त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के चुनाव से तीन महीने पहले, जो पिछले साल से स्थगित है, शाही परिवार के सदस्य और पूर्व कांग्रेसी नेता प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा की नई पार्टी द इंडिजिनस पीपुल्स रीजनल अलायंस (टीआईपीआरए) ने शुक्रवार को दो आदिवासी संगठनों- टिपरालैंड स्टेट पार्टी और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ विलय की घोषणा की। विलय के साथ उनका मोर्चा अब राज्य में सबसे बड़ा जनजातीय संगठन बन गया है।
पूर्व में राज्य कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने यह भी घोषणा की कि उनकी पार्टी ने आगामी जनजातीय परिषद चुनावों समेत कई मुद्दों पर आईपीएफटी के साथ तालमेल कायम कर लिया है, जो भाजपा के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन में भागीदार है। उन्होंने बताया कि चुनाव के बाद भी गठबंधन जारी रहेगा।
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनके आदिवासी मोर्चे ने खुद को टिपरा इंडिजिनस पीपुल्स रीजनल अलायंस के रूप में फिर से संगठित किया है। यह कहते हुए कि वह अपने संगठन के पक्ष में जनादेश को लेकर आशावादी हैं, प्रद्योत ने कहा कि यदि चुनाव में जीत हुई तो टिपरा इंडिजिनस पीपुल्स रीजनल अलायंस जिला परिषद में ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ के लिए एक प्रस्ताव पारित करेगा।
उन्होंने कहा, “हम एक टिपरालैंड राज्य की मांग करते हैं, क्योंकि यह हमारे स्थानीय समुदायों की अपनी भूमि में अस्तित्व की गारंटी के लिए एकमात्र सहारा है। टिपरालैंड राज्य की मांग में पूरे राज्य में अन्य स्थानीय लोगों की बस्तियों के अलावा सभी टीटीएएडीसी क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा।
एक संवाददाता सम्मेलन में आईपीएफटी सुप्रीमो और राजस्व मंत्री एनसी देबबर्मा ने कहा, “हम एडीसी के अधिकार क्षेत्र के तहत एक अलग राज्य का निर्माण करके अपने स्थानीय समुदायों के आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए एक लोकतांत्रिक आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। महाराजा प्रद्योत हमारे जैसे ही लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए प्रयासरत हैं। कई दौर की बातचीत के बाद, हमने आखिरकार राज्य में सभी स्थानीय लोगों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने का फैसला किया है।”
दिग्गज नेता ने कहा कि जनजातीय समुदायों के हितों की रक्षा के एक आम उद्देश्य के साथ गठबंधन में भविष्य के चुनाव लड़ने के माध्यम से एक संयुक्त लोकतांत्रिक आंदोलन के निर्माण के मुद्दे पर एक समझ भी बन गई है।
इस बात की पुष्टि करते हुए कि आईपीएफटी और टीआईपीआरए आदिवासी परिषद के चुनावों को एक साथ लड़ेंगे, देबबर्मा ने कहा कि दोनों दलों ने गठबंधन में चुनाव लड़ने पर एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं और अन्य आदिवासी संगठनों से हाथ मिलाने का आग्रह किया है।
आईपीएफटी के महासचिव और जनजाति कल्याण मंत्री मेवार कुमार जमातिया ने कहा कि अलग राज्य की मांग पर सिलसिलेवार बातचीत के बाद उनकी पार्टी का टीआईपीआरए में विलय हो गया। प्रद्योत ने कहा, “हम 24 फरवरी को ग्रेटर टिपरालैंड के लिए एक मेगा रैली का आयोजन कर रहे हैं। हमें भरोसा है कि रैली में स्थानीय लोगों की आशा-आकांक्षा परिलक्षित होगी।”
हालांकि, आईपीएफटी के नेताओं ने स्पष्ट किया कि भाजपा के साथ उनका गठबंधन सुरक्षित है और जारी रहेगा, भले ही वे आदिवासी कल्याण और विकास पर चुनावी वादों को लागू करने को लेकर भाजपा के प्रदर्शन से ‘नाखुश’ हैं। उन्होंने कहा, “हम आदिवासी समुदायों के उत्थान को सुनिश्चित करने के उनके (भाजपा) प्रदर्शन पर खुश नहीं हैं। हालांकि, हम लोगों के जनादेश का सम्मान करते हैं और भाजपा के साथ गठबंधन में रहेंगे।”
आदिवासी नेता ने जोर देकर कहा कि आईपीएफटी एक अलग राजनीतिक इकाई है, जिसे अपने निर्णय लेने के लिए अपने शासक साथी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनावों में आठ सीटों पर विजयी होने वाली आदिवासी पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ाई लड़ी, जिसने राज्य में 25 साल के कम्युनिस्ट शासन के अंत की घोषणा करते हुए 36 सीटें हासिल कीं।
स्वायत्त आदिवासी परिषद का अंतरिम प्रभार राज्यपाल द्वारा निहित किया गया था, क्योंकि राज्य मंत्रिमंडल ने पिछले साल इसके कार्यकाल को छह महीने बढ़ाने का फैसला किया था। इस वर्ष 17 मई को नया कार्यकाल समाप्त होगा, तब तक उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चुनाव कराने का निर्देश दिया था। 12 जनवरी को सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि वह 17 मई तक चुनाव कराएगी।
परिषद की कुल 30 सीटों में से 28 पर चुनाव होना है और शेष दो नामित सदस्यों के लिए आरक्षित हैं। 18 जनवरी, 1982 को गठित परिषद में त्रिपुरा के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68 प्रतिशत शामिल है। एडीसी प्रशासित क्षेत्र में राज्य की एक तिहाई आबादी शामिल है।
(दिनकर कुमार द सेंटिनेल के पूर्व संपादक हैं।)