त्रिपुरा में मिजोरम के 32 हजार ब्रू शरणार्थियों को स्थायी रूप से बसाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक चतुष्कोणीय समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के नौ महीने बाद शरणार्थियों के संगठन ने मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को पत्र लिखा है और इस दौरान सीएम से नहीं मिल पाने पर खेद व्यक्त करते हुए पुनर्वास प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए मिलने का समय मांगा है।
इस साल जनवरी में भारत सरकार ने त्रिपुरा में 23 साल पुराने ब्रू विस्थापन संकट के अंतिम समाधान के लिए एक चतुष्कोणीय समझौते पर हस्ताक्षर किए और घोषणा की कि अक्टूबर, 1997 से छह राहत शिविरों में रह रहे 33,000 से अधिक ब्रू शरणार्थियों को राज्य में स्थायी रूप से बसाया जाएगा। केंद्र ने उनके पुनर्वास के लिए 600 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की।
पुनर्वास प्रक्रिया के हिस्से के रूप में राज्य सरकार ने कानून मंत्री रतन लाल नाथ, मुख्य सचिव मनोज कुमार और राजस्व अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए चर्चा के बाद 19 सितंबर को ब्रू शरणार्थियों को बसाने के लिए 15 स्थलों को मंजूरी दी, हालांकि कुछ पुनर्वास स्थलों को लेकर अभी भी शरणार्थियों को आपत्ति है या स्थानीय निवासी विरोध कर रहे हैं। शरणार्थी नेताओं का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश की लेकिन असफल रहे।
मिजोरम ब्रू विस्थापित पीपुल्स फोरम के महासचिव ब्रूनो एमशा ने मुख्यमंत्री देब को पत्र में लिखा है, “… यह उल्लेख करना अत्यंत खेदजनक है कि आप चतुष्पक्षीय समझौते के नौ महीने बीत जाने के बाद भी हमारे लिए एक बार भी मिलने का समय नहीं निकाल सके। हमें लगता है कि राज्य में अमन चैन लाने के लिए आपकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है, क्योंकि हमलोग उक्त ऐतिहासिक समझौते के जरिए आपके नागरिकों में से एक बन गए हैं।”
ब्रू शरणार्थियों के पुनर्वास को ‘विशेष’ और ‘अद्वितीय’ मुद्दे के रूप में परिभाषित करते हुए ब्रू नेता ने कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सरकार के साथ उचित चर्चा आवश्यक है। उन्होंने लिखा है, “…..आपके पूर्ववर्तियों ने हमारी दयनीय दुर्दशा और कमजोर स्थिति को ध्यान में रखते हुए मुलाक़ात के लिए हमारे अनुरोध को कभी नजरअंदाज नहीं किया था।”
पुनर्वास प्रक्रिया के दौरान आने वाली समस्याओं पर ब्रू संगठन ने कंचनपुर नागरिक सुरक्षा मंच और मिजो कन्वेंशन द्वारा हाल ही में किए गए आंदोलनों पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इस तरह के आंदोलन सांप्रदायिक अशांति को भड़का सकते हैं। ब्रू संगठन का कहना है, “संयुक्त आंदोलन समिति के बैनर तले इन संगठनों द्वारा की जा रही सभी गतिविधियां हदों को लांघ रही हैं। ये दोनों संगठन कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं और इससे त्रिपुरा, मिजोरम और असम में सांप्रदायिक गलतफहमी और संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।”
ब्रू या रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक जनजातीय समुदाय है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग त्रिपुरा, मिजोरम और असम में रहते हैं। त्रिपुरा में वे एक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के रूप में पहचाने जाते हैं। दो दशक पहले उन्हें यंग मिज़ो एसोसिएशन, मिज़ो ज़िरवलाई पावल और मिज़ोरम के कुछ जातीय सामाजिक संगठनों द्वारा लक्षित किया गया था, जिन्होंने मांग की थी कि राज्य में ब्रू को मतदाता सूची से बाहर रखा जाए।
अक्तूबर 1997 में जातीय झड़पों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिज़ोरम के ममित, कोलासिब और लुंगी जिलों से त्रिपुरा की ओर भाग गए, जहां वे राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। तब से 5,000 से अधिक लोग मिजोरम में नौ चरणों में लौट गए हैं, जबकि 5,400 परिवारों के 32,000 लोग अभी भी उत्तरी त्रिपुरा में छह राहत शिविरों में रहते हैं।
केंद्र द्वारा घोषित एक राहत पैकेज के तहत प्रत्येक वयस्क ब्रू शरणार्थी को 600 ग्राम और प्रत्येक नाबालिग को 300 ग्राम चावल का दैनिक राशन प्रदान किया जाता है। प्रत्येक परिवार को नमक भी दिया जाता है। प्रत्येक वयस्क को पांच रुपये दैनिक खर्च के रूप में दिए जाते हैं। साबुन, चप्पल और मच्छरदानी जैसे आवश्यक सामानों के लिए समय-समय पर अल्प आवंटन किया जाता है।
अधिकांश शरणार्थी चावल का एक हिस्सा बेचकर पैसे का उपयोग दवाइयां सहित अन्य आपूर्ति खरीदने के लिए करते हैं। वे सब्जियों के लिए जंगली कंद मूल पर निर्भर हैं और उनमें से कुछ जंगलों में झूम खेती कर रहे हैं। वे स्थायी बिजली की आपूर्ति और सुरक्षित पेयजल के बिना, उचित स्वास्थ्य सेवाओं या स्कूलों तक पहुंच के बिना बांस की झोपड़ियों में रहते हैं।
(दिनकर कुमार पूर्वोत्तर के वरिष्ठ पत्रकार और द सेंटिनल दैनिक के पूर्व संपादक हैं।)
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