Friday, April 19, 2024

किसानों की मदद करने वालों को एनआईए कर रही है परेशानः डॉ. दर्शन पाल

सरकार के साथ किसान नेताओं की आज की बैठक भी बेनतीजा रही, क्योंकि किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने की मांग करते रहे और सरकार के प्रतिनिधि इन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव देते रहे। अगली बैठक 19 जनवरी को तय की गई है। सयुंक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. दर्शन पाल ने कहा कि किसान संगठनों द्वारा 13 और 14 जनवरी को विभिन्न त्योहारों पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाने के आह्वान पर देश-दुनिया से आए भारी समर्थन से किसानों का उत्साह बढ़ा है। अब यह आंदोलन देशव्यापी और जनांदोलन बनता जा रहा है।

डॉ. दर्शन पाल ने कहा कि हम उन तमाम संगठनों और व्यक्तियों का शुक्रिया अदा करते हैं, जिन्होंने किसी भी रूप में किसान आंदोलन का समर्थन किया है। उन्होंने मीडिया को जारी बयान में कहा कि सरकार किसानों की मांग को सुनने के बजाय आंदोलन में शामिल लोगों को परेशान करने पर तुली है, जो समाजसेवी दिल्ली के लिए बसें भेज रहे हैं या शहीद किसानों को आर्थिक मदद कर रहे हैं, उन्हें NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) द्वारा बार-बार जांच के नाम पर परेशान किया जा रहा है। हम इस मानसिक प्रताड़ना का विरोध करते हैं।

उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तावित कमेटी के प्रस्ताव को पहले ही अस्वीकार कर चुके हैं। कमेटी के सदस्यों की सरकार की तरफ झुकाव की खबरें किसी से छुपी नहीं हैं। सदस्य भूपिंदर मान के कमेटी से बाहर होने के फैसले का हम स्वागत करते हैं, साथ ही हम अन्य सदस्यों से भी अपील करते हैं कि अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुए, इन कृषि कानूनों की असलियत को स्वीकार करते हुए वे भी अपना विरोध प्रकट करें और कानूनों को सिरे से रद्द करने की मांग रखें।

डॉ. दर्शन पाल ने कहा कि मुंबई फ़ॉर फार्मर्स के बैनर तले महाराष्ट्र के किसान संगठन, अन्य प्रगतिशील संगठनों के साथ मिल कर 16 जनवरी को विशाल रैली और आम सभा का आयोजन कर रहे हैं। सयुंक्त किसान मोर्चा अपील करता है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग इसमें भाग लें।

उन्होंने कहा कि सयुंक्त किसान मोर्चा द्वारा घोषित 26 जनवरी की किसान गणतंत्र परेड के संबंध में अनेक भ्रांतियां फैल रही हैं। हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि किसानों की इस परेड से भारत सरकार की परेड को नुकसान पहुंचाने का हमारा कोई मकसद नहीं है। 17 जनवरी को किसान संगठनों की मीटिंग में और 18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद ही इस परेड की विस्तृत योजना बताई जाएगी।

मंत्रियों के समूह द्वारा यह दावा करना कि इन कानूनों को रद्द करने संबंधी फैसला सुप्रीम कोर्ट ले, हम इस बयान का विरोध करते हैं। लोकसभा भारत के लोगों द्वारा चुने गए नेताओं का सदन है। ये कानून भी संसद ने बनाए हैं और इनको रद्द भी ससंद करे, यही हमारी मांग है।

सयुंक्त किसान मोर्चा ‘सिक्ख फोर जस्टिस’ नाम से एक संस्था द्वारा भड़काऊ बयानों की कड़ी निंदा और विरोध करता है। उन्होंने कहा कि हम किसानों से आग्रह करते हैं कि इस तरह के संगठनों से जागरूक रहें। दिल्ली के सभी बोर्डर्स पर लगातार किसान बड़ी संख्या में आ रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिल्ली में सभी धरना स्थलों पर मुलताई में 12 जनवरी 1998 को शहीद हुए 24 किसानों को श्रंद्धाजलि दी गई। उत्तराखंड और राजस्थान में लगातार ट्रैक्टर मार्च हो रहे हैं और सैकड़ों की संख्या में किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं। बिहार और मध्य प्रदेश में किसानों के पक्के मोर्चे लगे हुए हैं।

‘किसान दिल्ली चलो यात्रा’ आज 15 जनवरी को ओड़िशा से शुरू हुई। यह यात्रा सात दिनों में ओड़िशा से पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश होते हुए दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए अपने किसानों के पास 21 तारीख को पहुंचेगी। ‘किसान ज्योति यात्रा’ 12 जनवरी से पुणे से शुरू हुई है और यह 26 जनवरी को दिल्ली पहुंचेगी।

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की महिला विरोधी टिप्पणी का जवाब देने महाराष्ट्र के जलगांव से महिलाओं का एक जत्था दिल्ली रवाना होगा। 500 से ज्यादा की संख्या में केरल से किसान शाहजहांपुर बॉर्डर पर पहुंचे हैं। तमिलनाडु के किसानों ने भी कृषि कानूनों की कॉपी जलाकर भारत सरकार के इस तर्क का जवाब दिया है कि केरल और तमिलनाडु में किसान इन कानूनों का समर्थन करते हैं।

उधर, तीनों काले कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में पटना के गर्दनीबाग में विगत 7 जनवरी से जारी अनिश्चितकालीन धरना 30 जनवरी को महागठबंधन के आह्वान पर आयोजित मानव शृंखला को ऐतिहासिक बनाने के आह्वान के साथ आज समाप्त हो गया। पूरे बिहार में चल रहे किसान धरने भी आगे की लड़ाई जारी रखने के संकल्प के साथ संपन्न हो गए।

समापन के मौके पर धरने को संबोधित करते हुए माले राज्य सचिव कॉ. कुणाल ने कहा कि यह लड़ाई अब किसानों की लड़ाई भर नहीं रह गई है, बल्कि यह लड़ाई अब देश की आजादी की दूसरी लड़ाई साबित हो रही है। खेती की गुलामी का मतलब है देश की गुलामी। यदि ये तीन कानून लागू हो गए तो न केवल खेती चौपट हो जाएगी, बल्कि पहले से भुखमरी का शिकार देश की बड़ी आबादी का भूगोल और विस्तृत हो जाएगा।

उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के देश सोमालिया का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां कॉरपोरेट खेती ने पूरे देश को बर्बाद करने का काम किया। वही कहानी भाजपा सरकार देश में दोहराना चाहती है। उन्होंने शिमला का एक उदाहरण देते हुए कहा कि वहां पहले अडानी ग्रुप ने मार्केट से कम कीमत पर सेब की खरीददारी कर ली और अब 100 रुपये प्रति सेब बेचकर भारी मुनाफा कमा रहे हैं। इन कानूनों के जरिये मोदी सरकार ऐसे ही कॉरपोरेटों को फायदा और देश की बर्बादी करने पर आमादा है।

खेग्रामस के महासचिव धीरेंद्र झा ने कहा कि जिन तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग किसान कर रहे हैं, उन पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थगन का आदेश आंदोलनकारी किसानों और भारत की जनता के लिए भरोसेमंद नहीं लग रहा है। उन्होंने कहा कि भाकपा-माले की एक टीम आज ही दिल्ली के सिंघु-टिकरी बॉर्डर से आंदोलन का जायजा लेकर आई है। किसानों का मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय के जरिये भ्रम फैलाने की कोशिश हो रही है, जिसे किसान कतई स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि 26 जनवरी की किसान परेड दिल्ली में ऐतिहासिक होने वाली है।

किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिव सागर शर्मा ने कहा कि आज किसानों के साथ-साथ देश की आम जनता समझने लगी है कि इस देश में आज अंबानी-अडानी का राज चल रहा है। आज देश की आजादी और लोकतंत्र खतरे में है, हमें इसे बचाना है।

अन्य नेताओं ने कहा कि किसानों के आंदोलन और उनके इस फैसले कि वे तीन कानूनों को संपूर्ण रूप से रद्द हो जाने तक अपने आंदोलन को जारी रखेंगे, का हम  बिहार में चल रहे किसान धरनों के माध्यम से समर्थन और स्वागत करते हैं। हम आह्वान करते हैं कि पूरे देश में सभी लोग किसानों के समर्थन में हर तरह से आगे आएं।

धरना से आह्वान किया गया कि खेत-खेती-किसानी बचाओ, गरीबों का राशन बचाओ, देश बचाओ-संविधान बचाओ-गणतंत्र दिवस पर किसानों की परेड को सफल बनाओ!

किसानों के आज महाधरना में ऐपवा की शशि यादव, किसान महासभा के राज्य सह सचिव उमेश सिंह, कार्यालय सचिव राजेंद्र पटेल, जिला सचिव कृपा नारायन सिंह, मुन्ना चौहान, मुखिया जयप्रकाश पासवान, ऐक्टू के रणविजय कुमार, जल्ला किसान मोर्चा के मनोहर लाल आदि शामिल रहे।

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