एक व्यापक आदेश पारित किया था। इस आदेश में ‘एहतियाती’ और ‘सतत विकास’ सिद्धांतों को लागू किया गया और कहा गया कि इलाके में किसी भी तरह के विस्तार या नई परियोजनाओं को सिर्फ गहन मूल्यांकन के बाद ही अनुमति दी जाय।

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इस इलाके में उच्च स्तरीय प्रदूषण को नज़र में रखते हुए कोयला और पर्यावरण मंत्रालय दोनों को अपनी पूरी क्षमता के साथ इन प्रस्तावों की निगरानी करनी होगी। एनजीटी ने भूमिगत खदानों को खुली खदानों में बदलने, निचले या किसी खुले इलाके में राख (fly ash) की डंपिंग करने के खिलाफ, और सख्त रखरखाव करने का निर्देश भी दिया है। इसके साथ ही यह भी कहा है कि सभी उपचारात्मक उपायों की लागत कम्‍पनियों द्वारा वहन की जाएगी।  

एनजीटी ने यह भी निर्देश दिया कि एक प्रभावी तंत्र स्वास्थ्य में सुधार के लिए उपायों की निगरानी करे और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को इसकी देखरेख करने की ज़िम्‍मेदारी दी जाए। ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रदूषण मामले में कहीं भी अदालत ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग को कार्रवाई में शामिल किया है और विशेष रूप से उसे स्वास्थ्य सुधार योजना की देखरेख करने का काम सौंपा है।

एनजीटी का ये हालिया आदेश इस संघर्ष में एक और कदम है जिसमें इलाके के लोग बड़े कोयला खनन निगमों द्वारा पर्यावरणीय मानदंडों के उल्लंघन के खिलाफ लड़ रहे हैं, जिससे गंभीर प्रदूषण हुआ है और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा है।

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याचिकाकर्ताओं ने सभी वकीलों, पर्यावरणविदों और डॉक्टरों को भी धन्यवाद दिया जिन्होंने इस संघर्ष में उनका समर्थन किया है और अभी भी कर रहे हैं और उन विशेषज्ञों को भी धन्यवाद दिया है जिन्‍होंने सर्वेक्षण करने में मदद की है, जिससे पर्यावरण के उल्लंघन और प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों के उनके दावों को साबित करने का एक आधार मिला है।

दोनों केस के याचिकाकर्ताओं की ओर से, दुकालु राम, शिवपाल भगत, भगवती भगत, कान्ही पटेल, दुरपति मांझी, रिनचिन, जानकी , श्रीराम गुप्ता एवं अन्य ने भी इस मामले में सहयोग देने वालों को धन्यवाद दिया है।

(रायपुर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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