नई दिल्ली। देश में नवरत्न समेत तमाम सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कर्मचारियों पर वेतन कटौती की गाज गिरने वाली है। सरकार द्वारा इससे संबंधित आदेश इन कंपनियों को भेजा जा चुका है। इसके तहत प्रद्रर्शन को आधार बनाया गया है। यानी अगर प्रदर्शन अच्छा नहीं हुआ या फिर दिया गया लक्ष्य पूरा नहीं किया गया तो संबंधित कंपनी के कर्मचारियों और अफसरों का वेतन काट लिया जाएगा। इसे सरकार ने मितव्ययिता का नाम दिया है। बीएसएनएल, भेल और कोल इंडिया लिमिटेड में इसको लेकर हलचल मची हुयी है।
बीएसएनएल ने तो लक्ष्य पूरा न होने के अनुपात में जुर्माने का प्रावधान किया है और उस रकम को कर्मचारियों के वेतन से काटने का फैसला किया है। हालांकि इसको लेकर पूरे महकमे में जबर्दस्त नाराजगी है। दरअसल बीएसएनएल पहले से ही संकट में चल रहा है ऐसे में इस तरह की शर्तें लादने पर उसके धराशाई होने की आशंका पैदा हो गयी है।
इसी रास्ते पर कोल इंडिया भी है। ऑडिट समिति की सिफारिश पर कोल इंडिया की सबसे बड़ी सहायक कंपनी साउथ इंडिया कोल फील्ड्स (एसईसीएल) ने एक प्रस्ताव पारित कर वित्तीय लक्ष्य न पूरा करने या फिर उत्पादन के मानकों को हासिल न कर पाने की स्थिति में अफसरों के वेतन से 25 फीसदी कटौती का प्रस्ताव पारित कर दिया था। आपको बता दें कि कोल इंडिया के सालाना उत्पादन में एसईसीएल की 25 फीसदी की हिस्सेदारी है। हालांकि बाद में कंपनी के बोर्ड ने इसे कठोर कदम बताते हुए खारिज कर दिया। लेकिन इन सब कवायदों से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की विफलता के लिए अब उनके कर्मचारियों को दोषी ठहराने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है।
बिजनेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए कोल इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इससे यह संदेश भेजने में मदद मिली है कि चीजों को लापरवाही से नहीं लिया जा सकता है। और कर्मचारियों को प्रदर्शन मानकों पर खरा उतरना होगा।
हालांकि कंपनी के सूत्रों का कहना है कि प्रस्ताव स्वतंत्र निवेशकों द्वारा लाया गया था। जो चाहते थे कि वित्तीय लक्ष्य पूरा न होने और उत्पादन में कमी की स्थिति में जवाबदेही तय हो।
एक आंकड़े के मुताबिक एसईसीएल ने पिछले साल 15 करोड़ टन के उत्पादन का लक्ष्य पूरा कर लिया था लेकिन इस साल अप्रैल से अगस्त के दौरान वह अपने लक्ष्य से 14.3 फीसदी पीछे रही। जिससे यह उत्पादन 5.348 करोड़ टन ही रह गया। साथ ही उसकी बिक्री में भी 9.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है।
बीएसएनएल के मामले में एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि उसने अपनी कंपनी से पूछा कि वह अपनी इच्छा से कर्मचारियों के वेतन पर कैसे फैसला ले सकती है यह तो श्रम कानूनों के खिलाफ है। तो इस पर गुड़गांव स्थित बीएसएनएल शाखा के एक कर्मचारी ने बताया कि अगस्त 2019 की उपलब्धियों की समीक्षा के बाद पाया गया कि सब डिवीजन ने लक्ष्य पूरा नहीं किया है। लिहाजा उसी के अनुपात में जुर्माना लगाकर वेतन में कटौती की गयी है।
हालांकि इसके साथ ही कंपनी ने एक रियायत भी दी है कि अगर लक्ष्य को अगले महीने तक पूरा कर लिया जाता है तो कटे वेतन को उस महीने के वेतन में जोड़कर दे दिया जाएगा।
अभी तक नवरत्नों में शुमार रही भेल के कर्मचारियों को एक दूसरे दूसरे तरीके से झटका लगा है। कंपनी के मैनेजमेंट ने कहा है कि उसके पास नकदी का संकट खड़ा हो गया है। लिहाजा छुट्टी के एवज में मिलने वाले पैसे के भुगतान की प्रक्रिया को रद्द किया जाता है। यानी अवकाश के दिनों का अब किसी तरह का भुगतान नहीं होगा।
मैनेजमेंट ने इस फैसले के पीछे कंपनी की खराब वित्तीय स्थिति का हवाला दिया है। गौरतलब है कि पिछले चार वित्तीय वर्षों में बीएचईएल का आर्डर बुक 1 लाख करोड़ रुपये पर स्थिर बना हुआ है। और पहले साल के मुकाबले 2018-19 में आए आर्डर में 70 फीसदी की कमी हुई है। बिजली क्षेत्र में मंदी ने इसको बड़े स्तर पर प्रभावित किया है।
(बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट।)